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स्पेशल रिपोर्टः ज़हरीली हवा में सांस ले रहे पीएम के संसदीय क्षेत्र बनारस के लोग

दिवाली के बाद से ही पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में स्थिति दमघोंटू बनी हुई है। इस शहर की एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 300 से नीचे उतरने का नाम नहीं ले रही है। यह स्थिति उन लोगों के लिए बेहद चिंताजनक है जिन्होंने कोरोनासुर से लड़कर किसी तरह से अपनी जिंदगी बचाई है।
 PM's parliamentary constituency Banaras breathing poisonous air

उत्तर प्रदेश में तीन मिलियन से अधिक आबादी वाले शहर बनारस के लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। फिजा में इस कदर जहर घुल गया है कि यहां सांस लेने का मतलब है तीन से अधिक सिगरेट पीना। दिवाली के बाद से ही पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में स्थिति दमघोंटू बनी हुई है। इस शहर की एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 300 से नीचे उतरने का नाम नहीं ले रही है। यह स्थिति उन लोगों के लिए बेहद चिंताजनक है जिन्होंने कोरोनासुर से लड़कर किसी तरह से अपनी जिंदगी बचाई है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने कहा है कि जो लोग दिल अथवा फेफड़ों की बीमारी, या फिर अस्थमा से पीड़ित हैं उन्हें वायु प्रदूषण के जोखिम को कम करने के लिए एयर प्यूरीफायर और अनिवार्य रूप से फेस मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए।

उत्तर प्रदेश के मिलिनय प्लस आबादी वाले 17 शहर ऐसे हैं जहां वायु की गुणवत्ता डेंजर जोन में चली गई है। ये शहर हैं आगरा, प्रयागराज, अनपरा, बरेली, फिरोजाबाद, गजरौला, गाजियाबाद, झांसी, खुर्जा, कानपुर, लखनऊ, मुरादाबाद, नोएडा, रायबरेली, गोरखपुर और वाराणसी। सबसे जहरीली हवा आगरा की है। इलाहाबाद, गाजियाबाद, कानपुर, लखनऊ, मेरठ के बाद बनारस और इससे सटे जौनपुर शहर में दमघोंटू हवाएं चल रही हैं। बनारस तो दिवाली के बाद से ही घातक गैसों का गोला बना हुआ है। इस शहर की वायु गुणवत्ता जांचने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने भेलूपुर, अर्दलीबाजार, मलदहिया और बीएचयू में प्रदूषण मापी संयंत्र लगा रखा है। दिवाली की रात तो बनारस की वायु गुणवत्ता 500 (एक्यूआई) से ऊपर चली गई। अगले दिन शहर भर में बड़े पैमाने पर पानी का छिड़काव कराने के बावजूद चार-पांच दिन बाद भी एयर इंडेक्स क्वालिटी 350 से नीचे नहीं आ सकी। हालांकि 10 अक्टूबर को हवाओं में थोड़ा सुधार हुआ, लेकिन स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। कार्बन डाई आक्साइड और नाइट्रोजन की मात्रा क्रमशः 100 और 75 से ऊपर है।

प्रदूषण के जाल में फंसे बनारस की खतरनाक होती वायु गुणवत्ता

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिवाली पर पटाखों और गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से हवा में कुछ संघटक तेजी से बढ़े हैं। अब की पीएम 10, सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन डाईआक्साइड, ओजोन, आयरन, मैगजीन, वैरीलियम और निकेल की मात्रा भी बढ़ी है। पहले के मुकाबले बनारस में गाड़ियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। वाहनों के धुएं के बीच पटाखों ने बनारस में प्रदूषण की समस्या को कई गुना ज्यादा बढ़ा दिया। काशी में जाम की समस्या भी वायु प्रदूषण का तोहफा बांट रही है, जिसे नियंत्रित करने की दिशा में आज तक कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं किया जा सका है। बनारस, यूपी के उन प्रमुख शहरों में से एक है जहां पीएम 2.5 की सघनता का स्तर विश्व स्वास्थ संगठन के दिशा-निर्देशों से बहुत ऊपर है।

