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पहलवानों का संघर्ष: क्या 28 जनवरी बन पाएगी 28 मई, आज देशभर में प्रदर्शन

28 जनवरी, 2021 वो तारीख़ थी जिसने किसान आंदोलन में नई जान फूंक दी थी, क्या इसी तरह 28 मई 2023 वो दिन बन पाएगा जो पहलवानों के आंदोलन को नए सिरे से खड़ा करने में मदद करेगा?
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इस 28 मई को हमारे पहलवान यह पूरी तरह जान गए होंगे कि उनकी लड़ाई सिर्फ़ एक बृजभूषण शरण सिंह से नहीं है बल्कि पूरी मोदी सरकार से है।

हालांकि आंदोलन के पहले दौर में अराजनीतिक-अराजनीतिक का राग अलापने वाले हमारे पहलवान आंदोलन के दूसरे दौर की शुरुआत में ही जान गए थे कि उनकी लड़ाई अराजनीतिक नहीं बल्कि राजनीतिक है। लेकिन 28 मई से पहले कमोबेश वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मोदी सरकार का नाम लेने से भरसक परहेज़ करते रहे। पहलवान बजरंग पूनिया के ट्वीट तो ख़ासे विवादित और समस्याग्रस्त रहे, ख़ासकर बजरंग दल का बजरंगी लिखना। मगर अब 28 मई के बाद 30 मई को देश के नाम जारी किए गए पत्र में उन्हें साफ़ लिखना पड़ा कि वे नरेंद्र मोदी से भी निराश हैं।

आपको मालूम ही है कि जब इस साल की शुरुआत यानी जनवरी 2023 में हमारे चैंपियन अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पदक विजेता महिला-पुरुष पहलवान भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ एफआईआर और गिरफ़्तारी की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर आए थे तो उन्होंने साफ़ तौर पर ऐलान किया था कि उनका आंदोलन राजनीतिक नहीं है। राजनीति से प्रेरित होना और बात है लेकिन यह कहना कि वे मंच से कोई राजनीतिक बात ही नहीं करेंगे और विपक्ष को बिल्कुल जगह नहीं देंगे इस का अर्थ दूसरा है। उस दौरान वे केवल बृजभूषण शरण सिंह पर निशाना साधते रहे और मोदी जी पर विश्वास जताते रहे। बिना किसी ठोस आश्वासन के उन्होंने मोदी जी पर विश्वास जताते हुए अपना धरना-आंदोलन ख़त्म कर दिया। यह हमारे पहलवानों का भोलापन हो सकता है, लेकिन वे भूल गए कि उनकी लड़ाई एक राजनीतिक व्यक्ति से है। वह व्यक्ति जो एक बाहुबली सांसद है और सत्तारूढ़ दल में है। तो जब आरोपी ही सत्ताधारी दल का नेता है तो फिर उसके ख़िलाफ़ लड़ाई कैसे पूरी तरह गैरराजनीतिक हो सकती है। हद यह थी कि उस समय इन पहलवानों ने उनका समर्थन करने आए विपक्ष के नेताओं को मंच तक पर चढ़ने नहीं दिया था। और मंच से इस आंदोलन को लीड कर रहे पहलवान बजरंग पूनिया ने एक से अधिक बार यह स्पष्ट किया था कि उनके मंच पर कोई राजनीतिक नेता नहीं आएगा और यहां से कोई राजनीतिक बात नहीं होगी।

हालांकि किसान आंदोलन और शाहीन बाग़ आंदोलन ने भी अपने मंच के  गैरराजनीतिक चरित्र को बरकरार रखा था लेकिन उन्होंने पूरी लड़ाई एक गहरी राजनीतिक समझ से साथ लड़ी थी और सभी का समर्थन मांगा था। यह बात पहलवानों को दूसरे दौर के आंदोलन में उतरते हुए समझ आई। समझ आया कि इस तरह सरकार उनकी सुनवाई नहीं करेगी। इसके बाद बजरंग पूनिया और हमारी महिला पहलवानों ने बाक़ायदा वीडियो संदेश जारी कर सबका समर्थन मांगा था। इसके बाद ही उनके आंदोलन में मज़बूती आई और सरकार को इस आंदोलन से डर लगने लगा।

