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सुनहरी बाग़ मस्जिद: एक विरासत जिसे अंग्रेज़ों ने छोड़ दिया लेकिन NDMC हटाना चाहती है!

''साल 1912 में जब नई दिल्ली बनने का प्लान शुरू हुआ, तो काफ़ी सारी पुरानी इमारतों को तोड़ दिया गया। कई मकबरे, कुछ महल थे सब ख़त्म कर दिए गए पर कुछ इमारतें थी जो बचा ली गईं और उसी में शामिल थी ये मस्जिद।''
Sunehri Masjid

''ये सब हमारे इतिहास की जीती-जागती निशानियां हैं, अगर हम इनको हटा देते हैं तो हमारा क्या अतीत था उसको भूलने लगते हैं। लोगों को चाहिए कि वे इसको समझे और साथ ही ये भी समझें कि क्यों हमें इसको संभाल कर रखना है।''

जिस वक़्त देश में धर्म की राजनीति अपने चरम पर है उस वक़्त इतिहास और उससे जुड़ी धरोहरों को बचाए रखना कितना मुश्किल हो रहा है ये हम हर दिन देख रहे हैं, मुस्लिम शासकों से जुड़ी विरासत को बचाना तो और मुश्किल हो रहा है।

सुनहरी बाग़ मस्जिद पर पब्लिक नोटिस

ताज़ा मामला दिल्ली की 'सुनहरी बाग़ मस्जिद' से जुड़ा है। नई दिल्ली नगर निगम (NDMC) ने सुनहरी बाग़ मस्जिद को हटाने के लिए एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। जिसमें दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने इस इलाके के ट्रैफिक को बेहतर बनाने के लिए मस्जिद को हटाने के लिए प्रस्ताव पर जनता की राय मांगी है। ये राय 1 जनवरी 2024 तक  ईमेल एड्रेस-  [email protected] पर मांगी गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक NDMC को जितने भी मेल मिले हैं उनमें ज़्यादातर लोगों ने मस्जिद को न हटाने की मांग की है।

image(NDMC की तरफ से जारी किया गया नोटिस)

चर्चा में आईं दो और सुनहरी मस्जिदें

जैसे ही ये नोटिस जारी हुआ बहुत से लोगों को लगा कि ये चांदनी चौक स्थित सुनहरी मस्जिद है। तो कुछ बड़े मीडिया संस्थानों ने लाल किले के सामने बनी सुनहरी मस्जिद की तस्वीर छाप दी।

imageलाल किले के सामने बनी सुनहरी मस्जिद

इससे पहले बात आगे बढ़े ये जान लेना बेहद ज़रूरी है कि किस मस्जिद को लेकर नोटिस जारी किया गया है। दरअसल ये मस्जिद उद्योग भवन के क़रीब गोलचक्कर पर स्थित है। इस हाई सिक्योरिटी वीआईपी इलाक़े से महज कुछ दूरी पर संसद भी स्थित है। इस नोटिस पर कुछ मुस्लिम नेताओं ने आपत्ति जताते हुए इस नोटिस को वापस लेने की मांग की है।  AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और अमरोहा से सांसद कुंवर दानिश अली समेत कुछ मुस्लिस धार्मिक संगठनों ने भी आपत्ति दर्ज करवाई है।

हो सकता है गोल चक्कर पर बनी सुनहरी बाग़ मस्जिद की वजह से ट्रैफिक में दिक्कत पेश आ रही हो। लेकिन यहां कुछ सवाल उठते हैं कि क्या मस्जिद को हटा देना ही आख़िर विकल्प बचा है? क्या NDMC को इस 100-200 साल पुरानी हेरिटेज मस्जिद के ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानकारी है? NDMC की तरफ से जारी किए गए नोटिस में इस मुद्दे को Heritage conservation committee (HCC) के भी सामने रखने की बात कही गई है तो इस पर HCC का क्या कहना है? क्या NDMC मस्जिद को हटाने की जल्दी में है?

क्या होती है ग्रेड -3 हेरिटेज बिल्डिंग?

गौरतलब है कि ये मस्जिद दिल्ली सरकार की 2009 की अधिसूचना के अनुसार ग्रेड -3 हेरिटेज बिल्डिंग की लिस्ट में आती है। चलिए समझते हैं कि आख़िर क्या होती है ग्रेड-3 हेरिटेज प्रॉपर्टी/ बिल्डिंग?

