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उत्तराखंड में वन गुर्जरों को बेदखली नोटिस से पसरा सन्नाटा, जानकारों ने बताया गैरकानूनी-असंवैधानिक

उत्तराखंड में वन गुर्जरों को बेदखली नोटिस से सन्नाटा पसर गया है। यह दावा करते हुए कि लगभग 400 वन गुर्जर परिवार, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं, को बेदखली के नोटिस दिए गए हैं या दिए जा रहे थे। वन पंचायत संघर्ष मोर्चा (VPSM) ने शुक्रवार को राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि भारतीय वन अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम (FRA) दोनों का उल्लंघन किया जा रहा था। उधर, वन विभाग का कहना है कि उनका लक्ष्य मंदिरों, मजारों और बस्तियों सहित वन भूमि पर से अतिक्रमण को हटाना है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

उत्तराखंड वन विभाग ने मंदिरों, मज़ारों और बस्तियों सहित वन भूमि पर से अतिक्रमण हटाने को लेकर, हड़बड़ी में, तराई पूर्व और पश्चिम वन प्रभागों में रहने वाले सैकड़ों वन गुर्जर परिवारों, पारंपरिक रूप से वन में रहने वाले पशुपालक समुदायों आदि को बेदखली के नोटिस थमा दिए है। वन विभाग का कहना है कि उनका लक्ष्य मंदिरों, मजारों और बस्तियों सहित वन भूमि से अतिक्रमण हटाना है।

यह दावा करते हुए कि लगभग 400 वन गुर्जर परिवार, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं, को बेदखली के नोटिस दिए गए हैं या उन्हें बेदखली के नोटिस दिए जा रहे हैं। वन पंचायत संघर्ष मोर्चा (वीपीएसएम) ने शुक्रवार को राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि इसकी आड़ में भारतीय वन अधिनियम और वन अधिकार अधिनियम (FRA) का उल्लंघन किया जा रहा है।

'द हिंदू' अखबार के अनुसार, VPSM से जुड़े प्रमुख कार्यकर्ता तरुण जोशी ने कहा, '15 मई के बाद से बेदखली के नोटिस दिए गए हैं। कई को अब भी नोटिस मिल रहे हैं। यह FRA के तहत उन्हें मिले अधिकारों का सीधा सीधा उल्लंघन है।”

वहीं, राज्य के वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने द हिंदू को बताया कि ये नोटिस वन भूमि को "अतिक्रमण" मुक्त करने के सरकार के अभियान के हिस्से के रूप में दिए जा रहे हैं। इस अभियान के तहत, हम पहले ही 256 हेक्टेयर वन भूमि को अतिक्रमण मुक्त कर चुके हैं। इनमें छोटी दुकानें, नदी किनारे की झोपड़ियां, मंदिर और मजार आदि शामिल हैं।  

जोशी ने कहा कि जिन परिवारों को बेदखली नोटिस दिए गए हैं, उनमें से कईयों ने FRA-2006 के तहत टाइटल के लिए आवेदन किया था और कार्यवाही का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कहा "बावजूद इसके कि FRA, जंगल पर उनके अधिकार को मान्यता देता है, क्योंकि उन्हें पारंपरिक वन-निवासी के रूप में दर्जा प्रदान करता है।"

मोहम्मद कासिम, एक पशुपालक, उन व्यक्तियों में से एक है, जिन्हें 15 मई को बेदखली का नोटिस दिया गया था, ने फोन पर द हिंदू को बताया कि “मैंने 2019 में FRA टाइटल के लिए आवेदन किया था, लेकिन मेरे आवेदन पर अभी तक एक भी सुनवाई नहीं हुई है। न ही मुझे मेरे दावे को खारिज किए जाने का कोई नोटिस मिला है”

राज्य के मुख्य सचिव और प्रधान वन  सचिव को संबोधित पत्र में, VPSM ने कहा कि बेदखली नोटिस अधिकारियों द्वारा "वन दरोगा" के स्तर पर जारी किए जा रहे हैं, जबकि भारतीय वन अधिनियम के लिए यह आवश्यक है कि यह संभागीय वन अधिकारी के द्वारा भेजे जाने चाहिए थे।