हालांकि इसके बाद भी 28 मई से पहले मंच से मोदी जी का नाम लेने से परहेज़ किया। किसी ने मंच से या सभा से मोदी या मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना की, एक नारा भी लगाया तो अक्सर उससे दूरी बना ली गई, उसे बीच में टोक दिया गया, रोक दिया गया। शायद तब भी पहलवानों को ये यक़ीन था कि उन्हें अपने घर की बेटियां बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी जी उनकी सुनवाई कर लेंगे और जल्दी ही अपने सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे। लेकिन वे यहां भी भूल गए थे कि इन्हीं मोदी जी ने 13 महीने के आंदोलन और उसके बाद भी जारी किसानों के धरना-प्रदर्शनों के बाद भी आज तक लखीमपुर खीरी कांड के आरोपी अपने गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की है। पद से हटाना या कार्रवाई करना तो दूर उनके ख़िलाफ़ एक शब्द तक नहीं बोला है।

ख़ैर हर आंदोलनकारी, आंदोलन से ही सीखता है, आंदोलन के दौरान ही सीखता है। संघर्ष ही हमें नया रास्ता दिखाता और सिखाता है। यह आलेख भी पहलवानों की आलोचना या उनकी कमियां निकालने के लिए नहीं बल्कि यह बताने के लिए है कि इस सबका सबक़ क्या है।

सबक़ यही है कि सत्ता से सीधा टकरना होगा। और यही सबक़ पहलवानों की ओर से जारी 30 मई के सार्वजनिक पत्र से ज़ाहिर होता है। शायद पहली बार पहलवानों की ओर से इतनी तीखी और साफ़ साफ़ बातें की गईं जो हर सोचने-समझने वाले को विचलित कर गईं। पहली बार बृजभूषण शरण सिंह पर निशाना साधते हुए मोदी जी का नाम लिया गया। अपने मेडल गंगा में बहाने की घोषणा करते हुए जारी किए गए पत्र में अपने फ़ैसले के बारे में लिखा गया—

"यह सवाल आया कि किसे लौटाएं। हमारी राष्ट्रपति को, जो एक महिला हैं। मन ने ना कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ खुद 2 किलोमीटर दूर बैठी सिर्फ देखती रहीं, लेकिन कुछ भी बोली नहीं… हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे। मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध-बुध नहीं ली। बल्कि नयी संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया और वह तेज सफेदी वाली चमकदार कपड़ों में फ़ोटो खिंचवा रहा था। उसकी सफेदी हमें चुभ रही थी मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र है।”

तो इस आंदोलन और 28 मई का सबक़ यही है कि पहलवानों को इंसाफ़ और अपने आत्मसम्मान के लिए आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। क्योंकि अब बीच का रास्ता नहीं बचा। इस मकाम पर आकर पीछे लौटने का मतलब है अपना सबकुछ गंवा देना। मतलब न आरोपी को सज़ा मिली और करियर के साथ जो मान-सम्मान था वो भी गया। यही नहीं ज़िंदगी भर के मुकदमें और झेलने होंगे, जिनमें से कुछ दर्ज हो गए हैं और कुछ आगे भी दर्ज हो सकते हैं।

यही स्थिति या सिचुएशन किसान आंदोलन के समय आई थी। याद कीजिए 26 जनवरी 2021 का लालक़िला कांड। जब दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान पुलिस और किसानों की सीधी भिड़ंत हुई थी और लाल किले पर दीप सिद्धू नाम के युवक ने अपने साथियों के साथ सिखों का धार्मिक झंडा निशान साहिब फहरा दिया था। ऐसा बवाल मचा था, ऐसा माहौल बना था/बनाया गया था कि ऐसा लगा था कि अब किसान आंदोलन ख़त्म।

लेकिन दो दिन बाद 28 जनवरी की रात ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं ने ऐसा उबाल पैदा किया, लोगों में ऐसी संवेदना जगाई कि किसान आंदोलन में एक नई जान आ गई और आंदोलन और मज़बूत होकर उभरा और अपने एक मकाम पर पहुंचा। हालांकि पूरा हासिल तो किसान आंदोलन को भी नहीं हुआ। लेकिन उनकी मुख्य मांग तीनों विवादित कृषि क़ानून बिना किसी शर्त के वापस लिए जाएं, वो पूरी हुई।

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इस 28 मई को पहलवानों की नई संसद पर महिला महापंचायत करने की घोषणा को भी इसी तरह देश विरोधी कहकर प्रचारित किया गया कि जैसे वे भारत के गौरव को कम कर रही हैं। जबकि सभी जानते हैं कि संसद का गौरव उसके आगे धरने-प्रदर्शन या पंचायत करने से कम नहीं होता बल्कि गुंडे-अपराधियों के संसद में बैठने से होता है।

