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सियासत: बिहार में बढ़ रहा धार्मिक और जातिगत संघर्ष !

2024 में लोकसभा और 2025 में राज्य विधानसभा चुनावों होने हैं। ऐसे में ये घटनाएं परेशान करने वाली हैं। इस तरह की घटनाएं राज्य के क़ानून व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर रही हैं।
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पटना से लगभग 80 किलोमीटर दूर सारण जिला के बंगरा गांव में 28 जून को 55 साल के जहीरुद्दीन की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। उससे एक दिन पहले 27 जून को बिहार के मोतिहारी जिला में उज्जवल यादव नाम के एक व्यक्ति से एक खास जाति के दबंगों ने रंगदारी मांगा, नहीं दिया तो उन्हें थूक चटाया, बाल मुड़़ कर उनसे मारपीट की। बाद में इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल भी कर दिया। इन दोनों घटना के बाद दोनों इलाकों में धार्मिक और जातिगत संघर्ष बढ़ गया। हालांकि प्रशासन के द्वारा दोनों इलाकों में शांति व्यवस्था स्थापित कर दी गई। बिहार सरकार दो महीने पहले रामनवमी के दौरान भी शांति व्यवस्था सुनिश्चित करने में विफल रही थी। इसके अलावा हाल के दिनों में यहां जातिगत संघर्ष भी कई इलाकों में देखे गए हैं। गौरतलब है कि 2024 में लोकसभा और 2025 में राज्य विधानसभा चुनावों होने हैं। नि:संदेह ये घटनाएं परेशान करने वाली हैं। साथ ही ये घटना सरकार के कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रही हैं।

घटनास्थल के एक तरफ मंदिर तो दूसरी तरफ था स्कूल

"उस दिन हमलोगों का त्योहार था, बकरीद! लेकिन काम की वजह से डस्ट कारखाना के लिए ताजपुर बसही से ट्रक पर हड्डी लेकर जाना पड़ा। खोरी पाकड़ के पास बतराहा बाजार के कुछ दूरी पर बंगरा गांव के बगल में (नदी पर) ट्रक खराब हो गया। वहां के स्थानीय लोग सब आकर ट्रक के बारे में पूछने लगे। जहीरुद्दीन उन लोगों को सब कुछ सच-सच बता दिया। फिर हड्डी का नाम सुनते ही भीड़ अचानक बढ़ती गई। भीड़ में ही कुछ लोग कहने लगे इन लोगों का पर्व है न इसलिए गाय काटा होगा। पुलिस के कुछ लोग भी आए थे, लेकिन लोगों की इतनी भीड़ थी कि वह भी चले गए। मैं भाग गया वहां से, जहीरुद्दीन पैर से अपाहिज था, इसलिए भाग नहीं सका। भीड़ ने मिलकर मार दिया उसे, मैं नहीं भागता तो मुझे भी मार देते।" कय्यूम खान भारी आवाज में फोन पर पूरी घटना बताते है। वो भी ड्राइवर जहीरुद्दीन के साथ उसी छोटे ट्रक पर सवार थे।

जिस जगह यह घटना हुई है। वहां से जहीरुद्दीन का घर नगरा ओपी क्षेत्र के मझवलिया गांव से 7 किलोमीटर दूर है। वहां सड़क पर एक बड़ा पीपल का वृक्ष है। बंगरा गांव की तरफ जाता हुआ रास्ता है। यहां मुसलमानों की भी अच्छी खासी आबादी है। घटनास्थल से लगभग 50 मीटर की दूरी पर सड़क के एक तरफ मंदिर तो दूसरी तरफ स्कूल है। उस घटनास्थल से सबसे नजदीक नवीन का घर है। नवीन दोनों भाई दरवाजे पर बैठे हुए थे। जब उनसे मैंने पूरी घटना के बारे में पूछा तो उनके बड़े भाई उठकर आंगन की तरफ चले गए। नवीन बताते हैं कि, "मैं रात के 7 बजे के बाद ही एक श्राद्ध भोज में चला गया था। भैया किसी काम से बाहर गए हुए थे। हम लोगों को कुछ पता नहीं है। जो कुछ जानकारी आपके पास है वही मेरे पास भी।"

हड्डियों का कनेक्शन?

बंगरा गांव का 25 वर्षीय लड़का सुमित मोटरसाइकिल से गुजर रहा था। वो बताता है कि,"लगभग 50 से 60 लोग होंगे। इस इलाके में यह लोग गाय का ही काम करते हैं। सब जानते है इस बात को। इसलिए भीड़ उग्र हो गई।"

जहीरुद्दीन की बेटी का शादी बंगरा गांव में ही हुआ है। उनके घर के सदस्य जैबार मियां भी उनके साथ हड्डियों की कंपनी में काम करते थे, वह बताते हैं कि, "सालों से मृत जानवरों की हड्डियों की प्रोसेसिंग का काम हम लोग करते हैं। मालिक मोहम्मद सफाकत को प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन योजना के अंतर्गत मदद भी मिली है। हड्डियों को ट्रेन में लोड करके कानपुर और गुजरात भेजा जाता है। इलाके के कई लोग इस काम से जुड़े हुए हैं।"

