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कटाक्ष: टीवी स्टूडियो में गांधी जी के साथ महाबहस

बापू मुस्कुरा के बोले— मुझे तो इतने साल पहले मारा जा चुका है। फिर आप मुझे मारने के लिए अब क्यों परेशान हो रहे हैं?
GANDHI JI

‘स्वच्छता दिवस’ ट्वीट के बाद भी जब पीएम जी के सालाना श्रद्धांजलि विजिट में ज्यादा देर लगती दिखी तो बापू बेचैन हो गए। वह हमेशा की तरह अब भी जल्दी में थे, दीन-दुनिया के झगड़ों से अपनी मुक्ति के अमृत वर्ष के शुभारम्भ के मौके पर भी। वैसे बेचैन पीएम जी भी थे। श्रद्धांजलि विजिट निपटाने की उन्हें कम जल्दी नहीं थी। पर पोशाक सलाहकार बाकी सब पर सहमत होने के बाद भी, इस मौके के लिए टोपी/ पगड़ी कौन सी हो, इस पर एक राय नहीं हो पा रहे थे। काठियावाड़ी पगड़ी का आइडिया बनता नजर आया, पर काफी सोच-विचार के बाद उसे भी ड्राप कर दिया गया। ज्यादा ही गुजराती हो जाता--नहीं क्या? खैर! पीएम जी का फैसला नंगे सिर के हक में रहा। इधर पीएम जी फूल चढ़ाकर निकले और उधर बापू भी चुपके से खिसक लिए। निकलते-निकलते बापू ने अपने आप से कहा--हाथी के पांव में सब का पांव। बस बाकी सब फूल चढ़ाने के नंबर का इंतजार ही करते रह गए।


पर राजघाट से निकलते-निकलते बापू को मीडिया वालों ने पकड़ लिया। कहां चले, कहां चले के शोर के बीच, बापू ने उल्टा सवाल पूछकर सब को चौंका दिया--कालीचरन जी कहां मिलेंगे? मीडिया वालों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, पर सब को हैरान करने की बापू की ख्याति उन्होंने भी सुन रखी थी। फिर भी पक्का करने के  लिए पूछने लगे--वही कालीचरन, जो आपको मारने के लिए गोडसे को थैंक्यू भेजता है और आपको ... कहता है? बापू वाक्य बीच में ही काटकर बोले, हां वही कालीचरन जी! मुझे उनसे मिलना है। कहां मिलेंगे? किसी ने गूगल कर के बताया--अभी तो रायपुर जेल में मिलेंगे। वैसे पुणे में जमानत मिल गयी है, पर छत्तीसगढ़ वाले केस में जमानत अभी दूर है।

अब मीडिया वाले बापू के पीछे पड़ गए कि उन्हें कालीचरन से क्या काम है? कालीचरन तो उनसे दुश्मनी मानता है। बापू मुस्कुरा के बोले--मुझे गाली देने के लिए जेल। अन्याय हो रहा है बेचारे के साथ। मैं उसका दर्द बांटना चाहता हूं। और हां! मुझे उनसे यह भी पूछना है कि मेरे जाने के चौहत्तर साल बाद भी मुझे फिर-फिर मारना चाहते हैं, ऐसी भी क्या नाराजगी है? मेरी तपस्या में ऐसी क्या कमी...।

मीडिया वालों को अब स्टोरी दिखाई दे रही थी। कहने लगे कि फिर कालीचरन ही क्यों? जेल में तो यती नरसिम्हानंद भी हैं और आपको मारने के लिए गोडसे की वह भी पूजा करना चाहते हैं? वैसे वह जेल में दूसरे मामलों में हैं, पर हैं तो जेल में ही, तो वह भी क्यों नहीं? बापू झट तैयार हो गए--हां, नरसिम्हानंद भी क्यों नहीं? तभी कोई पीछे से बोला, शकुन पांडे उर्फ माता...भी क्यों नहीं? जेल में होना ही सब कुछ है क्या? तब तक किसी और ने जोड़ा--और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को क्यों भूल गए। उन्हें तो मोदी जी भी अब तक दिल से माफ नहीं कर पाए हैं। कोई और बोला--और गोडसे का मंदिर बनाने वाले? बापू कुछ कहते, तब तक किसी ने अपना फोन आगे कर दिया--आज भी ट्विटर पर # फिरगोलीमारो... ट्रेंड कर रहा है! किस-किस से पूछेंगे, किस-किस को समझेंगे!

बापू को भी गोडसे की पॉपूलरिटी का इतना अंदाजा नहीं था, फिर भी वह पीछे नहीं हटे। उल्टे मीडिया वालों से ही पूछने लगे--मिलना तो पड़ेगा, उनकी बात सुननी तो पड़ेगी, मगर कैसे? कैसे, कैसे, यह प्रश्न मीडिया की भीड़ में देर तक गूंजता रहा। तभी एक चैनल ने वालंटियर कर दिया--महाबहस करा देते हैं--फिर-फिर गांधी वध क्यों? बापू स्टूडियो में, बाकी सब जहां-तहां। पर चैनल एंकरों की ख्याति बापू तक भी पहुंच चुकी थी। उन्होंने कहा आइडिया अच्छा है, पर एक छोटी सी शर्त है। चर्चा होगी पर एंकर नहीं होगा। पेशकश करने वाले चैनल ने ऐसा कैसे-कैसे तो बहुत की, पर एक्सूक्लूसिव महाबहस का लालच भी कैसे छोड़ देता। एंकर को म्यूट करने के लिए राजी होना पड़ा।