NDMC की तरफ से जारी किए गए नोटिस में एक लाइन है जिस पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। ये लाइन है ''Has applied to Heritage Conservation Committee (HCC) for Removal of Sunehri Masjid (Grade-III Heritage building listed vide Notification dated 01.10.2009 of GNCTD) under ANNEXURE-II Clause 1.16 of Unified Building Bye Laws-2016''

इस नोटिस में NDMC ख़ुद भी ये मानती है कि ये मस्जिद एक लिस्टटेड बिल्डिंग है, ये एक संरक्षित इमारत है। इस इमारत को भले ही ASI (Archaeological Survey of India) की तरफ से संरक्षण नहीं मिला है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो संरक्षित नहीं है, ये भी संरक्षित है। दिल्ली के Unified Building Bye Laws-2016 में एक हेरिटेज क्लॉज़ है जो ANNEXURE-II में आता है जिसके अंतर्गत कई इमारतों को संरक्षण दिया गया है। जिसमें बताया गया है कि ग्रेड 1, ग्रेड 2 और ग्रेड 3 लेवल के संरक्षण होते हैं। बात करें सुनहरी बाग़ मस्जिद की तो ये मस्जिद नोटिफाई है, 2009 का गैजेट नोटिफिकेशन है इसका। हमने नोटिस में दिए गए ANNEXURE-II पर नज़र डाली इसके पेज नंबर 140 से 145 तक में वो तमाम बातें हैं जिनका हवाला ख़ुद NDMC भी दे रहा है। देखा जाए तो इसके मुताबिक ग्रेड-3 हेरिटेज बिल्डिंग वो होती है जिसमें कोई भी एडिशन या मोडिफिकेशन किया जा सकता है।

पर यहां जो सबसे अहम बात है वो ये कि इन इमारतों का जो कुछ भी होगा Heritage conservation committee (HCC) की निगरानी में होगा, उसकी इजाजत के बग़ैर तो किसी भी हालत में डेमोलिशन नहीं कर सकते, और सिर्फ पब्लिक की राय पर तो बिल्कुल भी नहीं। HCC उसका मुआयना करेगी। हालांकि लॉ में पब्लिक की रायशुमारी का प्रोविज़न है। लेकिन उससे कहीं अहम है HCC की इजाजत के बग़ैर कुछ भी नहीं हो सकता। और इस मामले में अब तक HCC का क्या कहना है NDMC ने नहीं बताया है।

सुनहरी बाग़ मस्जिद का ऐतिहासिक महत्व

मस्जिद को हटाने के नोटिस को लेकर बहुत से पक्ष हैं, कुछ क़ानूनी पेचीदगियां हैं, धार्मिक पक्ष है, इन सबके साथ ही इस मस्जिद का ऐतिहासिक महत्व है। बाकी बातों पर चल रही बहस के बीच हम बात करेंगे इसके ऐतिहासिक महत्व पर। इस सिलसिले में हमने कुछ इतिहासकारों से बात की।  

इतिहासकारों के मुताबिक सुनहरी बाग़ मस्जिद किसने बनवाई थी इसके बारे में सही जानकारी नहीं है लेकिन इस पूरे इलाके का अधिग्रहण जब नई दिल्ली बनाने के लिए किया गया तो ये खेती-बाड़ी की ज़मीन थी और वहां बहुत से खंडहर थे, रायसीना हिल से लेकर इंडिया गेट और उसके आस-पास भारी संख्या में कुएं, बावड़ियां और क़ब्रें थीं लेकिन जब निर्माण कार्य शुरू हुआ तो सबको हटा दिया गया, गिरा दिया गया। लेकिन उस दौरान भी कुछ पुराने निर्माण को छोड़ दिया गया था जिनमें से एक थी 'ज़ाब्ता गंज की मस्जिद' जिसे रोहिल्ला सरदार ज़ाब्ता ख़ान ने बनवाया था, दूसरी उद्योग भवन के क़रीब गोलचक्कर में बनी 'सुनहरी बाग़' की मस्जिद और नेशनल आर्काइव की तरफ दो क़ब्रें जो आज तक बची हैं।
imageसाभार Delhi Dweller
 

''मुग़लकालीन मस्जिद है''

इतिहासकार स्वपना लिड्डल के मुताबिक'' इसका कोई पता हमारे पास नहीं है, कोई तारीख़ दर्ज नहीं है कि ये किसने और कब बनवाई थी लेकिन इतिहासकार किसी भी इमारत के स्टाइल, उसकी बनावट, उसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री को देखकर पता लगा लेते हैं तो उस नज़रिए से देखें तो कह सकते हैं कि ये मुगल काल की मस्जिद है।''