दिवाली पर बनारस में वायु गुणवत्ता का सूचकांक

दिवाली पर बनारस बन गया गैस चैंबर

वायु प्रदूषण के खिलाफ मुहिम चला रही बनारस की संस्था क्लाइमेट एजेंडा ने दिवाली के दिन शहर में प्रदूषण की जांच-पड़ताल की तो बड़े खतरे की रिपोर्ट सामने आई। पटाखों और कूड़े-कचरों से निकली जहरीली गैसों ने इस शहर की आबोहवा में बुरी तरह जहर घोल दिया। इसके चलते वायु की गुणवत्ता आठ गुना ज्यादा प्रदूषित हो गई। तभी से समूचा शहर गैस का चेंबर बना हुआ है।

क्लाइमेट एजेंडा पिछले पांच सालों से दिवाली पर बनारस शहर की आबोहवा की गुणवत्ता की निगरानी करती आ रही है। संस्था ने शहर में दस स्थानों पर वायु प्रदूषण की जांच की। शिवपुर के बाद सोनारपुरा, पांडेयपुर और मैदागिन क्रमशः सर्वाधिक प्रदूषण वाले इलाके रहे। पिछली बार की अपेक्षा इस बार सिर्फ रविंद्रपुरी इलाका थोड़ा साफ रहा। हालांकि समूचे बनारस में प्रदूषण का स्तर अभी भी बेहद खतरनाक बना हुआ है।

क्लाइमेट एजेंडा की मुख्य अभियानकर्ता एकता शेखर कहती हैं, " दिवाली के दिन बनारस के शिवपुर इलाके में पीएम 10 अधिकतम 798 यूनिट प्रति घन मीटर के आंकड़े तक पहुंच गया, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुमन्य (परमिसिबल) स्तर के मुकाबले दस गुना ज्यादा था। इस इलाके में पीएम 2.5 का स्तर 401 रहा, जो अनुमन्य स्तर की तुलना में 6.5 गुना अधिक रहा। बनारस शहर के बाकी इलाकों की स्थिति भी इससे मिलती-जुलती रही। बनारस धुएं का गोला बनता चला गया, लेकिन प्रशासन और क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण इस गंभीर समस्या को लेकर कतई चिंतित नजर नहीं आए। बनारस शहर में कचरा प्रबंधन में कोताही बरते जाने के कारण बहुत से लोग अपने आसपास कचरा जलाने और जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं।"

इंसान की सेहत, दोयम दर्जे का सवाल

एकता यह भी कहती हैं, "बनारस के लोग अभी तक दावा किया करते थे कि इस नगरी के लोग विष तक पी सकते हैं तो धुआं उनका क्या बिगाड़ लेगा? कोरोना संकट काल में, अप्रैल से मई 2021 के बीच फेफड़ों के कमजोर होने की वजह से जिस तरह तिल-तिलकर लोगों की मौतें हुईं, उससे हर कोई खौफजदा है। दिगर बात है कि बनारस के अधिकारी यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि कूड़ा-कचरा जलाने पर इस शहर की फिजा खराब हो सकती है। पिछले एक दशक से काशी समेत समूचे पूर्वांचल में हवा की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। भारतीय कानून में सख्त दंड का प्रावधान होने के बावजूद कार्रवाई न हो पाने की वजह से वायु प्रदूषण की गुणवत्ता का ग्राफ आसमान छूता जा रहा है। हाल यह है कि प्रदूषण फैलाने के मामले में पूर्वांचल में किसानों को छोड़कर आज तक किसी आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकी है।"

क्लाइमेट एजेंडा के अभियानकर्ता रवि शेखर का नजरिया कुछ अलग है। वह कहते हैं, "औद्योगिक विकास जहां सरकार की प्राथमिकता है, वहीं मानव स्वास्थ्य दोयम दर्जे का सवाल है। यूपी के ज्यादातर शहरों में वायु की गुणवत्ता मापी ही नहीं जाती है। जहां प्रदूषण मापी संयंत्र लगाए गए हैं उसकी प्रामाणिक रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में नहीं लाई जाती। प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों को चिन्हित तक नहीं किया जाता। जब हमें बीमारी का पता ही नहीं, तो भला इलाज कैसे हो सकेगा?"