कानून के मुताबिक नोटिस क्या कहता है

वन विभाग के अधिकारी ने ये दावा करते हुए नोटिस को सही ठहराया कि स्थानीय लोग सभी वन अधिकारियों को वन दरोगा कहते हैं लेकिन सभी नोटिस कानून के अनुपालन में ही जारी किए जा रहे हैं। मुख्य वन संरक्षक पराग धकाते ने कहा, "अगर  कोई नोटिस गलत जारी किया जाता है और हमारे संज्ञान में लाया जाता है, तो हम कार्रवाई करेंगे।" कहा, नोटिस प्रतिक्रिया जानने के लिए हैं, जिसके बिना कोई बेदखली नहीं हो सकती हैं।

VPSM ने तर्क दिया कि बेदखली, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वनों से बेदखली पर रोक लगाने के आदेश का भी उल्लंघन है, जो FRA की चुनौतियों की सुनवाई करते हुए जारी किया गया था। 2019 में सुनवाई के दौरान, अदालत ने नोट किया था कि कई निवासियों को उनके FRA शीर्षक आवेदनों के लंबित रहने के बावजूद बेदखल किया जा रहा था। वो भी अस्वीकृति नोटिस दिए बिना या उनके अधिकार की रक्षा करने का मौका दिए बिना सीधी बेदखली की जा रही है। 

VPSM कार्यकर्ता का कहना है कि राज्य में FRA का कार्यान्वयन बेहद खराब है, सरकारी रिकॉर्ड इसका समर्थन करते हैं। नवंबर 2022 में राज्य द्वारा दायर की गई नवीनतम FRA रिपोर्ट के अनुसार, व्यक्तिगत वन अधिकार (आईएफआर) दावों के केवल 5% को टाइटल वितरित किए गए थे और 3,000 से अधिक दायर दावों में से केवल एक सामुदायिक वन अधिकार (सीएफआर) टाइटल वितरित किया गया था। 

वन गुर्जरों के घरों व बाड़ों को हटाने का विरोध

वन गुर्जर ट्राइबल युवा संगठन ने हल्द्वानी में वन विभाग को ज्ञापन सौंपकर जंगलों में वन गुर्जरों के घरों व बाड़ों को हटाने की कार्रवाई का विरोध किया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, संगठन ने वन संरक्षक दीप चंद्र आर्य को ज्ञापन देते हुए कहा कि नैनीताल व ऊधमसिंह नगर के जंगल में रहने वाले गुर्जरों को वैध नोटिस दिए बिना, 72 घंटे की अवधि दी जा रही है। कहा कि अतिक्रमण की आड़ में ऐसी धार्मिक अवरचनाओं को भी ध्वस्त किया जा रहा है जिनको नियम-13 के अंतर्गत ग्रामसभा ने साक्ष्य के रूप में जिला व उपखंडीय स्तरीय समिति में चित्र के रूप में पेश किया है। 

यही नहीं, अतिक्रमण की आड़ में वन गुर्जरों के बाड़ों, खत्तों को भी ध्वस्त किया गया है। और उनके पक्ष को भी नहीं सुना जा रहा है। ट्राइबल युवा संगठन ने चेतावनी दी कि यदि मनमाने ढंग से कार्रवाई की गई तो बेमियादी धरना प्रदर्शन किया जाएगा। मो. इशाक, नाजमा, परवीन, आलमगीर आदि रहे।

