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राइट्स ग्रुप्स ने की पत्रकार फ़हाद शाह की रिहाई और मीडिया पर हमलों को बंद करने की मांग

पत्रकार फ़हाद शाह की गिरफ़्तारी को कई लोग कश्मीर में मीडिया पर हमले के रूप में देख रहे हैं, जहां पुलिस अधिकारियों ने हाल के वर्षों में कई मीडिया कर्मियों पर मुकदमा दर्ज कर और उन्हें परेशान किया गया है।
jammu and kashmir
फाइल फोटो।

श्रीनगर: अंतर्राष्ट्रीय राइट्स संगठनों और मीडिया वाचडॉग ने चेतावनी दी है कि जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में सरकारी अधिकारी, मीडिया के खिलाफ कई विवादास्पद कानूनों का "दुरुपयोग" कर  "शांतिपूर्ण असंतोष" को दबाने की कोशिश कर रहे हैं।

राइट्स ग्रुप्स के बीच यह ताजा चिंता जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा पत्रकार फ़हाद शाह को गिरफ्तार करने के बाद पैदा हुई है। पिछले सप्ताह की शुरुआत में 33 वर्षीय कश्मीरी पत्रकार को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा के एक पुलिस स्टेशन में बुलाया गया था, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था।

शाह, श्रीनगर स्थित डिजिटल समाचार प्रकाशन द कश्मीर वाला के संपादक हैं और उन पर उग्रवाद का "महिमामंडन" करने और लोगों को कानून और व्यवस्था बिगाड़ने के लिए "उकसाने" का आरोप लगाया गया है। 

शाह के खिलाफ श्रीनगर के सफाकदल थाने और शोपियां के इमामसाहिब थाने में दो मामले दर्ज भी दर्ज़ किए गए हैं। पुलिस के मुताबिक, उसे पुलवामा पुलिस स्टेशन में दर्ज़ एक ताजा मामले में गिरफ्तार किया गया है। 

पुलिस द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, "यह भी पता चला है कि ये फेसबुक यूजर्स ऐसे पोस्ट अपलोड कर रहे हैं जो आतंकवादी गतिविधियों का महिमामंडन करते हैं और कानून लागू करने वाली एजेंसियों की छवि खराब करने के अलावा देश के खिलाफ दुर्भावना और असंतोष पैदा करना चाहते हैं।"

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा है कि मामले की जांच जारी है, लेकिन उसने शाह को एक पत्रकार के रूप में संदर्भित करना मुनासिब नहीं समझा है। 4 फरवरी को उसकी गिरफ्तारी के बाद, अदालत ने उसे दस दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया है।

शाह ने 2013-14 में लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (SOAS) में अध्ययन किया था और तब से उनके लेखन के काम को टाइम, अटलांटिक, द गार्जियन, क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर और फॉरेन अफेयर्स सहित अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से प्रकाशित किया गया है।

कश्मीर में कई लोग, शाह की गिरफ्तारी को अशांत क्षेत्र में मीडिया पर कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं, जहां 5 अगस्त 2019 में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को निरस्त करने के बाद से पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर पत्रकारों को तलब किया, मुक़दमे लगाए, परेशान किया और अपमानित किया है। 

संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) और एमनेस्टी जैसे राइट्स निकायों ने स्थानीय पत्रकारों पर व्यापक हमले की निंदा करते हुए कई बयान जारी किए हैं। हालाँकि, इस क्षेत्र में व्यापक नागरिक समाज पर भी पुलिस/प्रशासनिक कार्रवाई की गई है जिसमें कार्यकर्ता, राजनेता और अन्य भी शामिल हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता पर चिंताएं बढ़ रही हैं क्योंकि शाह इस साल गिरफ्तार किए गए दूसरे पत्रकार हैं। इससे पहले जनवरी में, शाह के अधीन काम करने वाले एक नवोदित पत्रकार सज्जाद गुल को गिरफ्तार किया गया था और उन पर विवादास्पद सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इन दोनों गिररियों से कश्मीर में पत्रकारों में अनिश्चितता पैदा हो गई है।

पत्रकारों के खिलाफ अब तक लगाए गए आरोपों में उनकी सुरक्षा को लेकर कई चिंताएँ  शामिल हैं, जिनमें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत गंभीर धाराएं लगाई गई हैं, जिसके तहत दोषी पाए जाने पर किसी भी व्यक्ति को सात साल तक की क़ैद हो सकती है।

एचआरडब्ल्यू की दक्षिण एशिया निदेशक, मीनाक्षी गांगुली ने मंगलवार को एक बयान में कहा है कि, "फ़हाद शाह की गिरफ्तारी इस बात की तसदीक करती है कि भारत सरकार मीडिया के काम और दुर्व्यवहार पर रिपोर्टिंग करने के एवज़ में मीडिया को डराने का नया प्रयास है।"

