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खाद्य मुद्रास्फीति संकट को और बढ़ाएगा रूस-यूक्रेन युद्ध

सिर्फ़ भारत में ही नहीं, खाद्य मुद्रास्फीति अब वैश्विक मुद्दा है। यह बीजिंग रिव्यू के ताजा अंक की कवर स्टोरी है। संयोग से वह कुछ दिन पहले न्यूयॉर्क टाइम्स की भी एक प्रमुख कहानी बन गई।
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खाद्य मुद्रास्फीति अब राजनीतिक एजेंडे में सबसे ऊपर है। विपक्षी नेता राहुल गांधी ने 30 मार्च 2022 को पेट्रोलियम कीमतों में वृद्धि और परिणाम स्वरूप खाद्य कीमतों में वृद्धि के खिलाफ एक प्रदर्शन का नेतृत्व किया। इससे पहले, 28 मार्च 2022 को, अध्यक्ष को लोकसभा सत्र अचानक स्थगित करना पड़ा, जब विपक्षी सदस्यों ने पेट्रोलियम कीमतों में वृद्धि के प्रभाव के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि पर तत्काल चर्चा की मांग करते हुए सदन के वेल को घेरकर कार्यवाही को बाधित किया।

सिर्फ भारत में ही नहीं, खाद्य मुद्रास्फीति अब वैश्विक मुद्दा है। यह बीजिंग रिव्यू के ताजा अंक की कवर स्टोरी है। संयोग से वह कुछ दिन पहले न्यूयॉर्क टाइम्स की भी एक प्रमुख कहानी बन गई। यूक्रेन में युद्ध का सामान्य रूप से मुद्रास्फीति और विशेष रूप से खाद्य मुद्रास्फीति  के साथ क्या संबंध है, यह समझने की बात है।

पेट्रोलियम की कीमतों में उछाल

जनवरी 2020 में कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 67 डॉलर थी, और यह जनवरी 2021 में बढ़कर 70.68 डॉलर, अप्रैल 2021 तक 80 डॉलर और यूक्रेन युद्ध से पहले, दिसंबर 2021 तक 90 डॉलर हो गई थी। युद्ध शुरू होने के बाद, फरवरी 2022 में यह 120 डॉलर तक पहुंच गई थी।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP) ने एक अध्ययन किया, जिसमें दिखाया गया कि जीवाश्म ईंधन की कीमत में 10% की वृद्धि से भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) लगभग 4.3% बढ़ सकता है जिसमें 0.7% की वृद्धि केवल कृषि क्षेत्र के उत्पादों का योगदान होगी।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी एक अध्ययन में दिखाया है कि भारत में खुदरा मुद्रास्फीति, जिसका प्रतिनिधित्व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) करती है, एक पूर्ण प्रतिशत अंक तक बढ़ जाएगी, यदि कच्चे तेल की कीमतों में 33 प्रतिशत की वृद्धि होती है। जनवरी 2022 से वे पहले ही 30% बढ़ चुके हैं।

पेट्रोलियम कीमतों में वृद्धि और खाद्य मुद्रास्फीति

भारत की पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों पर अत्यधिक निर्भरता है। यह पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों की अपनी आवश्यकता का 85% आयात कर रहा है। पेट्रोलियम आयात भी भारत के कुल आयात बिल का 25% हिस्सा है। पेट्रोलियम की कीमतों में कोई भी भारी बढ़ोतरी महामारी-प्रेरित मंदी से उबरने के लिए संघर्षरत अर्थव्यवस्था को पंगु बना सकती है।

पेट्रोलियम कीमतों में बढ़ोतरी से सब्सिडी का बोझ तेजी से बढ़ेगा। हालांकि पेट्रोलियम की कीमतों को आंशिक रूप से नियंत्रित कर दिया गया है और तेल कंपनियां अपनी कीमतें निर्धारित कर सकती हैं, फिर भी सरकार कीमतों को कम रखकर और तेल कंपनियों को सब्सिडी देकर पेट्रोलियम खपत को सब्सिडाइज़ करती है।

