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उत्सव चलता रहे...

असली बात है-उत्सव चलता रहे। इसीलिए, मोदी जी तो उदारता से कई चीज़ों के बार-बार शिलान्यास-उद्घाटन भी कर आते हैं। और हां! अब यह मत पूछिएगा कि प्रवेश के पहले गणेश उत्सव, पर प्रवेश के बाद!
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कार्टून साभार : Cartoon Movement

किसी ने सही कहा है, भारत अब एक उत्सव प्रधान देश है। पहले कृषि प्रधान देश भी था। पर वह पिछले जमाने की बात है। नेहरू-इंदिरा-वीपी सिंह वगैरह के टैम की। 2014 में जब असली आजादी आयी, अपने साथ जो तरह-तरह की आजादियां लायी, उनमें कृषि प्रधान देश से आजादी भी थी। देखा नहीं कैसे किसान साल भर से ज्यादा दिल्ली के बॉर्डरों पर सर्दी, गर्मी, बारिश में पड़े रहे; सैकड़ों तो भगवान के प्यारे भी हो गए, कि भारत को दोबारा कृषि प्रधान देश डिक्लेअर करवा दें। पर मोदी जी ने 2014 वाली असली आजादी में जरा सी भी कमी होने देने से साफ मना कर दिया। उन्होंने असली आजादी की अपनी तपस्या में कुछ कमी रह जाने की बात मानकर, भारत को अडानी प्रधान देश डिक्लेअर करने वाले कानूनों को टालना तो मंजूर कर लिया, पर यह साफ कर दिया कि भारत रहेगा उत्सव प्रधान देश ही। इस मामले में नो कम्प्रोमाइज। और कम्प्रोमाइज करें भी तो कैसे? जो सत्तर साल हुआ, उसे आगे चलने देते तो कैसे? विकास भी तो करना था; कृषि प्रधान से उत्सव प्रधान तक। यह भी अगर विकास नहीं है तो फिर विकास क्या होता है?

और जब देश ही उत्सव प्रधान हो गया, तो देश को हर समय उत्सव के मोड में रहना ही है। और उत्सव का मोड हो तो हर चीज खुद ब खुद उत्सव बन जाती है। फिर मोदी जी का तो उत्सव यानी ईवेंट आयोजन में ही खास स्पेशलाइजेशन ही ठहरा। मोदी जी की एंटाइर पोलिटिकल साइंस के एमए टाइप की दूूसरी डिग्रियों पर तो विवाद हो सकता है, पर ईवेंट मैनेजमेंट का उनका अडवाणी जी का दिया हुआ सार्टिफिकेट सौ फीसद असली है। एकदम ताजा किस्सा ले लो, जी-20 का। जी-20 का उत्सव तो वर्ल्ड लेवल का था। हजारों करोड़ का उत्सव, सारी दुनिया ने देखा। घर फूंक तमाशा कहने वालों ने भी तमाशा तो माना। बस जरा दिल्ली वाले ही देखने से चूक गए, लॉकडाउन के चक्कर में। पर ये चूकना भी कोई चूकना तो नहीं था। उनके लिए खास लॉकडाउन का उत्सव था, कोरोना के बाद लंबे ब्रेक के बाद। फिर भी तसल्ली नहीं हो, तो टीवी पर तो जी-20 का भी उत्सव था ही। अब जो इस उत्सव के चक्कर में उजड़े, उखड़े, रोजी-रोटी से हाथ धोकर पर्दों के पीछे छुपाए गए, अपना अलग सही पर उनके लिए भी उत्सव तो था ही--छुपम-छुपाई का। पुलिस यहां से पर्दे के पीछे धकेले और पब्लिक वहां से पर्दा उठाकर खुद तमाशा तो कम देखे, पीछे का नजारा ज्यादा दिखाए! विदेशी पत्रकारों तक ने पर्दे के पीछे नजारा देखकर, अपने देश वालों को दिखा दिया।

