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स्पेशल रिपोर्टः बनारस में अन्नपूर्णा की खंडित मूर्ति की ब्रांडिंग, काशी विश्वनाथ के भक्त आहत

बनारस में अन्नपूर्णा की खंडित मूर्ति स्थापित करने के मंसूबों को देखें तो साफ पता चलता है कि इसे स्थापित करने और कराने वाले लोग हिन्दू समाज के लोगों के सैंटिमेंट को भुनाने का मकसद रखते हैं।
Annapurna
कनाडा से लाई गई देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति। बताया जा रहा है कि इसका निचला हिस्सा क्षतिग्रस्त है।

पूर्वांचल में एक चर्चित कहावत है, ‘घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध’। कनाडा के म्यूजियम से लाई गई अन्नपूर्णा की मूर्ति के मामले में इस कहावत से सीख ली जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस खंडित मूर्ति की ब्रांडिंग इस कदर कर डाली कि उसके आगे काशी में अन्नपूर्णा देवी की दूसरी मूर्तियों का वजूद अब मिटता नजर आ रहा है। कनाडा से अन्नपूर्णा की खंडित मूर्ति लाकर विश्वनाथ मंदिर में जिस धूम-धड़ाके के साथ स्थापित की गई है उसके बारे में बनारसियों को यह तक पता नहीं कि उसे कब और कहां से चुराया गया था?  इस मूर्ति की चोरी की रपट आखिर किसी थाने में दर्ज क्यों नहीं है?  अगर यह मूर्ति वाकई असली है तो काशी खंड अथवा गजेटियर में उसका कहीं कोई उल्लेख क्यों नहीं है? 

अन्नपूर्णा की जिस मूर्ति को शिवालय परिसर में स्थापित किया गया है उसका निचला हिस्सा खंडित है। बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या किसी खंडित मूर्ति को पुनर्स्थापित किया जा सकता है? 

विश्वनाथ मंदिर परिसर के विस्तारीकरण के दौरान 50 से अधिक पुरातन मंदिरों को तोड़ दिया गया और सैकड़ों मूर्तियों व विग्रहों को कूड़े की तरह फेंका गया। कनाडा से लाई गई मूर्ति क्या उनसे ज्यादा पवित्र है? विश्वनाथ मंदिर के आसपास के पुराने मंदिरों को तोड़े जाने से क्या बनारसियों की आस्था को ठेस नहीं पहुंचा?

काशी विश्वनाथ परिसर में विग्रहों की यह स्थिति है। जिससे आस्थावान लोग आहत हैं।

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, "मोदी-योगी सरकार ने जिस तरह से कनाडा की खंडित मूर्ति का प्रचार कराया है उसे देखकर लगता है कि वाकई अब ब्रांडिंग का जमाना है। दुनिया में किसी भी मूर्ति की ब्रांडिंग का यह पहला मामला है, जिसे सरकार ने अमलीजामा पहनाया है। विश्वनाथ कारिडोर में बाजारवाद और कारपोरेटिज्म का जो खेल शुरू हुआ है उसे देखकर लगता है कि कनाडा से लाई गई खंडित मूर्ति के आगे वह सभी मूर्तियां अब बौनी साबित हो गई हैं जिनकी पूजा-अर्चना काशी के आस्थावान लोग सदियों से करते आ रहे हैं। दीगर बात है कि बनारस में अब से पहले खंडित मूर्तियों की पुनर्स्थापना की रवायत नहीं थी। धर्म की चाशनी में राजनीति परोसी जा रही है। चुनाव के मौके पर अन्नपूर्णा की मूर्ति का मिलना और भाजपा का मंच सजाकर शोभायात्रा निकला जाना सियासी मकसद को साधने का खेल नजर आता है।"

