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मानेसर में बढ़ रही यूनियन-प्रबंधन में दरार: ऑटो पार्ट्स फ़ैक्ट्री में हड़ताल

श्रमिक यूनियनों ने आरोप लगाया है कि चार श्रम संहिताओं के पारित होने के बाद कारखानों ने उनकी मांगों पर कड़ा रुख अपनाया है।
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नेपिनो के स्थायी कर्मचारी 14 जुलाई से फैक्ट्री परिसर के अंदर प्रदर्शन कर रहे हैं। फोटो साभार- स्पेशल अरेंजमेंट

नई दिल्ली: हरियाणा के मानेसर स्थित नेपिनो ऑटो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड में वेतन संशोधन को लेकर की गई हड़ताल ने देश के प्रमुख ऑटो हब में प्रबंधन और ट्रेड यूनियनों के बीच बढ़ती दरार को उजागर कर दिया है।

ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि चार श्रम संहिताओं को केंद्र ने जल्द ही लागू करने का वादा किया है, इसके पारित होने की वजह से उत्साहित कारखाने के मालिकों ने कामगारों की मांगों पर "सख्त रुख" अपनाया है।

दूसरी ओर, नियोक्ता के प्रतिनिधि "वित्तीय संकट" का हवाला देते हैं और कहते हैं कि औद्योगिक क्षेत्र में परेशानी उद्योगों के लिए केंद्र की मदद की कमी का परिणाम है।

सोमवार को नेपिनो में हड़ताल का 12वां दिन था जो हीरो और मारुति सुजुकी सहित अन्य प्रमुख ऑटो कंपनियों को ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक पुरजों की आपूर्ति करता है।

साल 2019 से तीन साल के वेतन समझौते की मांग को लेकर 14 जुलाई से महिलाओं सहित लगभग 270 स्थायी कर्मचारी फैक्ट्री परिसर के अंदर विरोध कर रहे हैं। यूनियन ने एक स्थायी कर्मचारी के वेतन में 23,500 रुपये से बढ़ाकर 28,000 रुपये करने की मांग की है। कामगारों का कहना है कि प्रबंधन और यूनियन के बीच कई दौर की बातचीत गतिरोध के चलते ही समाप्त हो गई है।

यूनियन के महासचिव परशुराम ने फोन पर न्यूज़क्लिक को बताया, “हम कई वर्षों से प्रबंधन पर यूनियन के साथ एक दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। प्रबंधन के भीतर के लोगों को वार्षिक वेतन वृद्धि की गई है, लेकिन कर्मचारियों का वेतन साल 2019 से जस की तस है।”

परशुराम ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में और हाल के महीनों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के साथ श्रमिकों के पास "हड़ताल पर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा"। उन्होंने कहा, "जब हमारे परिवारों की जरूरतों को पूरा करना मुश्किल हो रहा है तो हम कैसे इसे जारी रखें?"

हालांकि, नेपिनो के एक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि प्रबंधन अपने स्थायी कर्मचारियों के वेतन निपटान के मामले में अपने रुख में "निष्पक्ष और दृढ़ संकल्प" रहा है। उन्होंने कहा, "हमने यूनियन को कई बार बताया कि इसकी वेतन मांगों से कंपनी की बैलेंस शीट पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जो कि वहन करने योग्य नहीं है।" उन्होंने आगे कहा कि कंपनी अभी भी "महामारी से सामने आई वित्तीय चुनौतियों से जूझ रही है"।

यह दावा करते हुए कि 13 जुलाई को चंडीगढ़ में हुई त्रिपक्षीय बैठक के बाद हरियाणा के श्रम आयुक्त द्वारा ये मामला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय को भेजा गया था। कंपनी के अधिकारी ने कहा कि ये हड़ताल "अवैध" है।

मानेसर के उप श्रमायुक्त की मौजूदगी में सोमवार को प्रबंधन और यूनियन की बैठक होनी थी। कंपनी के अधिकारी ने कहा, "अगर हड़ताल वापस नहीं ली जाती है और फैक्ट्री की परिसर से धरना सौहार्दपूर्ण ढंग से समाप्त नहीं किया जाता है तो प्रबंधन जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होगा।"

ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन के श्याम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि नेपिनो का ये मामला मानेसर के ऐसे कई मामलों में से एक है। उन्होंने आगे कहा, मुंजाल शोवा लिमिटेड और बेलसोनिका ऑटो कंपोनेंट्स प्राइवेट लिमिटेड में "इसी तरह के असंतोष" है और ये असंतोष "विरोध या हड़ताल का कारण बन सकता है"।

श्याम ने कहा, "जब से संसद में श्रम संहिता पारित हुई है तब से मानेसर की फैक्ट्रियां यूनियन की मांगों पर सख्त रुख अपना रही हैं।"

श्रमिक अधिकारों को कम करने को लेकर ट्रेड यूनियनों द्वारा, तीन श्रम संहिताओं- इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ एंड वर्किंग कंडिशन कोड- को उचित बहस के बिना सितंबर 2020 में संसद में पारित किया गया था। दूसरी संहिता, कोड ऑन वेजेज, को साल 2019 में पारित किया गया था। ये कोड 29 केंद्रीय श्रम अधिनियमों को बदलेगा और शामिल करेगा।

श्याम ने मानेसर स्थित जेएनएस इंस्ट्रूमेंट्स लिमिटेड का उदाहरण देते हुए कहा कि इस कंपनी में मार्च महीने में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गई दो दिवसीय आम हड़ताल के दौरान इसकी निर्माण परिसर के पास हिंसा भड़कने के बाद हड़ताल कर रहे श्रमिकों को गिरफ्तार किया गया था। मजदूर कारखाने में यूनियन बनाने और उसके संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की मांग कर रहे थे।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) के सतबीर सिंह, श्याम की उन बातों से सहमत थे जिसमें उन्होंने कहा था कि कारखानों के प्रबंधन के साथ बातचीत करना कठिन होता जा रहा है, खासकर महामारी के बाद। उन्होंने कहा कि, “कई कारखानों में प्रबंधन श्रमिकों को वित्तीय नुकसान पहुंचा रहा है; अन्य कारखाने अपने स्थायी कर्मचारियों को अस्थायी लोगों के साथ बदलना चाह रहे हैं।”

यूनियन के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर मानेसर इंडस्ट्रीज वेलफेयर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष राजेश गुप्ता ने सहमति व्यक्त की कि "प्रबंधन और यूनियनों के बीच तनाव बढ़ रहा है"। उन्होंने आगे कहा, “मंदी और फिर महामारी की चपेट में आने के बाद ऑटो उद्योग बेहतर स्थिति में नहीं है। कई कंपनियां आर्थिक तंगी का सामना कर रही हैं। प्रतिकूल वैश्विक स्थिति के कारण कच्चे माल की लागत में हालिया वृद्धि ने कई कारखानों के लिए मुश्किल बना दिया है।”

गुप्ता ने केंद्र को "उद्योगों को झटका देने के लिए पर्याप्त सहायता प्रदान नहीं करने" के लिए दोषी ठहराया और "सक्रिय हस्तक्षेप" करने को कहा।

सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मानेसर में प्रमुख यूनियनों के एक समूह, ट्रेड यूनियन काउंसिल ने बुधवार को एक बैठक में गुरुग्राम के उप श्रम आयुक्त के साथ इस मामले को उठाने का फैसला किया है। उन्होंने कहा, "अगर श्रमिकों के मुद्दों का समाधान नहीं किया गया तो हम इस औद्योगिक शहर में एक संयुक्त विरोध प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Strike at Auto Parts Factory Highlights Growing Union- Management Rift in Manesar

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