रेटिंग एजेंसी नीलसन ने एक अध्ययन किया है कि 2012-2013 में पेट्रोलियम मूल्य नियंत्रण से पहले डीजल से अंडर-रिकवरी- या, दूसरे शब्दों में, उनके लिए सब्सिडी- 173,253 करोड़ रुपये थी। इसका अधिकांश बोझ अब उपभोक्ताओं पर किस्तों में डाला जा रहा है। भारतीय किसान 135 पेट्रोलियम उत्पादों के अंतिम उपयोगकर्ता हैं, विशेष रूप से डीजल पंप-सेट, ट्रैक्टर और अन्य मशीनरी तथा परिवहन में उपयोग करते हैं। इन सबसे ऊपर, पेट्रोलियम उत्पाद उर्वरकों के लिए प्रमुख इनपुट हैं।

इस प्रकार यूक्रेन युद्ध भारत में खाद्य कीमतों में भारी मुद्रास्फीति लाएगा, जो वैश्विक वित्तीय संकट के बाद 2009 में देखी गई मुद्रास्फीति की तुलना में अधिक तीव्र होगी। पिछले एक हफ्ते में पेट्रोल की कीमतों में 6 रुपये का इजाफा हुआ है। रोजाना काम पर जाने के लिए अपने दोपहिया वाहनों और कारों पर निर्भर मध्यम वर्ग नए बोझ से नाराज हैं। पर वह खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति के बारे में कम चिंतित नहीं हैं क्योंकि किसानों को अपने डीजल और उर्वरकों के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।

उर्वरक की कीमतों में बढ़ोतरी और सब्सिडी का बड़ा बोझ

पहले भी, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में पिछले दौर की वृद्धि के बाद, भारत में उर्वरक कंपनियों ने डाई-अमोनियम फॉस्फेट उर्वरकों (DAP) की कीमतों में 58% की बढ़ोतरी की थी। अप्रैल 2021 से पहले डीएपी के एक बैग की कीमत 1200 रुपये थी। उर्वरक कंपनियों द्वारा कीमतों में वृद्धि के बाद, कीमत बढ़कर 1900 रुपये हो गई। किसानों में जबरदस्त आक्रोश था। महामारी के कारण आपूर्ति में व्यवधान के चलते, किसानों को कई क्षेत्रों में काला बाजार में डीएपी उर्वरकों के लिये प्रति बोरी 2400 रुपये का भुगतान करना पड़ा, खासकर उन राज्यों में जो यूपी की तरह चुनाव में जाने वाले थे। यह वह समय था जब प्रधानमंत्री मोदी को कृषि कानूनों को लेकर किसानों के विरोध से सबसे ज्यादा ताव का सामना करना पड़ रहा था। डीएपी मूल्य वृद्धि के खतरे को भांपते हुए, श्री मोदी ने हस्तक्षेप किया और 19 मई 2021 को उर्वरक कंपनियों के लिए उर्वरक सब्सिडी में 140% की वृद्धि की, और उन्हें डीएपी उर्वरकों को 1200 रुपये प्रति बैग की पुरानी दर पर बेचने का निर्देश दिया। इसने अंततः पंजाब को छोड़कर विधानसभा चुनावों में भाजपा को बचा लिया।

संयोग से, रूस उर्वरकों के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से एक है। जैसा कि अप्रैल 2021 में हुआ था, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उर्वरक की कीमतों में भारी वृद्धि का एक और दौर संभव हो सकता है। भारत रूस से अपनी उर्वरक आवश्यकता की बड़ी मात्रा आयात करता है और इसलिए उर्वरक की कीमतों, विशेष रूप से फॉस्फेटिक उर्वरकों और डीएपी, में वृद्धि का एक और दौर देखा जाएगा। मोदी फिर से सब्सिडी बढ़ाने का जोखिम नहीं उठा सकते। मई 2021 में उर्वरक सब्सिडी में वृद्धि से राजकोष पर 15,000 करोड़ रुपये का भार पड़ा और पहले के 85,000 करोड़ रुपये के वार्षिक उर्वरक सब्सिडी बिल में वृद्धि हुई।

