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सेबी का ईएसओपी को स्वतंत्र निदेशकों को अनुमति देने का प्रस्ताव ख़तरनाक और वैचारिक रूप से ग़लत है

बोर्डरूम कोई कुश्ती का मैदान नहीं हैं, जहां “जो ताक़तवर होगा उसकी जीत होगी”।
सेबी
Image Courtesy: Business Standard

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियों के स्वतंत्र निदेशकों (आईडी) से संबंधित नियमों एवं प्रावधानों की समीक्षा के मामले में परामर्श पत्र जारी किया है। इस पत्र के बारे में टिप्पणियां 1 अप्रैल 2021 तक या उससे पहले भेजी जा सकती हैं।

सेबी के प्रस्तावों का कई कॉर्पोरेट तंत्र के विशेषज्ञों ने समर्थन किया है। कुछ प्रस्ताव वास्तव में अच्छे हैं। लेकिन विरोधाभासी लगने की कीमत पर, कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों के गंभीर आत्मनिरीक्षण और उन पर बहस की जरूरत है। हो सकता है सेबी के इरादे नेक हो लेकिन इसके प्रस्ताव अत्यधिक छेद वाले हैं। संक्षिप्तता के हित में, यह लेख केवल इन प्रस्तावों के कुछ अंश को देखता है और कुछ अन्य पर प्रकाश डालता है जिन्हें अनदेखा किया गया है।

नियुक्तियाँ

स्वतंत्र निदेशक (आईडी) की प्रारंभिक नियुक्ति के मामले में "दोहरे अनुमोदन" की प्रणाली प्रस्तावित की गई है। इसके लिए शेयरधारकों और "अल्पसंख्यक शेयरधारकों" के बहुमत की के अनुमोदन की जरूरत होगी। अल्पसंख्यक शेयरधारकों को प्रमोटर और प्रमोटर समूह के अलावा अन्य शेयरधारकों के रूप में परिभाषित किया गया है।

इससे पहले कि इस प्रस्ताव के जश्न को मनाया जा सकता, इसे बेअसर कर दिया गया।

यदि दोहरा अनुमोदन नहीं लिया जाता है, तो इसके लिए 90 दिनों का कूलिंग पीरियड प्रस्तावित किया गया है। फिर, अगले 30 दिनों के भीतर, सूचीबद्ध इकाई या तो: (1) नियुक्ति के लिए एक नए उम्मीदवार का प्रस्ताव करेगी, या, (2) सभी शेयरधारकों से अपने दूसरे वोट के ज़रीए  उम्मीदवार को चुनने का प्रस्ताव करेगी, लेकिन अल्पसंख्यक के बहुसंख्यक शेयरधारकों के  अनुमोदन की अलग से जरूरत के बिना ऐसा होगा।

इसके निहित दोष: सबसे पहला दोष, इसके माध्यम से प्रमोटरों को जल्दी या बाद में अपना रास्ता मिल जाएगा। सेबी के परामर्श पत्र के प्रमोटरों में विश्वास की कमी (जो एक अलग चिंता है) के बाद इसके और कमजोर पड़ने से सभी आश्चर्यचकित हैं। यदि जरूरी हुआ तो, फिर "अल्पसंख्यक शेयरधारकों" के अल्पसंख्यक वर्ग को प्रभावित कर प्रमोटरों द्वारा अपेक्षित संख्या आसिल करने पर क्या होगा? एक खास प्रस्ताव के लिए केवल 75 प्रतिशत वोट की जरूरत  होती है। कई सूचीबद्ध कंपनियों की सार्वजनिक हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से भी  नीचे है।

इस तरह की असहाय स्थिति अल्पसंख्यक शेयरधारकों को मतदान करने से रोक सकती है। अगर मतगणना ई नहीं होनी है तो कोई क्यों वोट करेगा। मैंने अप्रैल 2019 के अपने ब्लॉग में इसके बारे में लिखा था, हालांकि यह एक राजनीतिक संदर्भ में था। लेकिन तर्क यहाँ भी प्रासंगिक है। इसका शिकार आईडी की स्वतंत्रता होगी। इसलिए प्रस्ताव आत्मघाती है।

