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छपाक फिल्म के बहाने कुछ अहम सवाल!

हाल ही में एनसीआरबी के जो आंकड़े आए हैं उनमें ऐसिड अटैक और ऐसिड अटैक के प्रयास को एक अलग श्रेणी के रूप में दर्शाया गया है। ये आंकड़े 2018 के हैं और इस बात की सच्चाई बयां करते हैं कि 2013 में आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अभी भी एसिड की खुली ब्रिकी जारी है।
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फिल्म छपाक ने एक बार फिर ऐसिड अटैक के मुद्दे को चर्चा में ला दिया है। फिल्म में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि ऐसिड हमला बलात्कार से कम जघन्य अपराध नहीं है, लेकिन उसे मीडिया में उतना महत्व नहीं दिया गया। शायद इसके पीछे सोच है कि बलात्कार एक यौन अपराध है, जिसमें महिला या बच्ची की ‘इज्जत’ पर हमला होता है, यानी पुरुषों की मर्दांनगी को चुनौती देता है, ऐसिड अटैक ऐसा नहीं है।

हमारे देश में तेजाब से हमला अक्सर ज्यादातर ऐसी स्थिति में होता है जब लड़की किसी पुरुष द्वारा दिए गए शादी या यौन सम्बन्ध के प्रस्ताव को ठुकरा देती है या किसी अन्य पुरुष दोस्त को अधिक तवज्जो देती है। भारत में किसी लड़की का ‘‘ना’’कहना पुरुषों के पूरे वजूद या मर्दानगी पर जैसे सवालिया निशान लगा देता है। अक्सर दोस्तों में बाजी लगती है कि सबसे सुन्दर लड़की को कौन ‘पटा’ सकता है, और इसे कबीर सिंह जैसी फिल्मों में महिमामंडित भी किया गया है।

हाल ही में एनसीआरबी के जो आंकड़े आए हैं उनमें ऐसिड अटैक और ऐसिड अटैक के प्रयास को एक अलग श्रेणी के रूप में दर्शाया गया है। आंकड़े 2018 के हैं और इनमें देश में हुए ऐसिड हमलों के साथ-साथ मेट्रो शहरों में हुए हमलों के आंकड़े हैं। इन आंकड़ों में दिये गए मामलों के अलावा वे मामले भी होंगे जो भय के कारण रिपार्ट नहीं किये गए या जिनमें प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई क्योंकि उत्पीड़ित व्यक्ति कमज़ोर वर्ग या जाति से थे।

आंकड़ों के अनुसार देश में 2017 के पेंडिंग केस और 2018 के केस मिलाकर तेजाब हमले (धारा 326ए आईपीसी) के कुल 324 और तेजाब हमले के प्रयास (धारा 326बी आईपीसी) के 91 मामले तफ्दीश के लिए आए; इनमें धारा 326ए के 158 मामलों में और 326बी के मामलों में 37 केस में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, बाकी मामलों में साक्ष्य नाकाफी थे या केस जांच के दौरान बंद कर किये गए। अब अदालत ने 326ए के तहत 28 मामलों में सज़ा सुनाई गई और 26 में अपराधी बरी हो गए।

इसी तरह धारा 326बी के तहत 3 को सज़ा हुई और 8 बरी हुए। मेट्रो शहरों में 326ए और बी धाराओं के तहत पुलिस तफ्दीश के लिए वर्ष 2017 के पेंडिंग और 2018 के मिलाकर क्रमशः 57 और 38 केस आए। इन दो धाराओं में क्रमशः 23 और 14 मामलों में चार्जशीट दाखिल हुईं। इनमें 326ए में 1 को सज़ा हुई और 1 बरी हुआ तथा 326बी के तहत किसी को सज़ा नहीं हुई और 1 बरी हुआ। तो 326ए में कन्विक्शन रेट 50 प्रतिशत् रहा है और 326बी में 0 प्रतिशत्।

केवल वर्ष 2018 को लें तो हम देखते हैं कि धारा 326ए के तहत 229 मामलों में चार्जशीट दाखिल हुई थी और 326बी के तहत 58 मामलों में। पर, धारा 326ए के तहत 51 लोगों को सज़ा हुई और 29 बरी हुए जबकि धारा 326बी के तहत 3 को सज़ा हुई और 20 बरी हुए। बाकी मामलों में साक्ष नाकाफी रहे, केस वापस लिए गए अथवा तफ्दीश के दौर में ही खत्म कर दिये गए। यह भी देखा गया कि सबसे अधिक आरोपी 18-30 वर्ष आयु के हैं। तो 326ए में सालों के संघर्ष के बाद कन्विक्शन रेट 61 प्रतिशत् तक पहुंचा है और 326बी धारा में 5 प्रतिशत्! राज्यों को देखें तो पश्चिम बंगाल ऐसिड हमलों में पहले नंबर पर है, फिर उत्तर प्रदेश और दिल्ली व तेलंगा आते हैं।  
कानून को देखा जाए तो सबसे बड़ी समस्या ऐसिड बिक्री की है।