बनारस स्थित संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में मीमांसा विभाग के आचार्य कमलाकांत पांडेय सवाल खड़ा करते हैं कि जिस मंदिर में हम विदेशियों को घुसने नहीं देते वहां विदेश से लाई गई खंडित प्रतिमा को स्थापित किया जाना कितना उचित है? मूर्ति भारत लाने से पहले क्या कनाडा में कोई शास्त्रीय विधान पूरा कराया गया? आचार्य कमलाकांत साफ-साफ कहते हैं, "अन्नपूर्णा की मूर्ति विदेश से लाई गई है। इसे मंदिर परिसर में स्थापित कराया जाना धार्मिक मान्यताओं और शात्रीय नियमों के विरुद्ध है। खंडित मूर्ति को तो किसी हाल में देवालय परिसर में स्थापित नहीं किया जाना चाहिए था। शास्त्रों में नियम तो यह भी है कि विश्वनाथ मंदिर कारिडोर परिसर के जिन मंदिरों को तोड़कर मूर्तियों को उखाड़ा गया है उन्हें भी पुनस्थापित नहीं किया जाना उचित नहीं है। अन्नपूर्णा की मूर्ति स्थापित करने के मंसूबों को देखें तो साफ पता चलता है कि इसे स्थापित करने और कराने वाले लोग हिन्दू समाज के लोगों के सैंटिमेंट को भुनाने का मकसद रखते हैं। किसी भी मूर्ति को स्थापित करने से पहले काशी के विद्वानों से विधिवत परामर्श लिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।"

आचार्य कमलाकांत पांडेय बताते हैं, "भगवंत भास्कर समेत कई ग्रंथों में मंदिरों, मूर्तियों और विग्रहों के जीर्णोद्धार व पुनर्स्थापना के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। शास्त्रीय विधान यह है कि खंडित मूर्ति का प्राण-प्रतिष्ठा किसी दशा में दोबारा नहीं किया जा सकता है। भगवंत भास्कर ग्रंथ में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि म्लैच्छ देश (विदेश) से लाई गई और खंडित मूर्ति किसी भी दशा में देवालय में नहीं रखी जा सकती। बेहतर होता कि इसे विधि-विधान से गंगा में प्रवाहित कर दिया गया होता अथवा बीएचयू के म्यूजिम में रखवा दिया जाता। खंडित मूर्ति की स्थापना धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के विरुद्ध है। हिन्दू शास्त्रों में ऐसी मूर्तियों की पूजा का प्रावधान नहीं हैं। मोदी-योगी को धर्म विरुद्ध कार्य कतई नहीं कराना चाहिए। अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति की पुनर्स्थापना धर्म नहीं, पाखंड है। यह हिन्दू धर्म और मान्यताओं के साथ मजाक है। हम हैरान हैं कि आजकल समूचा काशी विद्वत परिषद पाखंड के साथ खड़ा है। पैसा और सम्मान के लोभी अधर्म के साथ खड़े हो गए हैं। जब-जब धर्म की हानि हुई है, तब-तब विपदाएं आई हैं। खंडित मूर्ति को लाने से लेकर प्राण-प्रतिष्ठा करने का जो घृणित कार्य किया गया है उसकी कीमत तो बनारस के लोगों को ही चुकाना पड़ेगा।"

कारीडोर परिसर में धूल से सनी एक देव प्रतिमा

डिहवारी में भी मिलती हैं ऐसी मूर्तियां

बनारस में अन्नपूर्णा देवी की जिस मूर्ति को बनारस लाया गया उस तरह की तमाम मूर्तियां गांवों की डिहवारी (पूजा स्थल) में पहले से मौजूद हैं। जनता का सेंटिमेंट भुनाने के लिए इस मूर्ति की जमकर ब्रांडिंग की गई। 11 नवंबर 2021 को दिल्ली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद के हवाले किया। बताया जाता है कि भाजपा और उसके अनुसांगिक संगठनों से जुड़े लोगों ने एक खास मकसद से इस मूर्ति को दुर्लभ बताते हुए जमकर ब्रांडिंग की। इसे मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया गया। इस मूर्ति को लेकर निकाली गई एक विशाल शोभायात्रा गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, हाथरस, कासगंज, एटा, मैनपुरी, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ और जौनपुर होते हुए 15 नवंबर को बनारस पहुंची। शहर में परिक्रमा कराने के बाद श्रीकाशी विश्वनाथ परिसर में सीएम योगी की मौजूदगी में इस खंडित मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर दी गई।

अन्नपूर्णा की मूर्ति की दिलचस्प कहानी

अन्नपूर्णा की मूर्ति की कहानी खासी दिलचस्प है, उससे ज्यादा रोचक है इसे बनारस लाने का अंदाज। बनारस शैली में उकेरी गई 18वीं सदी की यह मूर्ति कनाडा की यूनिवर्सिटी आफ रेजिना में मैकेंजी आर्ट गैलरी में थी। इस आर्ट गैलरी को 1936 में वकील नार्मन मैकेंजी की वसीयत के अनुसार तैयार किया गया था। वर्ष 2019 में विनिपेग में रहने वाली भारतीय मूल की मूर्तिकार कला विशेषज्ञ दिव्‍या मेहरा को प्रदर्शनी लगाने के लिए आमंत्रित किया गया था। यहां उन्होंने मूर्ति पर गहन अध्‍ययन किया। इसी दौरान उन्हें इस मूर्ति के भारत के होने का पता चला।