बापू को स्टूडियो में देखते ही कई बहसार्थी एक साथ बोल उठे--फिर हिंदुओं से धोखाधड़ी। हमेशा की तरह सिर्फ तस्वीर सामने कर दी? गोली का इतना ही डर है, तो संवाद करने का नाटक क्यों? पर बापू जरा भी नाराज नहीं हुए। मुस्कुरा के बोले--पता है, आप लोग सामने भी हों तो भी गोली नहीं चला सकते? आपको भी कोई और गोली चलाने वाला चाहिए, जैसे सावरकर को गोडसे चाहिए था। खैर! वो छोडि़ए। मुझे तो इतने साल पहले मारा जा चुका है। फिर आप मुझे मारने के लिए अब क्यों परेशान हो रहे हैं? एक साथ कई आवाजें आयीं। तुम को तो गए सिर्फ चौहत्तर साल हुए हैं। हम तो अब तक साढ़े छ: सौ साल पहले आए मुगलों से भी दो-दो हाथ कर रहे हैं। अब तो यूपी के चुनाव में देश के गृहमंत्री जी भी जाटों को साढ़े छ: सौ साल पहले आए मुगलों से लड़ा रहे हैं। अपने पीएम जी भी बारह सौ साल पुरानी गुलामी से छुड़ाकर, नया इंडिया बना रहे हैं। अशोक-वशोक, बुद्ध-वुद्ध, सब को हम एक-एक कर ठिकाने लगा रहे हैं, फिर तुम्हें तो पूछता ही कौन है? बापू बोले--चलो यूं ही सही। पर आप लोग मेरे पीछे क्यों पड़े हो? मैंने आप का ऐसा क्या बिगाड़ा है?

क्या बिगाड़ा है--कालीचरन, नरसिम्हानंद, प्रज्ञा सब एक साथ फट पड़े? ये पूछो क्या-क्या नहीं बिगाड़ा है? बिगाडऩे को छोड़ा ही क्या है? अंगरेजों के राज में सब कुछ कितना स्मूथली चल रहा था। हम मस्जिद के आगे बाजा बजाते थे, तो वो शिकायत लेकर अंगरेज हाकिम के पास जाते थे। वो गोकशी करते थे, तो हम अंगरेज हाकिम का दरवाजा खटखटाते थे। हाकिम बारी-बारी से, पुचकार और फटकार लगाते थे। पर तुम लोगों ने आकर सब गुड़-गोबर कर दिया। न हिंदू को हिंदू रखा, न मुसलमान को मुसलमान रहने दिया, दोनों को हिंदुस्तानी बना दिया और गोरों से लड़ा दिया। हिंदुस्तानी बनने के चक्कर में दलितों ने दलित, औरतों ने औरतें, मजदूरों ने मजदूर, किसानों ने बेजमीन रहने से इंकार कर दिया, सो ऊपर से। फिर भी, अंगरेजों ने जाते-जाते एक के दो मुल्क करना मंजूर भी कर लिया, लेकिन तुम्हारे लोगों ने और सबसे बढक़र तुमने हमारा वह मौका भी निकलवा दिया। पाकिस्तान को तो जिन्ना मिल गया, पर हिंदुस्तान के राज में सावरकर को धकियाकर, नेहरू-पटेल को बैठा दिया। और खुद राष्ट्रपिता बनकर बैठ गए। और गोडसे जी ने नाराजगी में जरा सी गोलियां क्या चला दीं, वीर सावरकर जी पर हत्या का मुकद्दमा चलवा दिया और आरएसएस पर प्रतिबंध लगवा दिया और वह भी पटेल जी से। मरने के बाद तो तुमने, जिंदा रहने से भी ज्यादा बिगाड़ किया, हम उसे कैसे भूल जाएं!

बापू ने फिर भी समझाने की कोशिश नहीं छोड़ी। तुम्हारे गोडसे ने मार दिया, फिर भी मेरे मन में उसके लिए कोई नफरत नहीं है। पर दूसरी तरफ से दसियों कंठों से आवाज आयी--हमारे मन में तुम्हारे लिए सिर्फ  नफरत है। सब को बराबर बताने वालों के लिए नफरत है। खुद को दूसरों के बराबर बताने वालों के लिए भी नफरत है। हिंदुस्तान को, हिंदुओं के अलावा दूसरों का भी बताने वालों से नफरत है। संविधान से नफरत है। खुद को राष्ट्रपिता कहने वालों से  नफरत है। बापू ने कहा--मैंने खुद को न कभी  राष्ट्रपिता कहा और न कहूंगा! नफरती चीखे, हमें बिना मांगे राष्ट्रपिता कहने वालों और कहलवाने वालों, सब से नफरत है। नफरत ही हमारी पहचान है। बापू ने हार कर पूछा--और हिंदुस्तान से। दूसरी तरफ से वही जवाब आता रहा--हमें नफरत है। बापू ने कहा--फिर चाहे तुम मुझे हर रोज मारो, मैं भी कहीं जाने वाला नहीं हूं। अगर तुम नफरत करना नहीं छोड़ सकते, तो मैं ही मोहब्बत सिखाना कैसे छोड़ दूं।

तब तक स्टूडियो में रेलवे परीक्षा वाले आंदोलनकारी छात्र घुस आए। हमारी नौकरी, हमारा रोजगार के नारे सुनकर सारे नफरती बोले- सत्यानाश और अपने माइक आफ कर के भाग गए। बापू भी माइक नौजवानों के हाथ में देकर, चुपके से खिसक लिए, एक शरारती मुस्कान के साथ।  

(इस व्यंग्य आलेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोकलहर के संपादक हैं।)

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