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महाराष्ट्र: मौसम अनुकूल फिर भी क्यों बेहाल हैं प्याज़ उत्पादक किसान?

यदि प्याज़ उत्पादक किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब दाम नहीं मिला तो कहा जा सकता है कि किसानों के लिए क़ुदरत से जुड़ी आपदाओं का संकट दूसरे नंबर पर है। पहला संकट है सरकार की सोच की कमी।
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महाराष्ट्र में इस्लामपुर की मंडी में प्याज़ की थोक फ़सल। फ़ोटो: विक्की सांवत

प्याज की कीमतों में गिरावट से दुखी होकर महाराष्ट्र के नासिक जिले में एक किसान ने अपनी फसल में आग लगा दी और होलिका उत्सव के दिन ये विरोध प्रदर्शन किया। बता दें कि प्रति किलोग्राम प्याज की कीमत गिरकर 2 से 4 रुपए तक हो गई है, जिससे किसानों में भारी असंतोष है।

भारत चीन के बाद प्याज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। लेकिन, भारत की इस कामयाबी के पीछे प्याज उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महाराष्ट्र के किसानों का हाल बेहाल है। ऐसा तब है जब किसानों की मेहनत को कुदरत ने सहारा दिया, मौसम अनुकूल था और प्याज का उत्पादन बहुतायत में हुआ। बावजूद इसके, यदि प्याज उत्पादक किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब दाम नहीं मिला तो कहा जा सकता है कि किसानों के लिए कुदरत से जुड़ी आपदाओं का संकट दूसरे नंबर पर है। पहला संकट है सरकार की सोच की कमी।

दरअसल, प्याज संकट के पीछे के कारणों में अपर्याप्त भंडारण व्यवस्था प्रमुख है। इसके अलावा, प्याज प्रसंस्करण उद्योगों की उपेक्षा होती रही है और इस मुद्दे पर अब भी राज्य सरकार असंवेदनशील ही दिख रही है।

वैसे तो कृषि का संकट पूरे किसानों पर ही है, लेकिन प्याज किसानों को सरकार से ज्यादा ही बेरुखी झेलनी पड़ती है। वजह, प्याज गेहूं और धान की तरह राजनीतिक रूप से संवेदनशील फसल नहीं है। गेहूं और धान के मामले में सरकार किसानों से खरीद की योजना तो बनाती है। लेकिन, दूसरी ओर उत्पादन लागत से ज्यादा प्याज के बाजार भाव में कमी आने के चलते प्याज उगाने वाले महाराष्ट्र के किसानों के सामने जीवन-मरण की समस्या के बावजूद सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। बाजार मूल्य में इस गिरावट के कारण राज्य के कई किसान प्याज की कटाई का खर्च वहन करने में असमर्थ हैं। लिहाजा, वे कड़ी मेहनत से उगाई गई प्याज की फसल को मिट्टी में दबाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

अहम बात यह है कि भारत में प्याज को संरक्षित करना और उसका निर्यात करना आसानी से संभव है। लेकिन, इसके लिए सरकार ने आवश्यक सुविधाएं नहीं बनाई हैं, जबकि कहा गया था कि देश के किसानों के उत्पादन को दोगुना किया जाएगा, यदि ऐसा करने का सपना देखा गया था तो उसके लिए बुनियादी सुविधाएं बनाई जानी चाहिए थी, मगर इस मामले में पिछले एक दशक में कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं हुई है। नतीजा यह है कि अब तक कृषि सामग्री के भंडारण की अनदेखी के कारण करोड़ों का माल बेकार हो रहा है। केंद्र सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 से 2022 तक पांच साल में सरकारी अनाज गोदाम में जरूरी सुविधाओं के अभाव में 13 हजार टन से ज्यादा अनाज बर्बाद हो गया है। इसमें महाराष्ट्र में 208 टन अनाज सड़ गया है। यहां तक कि जब भारत की उपज की वैश्विक कृषि बाजार में मांग हो सकती है, तब भी उसकी आपूर्ति केवल अक्षम्य देरी और लापरवाही के कारण पूरी नहीं की जा रही है।