दूसरी बात यह है कि इस प्रक्रिया को दोहराए जाने की संख्या पर कैप लगाने की बात नहीं की गई है। इससे कंपनी को अपने व्यवसाय से ध्यान हटाने के साथ अतिरिक्त लागत का बोझ उठाना पड़ सकता है।

सुझाव: (ए) सुझाव यह दिया गया है कि कुल प्रयासों को दो की संख्या पर कैप लगाना चाहिए, और (बी) अगर गतिरोध बना रहता है, तो ऐसे में नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा वरिष्ठ पेशेवरों के डेटा बैंक के ज़रीए की जानी चाहिए। तौर-तरीकों पर बहस और चर्चा की जा सकती है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रक्रिया सुनिश्चित करेगी कि आईडी नियुक्त की जरूरत को प्रभावी अनुमोदन की कमी की वजह से हराया नहीं जा सकेगा।

ईएसओपी:

वर्तमान में, बोर्ड की बैठकों और लाभ से जुड़े कमीशन में भाग लेने के लिए फीस के माध्यम से आईडी का भुगतान किया जा सकता है। सेबी का परामर्श पत्र स्वयं इस चिंता को दर्ज करता है कि लाभ या प्रदर्शन से जुड़े कमीशन अल्पकालिक प्रोत्साहन और संघर्ष को जन्म दे सकते हैं। इसके बजाय पाँच वर्षों की लंबी अवधि के साथ आईडी को ईएसओपी की अनुमति देने का प्रस्ताव है।

इसके निहित दोष: सेबी द्वारा प्रस्तावित इलाज़ बीमारी से भी बदतर है। यदि लाभ से जुड़े कमिशन अल्पावधि को प्रोत्साहित कर सकते हैं, तो क्या ईएसओपी समस्या को नहीं बढ़ाएगा? ऐसा लगता है कि सत्यम के मामले में जो कुछ हुआ, उसे सेबी बहुत जल्द भूल गई है। 

सत्यम एक लाभदायक कंपनी थी। हालाँकि, एक बेहतर तस्वीर पेश करने के लिए इसके बाजार पूंजीकरण में सुधार करने के मक़सद से इसके पूर्व चेयरमेन ने शुरू में खातों में छोटे स्तर का खेल खेलना शुरू किया। लेकिन फिर, ऊंचे विकास और मुनाफे को दिखाने के लिए, हेरफेर का पैमाना हर साल तब तक बढ़ता गया जब तक वह एक हद पर नहीं पहुंच गया, जहां उसे भी नहीं पता था कि इससे कैसे निकला जाए।

ईएसओपी का मूल्य सीधे लाभ और भविष्य के विकास के ट्रैक रिकॉर्ड से जुड़ा हुआ है। निश्चित रूप से यह सेबी की मंशा नहीं हो सकती है कि सत्यम जैसे उदहारण को कई बार दोहराया जाए।

किसी भी मामले में आप देखें तो ईएसओपी का मक़सद दीर्घावधि तक  पूर्णकालिक कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए है। स्वतंत्र निदेशक (आईडी) की  परिभाषा के अनुसार, ये इस श्रेणी में नहीं आते हैं। इसलिए इस प्रस्ताव को तुरंत रद्द करना जरूरी है।

सुझाव: स्वतंत्रता को बनाए रखने और सर्वोत्तम प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए, आईडी को अन्य सलाहकारों की तरह एक निश्चित पारिश्रमिक का भुगतान किया जाना चाहिए। राशि कितनी होगी इसे शेयरधारकों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

