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राहत पैकेज: क्या सरकार ने गरीब की मदद नाम पर भी चालाकी की?

सरकार ने 1.70 लाख करोड़ खर्च करने की बात कही है लेकिन जब वित्त मंत्रालय द्वारा पेश इन खर्चों से जुड़े मदों में दिए पैसे को जोड़ा जाता है तो यह केवल 1.18 लाख करोड़ ही बैठता है।
राहत पैकेज
Image courtesy: BW Businessworld

21 दिन तक भारत बंद है। भारत की पूरी जीवन धारा रोक दी गयी है। इस दौरान सबसे अधिक मार गरीब, बेसहारा-बेघरों पर पड़ने वाली है। गरीबों तक पहुंचने वाली हमारी व्यवस्थाएं इतनी कमजोर हैं कि हम चाहकर भी गरीबों पर पड़ने वाली चोट को रोक नहीं सकते। लेकिन इस मार को कम जरूर सकते हैं। बड़े पैमाने पर केवल भारत सरकार ही ऐसा कर सकती है। हफ्ते भर की गुहार के बाद भारत सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सुनवाई करने आई।  

गरीबों और कमजोर तबके की मदद के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का एलान किया। किसी भी नजर से देखें तो यह एक स्वागत योग्य कदम है। सरकार ने माना तो सही कि बहुत बड़ी आबादी को मदद की ज़रुरत है। लेकिन बात फिर वहीं अटक जाती है कि- है तो सरकार ही। वही सरकार जिसकी नीति, योजनाओं और क़दमों की वजह से अमीर बहुत अमीर और गरीब बहुत गरीब होते चला जाता है।  इसलिए सरकार ने आगे के दिनों के लिए जो एलान किया है, उसके लिए छानबीन की भी ज़रूरत है।

- कोरोना वायरस से निपटने में देश के हेल्थ वर्कर्स की अहम भूमिका को समझते हुए सरकार ने उन्हें अगले तीन महीने के लिए 50 लाख रुपये का मेडिकल इंश्योरेंस कवर देने का फैसला किया है। हेल्थ वर्कर्स कतार में खड़े सबसे पहले लोग हैं, जिन पर कोरोना वायरस का असर पड़ने की सम्भावना हमेशा रहेगी। इसलिए यह ज़रूरी कदम है। इसके साथ अगर नगरों की सफाई में लगे कर्मचारियों के लिए भी यह स्कीम होती तो और बढ़िया होता। क्योंकि नगरों के सफाई कर्मचारी भले हॉस्पिटल में काम नहीं करते हों लेकिन ये भी ऐसे लोग हैं, जो कोरोना वायरस की लड़ाई में सबसे आगे खड़े हैं। उम्मीद है कि इन 21 दिनों के दौरान किसी भी  हेल्थ वर्कर के साथ कोई दुर्घटना न घटे। सब सुरक्षित रहें।  

- अगले तीन महीने के लिए हर गरीब को अब 5 किलो का अतिरिक्त गेहूं या चावल मिलेगा। यानी कुल 10 किलो गेहूं या चावल उसे मिल सकेगा। इसी के साथ 1 किलो दाल भी मिलेगी। साल 2009 में पहली बार फ़ूड सिक्योरिटी एक्ट बना था। इसके तहत गांव के 75 फीसदी और शहर के 50 फीसदी लोगों को बहुत कम दाम पर राशन देने की व्यवस्था की गयी है। यानी यह व्यवस्था पहले से थी और अभी तक हर गरीब को हर महीने 5 किलो गेहूं या चावल तीन रुपये किलो मिल रहा था। अगले तीन महीने के लिए हर गरीब को अब 5 किलो का अतिरिक्त गेहूं या चावल मुफ्त मिलेगा।