उत्तर प्रदेश चुनाव नतीजे से गरीब जनता को राहत मिली, केंद्र ने मुफ्त खाद्यान्न योजना को और छह महीने के लिए बढ़ाने की घोषणा की है, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान होगा और आंकलन है कि राजकोषीय घाटा 6.7% से अधिक हो जाएगा। राजकोषीय घाटे में किसी भी तरह की और वृद्धि से वृहद आर्थिक संतुलन (macro economic balance) बिगड़ जाएगा और पूरी तरह अनियंत्रित हो जाएगा।

भारतीय स्टेट बैंक के अनुसंधान विंग ने दिखाया है कि कच्चे तेल की कीमतों में 90 डॉलर से अधिक की वृद्धि से भारत पर 1 लाख करोड़ रुपये का राजस्व बोझ पड़ सकता है। 7.5 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय के बजट 2022-23 के लक्ष्यों का क्या होगा? कोई बड़ा निवेश न होने का मतलब कोई उच्च विकास न होना। भारत "विकास की हिंदू दर" (“Hindu rate of growth”) पर वापस आ जाएगा।

अर्थशास्त्री पहले से ही मार्च 2022 तक मुद्रास्फीति में 8 महीने की लंबी वृद्धि की ओर इशारा कर रहे हैं और वित्तीय वर्ष 2022-23 में ही मुद्रास्फीति जनित मंदी की भविष्यवाणी कर रहे हैं। क्या मोदी राजनीतिक रूप से 2024 के आम चुनाव वर्ष से पहले इसका राजनीतिक खतरा उठा सकेंगे?

सूरजमुखी तेल की कीमतों में आएगी तेजी

पेट्रोलियम की कीमतें ही नहीं। यूक्रेन और रूस दोनों ही खाद्य तेलों, विशेष रूप से सूरजमुखी के तेल के बड़े उत्पादक और निर्यातक हैं। यूक्रेन दुनिया में सूरजमुखी के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। उनके खाद्य तेल निर्यात में व्यवधान के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खाद्य तेलों के लिए कीमतों में वृद्धि हुई है।

22-24 लाख टन के भारत के वार्षिक कच्चे सूरजमुखी तेल (यानी, रिफाइनिंग से पहले) की आवश्यकता का लगभग 90% कीव और मॉस्को से यानी 70% यूक्रेन से और 20% रूस से आता है।

तालिका 1: खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति सूचकांक

*जनवरी 2022 के आंकड़े अनंतिम हैं।

स्रोत: प्रेस सूचना ब्यूरो प्रेस विज्ञप्ति आईडी: 1798312

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के फाफामऊ में एक थोक व्यापारी श्री केसरवानी ने न्यूज़क्लिक के लिए बताया कि अप्रैल 2020 और जनवरी 2022 के बीच महामारी के दौरान उनकी खाद्य तेलों की बिक्री में 30% की कमी आई और सिर्फ मार्च 2022 में बिक्री में 20% की और गिरावट आई है, विशेष रूप से सूरजमुखी तेल में। यह युद्ध के कारण फिर से कीमतों में वृद्धि की वजह से हुआ है। ब्राजील में फसल खराब होने से सोयाबीन तेल की आपूर्ति भी बाधित हुई और मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम की फसल खराब होने से पाम तेल की आपूर्ति प्रभावित हुई। खाद्य तेल की कीमतों में 2020 और 2021 के दौरान असमान रूप से 30-40% की वृद्धि हुई थी, विभिन्न तेलों में सरसों के तेल में सबसे तेज वृद्धि दर्ज की गई थी। यह आम लोगों का खाद्य तेल है। केसरवानी का मानना है कि इन्वेंटरीज़ समाप्त होने के बाद अगले कुछ हफ्तों में सूरजमुखी के तेल की कीमत में भी लगभग 25-30% की वृद्धि होगी।

