जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

जुलूस
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तुम भी जानो हो जुलूसों में क्या हुआ होगा
हम भी जानें हैं कि पत्थर ये कहां से आए?
ये भी मालूम है कि आग लगाई किसने
ये भी मालूम तुम्हे कौन कहां से लाए
हमको मालूम है- डीजे पे क्या बजाया गया
तुम भी जानो हो- किस वास्ते सुनाया गया
कैसे कैसे यहां लोगों को भरमाया गया
कौन सा झूठ बताकर उन्हें उकसाया गया
कैसे नारे लगे- ये कैसा उन्माद हुआ
तुम भी जानो हो कि किस बात पे फ़साद हुआ
तुमको मालूम है जो गालियां उछालीं गईं
कैसे तलवारें और बंदूकें निकालीं गईं
कैसे पत्थर का किया तुमने बहाना यारा
मेरा ही सर था सच बोलो निशाना यारा
संग भी मुझको लगा, ज़ख़्म भी खाया मैंने
और इल्ज़ाम कि पत्थर भी चलाया मैंने
जो था मज़लूम उसे तुमने बनाया मुलज़िम
सबने देखा है कि किस तौर बनाया मुजरिम
जबकि आए थे तुम ही चलके हमारी गलियां
तुम ही तो आए थे दरवाज़े पे, दरीचे पे
तुम जो चाहते तो मिलकर ही इबादत करते
हम तो चाहते हैं कि हरदम ही मोहब्बत करते
लेकिन तुम हो कि मेरे यार तुम्हारे आका
किसी को प्यार-मोहब्बत भला मंज़ूर कहां
अब तो मुश्किल है तुम्हे और भी वापस लाना
नफ़रतें ज़ेहन में हैं और मुंह को ख़ून लगा
तुमको मालूम है ये सारी हक़ीक़त लेकिन
लेकिन तुमको ज़रा सा भी ये एहसास नहीं
ये जो आग लगाई है तुमने नफ़रत की
इक दिन सारे नशेमन को ख़ाक कर देगी
तुम भी जानो हो जुलूसों में क्या हुआ होगा
हम भी जानें हैं कि पत्थर ये कहां से आए
संग भी मुझको लगा, ज़ख़्म भी खाया मैंने
और ये जुर्म कि पत्थर क्यों उठाया मैंने
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लाउडस्पीकर
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अच्छा है लाउडस्पीकर का बंद होना
लेकिन क्या अब तुम
मेरी चीख़ें सुन सकोगे?
सुन सकोगे
मां की पुकार…
बहन की चीत्कार
साथी की पीड़ा
बच्चों का रुदन
जान सकोगे
बेकारी-बेकसी के मायने
पोंछ सकोगे
किसी के आंसू
हँस सकोगे
किसी के होंठों में
बांट सकोगे
किसी का दुख सुख
हल कर सकोगे
मुश्किल होती ज़िंदगी के कठिन सवाल
अच्छा है
न लाउडस्पीकर पर अज़ान होगी
न हनुमान चालीसा
न घंटे-घड़ियाल बजेंगे
न शंख फूंका जाएगा
अच्छा है
(हालांकि अज़ान के सिवा क्या रुकेगा, कौन रोकेगा सब जानते हैं!)
चलो मान लेते हैं— अच्छा है
लेकिन बहुत बुरा है
सच की आवाज़ को दबा देना
.....
मैं जानता हूं
तुम्हारी मंशा
तुम्हारे मंसूबे
कर्नाटक से लेकर
कश्मीर तक
सीएए से लेकर
एनआरसी तक
पूरी क्रोनोलॉजी
यह भी जानता हूं
कि दर-अस्ल
सत्ता और ताक़त के लाउडस्पीकर (शोर) के बावजूद
मेरी चीख़ें ही नहीं
इसकी आहें, उसकी सिसकियां तक
गूंज रहीं थी
आसमान के आर-पार
नारों की शक्ल में
भेद रहीं थी
तुम्हारे राजप्रासाद की मोटी दीवारें
जानता हूं
तुम्हे चुभती हैं
प्रतिरोध की आवाज़ें
परेशान करते हैं
बदलाव के स्वर
डराने लगता है
अवाम का हौसला
डोलने लगती है
तुम्हारी कुर्सी
तमाम ‘मन की बात’
राष्ट्र के नाम संबोधन
(अ)धर्म संसद
जुलूस, (अ)शोभायात्राएं
डीजे-लाउडस्पीकर
उद्घोष-जयकारों
के बावजूद
नहीं दबा पा रहे हो
तुम हमारा गुस्सा
हमारी बेचैनी
नहीं बना पा रहे हो
नौजवानों को बंधक—पूरी तरह
नहीं रोक पा रहे हो आंदोलन
नहीं तोड़ पा रहे
किसान-मज़दूरों का एका
नहीं छुपा पा रहे
अपनी नाकामी
अपनी हक़ीक़त
अपने माथे का दाग़
सफ़ेद चादर या
ईंटों की दीवारों के बावजूद
नहीं ढांप पा रहे
देश की ग़रीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी
यही वजह है
कि तुम रोज़ उठाते हो
एक नया विवाद
खड़ा करते हो नया वितंडा हिंदू मुस्लिम
बनाते हो एक खलनायक
करते हो संहार—नरसंहार
.....