दावा किया जा रहा है कि दिव्‍या मेहरा ने पता लगाया कि गुलाम भारत में वाराणसी में गंगा किनारे क्षेत्र से 1913 के आसपास अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति चोरी हुई थी। चोरी होने के बाद मूर्ति तस्करों द्वारा गुपचुप तरीके से यह मूर्ति कनाडा पहुंच गई और फिर मैकेंजी आर्ट गैलरी में शोभा बढ़ाने लगी।

दिव्या मेहरा ने इस बात का कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं जुटाया कि अन्नपूर्णा की मूर्ति कब और कहां से चोरी हुई थी? उन्होंने सिर्फ भारतीय दूतावास को इसके मूर्ति के बारे में सूचना दी तो लिखा-पढ़ी शुरू हो गई। बाद में कनाडा सरकार ने इसे भारत सरकार को शिष्‍टाचार भेंट के तौर पर लौटाने की पेशकश की।

चुनार के बलुआ पत्‍थर से बनी अन्नपूर्णा की यह मूर्ति काफी हद तक अपनी प्रकृति खो चुकी हैं। बनारस में इस काल की अनगिनत मूर्तियां हैं। इसी कालखंड की तमाम मूर्तियों में वह मूर्तियां भी शामिल हैं जिन्हें विश्वनाथ कारिडोर के निर्माण के समय जहां-तहां उखाड़कर फेंक दिया गया था।

पीएम ने की ब्रांडिंग

कनाडा के म्यूजियम में रखी अन्नपूर्णा की यह मूर्ति तब सुखियों में आई जब पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर महीने में मन की बात कार्यक्रम के 29वें एपिसोड में इसके बारे में जानकारी दी। भाजपा के लोग अब दावा कर रहे हैं कि विश्वनाथ मंदिर परिसर से ही यह मूर्ति चुराई गई थी। कोई इसे साल 1913 में चोरी करना बता रहा है तो कुछ लोग उसे चुराए जाने का साल 1919 बता रहे हैं। अगर मूर्ति चोरी की थी तो उसे पुलिस को सुपुर्द करके जांच क्यों नहीं कराई गई? यह सवाल फिलहल अनुत्तरित है।

कनाडा से लाई गई मूर्ति अब काशी विश्‍वनाथ कारीडोर में रानी भवानी स्थित उत्तरी गेट के बगल में प्रतिष्‍ठापित की जा चुकी है। इस मूर्ति में मां अन्नपूर्णा के एक हाथ में खीर का कटोरा और दूसरे हाथ में चम्‍मच है। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष पत्रकार सीबी तिवारी (राजकुमार) कहते हैं, "काशी में अन्नपूर्णा देवी को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां कभी कोई भूखा नहीं रहता। कहा जाता है कि उन्होंने स्वयं भगवान शिव को भोजन कराया था। मां अन्नपूर्णा का उल्लेख हिंदू पौराणिक कथाओं में भोजन और धन की देवी के रूप में किया गया है। इसीलिए लोग इस, देवी की पूजा-अर्चना करते हैं। काशी खंड में अन्नपूर्णा देवी की महानता का वर्णन विस्तार से किया गया है। मूर्तियों की बात करें तो इस जैसी तमाम मूर्तियां बनारस से चोरी हुई हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी से कई मूर्तियां भारत लाई जा चुकी हैं। यह कोई नया इतिहास रचने वाली बात नहीं है।"

काशी विश्वनाथ मंदिर में एक ओर जहां कनाडा से लाई गई अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति को लेकर देश भर में ढोल पीटा गया, वहीं दूसरी ओर इसी परिसर में मौजूद अन्नपूर्णा के पुरातन मंदिर को नेस्तनाबूत कर दिया गया। इसी के साथ कई अन्य ऐतिहासिक मंदिरों का वजूद मिटा दिया गया।

काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे इस अन्नपूर्णा मंदिर को उखाड़ फेंका गया।

