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इज़राइल में ‘न्यायिक सुधारों के ख़िलाफ़ फिर उमड़ा जन प्रतिरोध’ गहरे सामाजिक संकट का नतीजा

सामाजिक संकट ने हर जगह पूंजीवादी जनतंत्र की कलई खोल दी है और आधुनिक समाज के दो प्रमुख वर्ग- पूंजीपति और मज़दूर वर्ग- खुले संघर्ष में एक-दूसरे के आमने-सामने आ खड़े होने को मजबूर हो रहे हैं।
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फ़ोटो साभार : AFP

12 जुलाई को एक बार फिर से इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा अपने वादे से पलट अधिनायकवादी न्यायिक सुधार पारित करने की नीति पर अमल के खिलाफ भारी जन-रोष उमड़ पड़ा है। इजराइली न्यायपालिका की पूरी व्यवस्था को ही पलट डालने की इस नीति के विरोधी उस दिन बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए, मुख्य हाइवे ब्लॉक कर दिए और 10 हजार से अधिक प्रदर्शनकारियों ने देश के प्रमुख बेन-गुरियन हवाई अड्डे के मुख्य टर्मिनल को घेर लिया। तेल अवीव, जेरूसेलम, मोदीन जैसे कई शहरों में पुलिस को वाटर कैनन का प्रयोग करना पड़ा और बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां की गईं। इससे पहली ही रात को सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां छीन लेने वाले प्रस्तावित कानून को संसद में पहले वोट की स्वीकृति हासिल हो गई थी हालांकि इसे कानून बनने के लिए संसद में दो स्वीकृति और जरूरी होंगी। अमेरिकी दूतावास और नेतन्याहू के घर के सामने भी प्रदर्शन हुए हैं।

इन प्रस्तावों के सामने आने के बाद जनवरी से ही इसका विरोध चल रहा था और लंबे व सख्त प्रतिरोध के बाद 25 मार्च को नेतन्याहू ने न्यायिक प्रणाली के खिलाफ एक प्रकार से तख्तापलट करने की अपनी योजना पर अमल को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था। लेकिन धुर-दक्षिणपंथी नेतन्याहू और उनके सहयोगी यहूदी कट्टरपंथी गठबंधन ने विपक्ष के साथ जारी वार्ता को तोडते हुए इस सप्ताह फिर अपनी योजना पर अमल शुरू कर दिया। इससे एक बार फिर जनरोष उबल पडा है।

मार्च में नेतन्याहू द्वारा की गई कार्यनीतिक वापसी की वजह इजराइल के इतिहास का सबसे बड़ा आम जनता व खास तौर पर इजराइली मजदूर वर्ग का विरोध बना था। तब बड़े पैमाने पर सड़कों पर विरोध के बाद मजदूर वर्ग के विशाल हिस्सों ने काम का पूर्ण बहिष्कार कर दिया था। हवाई अड्डे, शिपिंग, परिवहन, विनिर्माण, बिजली-पानी जैसी सेवाएं, स्कूल, डे केयर सेंटर, विश्वविद्यालय और वस्तुतः सभी सरकारी संचालन इससे प्रभावित हुए। पूरी दुनिया में इजराइली दूतावास तक बंद हो गए।

न्यायपालिका की स्वायत्तता पर आधिपत्य के खिलाफ महीनों से तेल अवीव, जेरूसेलम और अन्य शहरों में बड़े विरोध प्रदर्शन जारी थे। 23-24 मार्च के सप्ताहांत की घटनाएं इसमें गुणात्मक वृद्धि थीं। बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए। लगभग 100,000 लोगों की भीड़ ने तेल अवीव की मुख्य सड़क को अवरुद्ध कर दिया। जेरूसेलम में नेतन्याहू के सरकारी आवास के सामने हजारों लोगों ने प्रदर्शन करते हुए पुलिस बैरिकेड तोड़ डाले। इजराइल में सामान्य कार्यदिवस, रविवार, को हड़तालें शुरू हुईं, और इतनी व्यापक हो गईं कि लंबे समय से इजराइली राज्य का प्रत्यक्ष अंग रही ट्रेड यूनियन हिस्ताद्रुत को राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल का आह्वान करने के लिए मजबूर होना पड़ा। कई नियोक्ताओं ने हड़ताल की ताकत को देखते हुए सोमवार 20 मार्च को बंदी की घोषणा की थी। बेन-गुरियन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जाने वाली सभी उड़ानें रद्द कर दी गईं और देश के दो मुख्य बंदरगाह हाइफा और अशदोद बंद हो गए।

इस राजनीतिक विस्फोट के लिए तात्कालिक कारण रक्षा मंत्री योआव गैलेंट की बर्खास्तगी थी। उन्होंने 24 मार्च को न्यायपालिका नियंत्रण की योजना छोड़ने के लिए कहा था क्योंकि इस पर हो रहा राजनीतिक संघर्ष इजराइली रक्षा बलों (आईडीएफ) को विभाजित कर रहा था। सेना में यह संकट उस संघर्ष की ही अभिव्यक्ति है जिसने इजराइल को काफी हद तक हिलाकर रख दिया है और जायनिज़्म या यहूदीवाद के इस बुनियादी मिथक को चकनाचूर कर दिया है कि इजराइल दुनिया के सभी यहूदियों की एकता का प्रतिनिधित्व करता है। इसने यह सच्चाई उजागर कर दी है कि इजराइल भारी सामाजिक, राजनीतिक और वर्ग संघर्षों से त्रस्त है। खुद नेतन्याहू ने स्वीकार किया कि देश "गृहयुद्ध" के कगार पर है।