शेखर दावा करते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण महकमें के ज्यादातर आंकड़े फर्जी हैं। कहते हैं, "पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने की वजह से यहां आंकड़ों को कमतर दिखाया जाता है। इस शहर में प्रदूषण मापने के लिए चार स्टेशन हैं, लेकिन कहीं भी लाइट के बैकअप का इंतजाम नहीं है। बिजली कटने पर डाटा लैप्स हो जाता है। स्मार्ट सिटी योजना के तहत सिगरा पर एक एयर पॉल्यूशन जांच केंद्र बनाया गया है। जनता को सतर्क करने के लिए डिस्प्ले बोर्ड भी लगवाया गया है, लेकिन वायु गुणवत्ता का सही डाटा यदा-कदा ही प्रसारित किया जाता है।

फैक्ट्री मालिक नहीं, दंडित होते हैं किसान

बनारस में वायु प्रदूषण का यह हाल तब है जब धान के कटोरा चंदौली में फसलों की कटाई अभी जोर नहीं पकड़ सकी है। पिछले साल चंदौली प्रशासन ने जिले के 37 किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। साथ ही बड़ी संख्या में किसानों पर जुर्मान लगाकर दंडित किया गया था। पूर्वांचल में धान की सर्वाधिक खेती चंदौली और गाजीपुर में होती है। चंदौली के पूर्व विधायक मनोज सिंह "डब्लू" धान के बड़े उत्पादक हैं। वह कहते हैं, "भाजपा सरकार किसानों को आसान शिकार मानती है। वह चाहती है कि वायु प्रदूषण सिर्फ सिजनल मुद्दा बने। खासतौर पर उस समय जब किसान धान की फसलें काटना शुरू करें ताकि प्रदूषण फैलाने का सारा इल्जाम उनके माथे पर मढ़ा जा सके। अदालतों को भी कहा जा सके कि प्रदूषण फैलाने के लिए असली दोषी सिर्फ किसान ही हैं। जिन फैक्ट्रियों से काले धुएं निकलते हैं, उनका बाल-बांका तो होता ही नहीं है।"

मनोज सिंह यह भी कहते हैं, "किसानों को पराली जलाने पर आफत मोल लेनी पड़ती है, लेकिन सरकार यह नहीं बताती कि इस समस्या से निपटने के लिए किसान आखिर क्या करें? बेरोजगारी के चलते गांवों के ज्यादातर युवक शहरों में पलायन कर गए हैं। बड़ी संख्या में श्रमिकों को कंस्ट्रक्शन कंपनियां खींच ले गई हैं। किसान किसके दम पर खेती करें? अगर मशीन का सहारा न लें तो रबी की फसलों की बुआई मुश्किल हो जाएगी। जब सरकार कोई विकल्प नहीं सुझा रही है तो किसान पराली नहीं जलाएंगे तो फिर क्या करेंगे? अन्नदाता की लाचारी समझने के लिए न भाजपा सरकार तैयार है, न जिला प्रशासन। यह स्थिति सिर्फ चंदौली ही नहीं, समूचे पूर्वांचल में है। सरकार और मीडिया यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि स्मॉग का शोर तभी क्यों मचता है जब पराली जलाने का वक्त आता है। भाजपा सरकार और उनके नुमाइंदों को न तो फैक्ट्रियों का जहरीला धुआं दिखता है और न ही गाड़ियों का।"

