सर्व सेवा संघ मामला: अब 14 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फ़ैसला
उत्तर प्रदेश के सर्व सेवा संघ भवन के खिलाफ ध्वस्तीकरण के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति हॄषिकेश राय की खंडपीठ ने सुनवाई अगले शुक्रवार तक के लिए टाल दी। सत्याग्रहियों ने उत्साह एवं नारे के साथ कोर्ट के आगामी निर्देश का स्वागत किया और कोर्ट पर विश्वास व्यक्त किया कि हम सत्य के रास्ते पर हैं। हमारे पास वैधानिक रजिस्ट्री है इसलिए जीत हमारी ही होगी। संबंधित मामले में कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कुछ अहम दस्तावेज तलब किए हैं। इससे पहले देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने पिछले शुक्रवार को वकील प्रशांत भूषण की दलीलों का संज्ञान लिया और कहा कि वह जिलाधिकारी को सूचित कर सकते हैं कि शीर्ष अदालत 10 जुलाई को याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत है और इस दौरान ढांचा ढहाया नहीं जाएगा।
उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक एसएलपी नंबर 014209/ 2023 पिछली 6 जुलाई 2023 को दायर की गई थी। मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले में सुनवाई के लिए 10 जुलाई को तारीख लगाई थी। न्यायमूर्ति हॄषिकेश राय और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने आज दोपहर बाद सर्व सेवा संघ के मामले में सुनवाई की। सर्व सेवा संघ की ओर से देश के जाने-माने अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अपनी दलील पेश करते हुए अहम सबूत पेश किए। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कुछ जरूरी दस्तावेज मांगे और सुनवाई के लिए 14 जुलाई को नई तारीख तय कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल सर्व सेवा संघ में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सर्व सेवा संघ मामले की तत्काल सुनवाई और इमारत को गिराने के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा, "महात्मा गांधी के विचारों और दर्शन का प्रचार करने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी और अब स्थानीय प्रशासन द्वारा इमारत को ढहाने की कोशिश की जा रही है।"
इससे पहले सर्व सेवा संघ ने वाराणसी के राजघाट स्थित 12.90 एकड़ भूखंड पर बने ढांचों को गिराने के लिए उत्तर रेलवे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था। संघ का कहना है कि वाराणसी के ‘परगना देहात’ में उसके परिसर के लिए जमीन उसने केंद्र सरकार से 1960, 1961 और 1970 में तीन पंजीकृत सेल डीड के माध्यम से खरीदी थी। सर्व सेवा संघ इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा जब हाईकोर्ट के जस्टिस एमसी त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत की पीठ ने इस मामले को सुनने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं को निचली अदालत में जाने को कहा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका रिजेक्ट होने के बाद महात्मा गांधी के अनुयायियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का निर्णय लिया। सुप्रीम कोर्ट में पिछले शुक्रवार को विद्वान अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हुए कहा था कि महात्मा गांधी के विचारों और उनके दर्शन का प्रचार करने के लिए आचार्य विनोबा भावे ने 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना की थी। वाराणसी जिला प्रशासन ने 12.898 एकड़ भूखंड उत्तर रेलवे को देने का निर्देश दिया है जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। वाराणसी के जिलाधिकारी का फैसला आने के साथ ही उत्तर रेलवे ने सर्व सेवा संघ परिसर की सभी इमारतों को गिराने के लिए नोटिस चस्पा करा दिया। जिला प्रशासन और उत्तर रेलवे की नोटिस को चुनौती देते हुए सर्व सेवा संघ ने हाईकोर्ट का रुख किया था, लेकिन कोर्ट ने इस मामले को नहीं सुना।
याचिकाकर्ता सर्व सेवा संघ के मुताबिक यह परिसर उनका है। छह दशक बाद जिस जमीन को उत्तर रेलवे अपना बता रहा है उसे दान के पैसे से खरीदा गया था। उत्तर रेलवे ने साल 1960, 1961 और 1970 में तीन बैनामों के जरिए अपनी जमीन सर्व सेवा संघ को बेची थी।
दान के पैसे से खरीदी गई जमीन को वाराणसी जिला प्रशासन ने उत्तर रेलवे के हवाले करने का निर्देश दिया है, जिसके विरोध में देश भर के गांधीवादी सत्याग्रह आंदोलन कर रहे हैं।
आंदोलनकारियों का कहना है कि सर्व सेवा संघ महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण और संत विनोबा भावे की विरासत है। संस्था की स्थापना देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने की थी। सर्व सेवा संघ को बचाने के लिए महात्मा गांधी के पुत्र राजमोहन गांधी ने देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को खत भेजा है। साथ ही कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री श्रीमती प्रियंका गांधी ने इस मामले में एक बयान जारी करते हुए कहा कि देश की जनता इस मनमाने फैसले को बर्दाश्त नहीं करेगी।
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