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‘डबल इंजन’ की हक़ीक़त: मानव विकास सूचकांक के हर पैमाने पर पिछड़ा है मध्य प्रदेश

आज सच्चाई यह है कि मध्य प्रदेश, जहाँ एक-डेढ़ साल के अंतराल को छोड़ दिया जाय तो पिछले लगभग 20 साल भाजपा ने एकछत्र  राज किया है, वह मानव विकास सूचकांक ( HDI ) के पैमाने पर देश के तमाम राज्यों की तुलना में 30 में 27वें स्थान पर है।
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फ़ोटो साभार : Bloomberg

17 नवम्बर को मध्य प्रदेश में मतदान होने जा रहा है। आम चुनाव के पूर्व जिन 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहा है उनमें MP सबसे बड़ा राज्य है और कई लिहाज से इसके नतीजे बड़ा राजनीतिक सन्देश देंगे। 

दरअसल गुजरात के बाद मध्य प्रदेश ही वह राज्य है जहां सबसे लंबे समय तक ‘डबल इंजन’ की सरकार चली है। इस दृष्टि से डबल इंजन सरकार के बहुप्रचारित मॉडल की असलियत समझने के लिए मध्यप्रदेश एक टेस्ट केस जैसा है।

मोदी और अमित शाह MP को गड्ढे में पड़े बीमारू ( BIMARU ) राज्य से निकालकर विकसित राज्य बनाने का ढोल पीट रहे हैं। बहरहाल, द हिन्दू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक-सामाजिक विकास के पैमाने पर उसकी हालत बेहद खराब है और वह आज देश के सबसे फिसड्डी राज्यों में है।

आज सच्चाई यह है कि मध्य प्रदेश, जहाँ एक-डेढ़ साल के अंतराल को छोड़ दिया जाय तो पिछले लगभग 20 साल भाजपा ने एकछत्र  राज किया है, वह मानव विकास सूचकांक ( HDI ) के पैमाने पर देश के तमाम राज्यों की तुलना में 30 में 27वें स्थान पर है।

आधुनिक उत्पादन और रोजगार का जो सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है मैन्युफैक्चरिंग, उसमें वहां श्रमशक्ति का मात्र 7 % employed है। स्वाभाविक है, इसका राज्य के कुल मूल्य सृजन में योगदान मात्र 9% है ! प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद  में पिछले सालों में और नीचे खिसककर वह देश के 27 राज्यों में 19वें स्थान पर पहुंच गया। शिक्षा के क्षेत्र में भी स्थित बेहद निराशाजनक है। शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर enrolement आदि के पैमानों पर वह देश के 30 राज्यों में 20वें स्थान पर है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में वहां ग्रॉस एनरोलमेंट अनुपात मात्र 21.5 % है।

लाडली बहना की शिवराज सरकार की फ्लैगशिप योजना को बहुत से लोग गेम चेंजर बता रहे हैं। बहरहाल सच्चाई यह है कि महिलाओं बच्चे-बच्चियों से सम्बंधित मामलों में ‘मामा’ के 20 साल के शासन के बाद मध्यप्रदेश देश के सबसे फिसड्डी राज्यों में पहुंच गया है। 

शिशु मृत्यु दर में यह देश के 30 राज्यों में 27वें स्थान पर है। Under Weight बच्चों की दृष्टि से 26वें स्थान पर है। Stunted children ( जिनकी लंबाई उम्र के हिसाब से कम है ) की दृष्टि से MP देश के 30 राज्यों में 25वें स्थान पर है। स्कूल जाने वाली बच्चियों की संख्या की दृष्टि से 5 साल में मामूली सुधार हुआ है, वह 64% से बढ़कर 67.5% पहुंची है। अर्थात मामा के राज में अभी भी एक तिहाई बच्चियां स्कूल का मुँह देखने से वंचित हैं।

इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ से, जो MP से अलग होकर बना राज्य है, तुलना चौंकाने वाली है।

स्थिति यह है कि मध्य प्रदेश अपने से अलग हो कर बने पिछड़े आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ की तुलना में विकास के मूलभूत सूचकांकों में तेजी से पिछड़ता जा रहा है। जबकि पिछले 5 साल छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार को केंद्र के हर तरह के भेदभाव और हमले का शिकार होना पड़ा। 

The Print में निखिल रामपाल की एक रिपोर्ट के अनुसार  " नीति आयोग के मल्टीडाइमेंशनल गरीबी सूचकांक से लेकर अपराध दर तक, छत्तीसगढ़ अपने मूल राज्य (मध्य प्रदेश) की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। "