साल 2006 में लक्ष्मी ने एक पीआईएल दाखिल र सुप्रीम कोर्ट से एसिड बैन करने की मांग की। जिसके बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसिड की खुली बिक्री पर रोक लगाने का आदेश दिया। इसके तहत तेजाब बेचने और खरीदने वाले का पूरा रिकार्ड बनाना होगा। इसके बाद ये निर्देश भी आए कि तेजाब 18 वर्ष से कम व्यक्ति को नहीं बेचा जाएगा। पहचान देखने के बाद इसे दिया जाएगा। विक्रेता के पास तेजाब की कितनी मात्रा है, इसकी जानकारी 15 दिन के भीतर स्थानीय एसडीएम को देनी होगी। ऐसा न करने पर 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। विक्रेता को खरीदने वाले का नाम व पता रजिस्टिर में दर्ज करना होगा और एसडीएम के पास दुकान पर मौजूद स्टाॅक 15 दिनों में घोषित करनी होगी वरना 1 माह से लेकर 6 माह की सज़ा हो सकती है। पर यह आज भी राज्यों में सही ढंग से लागू नहीं है।

दक्षिण एशिया में सबसे अधिक तेजाब के हमले होते हैं और बंगलादेश इस मामले में सबसे आगे रहा है। पाकिस्तान, भारत और कम्बोडिया जैसे देश भी इस मामले में सुर्खियां बनाते हैं। लंदन स्थित ऐसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनैश्नल ने सर्वे में पाया कि भारत में हर साल लगभग 1000 ऐसिड हमले होते हैं। यह भी सच है कि तेजाब से जलने के बाद की सर्जरी और इलाज काफी महंगा है। पर सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश किया है कि सर्वाइवर को 3 लाख रु मुआवज़ा दिया जाना चाहिये, जिसमें से 1 लाख उसे 15 दिनों के भीतर मिलना चाहिये।

2015 में केंद्र सरकार ने न्यायालय निर्देशानुसार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कहा है कि सभी सरकारी व निजी अस्पतालों में ऐसिड हमलों के सर्वाइवरों को मुफ्त चिकित्सा उपलब्ध कराई जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसिड हमलों को एक विशेष श्रेणी में भी रखने का आदेश दिया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या यह काफी है?

एक ऐसिड सर्वाइवर को बहुत कुछ झेलना पड़ता है, जो तेजाब इस्तेमाल किया जाता है उसमें सलफ्यूरिक ऐसिड या नाइट्रिक ऐसिड होता है। कुछ कम खतरनाक हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड भी प्रयोग किया जाता है। तेजाब अक्सर मुंह पर फेंका जाता है और वह गले, बांह और छाती तक बह जाता है। आखों की रोश्नी पूरी तरह जा सकती है, कान गल सकते हैं और नाक भी नष्ट हो सकती है यहां तक कि सुनने की क्षमता खत्म हो सकती है और सांस लेना असंभव हो सकता है। दांत/हड्डियां बाहर आ सकते हैं और श्वास नली व खाने की नली सिकुड़ सकती है।

यदि तुरन्त उपचार नहीं हुआ तो हड्डियां तक गल जाती हैं। ऐसी स्थिति में कई बार सर्जरी की ज़रूरत पड़ सकती है और त्वचा शरीर के दूसरे भागों से काटकर प्लास्टिक सर्जरी करनी पड़ती है। उंगलियों व गर्दन को घुमाना मुश्किल हो जा सकता है तो फिज़ियेथेरपी करानी पड़ सकती है। तेजाब से मौत भी होती है। इसके अलावा जीवित व्यक्ति की मानसिक पीड़ा इस कदर बढ़ जाती है कि उसे पल-पल मौत का एहसास होता है। लोग देखकर डरने लगते हैं, तो हीन भावना का पैदा होना स्वाभाविक है। नौकरी मिलना भी असंभव हो जाता है।

हाल में कंगना रनावत की बड़ी बहन रंगोली चंदेल ने बताया कि कैसे उसकी शादी तय होने पर एक व्यक्ति ने उसपर जग भर तेजाब डाल दिया। उसकी एक आंख की 90 प्रतिशत् रोशनी चली गई और श्वास व खाने की नलियां इतनी सिकुड़ गईं कि उसे सांस लेने और खाने में दिक्कत होती है। उसकी 57 सर्जरीज़ हुईं और 3 महीनों तक वह शीशा न देख सकी। लक्ष्मी अग्रवाल, जिसकी कहानी पर मेघना गुल्ज़ार की फिल्म छपाक बनी, आज भी जूझ रही है। 2014 में लक्ष्मी के संघर्ष को अंतराष्ट्रीय जगत में मिशेल ओबामा ने पुरस्कार से नवाज़ा और उसे भारत ने भी पुरस्कृत किया, फिर भी उसे स्थायी नौकरी नहीं मिली और मकानमालिक घर से बेदखल कर रहा है। उसे, पति से अलग होने के बाद, अपने और बेटी पीहू की परवरिश के लिए अनुदान मांगना पड़ रहा है।

छपाक फिल्म के आने के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने ऐसिड सर्वाइवरों के लिए 5000-6000 रु तक के पेंशन का प्रस्ताव किया है, जो कैबिनेट में प्रस्तुत किया जाएगा। दीपिका पादुकोण ने छपाक के माध्यम से बहुत ही संजीदा तरीके से ऐसिड सर्वाइवरों के जीवन के अहम सवालों को उठाया है और पूरे देश में पुनः बहस को जिंदा किया है। हमारे देश के नेताओं के लिए शर्म की बात है कि एसीड एटैक सर्वाइवर्स द्वारा लखनऊ में चलाया जा रहा शीरोज़ कैफे को बंद करने का प्रयास किया जा रहा है, और दीपिका के जेएनयू जाने पर फिल्म बाॅयकाॅट का आह्वान किया गया। जबकि ऐसे सर्वाइवरों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए विशेष ट्रेनिंग और उद्योग खोले जाने चाहिये। उन्हें निःशुल्क मनोवैज्ञानिक चिकित्सा भी दी जानी चाहिये।

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