कृषि क्षेत्र एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जिसने महामारी के दौरान निरंतर विकास देखा। अब, यूक्रेन में युद्ध से इस विकास को खतरा होगा, जो कि ट्रांसपोर्टेशन के लिए डीजल और सिंचाई तथा उर्वरक जैसे लागत (input) कीमतों में वृद्धि के कारण होगी। यह फिर किसानों की आय और खपत को प्रभावित करेगा।

तालिका 2: उपभोक्ता मुद्रास्फीति (सीपीआई सामान्य) और उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (%, वर्ष दर वर्ष, 2019 माहवार)

स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण, 2019-20, खंड II, अध्याय 5-मूल्य और मुद्रास्फीति, पृष्ठ 140

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति 2020-21 में 6.3% बढ़ी और फिर पूरे 2021-22 में यह 5.3% बढ़ी। लेकिन 2020-21 में अप्रैल-दिसंबर के बीच खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति 9.1% पर (अधिक) थी। हालांकि यह 2021-22 में सितंबर 2021 तक घटकर 2.9% हो गई, लेकिन यह पुनः बढ़ने लगी और दिसंबर 2021 तक 4% को पार कर गई। मार्च 2022 तक, खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति में पिछले 6 महीनों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई और यूक्रेन युद्ध के चलते 2022 के शेष भाग में इसी के समान वृद्धि रिकॉर्ड करने का अनुमान है। इस परिघटना से गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

तालिका 3: उपभोक्ता मुद्रास्फीति (सीपीआई सामान्य) और उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (%, वर्ष दर वर्ष, 2020 माहवार)

स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण, 2020-21, खंड II, अध्याय 5-मूल्य और मुद्रास्फीति, पृष्ठ 163 और नाबार्ड जर्नल इकोथिंक विभिन्न मुद्दे।

तालिका 4: उपभोक्ता मुद्रास्फीति (सीपीआई सामान्य) और उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (%, वर्ष दर वर्ष, 2021 माहवार)
स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण, 2021-22, खंड II, अध्याय 5-मूल्य और मुद्रास्फीति, पृष्ठ 163। और नाबार्ड जर्नल इकोथिंक, अंक संख्या 52, जनवरी 2022।

तालिका 5: उपभोक्ता मुद्रास्फीति (सीपीआई सामान्य) और उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (वर्ष पर वर्ष, 2022 माहवार)

स्रोत: 14 फरवरी 2022 एनडीटीवी और 14 मार्च इंडियन एक्सप्रेस, दोनों सांख्यिकी मंत्रालय और कार्यक्रम कार्यान्वयन डेटा पर आधारित हैं। फरवरी 2022 के आंकड़े अनंतिम हैं।

Image Courtesy: seekingalpha.com

चेन्नई के अर्थशास्त्री आर. विद्यासागर ने न्यूज़क्लिक के लिए पूछने पर बताया, "मुद्रास्फीति के लिए आरबीआई का सहिष्णुता बैंड 2-6% है और भारत में मुद्रास्फीति पहले ही 6% को पार कर चुकी है। इसका मतलब यह है कि आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ब्याज दरों में कटौती करेगी, जिससे ऐसी अर्थव्यवस्था, जो मुश्किल से ही उबर पाई है, में विकास को नुकसान होगा। बेरोजगारी को संबोधित करने का मामला स्थगित हो जाएगा। पोषण संकट भी गहराएगा। सरकार को पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद कर में और कटौती करनी चाहिए और उर्वरक सब्सिडी में वृद्धि करनी चाहिए। उन्हें बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करना चाहिए और कीमतों को घटाने के लिए उन्हें खुले बाजार में कम कीमतों पर लाना चाहिए। मोदी-शाह की जोड़ी यूपी में भले ही सफल हो गई हो, लेकिन मौजूदा स्थिति को बरकरार रखते हुए 2024 एक और भी बड़ी  चुनौती होगा, खासकर अगर विपक्ष एकजुट हो जाता है।"

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