इस विशाल लोकप्रिय आंदोलन से पता चलता है कि इसमें शामिल मुद्दे बहुत गहरे हैं। लंबे समय से दबाकर रखे गए सामाजिक अंतर्विरोध सत्तारूढ़ वर्ग में परस्पर टकराव के माध्यम से प्रस्फुटित हो रहे हैं और इजराइल की आबादी के व्यापक जनसमूह और सबसे बढ़कर, मजदूर वर्ग, को राजनीतिक मंच पर ला रहे हैं। इस प्रस्ताव का स्थगन, यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय पर संघर्ष का समाधान, भी इस सामाजिक आंदोलन के आगे के विकास को दबा नहीं पाएगा, क्योंकि यह इजराइल के भीतर अत्यधिक आर्थिक असमानता और वैश्विक पूंजीवादी संकट के प्रभाव से जनित है।

लेकिन अपने विशाल पैमाने के बावजूद इस जन आंदोलन की एक बड़ी कमजोरी है जो दूर किए बिना घातक साबित होगी। इसने अभी तक फिलिस्तीनी लोगों के संघर्षों को किसी भी तरह से गले नहीं लगाया है। इजराइली झंडों से पटे आंदोलन में इजराइली कब्जे वाले क्षेत्रों की फिलिस्तीनी आबादी को तो छोड़ ही दें इजराइली अरबों तक से समर्थन जुटाने का प्रयास नहीं किया गया है। सफलता के किसी भी अवसर के लिए यहूदी श्रमिकों और युवाओं को यहूदीवादी विचारधारा के अंधत्व से मुक्त होकर पूंजीवाद के खिलाफ एक आम संघर्ष में यहूदी और अरब श्रमिकों के क्रांतिकारी एकीकरण के आधार पर एक समाजवादी रणनीति अपनानी होगी।

हालांकि न्यायपालिका पर नियंत्रण की कोशिश भ्रष्टाचार के कई सारे मुकदमों से जूझ रहे नेतन्याहू द्वारा अपनी खुद की खाल बचाने की इच्छा से प्रेरित थी लेकिन वास्तविक मुद्दे कहीं अधिक बुनियादी हैं। इन न्यायिक प्रस्तावों का वास्तविक सार उन अंधधार्मिक यहूदीवादियों और फिलिस्तीनी इलाकों में जबरन बसने वाले कट्टरपंथियों की तानाशाही की राह में सभी कानूनी और प्रक्रियात्मक बाधाओं को समाप्त करना है, जो यहूदी आबादी में भी अल्पसंख्यक हैं, पर वहां की राजनीतिक व्यवस्था पर पूर्णतया हावी हैं।

हालिया महीनों की ये घटनाएं इजराइल में राजनीतिक प्रतिक्रिया की लंबी अवधि का नतीजा हैं। श्रमिक वर्ग की अधीनता कायम रखने हेतु वर्ग संघर्ष को व्यवस्थित रूप से दबाने और यहूदीवादी विचारधारा के प्रभुत्व हेतु बनाए गए फौजी राज्य के जरिए इस प्रतिक्रिया को अंजाम दिया गया। फिलिस्तीनी जनता पर जो अत्याचार लंबे अरसे से जारी है, अब उसके लिए लामबंद की गई ताकतों - सबसे बढ़कर, फासीवादी सेटलर (कब्जा करने वाले) तत्व - को यहूदी मजदूरों और युवाओं के खिलाफ भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इन हमलों ने ही उस जन-आंदोलन को भड़काया है जिसने बड़ी संख्या में इजराइलियों को सड़कों पर ला दिया है। उन्होंने धुर-दक्षिणपंथ के खिलाफ अपनी ताकत को आजमाना शुरू कर दिया है। साथ ही उन्होंने यहूदी श्रमिकों और युवाओं को विवश कर दिया है कि वे कट्टर यहूदीवाद के साथ एक राजनीतिक हिसाब वाले टकराव की ऐतिहासिक आवश्यकता को महसूस करें।

इजराइल की एक वर्गहीन राज्य के रूप में यहूदीवादी प्रस्तुति, जहां सभी यहूदी लोग एक झंडे के नीचे एकजुट हो सकते हैं, जहां सामाजिक विभाजन मिटा दिए जाएंगे, हमेशा से ही एक झूठ था। इजराइली राज्य की नींव फिलिस्तीनी अवाम को व्यवस्थित ढंग से उजाड़ने, हिंसा और आतंक के माध्यम से उनके जबरन निष्कासन के माध्यम से रखी गई थी। इसके बाद इजराइली क्षेत्र का विस्तार पश्चिम एशिया में अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिए शक्तिशाली परमाणु-युक्त अस्त्र के रूप में काम करने के मकसद से छेड़े गए युद्धों की श्रृंखला के जरिए हुआ।

इजराइल में हिंसक दमन, धुर-दक्षिणपंथी तानाशाही और फासीवाद की ओर यह मोड़ पूंजीवाद की मौजूदा वैश्विक प्रक्रिया का हिस्सा है। जैसा हाल के महीनों में फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देशों से तुलनात्मक रूप से अल्पविकसित पूंजीवादी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान, घाना, नाइजीरिया, पेरू, आदि में प्रदर्शित हुआ, शासक वर्ग को ऐसे तरीकों के अलावा विश्व पूंजीवाद के लगभग चिरस्थाई बन चुके सामाजिक और राजनीतिक संकट से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता। इस संकट ने हर जगह पूंजीवादी जनतंत्र की कलई खोल दी है और आधुनिक समाज के दो प्रमुख वर्ग, पूंजीपति और मजदूर वर्ग, खुले संघर्ष में एक-दूसरे के आमने-सामने आ खड़े होने को मजबूर हो रहे हैं। 

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

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