उत्‍तराखंड में हटाए गए 2279 अतिक्रमण: वन विभाग 

सरकारी जमीनों से अतिक्रमण हटाने के अभियान के तहत अब तक प्रदेश भर से 2279 अतिक्रमण हटाए गए हैं। प्रदेश के नोडल अधिकारी अपर पुलिस महानिदेशक डा. वी मुरुगेशन ने बताया कि सबसे ज्यादा अतिक्रमण देहरादून जिले में हटाए गए हैं। यहां 1415 अतिक्रमण हटाकर सरकारी जमीन को कब्जा मुक्त किया गया है। इसके अलावा हरिद्वार में 259, पौड़ी में सात, टिहरी में 106, चमोली में 47, ऊधमसिंहनगर में 416, नैनीताल में 19, अल्मोड़ा में चार, पिथौरागढ़ में पांच और बागेश्वर में एक अतिक्रमण हटाए गए हैं। उन्होंने बताया कि जिलों से यह 14 मई तक की रिपोर्ट भेजी है। इसे शासन को भी भेज दिया गया है। अवैध कब्जों की जानकारी लेने के लिए पुलिस के खूफिया तंत्र को भी सक्रिय किया गया है, इसके अलावा जिला प्रभारियों को दिशा निर्देश जारी किए गए हैं कि वह भी टास्क फोर्स का पूर्ण सहयोग करें।

वन भूमि पर बनीं श्रमिकों की झुग्गियों पर भी कार्रवाई

वन भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर वन विभाग द्वारा अवैध रूप से बने धर्मस्थलों को चिह्नित कर हटाया जा रहा है। अब वन विभाग ने नदियों में खनन कर रहे श्रमिकों को भी वन क्षेत्र से बाहर करने का निर्णय लिया है। वन भूमि में बनी श्रमिकों की झुग्गियों को भी हटाया जाएगा। साथ ही जंगल में जलाशय व पोखर के आसपास किए गए अतिक्रमण भी ध्वस्त किए जाएंगे। 

कहा कि उत्तराखंड में वन क्षेत्रों में तमाम तरह के अतिक्रमण किए गए हैं। जिन्हें हटाने को लेकर मुख्यमंत्री के निर्देश पर वन विभाग सक्रिय है। लगातार अभियान चलाकर अतिक्रमण हटाया जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अवैध धर्मस्थलों के विरुद्ध चलाए गए अभियान के तहत अब तक 350 मजार और 35 मंदिर हटाए जा चुके हैं। कई अन्य को अभी नोटिस भी दिए गए हैं। मुख्य वन संरक्षक पराग मधुकर धकाते ने बताया कि प्रदेश में नदी क्षेत्रों को भी अतिक्रमणमुक्त कराया जाएगा। इसके तहत जलस्रोत, झील, तालाब समेत आसपास के क्षेत्रों में वन भूमि से कब्जे हटाए जाएंगे। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भी मदद ली जाएगी।

बताया कि वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन क्षेत्र में रात को रुकने की अनुमति नहीं है। ऐसे में नदी में खनन करने वाले मजदूर झुग्गी बनाकर वहां नहीं रुक सकते। उन्हें खनन कार्य होने के बाद शाम को अपने स्थायी ठिकानों पर लौटने की चेतावनी दी गई है। इसके साथ ही अस्थायी झुग्गियों को भी ध्वस्त करने की तैयारी है।

कार्रवाई गैर कानूनी और असंवैधानिक: अशोक चौधरी

अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी के अनुसार, वन गुर्जरों की बेदखली को लेकर उत्तराखंड वन विभाग की कार्रवाई पूरी तरह से गैरकानूनी और असंवैधानिक है। चौधरी कहते हैं कि वन अधिकार कानून के तहत जो लोग अपना दावा पेश कर चुके हैं, उन्हें वन भूमि से तब तक नहीं हटाया जा सकता, जब तक कि उनके दावों का निस्तारण नहीं हो जाता है। 

चौधरी के अनुसार, वन अधिकार कानून में ग्राम सभा द्वारा पारित दावे को खारिज करने का अधिकार किसी को नहीं है। यही नहीं, फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी किसी भी बेदखली पर रोक लगा दी थी जिनके दावे लंबित है। संवैधानिक रूप से देंखे तो वनाधिकार कानून एक विशेष कानून है और वन विभाग के अन्य सभी कानूनों में सर्वोपरि है। इसलिए वन विभाग का नोटिस देना, खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।

साभार : सबरंग 

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