लेकिन पहलवानों के इस क़दम को इसी तरह प्रचारित किया गया कि जैसे वे राष्ट्र-विरोधी तत्वों के हाथों में खेल रही हैं या विपक्ष के बहकावे में आ गई हैं। और उन्हें रोकने के लिए जैसी बर्बरता की गई उसने देश ही नहीं दुनिया को हिला दिया। हमारी चैंपियन ओलंपिक और कॉमनवेल्थ पदक विजेता महिला पहलवानों को जैसे ज़मीन पर घसीटा गया, उस दृश्य ने सबको विचलित कर दिया। इतना ही नहीं पुलिस ने न केवल बलपूर्वक महिला पहलवानों को अपनी हिरासत में लिया बल्कि उनके ऊपर तमाम संगीन धाराओं में एफ़आईआर भी दर्ज कर दी। धरना स्थल जंतर-मंतर से तुरत-फुरत में आंदोलनकारियों का टेंट उखाड़ दिया।  गद्दे-कूलर तक हटा दिए। देर शाम महिला पहलवानों को रिहा किया गया। लेकिन तब तक जंतर-मंतर पर सन्नाटा पसर गया था।

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उस समय आंदोलन समर्थक सभी लोगों के मन में यही सवाल था कि अब क्या होगा। 29 मई का दिन भी इसी असमंजस और ऊहापोह में बीता। लगा कि अब आंदोलन शायद ख़त्म या स्थगित हो जाएगा, लेकिन नहीं 30 मई को फिर सोशल मीडिया पर पहलवानों की ओर से जारी एक पत्र आता है जिसमें मेडल गंगा में बहाने की बात कही जाती है। इसके बाद दिल्ली से हरिद्वार गंगा घाट तक हलचल बढ़ जाती है। मीडिया के कैमरे पहुंच जाते हैं। हालांकि किसान नेता नरेश टिकैत के मनाने पर पहलवान मान जाते हैं और पांच दिन रुकने का फ़ैसला करते हैं यानी सरकार को एक तरह से पांच दिन का अल्टीमेटम देते हैं।

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इसी बीच और भी बहुत कुछ घटता है, जो बताता है कि ये आंदोलन अब रुकने वाला नहीं है। इस बीच 500 से अधिक किसान संगठनों के संयुक्त मंच संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने 29 मई को अपनी विस्तारित समन्वय समिति की बैठक की, जिसमें पहलवान एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि बजरंग पूनिया को विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर आमंत्रित किया गया।

बैठक में एसकेएम ने किसानों को साथ लेकर अपने ढंग से आंदोलन आगे बढ़ाने की बात रखी। इसपर बजरंग पूनिया ने कहा कि पहलवानों की कार्य समिति उनके संघर्ष के समर्थन में एसकेएम के फैसलों का पूर्ण समर्थन करेगी और महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग पूरी होने तक स्वतंत्र रूप से अपना संघर्ष जारी रखने के लिए सभी प्रयास करेगी। बैठक में आश्वासन दिया गया कि एसकेएम अपनी जीत तक पहलवानों के संघर्ष में समर्थन और सक्रिय रूप से भाग लेगा। बैठक में चर्चा के बाद आगे की कार्रवाई कुछ इस प्रकार तय की गई—

1. एसकेएम 1 जून 2023 को सभी नागरिकों के विरोध के संवैधानिक अधिकार की रक्षा के लिए और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर भारत भर के सभी जिला और तहसील केंद्रों पर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और पुतला दहन का आह्वान करेगा। एसकेएम इस कार्रवाई को बड़े पैमाने पर और सफल बनाने के लिए ट्रेड यूनियनों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों और व्यापारियों, बुद्धिजीवियों और सामाजिक आंदोलनों सहित अन्य सभी वर्गों के साथ समन्वय करेगा।

2. 5 जून 2023 को, जिस दिन महंत और आरएसएस कार्यकर्ता बलात्कारी और अपराधी बृजभूषण शरण सिंह के समर्थन में फैजाबाद में रैली करेंगे, एसकेएम उनके अब तक के आपराधिक आचरण का पर्दाफाश करने और पूरे भारत में गांव और शहर स्तर तक उनका पुतला जलाने का आह्वान करेगा।

3. एसकेएम 5 जून 2023 के तुरंत बाद नई दिल्ली में सभा (National Council) की बैठक बुलाएगा और संघर्ष जारी रखने के लिए भविष्य की कार्य योजना तय करेगा।