आईडी की भूमिका पर सेबी का रुख

विभिन्न चिंताओं के आधार पर सेबी के अव्यवहारिक दृष्टिकोण को पूरी तरह से सुधारने की जरूरत है। सबसे पहली बात सेबी उम्मीद करती है कि आईडी सभी कॉर्पोरेट बुराइयों का रामबाण है। दूसरे, यह अपेक्षा करता है कि कंपनी को चलाने में आईडी पूरी तरह से जिम्मेदार है। तीसरे, जबकि इसने आईडी की नियुक्ति को अनिवार्य बना दिया है, इसके गलत दृष्टिकोण ने बेहतरीन प्रतिभा को झकझोर कर रख दिया है। चौथा, यह प्रमोटरों में पूरी तरह से अविश्वास ज़ाहिर करता है और उनके योगदानों के बारे कोई सम्मान नहीं दिखाता है। इस लेखक ने मार्च 2015 में इस तरह से कुछ मुद्दों पर टिप्पणी की थी।

सेबी को यह पहचानने की जरूरत है कि किसी भी कंपनी के साथ आईडी का काम  साल में कुछ ही दिनों तक सीमित रहता है। उनकी प्राथमिक भूमिका स्वतंत्र रूप से सोचना और कार्य करना है और प्रमोटरों के हितों और अल्पसंख्यक शेयरधारकों सहित अन्य हितधारकों के बीच एक स्वस्थ संतुलन लाना है। लाभ कमाने के लिए उन्हे पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी दृष्टि, रणनीति और निगरानी के साथ काम करना चाहिए।

आईडी से कुछ भी अधिक की अपेक्षा करना खुद को पराजित करने जैसा होगा। आईडी केवल उनके सामने रखे गए प्रस्तावों की समीक्षा कर सकती है। यदि  व्यवस्थित रूप से उन्हे बाईपास किया जाता हैं, तो निम्नलिखित सरल उदाहरण ले जरिए इसे समझा जा सकता है:

वर्तमान में, सभी संबंधित पार्टी लेनदेन को ऑडिट कमेटी की मंजूरी की जरूरत होती है, जिसमें कम से कम 2/3 आईडी का होना अनिवार्य है। अतीत के अनुभव से पता चलता है कि सैकड़ों शेल कंपनियां कैसे बेईमान प्रमोटरों द्वारा बनाई जाती हैं जिसमें चपरासी और ड्राइवर को निदेशक बना दिया जाता है। इन शेल कंपनियों का इस्तेमाल फंड डायवर्जन, फंड्स की राउंड ट्रिपिंग और विभिन्न अन्य खराब कामों के लिए किया जाता है।

कंपनियों से यह अपेक्षा करना बेवकूफी होगी कि वे शेल कंपनियों के किसी भी सौदे का ऑडिट कमेटी से जांच कराएं। आईडी केवल उन प्रस्तावों को मंजूरी दे सकते है जो उनके पास हैं। इसलिए, यह उम्मीद करना कि आईडी की नियुक्ति से  सभी संबंधित लेनदेन पवित्र हों जाएंगे एक गलत सोच है।

एक अलग तरह की सोच की जरूरत 

ऐसी समस्याओं का समाधान करने के लिए, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि प्रमुख प्रबंधकीय व्यक्ति और कार्यकारी निदेशक बोर्ड जवाबदेही, पारदर्शिता और पूर्णता को सुनिश्चित करने के लिए रखे गए सभी प्रस्तावों पर औपचारिक रूप से मतदान करें।

सेबी को भी प्रमोटर्स पर अविश्वास करना बंद करना चाहिए। आज का भारत टाटा, बिरला, वाडिया, किर्लोस्कर, महेन्द्र, गोयनका, मोदी, श्रीराम, मुथूट आदि के योगदान के बिना संभव नहीं होता। सिर्फ इसलिए कि कुछ काली भेड़ें हैं, इसलिए सभी को एक ही डंडे से हांकना उचित नहीं है। प्रमोटर के नेतृत्व वाली कंपनियों के दिमाग में आने वाले वैश्विक और हालिया उदाहरणों में टेस्ला, अलीबाबा और अमेज़ॅन शामिल हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात, सेबी को इस बात की सराहना करने की जरूरत है कि "जिसकी लाठी उसकी भैंस की कवायद सही नहीं और एक अच्छे कॉर्पोरेट के काम की निशानी नहीं है। इसे बहुसंख्यक आईडी की 2/3 आईडी को शामिल करने के लिए एनआरसी (नामांकन और पारिश्रमिक समिति) की रचना के संशोधन के लिए अपने प्रस्ताव की समीक्षा करनी चाहिए।

