देश में हेट स्पीच के मामले में 45% तो UAPA के मामलों में 23 प्रतिशत की रिकॉर्ड बढ़ोतरी: NCRB
एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो 2022 में देशभर में 'राज्य के खिलाफ अपराध' के 5,610 मामले दर्ज किए गए, जबकि साल 2021 में इनकी संख्या 5,164 रिकॉर्ड की गई थी। इस तरह के मामलों में उत्तर प्रदेश शीर्ष स्थान पर रहा, जहां कुल 2,231 मामले सामने आए। वहींं, तमिलनाडु में 634 और जम्मू कश्मीर में 417 केस के साथ क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। राज्य के खिलाफ अपराधों में राजद्रोह, यूएपीए, पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने और आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम आदि के मामले शामिल हैं।
हेट स्पीच के मामलों में 45 प्रतिशत बढ़ोत्तरी, यूपी टॉप पर
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में हेट स्पीच के 993 मामले आए थे जो 2022 में बढ़कर 1,444 हो गए। 2022 में सबसे अधिक 217 मामले उत्तर प्रदेश, उसके बाद राजस्थान में 191 और महाराष्ट्र में 178 मामले दर्ज किए गए। जी हां, एनसीआरबी के हवाले से द वायर में छपी खबर के अनुसार, पिछले दो वर्षों में भारत में आईपीसी की धारा 153 ए के तहत पंजीकृत धर्म, जाति, भाषा और जन्म स्थान के आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए नफरत फैलाने वाले भाषण (हेट स्पीच) और अन्य कृत्यों से संबंधित मामलों में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में ऐसे 993 मामले थे जो 2022 में 45% बढ़कर 1,444 हो गए। वर्ष 2022 में सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश (217), उसके बाद राजस्थान (191) और महाराष्ट्र (178) में दर्ज किए गए। हालांकि, ऐसे अपराधों की दर के संदर्भ में पूर्वोत्तर राज्यों मणिपुर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण में तेलंगाना में दर सबसे अधिक थी। मणिपुर में प्रति लाख जनसंख्या 0.5 सबसे अधिक थी, सिक्किम (0.4), अरुणाचल और तेलंगाना (0.3) भी पीछे नहीं थे। इस पैमाने पर उत्तर प्रदेश 0.1 प्रति लाख पर था, जो इन राज्यों से काफी नीचे था।
डेटा से यह भी पता चला है कि पांच राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मिजोरम- जहां हाल ही में चुनाव हुए, में से दो में हेट स्पीच के मामलों में 100% से अधिक की वृद्धि देखी गई। मध्य प्रदेश में 2021 में 37 के मुकाबले 2022 में 108 मामलों के साथ 191% की वृद्धि हुई, वहीं राजस्थान में 2021 में 80 की तुलना में 2022 में 191 मामलों के साथ 138% की वृद्धि हुई। इसी तरह तेलंगाना में 2021 में 91 मामलों के तुलना में पिछले साल 119 मामले दर्ज किए गए, जो 31% की वृद्धि है।
रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में गिरावट देखी गई जहां 2021 के सात के मुकाबले 2022 में केवल पांच मामले दर्ज किए गए और मिजोरम एक अपवाद था जहां पिछले दो वर्षों में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। अन्य प्रमुख राज्यों में तमिलनाडु में 146, आंध्र (109), कर्नाटक (64), असम (44), पश्चिम बंगाल (43), पंजाब (30), हरियाणा (29), दिल्ली (26), जम्मू-कश्मीर ( 16), उत्तराखंड और मणिपुर 15-15 और हिमाचल (10) मामले दर्ज किए गए।
'यूएपीए के तहत दर्ज मामलों में 23 फीसदी की रिकॉर्ड वृद्धि'
बात सिर्फ यूएपीए की करें तो 2021 के मुकाबले साल 2022 के आंकड़ों में 23 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इस एक्ट अंतर्गत पिछले साल सबसे ज्यादा मामले जम्मू कश्मीर में दर्ज किए गए। यहां UAPA अधिनियम के तहत दर्ज केसों की संख्या जहां 2021 में 289 थी। वहीं, 2022 में बढ़कर 371 हो गई। इसके बाद अगला नंबर नॉर्थ ईस्ट राज्य मणिपुर है। यहां 2022 में 167 मामले दर्ज हुए जबकि यह आंकड़ा 2021 में 157 रहा था। यूएपीए के तहत 2021 में कुल 814 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि पिछले साल 2022 में इनकी संख्या बढ़कर 1005 रिकॉर्ड की गई।
ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत 2022 में सर्वाधिक 371 मामले जम्मू कश्मीर में दर्ज हुए। इसके बाद इसके तहत मणिपुर में 167, असम में 133 और उत्तर प्रदेश में 101 मामले दर्ज हुए। टाइम्स ऑफ इंडिया ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डेटा के हवाले से यह जानकारी दी है।
द वायर में छपी खबर के अनुसार, अख़बार ने बताया कि पूर्वोत्तर भारत के विद्रोही समूहों द्वारा किए गए हमले इस दौरान 2021 के 41 से घटकर 26 रह गए और ज्यादातर में सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों के स्वामित्व वाले आर्थिक प्रतिष्ठानों (22) को निशाना बनाया गया। आतंकवादियों, ज्यादातर जम्मू कश्मीर के द्वारा 2022 में किए गए 196 हमलों में से 107 पुलिस थानों या सुरक्षा शिविरों पर किए गए। नक्सलवादियों ने 154 हमले सुरक्षा शिविरों या पुलिस थानों पर किए, जबकि 64 हमले ‘अन्य प्रतिष्ठानों’, 4 हमले आर्थिक प्रतिष्ठानों और 2 हमले रेलवे या आधारभूत संरचनाओं पर किए।
नक्सलियों ने 2022 में 66 आम नागरिकों की हत्या की, जिनमें से 23 मुखबिर थे। यह 2021 से अधिक है, तब उन्होंने 53 आम नागरिकों की हत्या की थी। नक्सलियों ने 4 सुरक्षाकर्मियों की भी हत्या की, जिनमें 2 केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों के थे, हालांकि यह 2021 में की गईं 43 हत्याओं से कम है। डेटा के अनुसार, आंतकवादियों, विशेष तौर पर जम्मू कश्मीर के, ने पिछले साल 22 आम नागरिकों और 25 सुरक्षाकर्मियों की हत्या की, 2021 में यह आंकड़ा 35 आम नागरिकों और 43 सुरक्षाकर्मियों की हत्या का था। 2022 में पूर्वोत्तर के विद्रोही समूह ने एक केंद्रीय अर्द्ध सैन्य बल के कर्मी की हत्या की।
मणिपुर के विद्रोहियों ने यूएपीए के तहत 2022 में 167 मामलों का सामना किया, जो 2021 के 136 से अधिक है। असम में विद्रोहियों के खिलाफ 15 यूएपीए के मामले दर्ज किए गए और अरुणाचल प्रदेश में 12 मामले दर्ज हुए। जम्मू कश्मीर में 2022 में आतंकवादियों के खिलाफ 204 मामले यूएपीए और 121 मामले आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज किए गए। यह संख्या पिछले साल के आंकड़ों से अधिक है, तब 134 मामले यूएपीए के तहत और 113 मामले आर्म्स एक्ट के तहत आतंकवादियों के खिलाफ दर्ज किए गए थे।
खास है कि यूएपीए कानून पहली बार 1967 में लागू हुआ था, लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा वर्ष 2008 व 2012 और इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए हालिया संशोधनों ने इसे और सख्त बना दिया। यूएपीए के प्रावधान के आरोप झेल रहे लोगों के लिए जमानत हासिल करना लगभग असंभव बना देते हैं। कानून कहता है कि अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं तो उसे जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है। नतीजतन, यूएपीए के तहत आरोप झेल रहे ज्यादातर लोग लंबे समय तक जेलों में विचाराधीन कैदियों के रूप में पड़े रहते हैं।
अक्टूबर में फ्री स्पीच कलेक्टिव ने एक रिपोर्ट में बताया था कि साल 2010 से आज तक देश में 16 पत्रकारों पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं, जहां वर्तमान में 7 सलाखों के पीछे हैं।
हेट स्पीच पर अंकुश को मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन
इस बीच नफरत भरे भाषणों पर लगाम लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकों पर सख्त रूख अख्तियार करते हुए कड़ी टिप्पणियां भी की। कोर्ट ने इस साल नवंबर माह के आखिर में याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि नफरत भरे सभी तरह के भाषणों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। हेट स्पीच मामले में दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई फरवरी, 2024 में होगी।
साभार : सबरंग
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