नोटिसें निकलीं, पर बंद नहीं हुए भट्ठे

यूपी की योगी सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिबुनल (एनजीटी) में हलफनामा देकर कहा था कि राज्य में 12000 से ज्यादा ईंट के भट्ठे जिकजैक टेक्नालाजी से लैस नहीं हैं। जल्द ही इन सभी को बंद करा दिया जाएगा। शासन ने फरमान तो जारी किया, लेकिन कार्रवाई कागजों में दफन होकर रह गई। फिजिकली तौर पर पूर्वांचल में एक भी ऐसे भट्ठे बंद नहीं हुए हैं, जिनके यहां जिकजैक तकनीक का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। जहर उगल रहे भट्ठे और फैक्ट्रियों का धुआं सरकार को नहीं दिख रहा। दिख रही है तो सिर्फ किसानों का पराली। पिछले साल पराली जलाने पर यूपी में 800 से ज्यादा किसानों के खिलाफ रपटें विभिन्न थानों में दर्ज कराई गई। कई किसानों को गिरफ्तार भी किया गया।

बनारस के क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी कालिका सिंह दावा करते हैं, "वाराणसी और आजमगढ़ मंडलों में करीब 2500 से अधिक ईंट भट्ठे प्रदूषण फैला रहे हैं। इनमें 1200 भट्ठे सिर्फ बनारस मंडल के हैं। जिन ईंट भट्ठों को बंद करने के लिए नोटिसें भेजी गई हैं उनमें वाराणसी में 270, भदोही में 168, चंदौली में 101, गाजीपुर में 299 और जौनपुर में 362 हैं। इन सभी को बंद करने के आदेश निर्गत किए गए हैं। भट्ठा मालिकों को नोटिसें भेजी जा चुकी हैं। स्थानीय जिला प्रशासन और पुलिस के सहयोग से प्रदूषण फैलाने वाले सभी ईंट-भट्ठों को बंद कराया जाना है। सख्त कार्रवाई के लिए सभी जिलों में अधिकारियों की साझा कमेटियां बनाई जा रही हैं। जब तक पुलिस एक्शन नहीं लेगी, तब तक प्रदूषण फैलाने वाले भट्ठा मालिकों पर नकेल नहीं कसी जा सकेगी।"

कालिका सिंह दावा करते हैं, "दिवाली के समय बनारस शहर में प्रदूषण की स्थिति वाकई चिंताजनक थी, लेकिन अब वायु गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार हुआ है। बनारस में बाग-बगीचों और सड़कों पर पानी का छिड़काव कराया जा रहा है। कुछ ही दिनों में बनारस की स्थिति सामान्य हो जाएगी। पीएम का संसदीय क्षेत्र होने की वजह से जल संस्थान, नगर निगम और दमकल विभाग के कर्मचारी भी प्रदूषण नियंत्रण अभियान में सहयोग दे रहे हैं। ये महकमे टैंकरों में पानी भरकर शहर में छिड़काव करने में जुटे हैं।"

अस्पतालों में मरीजों की कतारें

लाख प्रयास के बावजूद पिछले दो दशक में बनारस में वायु प्रदूषण का स्तर तीन गुना बढ़ा है। यह प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानक से करीब10गुना से ज्यादा है। साल2018 में वाराणसी को दुनिया के 4300 शहरों में तीसरा सबसे अधिक प्रदूषित शहर बताया गया था। जनवरी 2019 में पीएम 2.5 का औसत स्तर 105 दर्ज किया गया। इस बार तो प्रदूषण के मामले में पिछले सभी आंकड़े पीछे चले गए। प्रदूषण का गंभीर असर यह है कि सरकारी अस्पतालों में अचानक श्वास के रोगियों की तादाद दोगुनी हो गई है। एलर्जी, सर्दी, खांसी, जुकाम से बड़ी संख्या में लोग पीड़ित हैं। बीएचयू, मंडलीय अस्पताल कबीरचौरा और जिला अस्पताल पांडेयपुर में चेस्ट, मेडिसीन के अलावा नेफ्रोलाजी विभागों की ओपीडी में रोगियों की लंबी कतारें लग रही हैं।

