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अब आसमान छूती प्याज़ की क़ीमतें 

आम मौसम संबंधी मुद्दों के अलावा, क्या कोई बड़े व्यापारियों और जमाखोरों के बीच मिलीभगत से बढ़ी क़ीमतों में हेराफेरी की जांच कर रहा है?
onion price hike
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

जबकि खुदरा बाजारों में प्याज की कीमतें 30-50 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच चल रही हैं, इसमें जो बात उल्लेखनीय है और दिलचस्प है वह यह कि चार प्रमुख प्याज उत्पादक राज्यों में थोक कीमतें पिछले महीने में लगातार बढ़ी हैं। ये चार राज्य और देश के वार्षिक प्याज उत्पादन में उनका योगदान 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार इस प्रकार है: महाराष्ट्र (43 प्रतिशत); मध्य प्रदेश (15 प्रतिशत); कर्नाटक (9 प्रतिशत); और गुजरात (8 प्रतिशत)। यह भारत के कुल प्याज उत्पादन का तीन-चौथाई है। नीचे दिया गया चार्ट जुलाई-अगस्त 2023 के साथ-साथ पिछले वर्ष की समान अवधि के लिए इन चार राज्यों में औसत साप्ताहिक थोक मूल्य दिखाता है। यह कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित पोर्टल एगमार्कनेट पर उपलब्ध मूल्य डेटा पर आधारित है

प्याज की थोक कीमतें, 24-31 जुलाई 2023 वाले हफ्ते में 1,161 रुपये प्रति क्विंटल (100 किलो) थीं। एक महीने बाद, यह लगभग 60 प्रतिशत बढ़कर 1,819 रुपये प्रति क्विंटल हो गई थीं। यह कोई मौसमी घटना नहीं है। इसी समय के दौरान, पिछले साल के डेटा (उपरोक्त चार्ट में भी दिखाया गया है) से भी पता चलता है कि 2022 में इस महीने में कीमतें कमोबेश स्थिर थीं – जो 1,014 रुपये से 1,022 रुपये प्रति क्विंटल के बीच थीं। पिछले साल की तुलना में, इस साल 16-23 अगस्त के दौरान प्याज की कीमतें लगभग 80 प्रतिशत तक बढ़ गई थीं।

प्रमुख प्याज़ उत्पादक राज्यों में ये कीमतें थोक व्यापार से संबंधित हैं। जैसा कि सर्वविदित है, बड़े व्यापारी अंततः इन इलाकों से प्याज का स्टॉक इकट्ठा करते हैं और फिर इसे या तो देश भर में, विशेष रूप से शहरी केंद्रों में खुदरा बिक्री के लिए ले जाते हैं, या फिर निर्यात कर देते हैं। यहीं पर कीमतों में बड़ा उछाल आता है। मान लीजिए, लगभग 20 रुपये प्रति किलोग्राम (2,000 रुपये प्रति क्विंटल) पर प्याज खरीदने के बाद बड़े व्यापारी इसे दिल्ली में 30-40 रुपये प्रति किलोग्राम में बेच सकते हैं और यह उपभोक्ताओं तक 50-60 रुपये प्रति किलोग्राम की भारी कीमत पर पहुंचता है। आख़िरकार, जैसा कि अगस्त महीने में हुआ था।

2022-23 में प्याज का उत्पादन 318 लाख मीट्रिक टन (LMT) था जो पिछले वर्ष (316.98 LMT) के मुक़ाबले थोड़ा अधिक था। 2022-23 के मामले में प्याज की शीतकालीन फसल बड़े पैमाने पर हुई, जिससे थोक बाजारों में बहुतायत हो गई। रिपोर्टों के मुताबिक, इस साल मार्च में कीमतें गिरकर 1-2 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई थीं, जो कीमतें प्याज के किसानों के दुख को भी बयां करती हैं, कई लोग कटाई और मंडियों ले जाने की ट्रांसपोर्ट की लागत वहन करने के बजाय फसल को वापस जमीन में गाड़ देते हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक, निर्यात भी पिछले साल के 5.04 एलएमटी की तुलना में 2022-23 में 6.38 एलएमटी तक बढ़ गया था। किसानों ने निर्यात कारोबार करने वाले बड़े व्यापारियों को प्याज बेचना पसंद किया क्योंकि उन्हें घरेलू स्तर पर गिरती कीमतों की तुलना में बेहतर कीमतें मिल रही थीं।