किसान साथ आए तो मज़ूदर भी साथ आए।

दस सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने अपने साझे बयान में कहा कि केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच पिछले एक महीने से अधिक समय से न्याय की मांग कर रही महिला पहलवानों के दिल्ली पुलिस द्वारा क्रूर दमन की एक स्वर से निंदा करता है।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त मंच अपनी सभी यूनियनो को अपने इलाके में किसान यूनियनों और अन्य लोकतांत्रिक जन संगठनों के साथ तुरंत संपर्क करने और 1 जून को बृजभूषण शरण सिंह की तत्काल गिरफ्तारी की मांग करने और दिल्ली पुलिस द्वारा केंद्र सरकार के आदेश पर महिला पहलवानों पर क्रूर दमन की निंदा करते हुए सक्रिय विरोध करने का आह्वान करता है।

इस सबके बीच किसान और खाप पंचायत ने 4 जून को हरियाणा मे एक बड़ी महापंचयत करने का ऐलान किया है। अगर तब तक दोषी के खिलाफ कारवाई नहीं हुई तो कोई बड़ा ऐलान संभव है।

यह तय है कि अब सरकार और ताक़त से इस आंदोलन को तोड़ने की कोशिश करेगी। पहलवानों, उनके समर्थकों, किसान-मज़दूर नेताओं, सिविल सोसाइटी सबपर हमले तेज़ होंगे। और कई फ़ेक वीडियो, तस्वीरें और बयान सामने आ सकते हैं। और आप जानते ही हैं कि इस दौरान इस पूरे कांड का मुख्य आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह और ज़ोर से गरज-बरस रहा है। वह 5 जून को अयोध्या में कथित साधु-संतों को अपने समर्थन में लेकर पॉक्सो एक्ट के ख़िलाफ़ ही रैली निकालने जा रहा है।  

लेकिन इस सबके बावजूद अगर यह एकता और मज़बूत हुई और पहलवान एक व्यापक राजनीतिक समझदारी के तहत अपने मोर्चे पर डटे रहे तो कहा जा सकता है कि पहलवानों के आंदोलन के लिए 28 मई 2023, 28 जनवरी, 2021 साबित हो सकता है। इसकी गवाही इससे भी मिलती है कि जब 3 मई की रात में पुलिस ने जंतर-मंतर पर पहलवानों से बदसुलूकी की थी और लोगों ने अपनी ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक की आंख में आंसू देखे तो उसके बाद से उनका समर्थन लगातार बढ़ता चला गया।   

हालांकि यह भी याद रहे कि मोदी सरकार का अब तक का रिकार्ड है कि वह सही-ग़लत, न्याय-अन्याय किसी बात से विचलित नहीं होती, अगर वह किसी चीज़ से सबसे ज़्यादा डरती है तो चुनाव से डरती है, चुनाव में हार से डरती है (2024 के बाद शायद इसका भी डर ख़त्म हो जाए यानी चुनाव की ही ज़रूरत न रहे।)। और हरियाणा जहां से यह पीड़ित या आंदोलनकारी पहलवान आते हैं और जहां पहले से ही एक मंत्री संदीप सिंह के ख़िलाफ़ भी ऐसा ही मामला चल रहा है, वहां अगले साल 2024 में चुनाव हैं। अगर मोदी या खट्टर सरकार को चुनाव का डर होगा तो उससे पहले कोई कार्रवाई संभव है। क्योंकि हमें याद है कि किसान आंदोलन के व्यापक प्रभाव से तो सरकार डरी थी लेकिन यूपी चुनाव और उसमें भी शायद पश्चिमी यूपी में होने वाले नुक़सान से शायद ज़्यादा घबराई थी इसलिए 2022 में यूपी चुनाव से ऐन पहले 2021 के अंत में मोदी जी ने खुद अपने कृषि क़ानून वापस लेने का ऐलान किया था। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जैसा ऊपर भी बताया कि लखीमपुर खीरी में किसानों पर अपनी जीप चढ़ाने की साज़िश के आरोपी गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के ख़िलाफ़ न जब कार्रवाई की गई, न अब। उन्हें पूरी तरह बचाया गया और उसका चुनाव में फ़ायदा भी लिया गया। इसी तरह अगर बृजभूषण मामले से भाजपा को हरियाणा में कोई ज़्यादा नुक़सान होता नहीं दिखाई दिया तो 2024 में बृजभूषण के इलाके गोंडा में आम चुनाव के फ़ायदे को देखते हुए कोई कार्रवाई न भी हो ऐसा बहुत संभव है। यह इसलिए भी संभव है क्योंकि हरियाणा चुनाव से पहले लोकसभा चुनाव होने हैं। इसलिए पहलवानों की लड़ाई बहुत लंबी है। उन्हें समझ लेना चाहिए कि कुश्ती के अखाड़े से भी बहुत मुश्किल है राजनीति का यह अखाड़ा।

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