यह सुनिश्चित करना कि आईडी को हटाने के डर के बिना वह स्वतंत्र रूप से उनकी राय दे सके, एक सीमित गारंटीकृत समय के बारे में सोचना बुरा बात नहीं हो सकती है, यह समय दो साल हो सकता है। इसी तरह, प्रत्येक पांच साल को दो टर्म की निष्पक्षता और उद्देशय को बनाए रखने के लिए छोटा किया जा सकता है।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेबी को आईडी की सुरक्षा के लिए रिंग-फेंस का सिस्टम तैयार करना होगा ताकि उन्हे दूसरों के कुकर्मों का खामियाजा न भुगतना पड़े। "न्यूनतम पारिश्रमिक, अधिकतम काम" का सिद्धान्त काम नहीं करता है। आईडी की देयता को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिए ताकि वह कंपनी के बोर्डों में शामिल होने से उच्च गुणवत्ता वाले पेशेवरों को रोक न सके। भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने अब कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत विचित्र दायित्व से आईडी के बहिष्कार की मांग की जा रही है, जिसे मैंने मार्च 2015 के अपने ब्लॉग में लिखा था।

बेहतर प्रस्ताव

आईडी के रूप में नियुक्त किए जाने से पहले सभी श्रेणियों के मामले में वर्षों का "कूलिंग पीरियड" का हार्मोनाइजेशन एक अच्छा प्रस्ताव है। इसी तरह, एक आईडी द्वारा एक वर्ष पहले "कूलिंग ऑफ" पीरियड तय करते हुए, व्यक्तिगत कारणों के आधार पर इस्तीफा देकर, कार्य प्रतिबद्धताएं निभाकर, एक आईडी के रूप में किसी अन्य कंपनी में शामिल हो सकते हैं। किसी भी आईडी का पूर्णकालिक निदेशक की भूमिका के मामले में जाने पर भी यही प्रतिबंध लागू होगा।

न्यूनतम नियम, अधिकतम एनफ़ोर्समेंट 

गुणवत्ता हमेशा मात्रा को हरा देती है। यदि सेबी ने इस दृष्टिकोण को अपनाया होता, तो यह महसूस करने में पांच साल से अधिक समय नहीं लगता कि स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए, स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति में शेयरधारकों की पूर्व स्वीकृति लेनी होगी। लेकिन देर आए दुरुस्त आए। 

सेबी "न्यूनतम नियमों, अधिकतम प्रवर्तन" के मंत्र का पालन करने के लिए बेहतर काम करेगी। आखिर शब्दों की तुलना में काम बोलता हैं।

लेकिन तत्काल रूप से, स्वतंत्र निदेशकों (आईडी) की नियुक्ति में, सेबी को नियम को बिना कमजोर किए "दोहरे अनुमोदन" के दृष्टिकोण का पालन करना अनिवार्य करना चाहिए। दूसरी ओर, ईएसओपी को आईडी की अनुमति देने के अपने प्रस्ताव को तुरंत रद्द कर देना चाहिए।

(सर्वेश माथुर एक वरिष्ठ वित्तीय पेशेवर हैं और उन्होंने पिछले दिनों टाटा टेलीकॉम लिमिटेड और प्राइस वॉटर हाउस कूप के सीएफ़ओ के रूप में काम किया है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

SEBI’s Proposal to Allow ESOPs for Independent Directors is Dangerous and Conceptually Flawed

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