पूरे मामले पर सारण पुलिस ने ट्वीट करके बताया कि इस पूरे मामले में 7 अभियुक्तों को गिरफ़्तार किया गया है। साथ ही मृतक के परिजनों के बयान के आधार पर 20-25 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया हैं।

मॉब लिंचिंग की लगातार घटनाओं के बाद भी सरकार की गहरी चुप्पी

आज से लगभग 4 महीना पहले यानी 7 मार्च को छपरा ज़िले के ही रसूलपुर थाना क्षेत्र के जोगिया गांव में भीड़ ने नसीब क़ुरैशी को पीट-पीटकर मार डाला था। तब भी ऐसी ही बातें सुनी गई थीं कि नसीब क़ुरैशी इलाक़े में गोमांस बेचने आया था। वहीं पिछले साल फरवरी में बिहार के समस्तीपुर जिले में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड से जुड़े मोहम्मद ख़लील आलम की भीड़ ने पीट पीट कर हत्या कर दी थी। उनकी हत्या को बीफ से जोड़ा गया था लेकिन पुलिस ने इससे इनकार कर दिया था। बताया जाता है कि खलील की हत्या पैसों के लेनदेन को लेकर की गई थी। पटना के समाजसेवी रैहान खान बताते हैं, "जहीरुद्दीन के घर पर एक भी सत्ताधारी पार्टी के नेता नहीं गए। कहीं कोई शोर शराबा दिख रहा है! मॉब लिंचिंग इनका मुद्दा ही नहीं है। पता नहीं चल रहा कि मुसलमान सिर्फ एक वोट बैंक बनकर रह गया है।"

दिनों दिन बढ़ रहा जातीय संघर्ष

बिहार में जातिगत भेदभाव एक सच्चाई है। 90 के दशक में जाति के नाम पर यहां की जमीन लाल हो गई थी। 2000 ईस्वी के बाद जातीय संघर्ष बिहार में कम हुआ है लेकिन अचानक इस तरह का संघर्ष इन दिनों अखबार की सुर्खियां बनता जा रहा है। राज्य में जातिगत सम्मेलन तेजी से बढ़ा है। स्थिति यह है कि बिहार विधान परिषद के कॉन्फ्रेंस हॉल में परशुराम जयंती और अटल जयंती पर ब्राह्मणों की सभा होती है। 12 जुलाई के दिन मुजफ्फरपुर स्थित साहेबगंज के रहने वाले शिवनाथ राम को सियाराम ठाकुर ने चापाकल में पानी पीने की वजह से मार दिया। अनुसूचित जाति से आने वाले शिवनाथ 60 साल की उम्र में भी आम बेचकर अपने परिवार का पेट पालते थे। पुलिस मामले की जांच में जुटी हुई है। अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।

27 जून को मोतिहारी जिला पीपरा थाना के सागर पंचायत में पूर्व मुखिया के समर्थकों द्वारा उज्जवल यादव नाम के व्यक्ति की बेरहमी से पिटाई की गई फिर उसके सिर का बाल आधा मुंड़ कर थूक चटवाया गया। बाद में वीडियो वायरल कर दिया गया जिसके बाद उस इलाके में दो जाति के बीच संघर्ष तेज हो गया। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया। यह बस हाल कि 10 दिनों में 2 घटनाएं हैं।

बिहार के युवा लेखक और ब्लॉगर प्रियांशु कुशवाहा कहते हैं, "मोतिहारी की घटना ने साबित किया है कि सामंतवादियों के हौसले अब भी बुलंद है। जातीय श्रेष्ठता का बुख़ार नहीं उतर रहा है। मारना-पीटना, थूक चटवाना और बाल मुड़वाने की घटना आए दिन देश में हो रही हैं। उज्ज्वल यादव का वीडियो वायरल हुआ है, हज़ारों पीड़ितों का नहीं होता है। हम सब एकजुट होकर यह तय करें कि कोई भी सामंती मानसिकता का व्यक्ति हमारे समाज में फल-फूल न पाए। ताकि आज जो उज्ज्वल के साथ हुआ है वो कल किसी और के साथ न हो।"

बिहार सरकार के पूर्व अधिकारी और प्रसिद्ध मैथिली लेखक अरुण कुमार झा बताते हैं, "बिहार की पूरी राजनीति ही जाति पर आधारित है और अभी बहुसंख्यक जाति का आंकड़ा महागठबंधन के साथ हैं। बिहार की अल्पसंख्यक समुदाय भी महागठबंधन के साथ हैं। ऐसे में नुकसान बीजेपी का होगा। आपको ताजुब लगा होगा कि यूपी में रामनवमी में एक भी घटना नहीं होता है और बंगाल और बिहार में हो रहा है। इस षड्यंत्र को सरकार को समझना होगा। मॉब लिंचिंग जैसी घटना के लिए कठोर कानून बनाना पड़ेगा। राज्य में जहां भी जातीय और धार्मिक लड़ाई हो वहां तुरंत सरकार के लोगों को जाना चाहिए। नहीं तो धार्मिक-जातिगत राजनीति और भी मजबूत होती जाएगी।"

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