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निजी प्रबंधन के ग़ैर ज़रूरी दबाव में छात्र कर रहे आत्महत्या !

समाज को यह सुनिश्चित करने के लिए क़दम उठाना चाहिए कि युवाओं को उनकी सहायता करने वालों द्वारा धमकाया न जाए।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

अनुशासन और प्रतिस्पर्धा के नाम पर, निजी प्रबंधन द्वारा चलाए जा रहे स्कूल और उच्च शिक्षा केंद्र, बड़ी तेजी से उनकी जागीर बनते जा रहे हैं जहां छात्र व्यक्तित्व को कुचल दिया जाता है - हालांकि इसके अपवाद भी हो सकते हैं। यहां तक कि वे छात्र जो दमनकारी स्कूली शिक्षा प्रक्रिया से गुजरते हैं, कॉलेज उन्हें नागरिक के रूप में अपनी यात्रा शुरू करने का मौका देते हैं, जो इन कॉलेजों में अपनी विशिष्टता की ख़ोज करने की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन इस सब के विपरीत, हाल के वर्षों में, निजी प्रबंधन द्वारा चलाए जा रहे अभियान सामने आए हैं, जिनमें कॉलेज की वर्दी थोपने, मोबाइल फोन जब्त करने और मोरल पुलिसिंग करने के कई उदहारण देखे गए हैं।

प्रेमम: खोया हुआ स्वर्ग

2015 की मलयालम फिल्म, प्रेमम में एक रंगीन और आज़ादी से भरे कॉलेज परिसर की पृष्ठभूमि के भीतर युवा भावनाओं का जश्न दिखाया गया था। फिल्म केरल और तमिलनाडु में बड़ी फोलोविंग के साथ हिट हो गई। किशोरों और युवाओं की भीड़ सिनेमाघरों में भर गई, और उन्होंने इसे अक्सर कई बार देखा। वे सिल्वर स्क्रीन पर अपने खोए हुए स्वर्ग की तलाश और जश्न मनाते दिखाई दिए। क्योंकि, तब तक परिसर में ऐसा माहौल जैसा कि फिल्म में दर्शाया गया है, मुख्य रूप से सरकारी कॉलेजों और उदार प्रबंधन वाले कुछ सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेजों तक ही सीमित हो गया था।

अब सेल्फ फाइनेंसिंग कॉलेजों, निजी "डीम्ड" विश्वविद्यालयों और अदालती फैसलों की सहमति से उनमें छात्र राजनीति पर प्रतिबंध लगाने से हालात बद से बदतर हो गए हैं। उनमें से कुछ प्लास्टिक-मुक्त और रैगिंग-मुक्त साइनबोर्ड के साथ साथ "राजनीति-मुक्त" साइनबोर्ड के साथ हमारा स्वागत करते हैं! मुख्य प्रश्न यह है कि क्या वे कभी खुद को एक लोकतांत्रिक देश की सीमा के भीतर मानते हैं और छात्रों को ऐसे नागरिकों के रूप में देखते हैं जो वयस्क मताधिकार में भाग लेने के हकदार हैं, संगठनात्मक राजनीति और छात्र यूनियन को अनुमति देना तो दूर की बात है। देश भर में छात्र आत्महत्याओं में खतरनाक वृद्धि, कुछ गंभीर सवाल खड़े करती है।

शिक्षण केंद्र या प्रबंधन की जागीर?

केरल के कंजीरापल्ली में अमल ज्योति कॉलेज में खाद्य शिल्प की छात्रा 20 वर्षीय श्रद्धा सतीश की हाल ही में कथित आत्महत्या ने इस संबंध में एक बहस छेड़ दी है, जिससे राज्य सरकार को कॉलेज परिसरों में एक शिकायत निवारण तंत्र लागू करने पर मजबूर होना पड़ा है। फैकल्टी द्वारा उसे कथित तौर पर परेशान किया गया था क्योंकि उन्होंने उसका मोबाइल फोन तब जब्त कर लिया था जब वह लैब की अवधि के दौरान नोटिफिकेशन चेक कर रही थी, और उसके माता-पिता को भी इस संबंध में सतर्क किया गया था। श्रद्धा के माता-पिता और छात्रों दोनों ने अधिकारियों पर उसकी मौत का कारण मानसिक प्रताड़ना बताया था।

प्रबंधन की संवेदनहीनता की कड़ी आलोचना की गई। प्रबंधन ने उसे बेहोशी की हालत में पाया। उनके साथ गए एक वार्डन ने सबसे पहले डॉक्टरों को बताया कि श्रद्धा बेहोश हो गई है। जब उन्हें उसकी गर्दन पर निशान मिले तो वार्डन ने खुलासा किया कि उसने आत्महत्या का प्रयास किया था। उन्होंने मौत के संबंध में भी छात्रों को अंधेरे में रखा और अगले दिन एक बयान जारी किया। यहां तक कि छात्रावास के अन्य छात्रों को भी उनके मित्र के मौत की पुष्टि के लिए बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ा।

यह भी आशंका है कि कॉलेज के बारे में श्रद्धा की सोशल मीडिया पोस्ट कथित फटकार और उसके फोन की जब्ती का कारण बनी। उसने कथित तौर पर एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में भाग लिया था जिसमें एक काल्पनिक सवाल था कि वह अपने अतीत में किए गए अपने कार्य से पलटेगी तो इसके जवाब में उसने कहा कि ऐसा होता तो शायद वह कोई और कॉलेज चुन लेती।