देश में अभी प्याज की कटाई खरीफ सीजन के बाद से हो रही है। इस प्याज में पानी की मात्रा अधिक होती है। इसलिए यह ज्यादा से ज्यादा एक महीने तक चलता है। लिहाजा, पड़ोसी देशों को निर्यात करना और निर्यात किए गए प्याज का तुरंत उपयोग करना महत्वपूर्ण हो जाता है। लेकिन, श्रीलंका में आर्थिक अस्थिरता के कारण व्यापारी वहां प्याज नहीं भेजते हैं क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें वहां भेजे गए प्याज के पैसे मिलेंगे। पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद है। बांग्लादेश ने स्थानीय प्याज की सुरक्षा के लिए आयात कर लगाया है।

जाहिर है कि जिस तरह की परिस्थितियां हैं उसके लिए कोल्ड स्टोरेज की एक श्रृंखला की आवश्यकता होती है। इसे बनाने के प्रयास अब तक नाकाफी रहे हैं। वास्तव में, इस अल्प-काल के दौरान प्याज को संशोधित करना ही एकमात्र उपाय है। लेकिन, अफसोस प्याज का निर्यात बढ़ाने के लिए प्याज उत्पादक क्षेत्र में प्रसंस्करण उद्योग तक नहीं है। वर्षों से अहमदनगर, नासिक और राज्य के कई दूसरे जिले कुल प्याज उत्पादन का लगभग साठ प्रतिशत उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन नीति निर्माताओं को इस बात की चिंता नहीं है कि इस पट्टी में प्रसंस्करण उद्योग विकसित क्यों नहीं हुआ?

जैसा कि वर्तमान में प्याज की वैश्विक कमी है, भारत के लिए इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाना आसान है। हालांकि, मध्य एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप के कई देशों में प्याज सोने की कीमतों में बिकता दिख रहा है, लेकिन भारत में न केंद्र और न राज्य सरकार ने उन देशों को प्याज निर्यात करने की पहल नहीं की है। देखा जाए तो विदेश मंत्रालय, कृषि मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय इसका समन्वय कर सकते थे। लेकिन, सवाल इच्छाशक्ति का बना हुआ है। यदि सरकारों ने अपनी इच्छाशक्ति दिखाई होती और प्याज पर ज्यादा ध्यान दिया होता तो राज्य के किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिलता।

दूसरी तरफ, राज्य के पश्चिमी तरफ ध्यान दें तो सांगली क्षेत्र में एक हजार से अधिक निजी कोल्ड स्टोरेज हैं। इस कोल्ड स्टोर में किसान और व्यापारी करीब डेढ़ लाख टन किशमिश का भंडारण करते हैं और भाव अच्छा होने पर बेच देते हैं। इसी तर्ज पर प्याज के भण्डारण के लिए पर्याप्त संख्या में गोदाम बनाने की आवश्यकता है। यह बात और अधिक आवश्यक इसलिए हो जाती है कि प्याज जल्दी खराब हो जाने वाली फसल है, इसलिए एक मजबूत कोल्ड चेन बनाना जरूरी है। इन बुनियादी बातों की उपेक्षा के कारण खासकर अहमदनगर और नासिक में किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है।

इससे भारतीय कृषि की यात्रा एक संकट से दूसरे संकट तक चलती हुई प्रतीत होती है। काफी कुछ बारिश पर निर्भर है। यदि बारिश ज्यादा हुई तो प्याज की फसल डूब जाएगी, जबकि कम हुई तो सूख जाएगी। वहीं, किसी तरह यदि मौसम मेहरबान रहा और फसल की पैदावार अच्छी हुई तो उसकी कीमत गिर जाएगी और जब यह सोचा जाता है कि कमी से कीमत बढ़ेगी तो सरकार की नीति उल्टी हो जाती है। यदि आप विदेश में कुछ बेचना चाहते हैं, तो सरकार निर्यात पर प्रतिबंध लगाती है और कम घरेलू उत्पादन की अवधि के दौरान विदेशी आयात पर लगाम लगाती है। यही वजह है कि हर स्थिति में किसानों का संकट बढ़ता जाता है। यदि किसानों के सामने यह प्रश्न उठे कि बड़ी कठिनाई से हासिल फसल को काटें या सड़ने दें तो इसे विफल अर्थव्यवस्था का लक्षण माना जाना चाहिए।

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