1912 में अंग्रेजों ने भी इस मस्जिद को टाउन प्लानिंग में शामिल किया था। जिस रास्ते पर सुनहरी बाग़ मस्जिद है उसे कभी कुतुब रोड कहा जाता था। ये रोड पुरानी दिल्ली से सीधा कुतुब मीनार तक जाती थी। स्वपना लिड्डल 1912 के एक मानचित्र का हवाला देते हुए बताती हैं कि ''उस मैप को अगर देखें तो उसमें एक बाग़ हुआ करता था जिसे सुनहरी बाग भी कहते थे और हकीम जी का बाग़ भी बोलते थे। उसी बाग़ के अंदर ये मस्जिद हुआ करती थी, 1912 में जब नई दिल्ली बनने का प्लान शुरू हुआ और उस सारी जगह का अधिग्रहण कर लिया गया, टाउन प्लानिंग शुरू हुई। जो कमेटी थी उसने काफी सारी पुरानी इमारतों को डेमोलिश कर दिया उसमें कई मकबरे भी थे, कुछ महल थे सब ख़त्म कर दिए गए पर कुछ इमारतें थी जो उन्होंने बचा ली, जिनमें से एक ज़ाब्ता गंज की मस्जिद है और एक ये (सुनहरी बाग़) मस्जिद क्योंकि इनका न सिर्फ धार्मिक महत्व था बल्कि इसका ऑर्कियोलॉजिकल महत्व था। उस वक़्त भी इसमें नमाज़ पढ़ी जाती थी तो अंग्रेजों ने सोचा कि इसको रहने देते हैं तो इसे डेमोलिश नहीं किया बल्कि उन्होंने अपने प्लान में यहां गोलचक्कर बना दिया और इस मस्जिद को रहने दिया।'' वो दो मैप की तुलना करते हुए बताती हैं कि ये मस्जिद 1912 में जिस जगह थी उसी जगह पर 1942 में भी नज़र आती है।

यहां एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि 1911 में देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट की गई थी।

image(1912 और 1942 के मैप में भी मस्जिद दिखाई देती है) साभार: सोशल मीडिया

कई वजह से अहम ये विरासत

स्वपना लिड्डल बताती हैं कि अगर विरासत के तौर पर बात की जाए तो पहली विरासत वो है जो मस्जिद के मुगलकालीन स्मारक होने की है जिसे संरक्षित करना चाहिए। और दूसरी विरासत है कि वो न्यू डेल्ही (1911-12) वाली जिसके मास्टर प्लान का हिस्सा सेंट्रल विस्टा भी था, जिसमें स्ट्रीट प्लान भी आता था तो अगर उस गोल चक्कर से छेड़छाड़ की जाती है तो ये गलत है।

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स्वतंत्रता सेनानी हसरत मोहानी से भी जुड़ी है ये मस्जिद

मस्जिद से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य सामने आ रहे हैं, इनके अलावा ये मस्जिद आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले कई लोगों से भी जुड़ती है। इतिहासकार एस. इरफान हबीब ने एक ट्वीट करते हुए लिखा कि ''सुनहरी बाग़ मस्जिद सिर्फ एक मस्जिद नहीं बल्कि इसका इतिहास आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों से भी क़रीब से जुड़ा है। संविधान सभा की बैठक के दौरान हसरत मोहानी दिल्ली में इसी मस्जिद में रहा करते थे।''

हसरत मोहानी ने सरकारी भत्ते लेने से इनकार किया था क्योंकि वो मस्जिद में ठहरते थे।
दिल्ली के इतिहास को क़रीब से जानने-समझने वाले इतिहासकारों के मुताबिक मौलाना हसरत मोहानी जो स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ संविधान सभा के सदस्य भी थे। जब भी संविधान सभा के सत्र में शामिल होने के लिए वे दिल्ली में होते तो सुनहरी बाग़ मस्जिद में ठहरते थे, दूसरे सदस्यों को जिस तरह से TA, DA जैसे भत्ते मिलते थे उन्हें भी दिया गया तो उन्होंने कहा कि मैं तो ये कुछ नहीं लूंगा क्योंकि मेरा तो कुछ खर्च नहीं है। मैं मस्जिद में रहता हूं और साइकिल या टांगे से आ जाता हूं। मेरे खाने का इंतज़ाम भी मस्जिद में हो जाता है।

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'इंक़लाब ज़िंदाबाद' का नारा दिया था हसरत मोहानी ने

मौलाना हसरत मोहानी ने 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा दिया था। बताया जाता है कि उन्होंने ही कांग्रेस के 1921 के अधिवेशन में सबसे पहले 'पूर्ण स्वराज' के संकल्प की बात कही थी। आज़ादी के लिए लड़ने वाले मोहानी से जुड़ी इस मस्जिद को आज सुचारू ट्रैफिक में बाधा बताया जा रहा है। और जब स्थिति ऐसी बन जाए तो आगे कुछ भी कहना मुश्किल हो जाता है। 

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