हालाँकि, यह कहानी सब खराब मौसम के कारण समाप्त हो गई - पहले, गर्मियों की शुरुआत में असामयिक गर्मी, उसके बाद बेमौसम बारिश ने इसे समाप्त कर दिया। पहली घटना यानि असामयिक गर्मी के कारण प्याज तेजी से पका - हालांकि पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ - और दूसरी घटना यानि बेमौसम बररिश के कारण प्याज़ के जीवन में भारी कमी आई क्योंकि बढ़ते सीलन के मौसम के कारण फंगस का संक्रमण होता है और प्याज/बल्ब सड़ने लगते हैं।

भारत में प्याज का उत्पादन तीन फसल चक्रों के ज़रिए पैदा होता है - रबी (सर्दियों), ख़रीफ़ (मानसून) और देर वाली ख़रीफ़ का मौसम। रबी की फसल कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत मुहैया कराती है और सर्दियों के अंत से लेकर पूरी गर्मियों तक और मानसून तक प्याज की आपूर्ति करती है। उसके बाद, ख़रीफ़ की फ़सल शुरू हो जाती है और सितंबर तक आपूर्ति मिलती है। फिर देर से आने वाला ख़रीफ़ शुरुआती सर्दियों के महीनों के लिए आपूर्ति करता है। याद रखें: प्याज को कोल्ड स्टोरेज में नहीं रखा जा सकता है, इसे सिर्फ खुले में रैक में ही  रखा जाता है, जहां हवा का संचार अच्छा रहे ताकि बल्ब सड़े ना।

आम तौर पर, सितंबर-अक्टूबर के आसपास एक कमज़ोर समय आता है, क्योंकि ख़रीफ़ की आपूर्ति ख़त्म हो जाती है और उसके बाद की फ़सलें अभी आनी बाकी होती हैं। यही वह समय है जब कीमतें बढ़ने की उम्मीद होती है।

लेकिन तर्क दिया जा रहा है कि खराब मौसम के कारण फसलों को हुए नुकसान के कारण शेड्यूल गड़बड़ा गया है और पहले ही कमी पैदा हो गयी है। दरअसल, ऐसी भविष्यवाणियां हैं कि सितंबर में कीमतें अपने चरम पर पहुंच जाएंगी।

सरकार मुह बाए खड़े इस संकट की चपेट में आने के बाद जागी। सबसे पहले, इसने निर्यात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगाया, जो निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का एक तरीका है। फिर उसके कुछ दिन बाद 20 अगस्त को वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने घोषणा की कि सरकार किसानों से 2,410 रुपये प्रति क्विंटल की दर से प्याज खरीदेगी। यह किसानों के लिए थोड़ी बेहतर कीमत सुनिश्चित करने का एक प्रयास था, साथ ही इसे खुदरा स्तर के उच्चतम स्तर से नीचे लाने का भी प्रयास था। उन्होंने यह भी घोषणा की कि खरीद लक्ष्य को 3 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 5 लाख मीट्रिक टन किया जाएगा।

यह उपाय जरूर बाजार को कुछ हद तक ठंडा कर सकते हैं, लेकिन बढ़ती कमी के कारण, इस बात की भी संभावना है कि सितंबर में प्याज की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंच जाएंगी। 

नीति निर्माताओं से लेकर बाजार विश्लेषकों तक, कोई भी बड़े व्यापारियों द्वारा जमाखोरी की संभावना और कीमतों पर इसके विनाशकारी प्रभाव के बारे में बात नहीं कर रहा है। यह सर्वविदित है कि नासिक (जहां सबसे बड़ा थोक प्याज बाजार है) और मुंबई में बड़े व्यापारियों के पास गुटबंदी और प्याज की जमाखोरी का एक लंबा इतिहास रहा है। 2012 में ही, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने एक अग्रणी रिपोर्ट में इस पर प्रकाश डाला था। इसमें अन्य बातों के अलावा, व्यापारियों और कमीशन एजेंटों के बीच "मिलीभगत" की ओर इशारा किया गया था; महाराष्ट्र और कर्नाटक प्याज व्यापार में "बेहतर कीमतों को हासिल करने लिए "कम कीमत पर बोली" लगाना; जानबूझकर जमाखोरी करना ताकि कृत्रिम मांग की स्थिति पैदा की जा सके" और फिर कीमत बढ़ाकर अंधा मुनाफा कमाया जा सके।

प्रतिस्पर्धा आयोग ने कुछ उपाय सुझाए थे जिसमें सख्त निगरानी और रेगुलराइजेशन/नियामक हस्तक्षेप की भी बता कही गई थी। तब से ज्यादा-कुछ बदला नहीं है। वास्तव में, इन तथाकथित मुक्त बाज़ारों को रेगुलराइजेशन/विनियमित करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति पहले से भी कम हुई लगती है। इसलिए, मौजूदा प्याज संकट में इन लंबे-चौड़े तरीकों से प्याज की कीमतों में हेरफेर की एक अलग संभावना है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Onion Prices Zooming Up to the Moon

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