अब लाउडस्पीकर एक बहाना है
जैसे बहाना था कोविड तब्लीग़ी ज़मात
जैसे बहाना है हिजाब, तलाक़, नमाज़, रोज़े
शाकाहार
जैसे बहाना है
संविधान के नाम पर मनुस्मृति
हिन्दुस्तान के नाम पर हिंदू राष्ट्र
जैसे बहाना है
मेरा होना
दर-अस्ल
तुम कुचल देना चाहते हो
मेरा वजूद
प्रतिरोध का विस्तार
घोंट देना चाहते हो
सच्चाई का गला
ख़त्म कर देना चाहते हो
हमारा संविधान
हमारा लोकतंत्र
सब देख रहे हैं
सब जान रहे हैं
कि तुम कैसे
रात-दिन गली-गली घर-घर
तरह तरह के लाउडस्पीकर
(रेडियो-टेलीविज़न-अख़बार-व्हाट्सऐप-फ़ेसबुक-फ़ेक न्यूज़-प्रोपेगैंडा)
के ज़रिये ही चिल्ला रहे हो
लगातार
कि लाउडस्पीकर बजाना मना है
जबकि तुम मेरी फुसफुसाहट से भी डरते हो
डरते हो मेरी जुम्बिश से
डरते हो अपनी असलियत से
.....
अच्छा है लाउडस्पीकर का बंद होना
लेकिन क्या अब तुम
मेरी चीख़ें सुन सकोगे?
सुन सकोगे
मां की पुकार…
बहन की चीत्कार
साथी की पीड़ा
बच्चों का रुदन
जान सकोगे
बेकारी-बेकसी के मायने
बुलडोज़र
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बुलडोज़र क्या है
सत्ता का यंत्र
ताक़त का नशा
जो कुचल देता है
ग़रीबों के आशियाने
क्योंकि
अमीरों को खड़ी करनी होती हैं
अपनी कारें
बनाने होते हैं
बड़े बड़े शॉपिंग मॉल
बुलडोज़र क्या है
एक ख़ूनी पंजा
जो अधिकार पूर्वक करता है
अनाधिकार चेष्टा
अतिक्रमण के नाम पर
करता है आक्रमण
मारता है झपट्टा
छीन लेता है
मुफ़लिस की मेहनत
रौंद देता है
उसके सपने
रौंद देता है उसके
बच्चों का भविष्य
बुलडोज़र क्या है
एक औज़ार
कमज़ोर के ख़िलाफ़
ताकि उसे और दबाया जा सके
बुलडोज़र क्या है
एक हथियार
दलित आदिवासी
और अल्पसंख्यकों
ख़ासकर
मुसलमानों के ख़िलाफ़
ताकि
किया जा सके
उन्हें दर बदर
किया जा सके मोहताज़
बनाया जा सके
दूसरे दर्जे का नागरिक
ताकि
मिस्मार की जा सकें
कुछ ख़ास मस्जिदे
पुरानी मज़ारें मकबरे
ताकि
अगले चुनावों में
काटी जा सके
वोटों की भरपूर फ़सल
ताकि किया जा सके
चुनाव प्रक्रिया को भंग
ताकि नेस्तनाबूत किया जा सके
हमारा संविधान
हमारा लोकतंत्र
ताकि
तामीर किया जा सके
मनु का हिन्दू राष्ट्र
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आज से पचास या सौ साल बाद
जब गिराया जाएगा कोई राज भवन-राज प्रासाद
तोड़ा जाएगा कोई शॉपिंग मॉल, कॉमर्शियल टॉवर
तो उसके नीचे
निश्चित ही मिलेंगी
टूटी फूटी झुग्गियां झोपड़ियां
मिलेंगे
ठेले रेहड़ी खोखे गुमटियों
के अवशेष
मिलेंगे
ग़रीबों के सपनों के किरचे
बर्बाद गृहस्थियां
टूटे-फूटे रेडियो, ट्रांजिस्टर,
पुराने टीवी
नोकिया के फोन
पिचकी एल्युमिनियम की पतिलियां तश्तरियां
कुछ मिट्टी में मिले चूल्हे
आपके घरों से लाईं गईं
महंगे पेंट की खाली बाल्टियां
कुछ टूटी साइकिलें
और उनपर बंधे टूटे टिफ़िन बॉक्स
कपड़ा बांधकर मरमम्त किए गए ऐनक
रंग-बिरंगे रिबन
कंघियां
ऊन से बुने रुई से भरे गुड्डे-गुड़िया
कुछ मटमैले रजाई गद्दे
बान की खटिया
कुछ बकरियों के खूंटे
मुर्गियों के दड़बे
कुछ माला तस्बीह
गल चुकी पतंगों की अस्थियां
लाल-नीले कंचे-गोलियां
बच्चों के तुड़े मुड़े रंग के डिब्बे
तितलियों के कुछ टूटे छूटे पर
गौरेया का तिनका तिनका बिखरा घोंसला
एक टूटी संदूकची छोटी सी गुल्लक
जिसमें मैंने अपने बचपन में जमा किए थे
ईदी में मिले पैसे
जिसमें से मैं अक्सर कुछ ख़र्च कर आता था
दशहरा के मेले में
मेरे भविष्य के दोस्तो
अगर तुम्हे मिले यह सब सामान
या मिले सिर्फ़ इनका निशान
तो कोशिश करना इन्हें जोड़कर
एक नया भारत बनाने की
क्योंकि हम तो अपनी आंखों के सामने
सिर्फ़ विध्वंस देख रहे हैं
देख रहे हैं विनाशलीला
हां,
अपने नए भारत की नींव में
रख देना मेरी टूटी फूटी हड्डियां
...
मैं जानता हूं
यह कविता पूरी होते न होते
निश्चित ही
कुचल देगा उनका बुलडोज़र
जो बहुत तेज़ी से दौड़ा चला आ रहा है
मेरी और
और हां,
अब यह बदल चुका है
ख़ूनी टैंक में
- मुकुल सरल
अप्रैल, 2022
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