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सावित्री बाई की विचारधारा ही करेगी पितृसत्ता का ख़ात्मा

आज भारतीय समाज के जो हालात हैं उससे साफ़ है कि यह समाज फिर मनुस्मृति की ओर लौट रहा है। जिसका सावित्री बाई आजीवन विरोध करती रहीं। जन्मदिन पर विशेष आलेख।
Savitribai Phule

पितृसत्तात्मक भारतीय समाज में महिलाओं-लड़कियों पर हिंसा की वारदातें अपने बर्बरतम रूप में बढ़ती जा रही हैं। पहले तो हम दस साल पहले (2012) के निर्भया काण्ड को ही वीभत्स मानते थे पर पिछले साल चर्चा में रहे श्रद्धा के साथ आफताब का बर्बर कृत्य सामने आया और अब वर्ष 2023 के पहले दिन ही दिल्ली के सुल्तानपुरी इलाके में कार सवार युवकों द्वारा स्कूटी सवार लड़की को कार से घसीटने की वहशी और बर्बर घटना सामने आई! युवक इतने बेरहमी से महिलाओं पर हिंसा-हत्या करने वाले संवेदनहीन व्यक्ति क्यों हो रहे हैं? क्या महिलाएं उनके लिए सॉफ्ट टार्गेट हैं? क्या पितृसतात्मक व्यवस्था भी इसमें अपनी कोई भूमिका निभा रही है? आखिर क्यों बढ़ रही हैं लड़कियों-महिलाओं पर हिंसा और हत्या की वारदातें? कहां कमजोर पड़ रही हैं हमारी महिलाएं-लड़कियां?

ऐसे में याद आती हैं सावित्री बाई फुले। एक ऐसी नेता जिन्होंने लड़कियों को उस जमाने में शिक्षित करने का बीड़ा उठाया जब हमारी लड़कियां और महिलाएं कथित परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़ी हुई थीं। और आज जो लड़कियां शिक्षित हो रही हैं उसका श्रेय भी सावित्री बाई फुले उनके जीवन साथी ज्योतिबा फुले और उनकी सहयोगी फातिमा शेख को जाता है।

सावित्री बाई ने लड़कियों की शिक्षा के लिए, उनके मानव अधिकारों के लिए जितना संघर्ष किया उसकी तुलना नहीं हो सकती पर विडंबना देखिए कि उनके जन्मदिन को "शिक्षक दिवस" के रूप में नहीं मनाया जाता जबकि वह इसकी सही मायने में अधिकारी हैं।

सामाजिक क्रांति की जननी

सावित्री बाई को क्रांतिज्योति की उपाधि दी जाती है। यह सही भी है। उन्होंने अपने सामाजिक कार्यों से समाज में क्रांति ला दी थी। फुले दम्पति ने विषम परिस्थियों से जूझते हुए समाज सुधार के काम किए। उन्होंने गर्भवती विधवा महिलाओं की प्रसूति का प्रबंध किया। तत्कालीन समाज जिन्हें कुलटा कह कर उनका उपहास किया करता था उससे उन्हें बचाते हुए इज्जत और गरिमा से जीने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके लिए समाज से उन्हें क्या क्या न सुनना पड़ा। उन्हें अपमानित होना पड़ा। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और निरंतर समाज हित में काम करते रहे। सावित्री बाई ने मात्र 17 साल की उम्र से शिक्षिका की भूमिका निभाई। अनेक समाज सुधार के काम किए। जब प्लेग की महामारी फ़ैली उसमे भी वे जी-जान से समाज सेवा में लगी रहीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया था।

शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति

सावित्री बाई को देश की पहली महिला शिक्षिका कहा जाता है। उन्होंने लड़कियों को पढ़ाने का क्रांतिकारी कदम उठाया। मनुवादी संस्कृति के कारण उन दिनों लड़कियों-स्त्रियों के लिए शिक्षा का निषेध था। सामाजिक मान्यताओं के अनुसार स्त्री को शिक्षा पाप कर्म माना जाता था। ऐसे में स्त्री शिक्षा की वकालत करना और उन्हें पढ़ाने की पहल करना एक दुष्कर कार्य था। पर फुले दम्पति के धारा के विरुद्ध जाने का साहस था। कहते हैं कि यदि तुम परिवर्तन की राह पर चलते हो तो तुम्हारे विरोध की शुरुआत सबसे पहले तुम्हारे घर से ही होगी। फुले दम्पति भी कोई अपवाद न थे। उनके साथ भी यही हुआ। ज्योतिबा फुले के पिता ने भी उनकी बात न मानने पर उन्हें घर से निकाल दिया था।