अर्थशास्त्रियों के अनुसार आधुनिक विकास का जो मूल आधार है अर्थव्यवस्था में कृषि की जगह उद्योगों की भूमिका बढ़ना, उस बुनियादी पैमाने पर मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ समेत देश के तमाम राज्यों की तुलना में पिछड़ता गया है। कृषि पर उसकी निर्भरता बढ़ती जा रही है और औद्योगिक विकास का share घटता जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में 2011-12 और 2022-23 के बीच, कुल आर्थिक गतिविधियों में उद्योग का योगदान ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) का लगभग 34.4 प्रतिशत था, जबकि मध्य प्रदेश में यह  मात्र 20 प्रतिशत था। वहीं छत्तीसगढ़ के GVA में कृषि का योगदान औसतन 30 प्रतिशत है, जबकि मध्य प्रदेश में यह 43 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बना हुआ है।

विकास की समग्र रणनीति का ही परिणाम  है कि नीति आयोग के मल्टीडाइमेंशनल गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के 2023 के आंकड़ों के अनुसार जहाँ छत्तीसगढ़ की 16.37 प्रतिशत आबादी वंचित पाई गई, वहीं डबल इंजन वाले मध्य प्रदेश में वंचितों की आबादी उससे 4% अधिक 20.63 प्रतिशत थी। ठीक इसी तरह अपराध के आंकड़ों में भी मध्य प्रदेश आगे है।

20 साल के राज के बाद जहाँ सामाजिक-आर्थिक विकास की यह हालत है, वहाँ कितनी जबरदस्त anti-incumbency होगी और बदलाव का urge होगा, समझा जा सकता है। 

इस 20 साल में 10 साल डबल इंजन राज का दौर है। जाहिर है आज वहां जो भी 'विकास' अथवा 'अविकास' है, मोदी सरकार उसमें अपनी भूमिका से पल्ला नहीं झाड़ सकती।

कई विश्लेषक शिवराज सरकार के खिलाफ तो एन्टी-इनकंबेंसी को स्वीकार कर रहे हैं, पर वे मोदी सरकार के काम को इससे अलग कर दे रहे हैं। यह माहौल बनाया जा रहा है कि वहां भाजपा सरकार अगर विदा हुई तो उसके लिए शिवराज जिम्मेदार होंगे, वह मोदी के करिश्मे और लोकप्रियता पर कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं होगी, न उसका 4 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव पर कोई असर होगा ! लेकिन वहां अगर भाजपा जीती तो वह मोदी के कारण होगा। 

गाना डबल इंजन सरकार का  गाया जा रहा है और एंटी-इनकम्बेंसी केवल एक सरकार के खिलाफ है, यह कुतर्क नहीं तो क्या है ?

इस धूर्तता के पीछे की राजनीतिक मंशा  स्पष्ट है। यह वहाँ सम्भावित हार की स्थिति में मोदी की छवि को, उनके कथित करिश्मे के myth को चार महीने बाद होने जा रहे आम चुनाव तक बचाये रखने की कवायद है।

सच्चाई यह है कि MP चुनाव में आज जो भी प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं- घनघोर आर्थिक संकट, अभूतपूर्व  बेरोजगारी, आसमान छूती महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली, किसानों-युवाओं-उद्यमियों की तबाही, सबके लिए मूलतः मोदी सरकार की विनाशकारी नीतियां जिम्मेदार हैं। बेशक इसमें कोढ़ में खाज साबित हुआ उन्हीं का दूसरा इंजन- शिवराज सरकार ने अपने चरम भ्रष्टाचार, गरीब विरोधी, संवेदनहीन कुशासन और दमन द्वारा हालात को बद से बदतर बना दिया। आखिरी कार्यकाल आते आते शिवराज मामा योगी की तर्ज पर 'बुलडोजर मामा ' बन गए। उनके बुलडोजर गरीबों मुसलमानों, दलितों के घरों को रौंदने लगे और उनकी पार्टी के नेता आदिवासियों पर पेशाब करने लगे !

ऐसी सरकार की पुनर्वापसी मध्यप्रदेश की जनता के लिए किसी सर्वनाश के नुस्खे से कम कुछ नहीं होगी।

मोदी-शाह के नेतृत्व में पिछले जनादेश का जिस तरह अपहरण किया गया और विधायकों को तोड़कर रातों रात जनता द्वारा चुनी गई सरकार  पलट दी गयी तथा लोकतन्त्र की हत्या की गई, उम्मीद है मध्य प्रदेश के जागरूक, स्वाभिमानी मतदाता उसे भूले नहीं होंगे।

मध्य प्रदेश में भाजपा की पुनर्वापसी रोकना न सिर्फ प्रदेश को सामाजिक-आर्थिक पतन  के गर्त में जाने से रोकने के लिए जरूरी है, बल्कि देश में लोकतन्त्र की रक्षा के लिए चल रही लड़ाई को भी इससे बल मिलेगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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