गांगुली ने शाह और अन्य पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आलोचकों की तत्काल रिहाई की मांग की है, जिन्हें एचआरडब्ल्यू ने "राजनीति से प्रेरित आरोपों" के रूप में संदर्भित किया है। उन्होंने कहा कि "कठोर कानूनों" के तहत उत्पीड़न को रोका जाना चाहिए।

गांगुली ने कहा, "जब सरकार पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को चुप कराने के लिए सत्तावादी हथकंडे अपनाती है, तो वह केवल इस बात की तसदीक करती है उसके पास छिपाने के लिए बहुत कुछ है।"

निंदा के बावजूद, हमले बढ़ते जा रहे हैं। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा प्रकाशित 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 180 देशों में से 142वें स्थान पर है। पेरिस स्थित मीडिया प्रहरी के अनुसार, 2022 की शुरुआत से स्थानीय अधिकारियों द्वारा सूचना के अधिकार के उल्लंघन में वृद्धि हुई है।

आरएसएफ के प्रवक्ता पॉलीन एडेस मेवेल ने शाह की रिहाई की मांग करते हुए कहा कि, "एक पत्रकार को अपना काम करने और समाचार को कवर करने के लिए जेल में नहीं डाला जा सकता है और इसके लिए उसे अपना पूरा जीवन जेल में नहीं बिताना चाहिए।"

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने 6 फरवरी को जारी एक बयान में कहा है कि कश्मीर में मीडिया की स्वतंत्रता का स्थान लगातार काफी कम होता जा रहा है।

गिल्ड ने बयान में कहा गया है कि, "राज्य प्रशासन को लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करना चाहिए और उसने साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर पत्रकारों के उत्पीड़न को रोकने का आग्रह किया है।"

पिछले साल सितंबर में, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने श्रीनगर में चार वरिष्ठ पत्रकारों के आवासों पर छापा मारा था। बाद में उन्हें थाने बुलाया गया और घंटों पूछताछ की गई थी।

दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने वाली कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने छापेमारी की निंदा की है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त विशेष प्रतिवेदक ने जब लिखा कि "जम्मू और कश्मीर की स्थिति को कवर करने वाले पत्रकारों की मनमानी हिरासत और धमकी" को रोकने के लिए कदम उठाने की जरूरत है, उसके कुछ हफ्तों बाद ही यह छापेमारी हुई थी। संयुक्त राष्ट्र के निकाय ने कश्मीरी पत्रकारों फ़हाद शाह, औकिब जावीद, सज्जाद गुल और काज़ी शिबली का उल्लेख किया है, जिन्हें कथित तौर पर जम्मू-कश्मीर अधिकारियों ने कई बार परेशान किया था।

इस बीच, कश्मीर पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के ट्रेलर के खिलाफ एक मजबूत ऑनलाइन अभियान के कारण इसकी रिलीज में देरी हुई है। फिल्म के निर्माताओं ने बढ़ती चिंताओं के कारण इसके ट्रेलर को हटा दिया गया था।

रेडफिश मीडिया के फिल्म निर्माताओं ने एक बयान में कहा है कि, "कश्मीर पर हमारे वृत्तचित्र में शामिल पत्रकारों और योगदानकर्ताओं की सुरक्षा की चिंताओं के मद्देनज़र हमने इस वृत्तचित्र या डॉक्युमेंट्री के ट्रेलर को हटाने और इसकी रिलीज को स्थगित करने का कठिन निर्णय लिया है।"

बयान में कहा गया है कि, "हमें इस बात की समझ है कि कश्मीर एक उत्तेजक विषय है, लेकिन हमला हमारे काम पर नहीं था, बल्कि नई दिल्ली में रूस के एक भ्रमित दूतावास पर लक्षित प्रतिक्रिया को देखकर हम चकित रह गए थे।"

रेडफिश के ट्विटर-हैंडल ने इशारा दिया है कि यह एक रूसी सरकार संबंधित मीडिया था जिसके कारण रूसी अधिकारियों की ओर निर्देशित ऑनलाइन आलोचकों को गुस्सा आया था। दिल्ली में मौजूद रूसी दूतावास ने बाद में एक स्पष्टीकरण दिया कि ट्विटर हैंडल भ्रामक है और अधिकारियों का फिल्म निर्माताओं के संपादकीय निर्णय से कोई लेना-देना नहीं है।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 

Rights Groups call for Journalist Fahad Shah's Release, end of Media Crackdown in Kashmir

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