खैर, हर शुरू होने वाली चीज की तरह जी-20 भी खत्म हो गया। पर जी-20 खत्म हो गया, उत्सव नहीं। मोदी जी ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं कि इस या उस आयोजन के साथ, उत्सव खत्म हो जाने दें। मौका कोई भी हो, उत्सव मस्ट-गो-ऑन। जी-20 का उत्सव शुरू भी नहीं हुआ था कि मोदी जी ने अगले मौके का एलान कर दिया--अगला उत्सव नये संसद भवन के इर्द-गिर्द होगा। और जी-20 के उत्सव की रौशनियां उतरी भी नहीं थीं और विदेशी मेहमान ठीक से वापस घर पहुंचे भी नहीं थे कि जी-20 की सफलता के लिए, अभिनंदन का उत्सव शुरू हो गया। बेशक, वह बड़ा काम ही क्या जिसके रास्ते में बाधाएं नहीं आएं। आईं बाधाएं, अभिनंदन उत्सव में भी बाधाएं आईं। अभिनंदन उत्सव के ऐन पहले खबर आ गयी कि कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में तीन वर्दीधारी अफसर शहीद हुए हैं। खुसुर-पुसुर होने लगी कि ऐसे वक्त में उत्सव! पर मोदी जी अपने सिद्धांत से तनिक भी विचलित नहीं हुए—शो मस्ट-गो-ऑन। उत्सव चलता रहे। फूलों की बारिश होती रहे। अब पता नहीं, देवताओं ने भी पुष्पवृष्टि की या यह काम सिर्फ भक्तों के ही हिस्से में आया, पर पुष्पवृष्टि उत्सव में फूल खूब बरसे। सुना है कि फूल बेचने वालों की तीन दिन की मारी गयी दिहाड़ी, एक शाम में वसूल हो गयी।

अब जी-20 सफलता अभिनंदन उत्सव का शोर थमने से पहले, संसद विशेष सत्र उत्सव तैयार है। पहले विशेष सत्र की पूर्व-संध्या का उत्सव। मोदी जी जन्म दिवस सह-विश्वकर्मा दिवस उत्सव। और नये संसद भवन के शिखर पर तिरंगे की स्थापना का उत्सव। उसके अगले दिन, विशेष सत्र की शुरूआत का उत्सव। और उसके अगले दिन, गणेश चतुर्थी के उत्सव के बाद, नये संसद भवन में प्रवेश का उत्सव। कृपया कन्फ्यूज नहीं करें--जून के आखिर में सावरकर जी के जन्म दिवस पर जो मोदी जी ने किया था, वह नयी संसद के उद्घाटन का उत्सव था। अब जो होगा, प्रवेश का उत्सव होगा। उद्घाटन के टैम का प्रवेश भी कोई प्रवेश था, लल्लू! वैसे भी उद्घाटन, प्रवेश वगैरह एकाध फालतू भी हो जाएं तो भी क्या नुकसान है। असली बात है-उत्सव चलता रहे। इसीलिए, मोदी जी तो उदारता से कई चीजों के बार-बार शिलान्यास-उद्घाटन भी कर आते हैं। और हां! अब यह मत पूछिएगा कि प्रवेश के पहले गणेश उत्सव, पर प्रवेश के बाद! संसद का विशेष सत्र किसी उत्सव से कम है क्या? बल्कि इस उत्सव में तो रहस्य का तड़का भी है। पक्ष-विपक्ष, किसी से सांसदों को पता ही नहीं है कि विशेष सत्र में वास्तव में होना क्या है? सांसद आखिरी वक्त तक अंदाजे ही लगाते रहें, इससे बढ़कर उत्सव क्या होगा! रहस्य तो सारे उत्सवों की जान है।

और संसद के विशेष सत्र के बाद? आगे-आगे देखिए, आता है क्या-क्या? समान नागरिक संहिता, एक देश- एक चुनाव, इंडिया बनाम भारत, अब सनातन पर खतरा; अभी और भी बहुत कुछ आना बाकी है। जब तक कुर्सी पर रहेंगे, मोदी जी उत्सव रुकने नहीं देंगे!

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