यानी कुल 10 किलो गेहूं या चावल उसे मिल सकेगा। इसी के साथ प्रति परिवार 1 किलो दाल भी मिलेगी। फ़ूड कॉर्पोरशन ऑफ़ इण्डिया के अन्न का बहुत अधिक भंडार पड़ा हुआ है। आपने कई बार खबरें भी सुनी होगी कि एफसीआई के गोदामों में अन्न सड़ रहा है। फिर भी बंदी के इस दौर में खाने की संकट की सबसे अधिक संभावना है। इससे बचाने के लिए यह एक बढ़िया कदम है।  इसकी बहुत अधिक जरूरत थी।

बहुत सारे सामजिक संगठनों की यह भी मांग थी कि 1 लीटर तेल और साबुन भी फ्री में दिया जाए। दाल प्रति परिवार एक किलो कम है। कम से कम दो किलो दी जानी चाहिए।  सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

सरकार का दावा है कि इस पर तकरीबन 40 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। जबकि फूड सिक्योरिटी पर काम कर रही प्रोफेसर दीपा सिन्हा अनुमान लगाती हैं कि सरकार एक किलो चावल या गेहूं पर 16 रुपये खर्च कर रही है तो महीने भर में दस किलो चावल और गेहूं की कीमत 160 रुपये होती है। तीन महीने में इसकी कीमत तकरीबन 160 का तिगुना यानी 480 रुपये हुई। इस लिहाज से 80 करोड़ जनता पर कुल खर्चा 38400 करोड़ ही बैठता है। जो कि सरकार द्वारा बताये गए 40 हजार करोड़ से कम है। इसी तरह से अगर 80 रुपये प्रति किलो दाल की कीमत मानें तो तीन महीने का खर्च 4800 करोड़ बैठता है, जबकि सरकार ने 5000 करोड़ का खर्चा बताया है।  

- उज्ज्वला स्कीम के तहत 3 महीने तक सिलेंडर फ्री। सरकार ने बताया है कि 8 करोड़ परिवारों पर तक़रीबन 13 हजार करोड़ खर्च होगा। अभी तक का नियम यह है कि साल भर में अधिक से अधिक चार सिलेंडर का इस्तेमाल करना होता है। जिसमें सरकार को प्रति सिलेंडर 500 रुपये देना होता है। इस लिहाज से हम मान लें तो तीन महीने में अधिक से अधिक एक परिवार 2 सिलेंडर का इस्तेमाल करेगा। यानी एक परिवार के लिए एक हजार रुपये सरकार को अपने जेब से भरना होगा। यानी 8 करोड़ परिवारों पर यह खर्च 8 हजार करोड़ होगा। मान लेते हैं कि यह खर्च दस हजार करोड़ रूपये हो। फिर भी सरकार ने 13 हजार करोड़ खर्च होने की बात कही है। अब आप ही सोचिये। बहुत सारे जानकारों का कहना है कि सरकार तीन महीनों में तीन सिलिंडर पहुंचा पाएगी या नहीं। यह कहना बहुत मुश्किल है।

-   अगले तीन महीने के लिए दो किस्तों में साठ साल से अधिक बुजुर्ग, दिव्यांग और विधवाओं को 1000 रुपये की मदद दी जाएगी। इनकी संख्या तकरीबन 3 करोड़ है। साल 2006 से बुजुर्गों को 200 रुपये की पेंशन मिलता आई है। सोचिये, आज के जमाने में 200 रुपये कितना होता है। सामजिक संगठनों की मांग थी कि इसे बढ़ा दिया जाए। लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया।  

- जन धन योजना के तहत देश भर में तकरीबन 20 करोड़ खाते हैं। अगले तीन महीने तक प्रति माह इसमें 500 रुपये डायरेक्ट ट्रांसफर करने का सरकार ने एलान किया है। जानकारों का कहना है कि यह गरीबों तक पैसा पहुंचाने की बहुत अच्छी टार्गेटिंग नहीं है। नोटबंदी के समय आपने देखा था किस तरह से जन धन खाते खुल रहे थे।  साथ में यह भी समझिये कि जन धन खाते वाले लोगों में केवल गरीब नहीं हैं। यह पैसे भी महिला खाताधारकों को मिलेगा। एक परिवार में हो सकता है कि एक से ज्यादा महिला हों तो एक परिवार को 1500 से अधिक मिल जाए और एक परिवार को कुछ भी नहीं। इसलिए सामाजिक संगठनों की मांग थी कि पैसे की सबसे अच्छी टार्गेटिंग मनरेगा में हो सकती है। क्योंकि यहां एक परिवार के पास एक कार्ड होता है। इसलिए पैसा सही जगह पहुँच पाता। यहां तकरीबन 31 हजार करोड़ रुपये की राशि खर्च होगी। यह राशि कम नहीं है। सरकार को इसकी सही टार्गेटिंग करनी चाहिए थी।  