कुछ छात्रों को लगता है कि यह प्रबंधन द्वारा अपनाई गई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई हो सकती है। इस घटना के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर छात्र विरोध प्रदर्शन हुए, विरोध के कारण प्रबंधन को अनिश्चित काल के लिए कॉलेज बंद करने पर मजबूर होना पड़ा, और नाराज छात्रों को शांत करने के लिए राज्य के दो मंत्रियों को वहां पहुंचना पड़ा। विरोध के ज़रिए व्यापक शिकायतें सामने आई, जिसमें प्रबंधन पर मानसिक उत्पीड़न, अपमानजनक भाषा, शर्मनाक, अराजकवादी रवैया, मोरल पुलिसिंग और न जाने क्या-क्या आरोप लगाए गए।

यदि छात्राओं को छात्रों से बात करते हुए पाया जाता है, तो प्रबंधक उनकी वीडियोग्राफी करता है, स्पष्ट रूप से बिना सहमति के, मोबाइल फोन और आईडी कार्ड जब्त कर लेता है, और माता-पिता को अनुचित व्यवहार के बारे में इसकी सूचना दी जाती है। छात्रावास में छात्राओं को कथित तौर पर रात 8.30 बजे के बाद नहाने या हंसने की भी अनुमति नहीं है, फोन करना तो दूर की बात है। छात्रों की प्राथमिक मांगों में से एक छात्र यूनियन निकाय की जरूरत बताया गया, और मांग की गई कि यूनियन का चुनाव बिना प्रबंधन के हस्तक्षेप के होना चाहिए।

जिष्णु प्रणय की सुलगती यादें

हालांकि केरल में छात्र आत्महत्याएं बड़े पैमाने पर नहीं होती हैं, कुछ समय से कुछ घटनाओं की सूचना मिल रही है। पम्पाडी, त्रिशूर में नेहरू कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड रिसर्च सेंटर के छात्र रहे जिष्णु प्रणय की मौत और इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक आक्रोश आखिरी बार देखा गया था जब हमें बदले हुए समय में निजी शिक्षण संस्थानों में व्याप्त दु:खद माहौल पर चर्चा करनी पड़ी थी। 6 जनवरी 2017 की शाम को जिष्णु अपने छात्रावास के कमरे के बाथरूम में लटका हुआ पाया गया था।

जबकि कॉलेज के अधिकारियों ने दावा था किया कि वह इम्तिहान में नकल करते पकड़ा गया था और यही आत्महत्या के पीछे का कारण था। उसके परिवार के सदस्यों और दोस्तों का आरोप है कि कॉलेज के अधिकारियों ने उसकी उत्तर-पुस्तिका जब्त करने के बाद उसे झूठे मामले में फंसाया था। उनका यह भी आरोप है कि जिष्णु जिन्होंने पहले प्रबंधन की कथित मनमानी के खिलाफ कॉलेज में विरोध प्रदर्शन किया था उसको कॉलेज के 'टॉर्चर रूम' के अंदर बेरहमी से पीटा गया, जिससे उसकी मौत हो गई थी।

जिष्णु की मां माहिजा द्वारा दायर एक याचिका के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच करने का निर्देश दिया था। हालांकि सीबीआई ने अत्यधिक काम के बोझ का हवाला देते हुए मामले की जांच करने में अनिच्छा दिखाई और कहा कि इस मामले में सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है, जब शीर्ष अदालत ने एजेंसी पर कार्रवाई किए करने का दबाव बनाया तो उसे जांच करने पर मजबूर होना पड़ा। हालांकि इस मामले में सीबीआई ने बाद में नेहरू ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन को क्लीन चिट दे दी थी।

एर्नाकुलम में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत के समक्ष प्रस्तुत चार्जशीट में, प्रमुख जांच एजेंसी ने कहा कि इंजीनियरिंग के छात्र ने आत्महत्या की थी, और चेयरमैन के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला था। हालांकि, सीबीआई ने कॉलेज के उप-प्राचार्य और एक सहायक प्रोफेसर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था। आज भी उनकी यादें उनके और उनके दोस्तों द्वारा उठाए गए ज्वलंत मुद्दों को समाने लाती हैं।

अकादमिक तनाव को देखते हुए, छात्र प्रबंधन की ज़्यादतियों का सामना करते हैं, हम छात्रों की आत्महत्याओं को अलग-थलग घटनाओं के रूप में नहीं देख सकते हैं, क्योंकि ये घटनाएं कहीं अधिक हैं। श्रद्धा की मौत के बाद जिष्णु द्वारा उठाए गए सवालों का एक हद तक जवाब दिया गया है, क्योंकि सरकार ने एक आंतरिक शिकायत निवारण तंत्र बनाने की घोषणा की है, जिसमें संस्थान के बाहर के छात्र प्रतिनिधि और शिक्षक शामिल होंगे।

छात्र शिकायतों का प्रभावी निवारण समय की जरूरत है क्योंकि जब प्रबंधन उनके खिलाफ असीमित शक्तियों का प्रयोग करता है तो छात्र अक्सर अपनी चिंताओं को व्यक्त करने में असहाय होते हैं - जिसमें आंतरिक मूल्यांकन का संभावित दुरुपयोग भी शामिल है। लेकिन लगता तो ऐसा ही है कि, प्रबंधन उम्मीद के मुताबिक सरकार द्वारा शुरू किए गए वर्तमान तंत्र को भी विफल करने के लिए अपने दबदबे का इस्तेमाल करेगा। यह वह जगह है जहां समाज के विवेक को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना चाहिए कि युवाओं को उन लोगों द्वारा धमकाया न जाए जिन पर उनका मार्गदर्शन करने की ज़िम्मेदारी है।

लेखक केरल उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस वकालत करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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