ख़फ़ा हैं मंदिर के महंत

काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में कनाडा की मूर्ति स्थापित किए जाने से महंत कुलपति तिवारी भी खासे कुपित हैं। इन्हें भी लगता है कि विद्वत परिषद में शामिल कुछ लोभी सदस्य सरकार के साथ मिलकर अधर्म का खेल खेल रहे हैं। वह कहते हैं, " काशी में अब कोई लड़ने वाला नहीं है। हम परंपरा और बाबा का अस्तित्व बचाने की बात कहते हैं तो लोगों को बुरा लगता है। सब पैसे का खेल है। आस्था थोपी जा रही है। शासन-तंत्र, प्रजातंत्र और धर्मतंत्र में विभेद है, जिसे समझने वाला कोई नहीं है। काशी में धर्मतंत्र का पलड़ा झुक गया है। हम सही होकर भी गलत हो गए हैं। जिस अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति परिसर से चोरी होने की बात कही जा रही है, वह सरासर गलत है। बाबा की सेवा करते हुए हमारी कई पीढ़ियां गुजर गईं। किसी ने कभी किसी मूर्ति के चोरी की बात नहीं बताई। कोई साबित नहीं कर सकता कि कनाडा से जो मूर्ति लाई गई है वह विश्वनाथ मंदिर की है? "

महंत कुलपति तिवारी यहीं नहीं रुकते। नाराजगी का इजहार करते हुए कहते हैं, " खंडित मूर्ति भले ही स्थापित कर दी गई है, लेकिन उसे भला कौन पूजेगा? जिस मूर्ति पर काशी की जनता का भरोसा नहीं, उस पर दुनिया कैसे भरोसा कर लेगी? जिस तरह से मंदिर परिसर में देवी-देवताओं की मूर्तियां बुल्डोजर लगाकर तोड़ी गई हैं वह अधर्म और अनीति की पराकाष्ठा है। मुझे लानत है कि मैं सांस ले रहा हूं और चाहकर कुछ नहीं कर पा रहा हूं। वैदिक परंपरा और शास्त्रों में कोई ऐसा विधान ही नहीं है जिससे किसी खंडित मूर्ति में जान फूंकी जा सके। कहीं से कोई मूर्ति उखाड़ी गई होती है तो प्रायश्चित कराने का प्रावधान है। जिस तरह नोटबंदी थोपी गई, वैसे ही अन्नपूर्णा देवी की कनाडा वाली मूर्ति श्रद्धालुओं पर थोप दी गई। अपूजनीय मूर्ति भला पूजनीय कैसे हो सकती है? "

महंत कुलपति यह भी कहते हैं, "योगी सरकार इसे धाम बनाने पर तुली है। यह धाम नहीं धर्मनगरी है। राजा कास्य की नगरी, जिसे पहले आनंदवन कहा जाता था। राजा कास्य का इतिहास मिटाकर आप इसे धाम नहीं बना सकते। यह ऐसा अपराध है जो पूरे देश को तबाह कर सकता है। कितने दुख की बात है कि वास्तु के नियमों की अनदेखी करते हुए बाबा की कचहरी तोड़ दी गई। सत्यनाराण मंदिर, अभिमुक्तेश्वर मंदिर, गुरु वृहस्पति मंदिर, शनिवेदव मंदिर, हनुमान मंदिर, भैरव मंदिर, गणेश मंदिर, पार्वती मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, कुबेरेश्वर मंदिर, वीर भद्रेश्वर मंदिर, दीवो दास मंदिर, व्यासेश्वर मंदिर समेत काशी खंड के तमाम मंदिरों का तो वजूद ही मिटा दिया गया। कोई बताने के लिए तैयार नहीं कि मूर्तियों और मंदिरों को हटाने के लिए किस शास्त्रीय परंपरा का पालन किया गया? 50 हजार श्रद्धालुओं के लिए जगह तो बना दी गई है, लेकिन शौचालय आदि का कहीं कोई पुख़्ता इंतजाम नहीं है। मंदिर के गेस्ट हाउस में जो लोग ठहरेंगे और मोटी रकम चुकाएंगे, वही सुविधाएं हासिल करेंगे। बाकी श्रद्धालुओं की मुश्किलें तो जस की तस ही रहेंगी। सरकार को अधर्म का रास्ता वो लोग बता रहे हैं जो सत्ता के गलियारों में पदक और पैसा पाने के लिए दौड़ लगा रहे हैं। यहां तो सब पद्मश्री के भूखे हैं। विश्वनाथ मंदिर हमारे पुरखों का है। बाबा की पूजा में हमने अपनी पूरी जिंदगी खपा दी और अब हमारी बात ही नहीं सुनी जा रही है। मंदिर हमारा है और हमें ही दुत्कारा जा रहा है। अफसरों ने तो बाबा को ही बेच दिया है। दुर्भाग्य की बात है कि अब सिर्फ ढोंग और अधर्म का प्रचार किया जा रहा है। हमारी आत्मा रो रही है। अंतर्मन दुखी है कि आखिर हमारी विरासत को क्यों नष्ट कर दिया गया? देवी अन्नपूर्णा का क्या दोष था, जो उखाड़ दिया गया और कनाडा की खंडित मूर्ति को अहमियत दे दी गई। जूता पहनकर बाबा केदारनाथ की फेरी लगाने वाले और नेपाल में नकली बेटा खड़ा कर देने वाले देश को अधर्म व अनीति के रास्ते पर ले जा रहे हैं। गुनाहों की सजा तो उन्हें भी भुगतनी होगी, जो लोग अधर्मियों को सिर आंखों पर बैठाए हुए हैं।"