- सरकार ने एलान किया है कि जहां 100 से कम कर्मचारी काम करते हैं और वे 15 हजार रुपये महीना से कम कमाते हैं तो सरकार कर्मचारी और मालिक के हिस्से दोनों के हिस्से का प्रोविडेंट फंड खुद जमा कर देगी। आंकड़ें नहीं पता है कि लेकिन ऐसे बहुत ही कम फर्म होंगे जहां पर कर्मचारी 15 हजार रुपये से कम कमाते हैं। इसलिए गड़बड़झाला ही लगता है।  

- सरकार ने मनरेगा मजदूरी को 20 रुपये बढ़ाने का एलान किया है। 182 रुपये से 202 रुपये करने की बात कही है। इसे आप कह सकते हैं की सरकार ने मज़ाक किया है। बढ़ी हुई मजदूरी नए वित्त वर्ष से मिलेगी। अप्रैल से मिलेगी। तब मिलेगी जब काम किया जाएगा। जब सरकार से लेकर पटवारी तक का दफ्तर बंद हैं तो आप ही बताइये मनरेगा के मजदूरों को कैसे मजदूरी मिलेगी। कई महीनों से मजदूरी बढ़ाने की बात की जा रही रही थी, सरकार ने केवल यह काम किया है। केवल इसे सुना है। मनरेगा मजदूरों का तकरीबन साढ़े छह हजार करोड़ रुपये बकाया है। सरकार इसका ही भुगतान कर देती।  

- प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत जो पैसा दिया जाना था, उसे अप्रैल में दे दिया जाएगा। यानी किसानों को कुछ भी नया नहीं मिल रहा है, केवल पैसा पहले मिल रहा है। जो पैसा अप्रैल से जुलाई के बीच मिलना चाहिए, उसे केवल अप्रैल में दिए जाने का एलान कर दिया गया है। और इसके लिए 16 हजार करोड़ रुपये राहत पैकेज में शामिल कर लिया गया है। इसे मदद नहीं हाथ की सफाई समझिये।  

- स्वयं सहायता महिला समूहों ( सेल्फ हेल्प ग्रुप ) से जुड़े परिवारों को पहले बैंक से 10 लाख का कॉलेटरल फ्री कर्ज मिलता था, अब 20 लाख रुपये का कर्ज मिलेगा। पहली बात तो यही समझ से बाहर है कि 21 दिन तक भारत बंद रहेगा, इसमें कर्ज लेने वाले पॉलिसी कहाँ तक कारगर रहेगी। कौन से लोग इस समय कर्ज लेने निकलेंगे। इसका क्या फायदा होगा। यह साधारण सी  बात समझ से परे हैं। पता नहीं इस समय सरकार ने यह घोषणा क्यों की ? अब थोड़ा इस साल के बजट को देखते हैं। इस साल के बजट में स्वयं सहायता समूहों के लिए तकरीबन 9 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है। इसमें से अभी तक तकरीबन 1500 करोड़ रुपये बांटे जा चुके हैं।

-  सरकार ने 1.70 लाख करोड़ खर्च करने की बात कही है लेकिन जब वित्त मंत्रालय द्वारा पेश इन खर्चों से जुड़े मदों में दिए पैसे को जोड़ा जाता है तो यह केवल 1.18 लाख करोड़ ही बैठता है। इसलिए बहुत सारे जानकरों का कहना है कि इन खातों में बहुत अधिक एकाउंटिंग तिकड़म भी है।  

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