मंडलीय अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ.ओपी तिवारी कहते हैं, "पिछले कई दिनों से सांस और चेस्ट के रोगियों में इजाफा हुआ है। रोजाना ऐसे मरीजों की संख्या एक दर्जन से ऊपर जा रही है।" पंडित दीनदयाल जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉ. पीके सिंह के मुताबिक उनके यहां भी रोजाना 20 मरीज पहुंच रहे हैं। ऐसी ही स्थिति राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज चौकाघाट की है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की मार ज्यादातर बुजुर्ग और बच्चे झेल रहे हैं। कम और मध्यम आय वर्ग के 98 फीसदी बच्चे अतिसूक्ष्म कण से पैदा वायु प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। वायु गुणवत्ता-जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) के अनुसार यदि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के वायु गुणवत्ता मानकों का अनुपालन करते हुए वायु प्रदूषण कम करता है तो बनारस के लोग औसतन चार से नौ साल तक ज्यादा जीवित रह सकते हैं।

वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक बनारस यूपी के दस सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में एक है, जहां पीएम 2.5 की सालाना सघनता सबसे ज़्यादा है। पीएम 2.5 प्रदूषण में शामिल वो सूक्ष्म संघटक है जिसे मानव शरीर के लिए सबसे ख़तरनाक माना जाता है। पीएम यानी पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण की एक किस्म है। इसके कण बेहद सूक्ष्म होते हैं जो हवा में बहते हैं। पीएम 2.5 या पीएम10 हवा में कण के साइज़ को बताता है। आमतौर पर हर सिर के बाल पीएम 50 के साइज़ के होते हैं। इससे आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पीएम 2.5 कितने बारीक कण होते होंगे।

बीएचयू में छाती रोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.एसके अग्रवाल कहते हैं, "पीएम2.5 या पार्टिकुलेट मैटर 2.5 आकार में 2.5 माइक्रोन से कम होता है। यह मनुष्य के बाल के मुकाबले 30 गुना अधिक महीन होता है। हवा में मौजूद यही कण हवा के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर ख़ून में घुल जाते हैं। इससे शरीर में कई तरह की बीमारी जैसे अस्थमा और सांसों की समस्या पैदा हो जाती है। सांस लेने से ये कण फेफड़ों में गहराई से प्रवेश कर जाते हैं। फेफड़ों पर असर तो डालते ही हैं, कभी-कभी रक्तचाप भी बढ़ा देते हैं।"

प्रो.अग्रवाल के मुताबिक, "आतिशबाजी करने के नियमों का पालन ठीक ढंग से न होने के कारण बनारस शहर में हर साल पीएम 2.5 की मात्रा क़रीब 30 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है। पटाख़ों से 15 ऐसे तत्व निकलते हैं जिन्हें मानव शरीर के लिए ख़तरनाक और ज़हरीला माना जाता है। इनमें बहुत सारे तत्व वाहनों से निकलने वाले धुएं में भी पाए जाते हैं। बनारस में प्रदूषण का हाल यह है कि वह सिर्फ फेफड़ों को ही नहीं, आंखों को भी प्रभावित कर रहा है। दिमाग पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। प्रदूषण के चलते बच्चे और बूढ़े चिड़चिड़े हो जाते हैं। जिन बच्चों को रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन हो रहा है, उन्हें सांस की समस्या ज्यादा हो रही है।"

चेस्ट रोग विशेषज्ञ प्रो.अग्रवाल सलाह देते हैं, "वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए जरूरी है कि लोग मास्क लगाकर ही घरों से बाहर निकलें। सुबह-शाम जरूरत के हिसाब से गर्म कपड़े पहनें। गर्म पानी और चाय के साथ अजवाइन, काली मिर्च का सेवन करें। कोरोना के चलते जिन्हें सांस की दिक्कत है, वो एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल जरूर करें। मौजूदा समय में खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गों को प्रदूषण की मार से बचाया जाना बेहद जरूरी है।"

(विजय विनीत बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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