अन्नपूर्णा की वह मूर्ति जहां पहले से ही होती रही है पूजा।

कमाई का खेल या कुछ और?

अन्नपूर्णा देवी के नाम पर काशी में खासी कमाई होती है। काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर से हटकर है असली अन्नपूर्णा मंदिर। यह मंदिर काशी अन्नपूर्णा अन्नक्षेत्र ट्रस्ट और कई शिक्षण संस्थाओं का संचालन भी करता है। ट्रस्ट को हर साल करोड़ों की आमदनी होती है। सूत्र बताते हैं कि मंदिर की इस कमाई पर कुछ तथाकथित धर्माचार्यों की नजर है। इस मंदिर की कमाई विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट में खींचने के लिए कनाडा से लाई गई अन्नपूर्णा मंदिर की दुनिया भर में ब्रांडिंग की जा रही है।

दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर बनारस में अन्नपूर्णा देवी का एक और विशाल मंदिर है, जिसका निर्माण पेशवा बाजी राव ने 1700 के दशक में करवाया था। साल में सिर्फ एक दिन खुलने वाली स्वर्ण मूर्ति अन्नकूट पर्व पर जनता के दर्शनार्थ रखी जाती है। मंदिर के भीतर, अन्नपूर्णा की मूर्ति ठोस सोने की है। मूर्ति कमलासन पर विराजमान है, जो चांदी की थैली में भोजन दान करती नजर आती हैं।  अन्नपूर्णा मंदिर के प्रांगण के भीतर कुछ और मूर्तियां हैं, जिनमें देवी काली, शंकर, पार्वती और नरसिंह हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर के रेड जोन में यह अन्नपूर्णा मन्दिर है। इस मंदिर में भी रोजाना भारी भीड़ होती है। लेकिन धनतेरस के दिन इस मंदिर परिसर के पहले तल्ले पर स्थित माता अन्नपूर्णा, भूमि देवी और लक्ष्मी जी के स्वर्ण मयी मूर्ति का दर्शन होता है। धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक यहां आने वाले भक्त मंदिर से प्राप्त प्रसाद (मुद्रा व लावा) को अपने भंडारे में रखते हैं।

इस अन्नपूर्णा मंदिर के मौजूदा महंत हैं शंकर पुरी। विश्वनाथ मंदिर में एक और अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति लगाए जाने से वह वह काफी खिन्न और नाराज हैं। महंत पुरी ने फिलहाल इस मामले में पूरी तरह चुप्पी साध रखी है। इस मंदिर के महंत को अंदेशा है कि जिस तरह से अनाडा की मूर्ति की ब्रांडिंग की जा रही है उससे उनके मंदिर की कमाई घट सकती है। उनके मंदिर के सामने जिस तरह से दीवार खड़ी की जा रही है उससे इस आशंका को बल मिलता है कि भविष्य में असली अन्नपूर्णा मंदिर की तरफ जाने से श्रद्धालुओं को रोका जा सकता है।