यहां हमें फातिमा शेख के सामाजिक योगदान को भी नहीं भूलना चाहिए। संकट के उन दिनों में फातिमा शेख ने फुले दम्पति को सहारा दिया था। आश्रय दिया था। और सावित्री बाई के साथ-साथ स्वयं भी शिक्षिका की भूमिका निभाई। वे अंत तक उनके कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देती रहीं। इस तरह शिक्षा की इस क्रांति में सावित्री बाई के साथ-साथ ज्योतिबा फुले और फातिमा शेख भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके योगदान को भी सदैव याद किया जाना चाहिए।

सावित्री बाई का संक्षिप्त परिचय

सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को नायगाँव में (वर्तमान में महाराष्ट्र के सतारा जिले में ) एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्री बाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।

1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले कन्या स्कूल की संस्थापक थीं। उन्हें महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के जीवन साथी ही नहीं बल्कि संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित करना।

सावित्री बाई समाज सेविका के साथ-साथ एक कवि भी थीं। उन्हें मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। उन्हें शिक्षा का महत्व समझाया। स्त्री अधिकारों की वकालत की। लैंगिक समानता का मुद्दा उठाया। वे स्त्रियों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए आजीवन संघर्ष करती रहीं।

आज के दौर में सावित्री बाई फुले को याद करना क्यों ज़रूरी है

आज भारतीय समाज के जो हालात हैं उससे साफ़ है कि यह समाज फिर मनुस्मृति की ओर लौट रहा है। जिसका सावित्री बाई आजीवन विरोध करती रहीं। स्त्रियों और दलितों को सावित्री बाई गुलामी से मुक्त कर उन्हें सम्मान के साथ जीने के लिए जिन्दगी भर संघर्ष करती रहीं उनको फिर गुलाम बनाए रखने की साज़िश होने लगी है। उनकी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाया जा रहा है। उन्हें उनके मानवाधिकारों से वंचित किया जा रहा है। उन्हें झूठे मामलों में फंसा कर देशद्रोही बताकर सलाखों के पीछे भेजा जा रहा है।

स्त्रियाँ अगर अपने स्वाभिमान और बराबरी के हक़ के साथ जीना चाहती हैं तो न केवल उन्हें टॉर्चर किया जाता है बल्कि उनकी बेरहमी से हत्या तक कर दी जाती है। पिछले वर्ष का श्रद्धा-आफ़ताब काण्ड इस बात की तस्दीक करता है।

ऐसे माहौल में लड़कियों के शिक्षा के साथ-साथ स्वाभिमान से जीने के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना बहुत ज़रूरी है। उनका अपने हक़-अधिकारों के लिए जागरूक होना जरूरी है। जब उनके अधिकारों का हनन हो तो उसके लिए संघर्ष करना, लड़ना बहुत जरूरी है। यदि आज लड़कियां और महिलाएं सावित्री बाई फुले की शिक्षा को अपनाएं और उनको अपना रोल मॉडल बनाएं तो कोई उनका किसी भी प्रकार का शोषण नहीं कर सकता।

कोई उन पर हिंसा नहीं कर पायेगा। कोई उन पर पितृसत्ता व्यवस्था नहीं थोप पायेगा। जब महिलाएं शत-प्रतिशत आत्मनिर्भर बनेगीं तो इससे देश का भी विकास होगा। देश प्रगतिशील बनेगा।

सावित्री बाई फुले से प्रेरणा लेकर शिक्षित-जागरूक लड़कियां अन्य लड़कियों और महिलाओं को शिक्षित, जागरूक कर समाज और देश के विकास प्रगति में अपना योगदान कर सकती हैं।

इसके लिए जरूरी है कि सावित्री बाई फुले को पाठ्यक्रम (syllabus) में शामिल किया जाए। सावित्री बाई फुले को सिलेबस में शामिल करने के लिए सरकार पर भी दबाव बनाया जाए। जब हमारी लड़कियां पढ़-लिख कर शिक्षित होकर, सावित्री बाई के संघर्ष को जानकार, बाबा साहेब के हिन्दू कोड बिल को पढ़कर जब जागरूक होंगी तब वे खुद ही पितृसत्ता को नकार देंगी। इस तरह सावित्री बाई की विचारधारा ही पितृसत्ता का खात्मा करने में सक्षम होगी।

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