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…‘सुंदरता के दुश्मनो, तुम्हारा नाश हो !’

वरिष्ठ कवि और लेखक अजय सिंह इसी अगस्त 73 बरस के हो गए। हमारी आज़ादी की तरह। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उनकी दो ख़ास कविताएं।
…‘सुंदरता के दुश्मनो, तुम्हारा नाश हो !’
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : सोशल मीडिया

क़दीमी* कब्रिस्तान

 

गोरख पांडेय और बर्तोल्त ब्रेख़्त ने

जिस तरह सवाल-जवाब शैली में

कुछ कविताएं लिखी हैं

कुछ-कुछ उसी अंदाज़ में

यह कविता लिखने की कोशिश  

की जा रही है

 

सवाल है :

क्या क़दीमी क़ब्रिस्तान में

प्यार के फूल खिल सकते हैं?

जवाब है (हालांकि जवाब कुछ लंबा हो गया है) :

हां, खिल सकते हैं !

अगर हमारे दिलों में प्यार व हमनवाई** हो

कि यह सोचें

यहीं कहीं हमारे पुरखे

मीर   ग़ालिब   नज़ीर   मजाज़ रशीदजहां

गहरी बहुत गहरी नींद में हैं

कि उनके आराम व अदब में

खलल न पड़े...

 

क़दीमी क़ब्रिस्तान

कई अनजान स्मृतियां

कई जाने-पहचाने अतीतमोह

अपने सीने में

दफ़न रखता है

 

टूटी चारदीवारी

बेतरतीब ढंग से उग आये झाड़-झंखाड़ों से घिरा

क़दीमी क़ब्रिस्तान

अपनी उजाड़ व उदास सुंदरता से उसे मोह लेता है

वह अक्सर बग़ल से गुज़रता

झांक कर देखता है

इसके अहाते में आज कोई नया फूल तो नहीं खिला

कल गेंदे का फूल दिखायी दिया था

हवा में धीरे-धीरे हिलता    सलाम करता

 

सामने से एक औरत

उसकी ओर चली आ रही है

न जाने कब से वह जिसका इंतज़ार कर रहा है

उसके भरे हुए अधखुले उरोज

कायनात की सुंदरता में लिपटे हुए हैं

समाज से बहिष्कृत उन दोनों को

क़दीमी क़ब्रिस्तान ने

अपने यहां पनाह देने की पेशकश की है।

क़दीमी*: पुराना

हमनवाई**: सहमति, एकराय होना

 

खिलखिल हमारी प्यारी खिलखिल 

(प्यारी नातिन खिलखिल के जन्मदिन पर)

 

सिर्फ़ खिलखिल नहीं बड़ी हुई

खिलखिल के साथ हम भी 

कुछ-कुछ बड़े हुए 

 

बड़े होते बच्चों के साथ 

बड़े भी 

बड़े होते चले जाते हैं

हालांकि यह बात आम तौर पर 

पता नहीं चलती 

 

खिलखिल जब दुनिया में आयी 

दो हथेलियों में सिमटी हुई 

हम छह अरब लोग थे

अब सात अरब हैं 

और खिलखिल 

दो हथेलियों की सीमा पार करती हुई 

नीले आसमान की मानिंद 

हंस रही है

 

दुनिया जो इतनी सुंदर 

रहने लायक लगती है

वह खिलखिल 

उसकी जैसी अनगिनत बच्चियों

बच्चों उनकी मांओं 

की हंसी और आंसू 

की वजह से है 

 

और इन्हीं मांओं 

बच्चियों बच्चों 

पर सबसे ज्यादा

हमला हो रहा है

इन दिनों 

 

अपने देश में इस समय  

जो निज़ामशाही चल रही है 

उसे ग़ौर से देखो 

यह हिंसा हत्या बलात्कार नफ़रत डर 

की संस्कृति का 

कारोबार 

चलाने वालों की है

वे

हर तरह की सुंदरता से

डरते हैं

और उसे नष्ट कर देना चाहते हैं 

 

वे खिलखिल से डरते हैं 

वे रोहित वेमुला की मां से डरते हैं

वे नजीब अहमद की मां से डरते हैं

वे गौरी लंकेश से डरते हैं 

और उसे मार डालते हैं 

 

खिलखिल इस सामूहिक सुंदरता की 

नुमाइंदगी करती है 

हमें सुंदरता को बचाने की

 लड़ाई में 

हज़ारों-हज़ार खिलखिल के साथ 

सड़कों पर उतरना है 

बंद मुट्ठियों के साथ 

हज़ारों-हज़ार आवाज़ में कहना है :

‘सुंदरता के दुश्मनो,

तुम्हारा नाश हो !’

 

-    अजय सिंह

       लखनऊ

 

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