विश्वनाथ मंदिर से सटा ऐतिहासिक लक्ष्मी नारायण मंदिर का मिट गया वजूद।

अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी से न्यूज़क्लिक ने बात करने की कोशिश  की, लेकिन वह सामने नहीं आए। अलबत्ता ढूंढीराज गणेश गली में अन्नपूर्णा मंदिर के अधीन चलाए जाने वाले अन्न क्षेत्र के प्रबंधन का काम देखने वाले अभिषेक शर्मा ने खुलकर अपनी भड़ास निकाली। बोले, "कनाडा की जिस मूर्ति को विश्वनाथ परिसर में स्थापित किया गया है उसे यहां से चुराए जाने का कोई साक्ष्य अथवा अभिलेख नहीं है। अगर कोई मूर्ति गायब हुई थी तो उस पर पहला अधिकार विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार का है। विश्वनाथ कारिडोर में जिस आतताई मानसिकता से कार्य किया जा रहा है वह शर्मनाक और शास्त्र विरुद्ध है। विश्वनाथ मंदिर पहले आस्था का केंद्र था और अब व्यापार का केंद्र हो गया है। यहां तो "जबरा मारे, रोए न दे" वाली स्थिति है। मूर्ति चाहे शुद्ध हो या अशुद्ध इस बात से भाजपा और उसके अनुसांगिक संगठनों के लिए काम करने वालों को कोई मतलब नहीं है। कालहरण करके ले जाई गई मूर्ति को किसी भी कर्मकांड से दोबारा प्राण प्रतिष्ठित अथवा पूजित व्यवस्था में शामिल नहीं किया जा सकता है। कनाडा से लाई गई मूर्ति तो गंगा के अथाह जल में विसर्जित करने योग्य थी।"

विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने आए डॉ. रविंद्र सहाय कैलाशी कहते हैं, "एक देवालय में एक ही देवी की दो-दो मूर्तियां कैसे रखी जा सकती हैं? हमें तो यह सिर्फ चुनावी स्टंट और धार्मिक धतकर्म दिखता है। अगर कोई खंडित मूर्ति स्थापित की जाएगी तो दुष्प्रभाव काशीवासियों को झेलना होगा, क्योंकि इस शहर के लोग इस बितंडावाद पर खामोश बैठे हैं।"

काशी विश्वनाथ मंदिर में हो रहे निर्माण कार्य पर सवाल खड़ा करते हुए डॉ. कैलाशी कहते हैं, " मंदिर परिसर में पत्थरों की जिस तरह से असैंबलिंग की जा रही है वह ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगी। पत्थरों को पेंच से कसा जा रहा है। इस तरह के अजूबे निर्णाण को मोदी शैली कह सकते हैं। गंगा पार रेत में खोदी गई मोदी नहर का जो हाल हुआ, शायद वैसा ही यहां भी होगा। दावा किया गया था कि मंदिर कारिडोर के 40 फीसदी हिस्से में हरियाली लाई जाएगी। विश्वनाथ परिसर में आक्सीजन देने वाले कई पेड़ों को षड्यंत्र पूर्वक नेस्तनाबूत कर दिया गया। हरियाली के लिए तो जगह ही नहीं बची है। अब यह मंदिर आस्था और अध्यात्म का केंद्र कम, पर्यटन का ज्यादा हो गया है।"

एक दैनिक अखबार के लिए विश्वनाथ मंदिर की खबरें कवर करने वाले ऋषि झिंगरन कहते हैं, " सीएम योगी ने विश्वनाथ मंदिर में कनाडा की जो मूर्ति स्थापित कराई है उसकी केस हिस्ट्री से बनारस के लोग वाकिफ नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि 100 साल पहले क्या अन्नपूर्णा की मूर्ति चोरी हुई थी? वह मूर्ति आखिर कनाडा कैसे पहुंच गई? क्या यह वही मूर्ति है जिसकी चोरी की बात कही जा रही है? इस संबंध में कोई ऐतिहासिक अथवा दस्तावेजी साक्ष्य आखिर पब्लिक डोमन में क्यों नहीं लाया जा रहा है?  ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब काशी में हर किसी को चाहिए। यूं तो काशी में इस तरह की शोभायात्राएं आए दिन निकलती रहती हैं और इस शहर के धर्मप्राण लोग उसे सिर्फ धर्म तक ही सीमित रखते हैं। ऐसे में देखने वाली बात होगी अपने मकसद में भाजपा और उसके नेता कितना कामयाब हो पाते हैं? "

काशी विश्वनाथ कारिडोर का एक मंदिर।

बनारस में ऐतिहासिक मंदिरों को ध्वंसावशेष।

मिट गया इस मंदिर का भी वजूद।

मिटा दिया गया अक्षयवट का वजूद।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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