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धरोहर : वास्तुकला के लिहाज़ से बेशक़ीमती बहादुर शाह के 'ज़फ़र महल' में तोड़फोड़

''ये ख़बर उस वक़्त आ रही है जब शहर में 'Art and Architecture and Biennale' चल रहा है जिस पर लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं लेकिन इस बेशकीमती साइट (ज़फर महल) को यूं ही छोड़ दिया गया है।''
Zafar Mahal

कितना है बद-नसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए

दो गज़ ज़मीन भी ना मिली कू-ए-यार में

ज़फ़र महल में एक जाली को तोड़ दिया गया

जिस दो गज़ ज़मीन की तमन्ना लिए बहादुर शाह ज़फ़र इस दुनिया से रुख़सत हो गए वे महरौली के समर पैलेस (गर्मियों का महल) में थी। वह जगह कुछ दिनों से चर्चा में है वजह कि वहां कुछ अज्ञात लोगों ने तोड़-फोड़ की है और वास्तुकला के बेशकीमती नमूने को नुकसान पहुंचाया है। हम उस जगह को देखने के लिए महरौली पहुंचे।

imageपहले की तस्वीर, टूटी हुई जाली

महरौली, जिसे शहरों के शहर दिल्ली का पहला शहर कहा जाता है, उसी शहर की कुछ तंग गलियों से गुज़रते हुए एक महल मिलता है जिसका नाम है ज़फ़र महल, जिसे समरपैलेस (गर्मियों का महल) भी कहा जाता है। ये महल आज महज़ नाम का महल रह गया है। वैसे तो यहां अक्सर जाना होता है लेकिन इस बार अंदर दाखिल होते हुए मन बोझिल हो रहा था।

अंदर कुछ चहल-पहल थी पता चला कि किसी फैशन ब्रांड के कपड़ों के लिए फोटो शूट चल रहा था। पुरानी इमारतों का अपना ही तिलिस्म होता है। टूट कर गिरते महल की बेनूरी के बैकग्राउंड में फैंसी चमकते-दमकते कपड़े ग्राहकों को भाते होंगे।

बहरहाल, जैसे ही आगे बढ़े वो जगह दिखाई दी जिसके बारे में दो तीन दिन पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्ट दिखी थी।

ASI ने टूटी जाली को जोड़ने की कोशिश की

इस पोस्ट में शेयर की गई तस्वीरों में ज़फ़र महल के अंदर एक जाली जो वास्तुकला के हिसाब से अनमोल थी उसे तोड़ दिया गया था। वहीं बगल की दूसरी जाली को भी पुरजोर तरीके से तोड़ने की कोशिश की गई थी। उस पर भी तोड़ने के कई निशान दिखाई दिए। हम जब वहां पहुंचे तो टूटी जाली को दोबारा जोड़ दिया गया था, वहां मौजूद एक शख़्स एकटक उस टूटी जाली को देख रहा था। पूछने पर पता चला कि वे आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से थे और एक दिन पहले इस टूटी जाली को जोड़ने पहुंचे थे और जितना जुड़वा सकते थे जुड़वा चुके थे। बहुत ही उदास होकर बताने लगे कि यहां बहुत से नशा करने वाले लड़के घूमते रहते हैं उन्हीं में से किसी ने इसे तोड़ा होगा। हमने वहां के गार्ड से बात करने की कोशिश की लेकिन वो हमें नहीं मिला।

 imageASI जाली को जितना जोड़ सकता था जोड़ दिया गया

''मैंने कहा कि टूट गया इसमें कुछ नहीं कर सकते''

ज़्यादा जानकारी के लिए कुतुब मीनार स्थित ऑफिस पहुंचे लेकिन वहां कोई अधिकारी नहीं मिला। हमने सुपरिटेंडिंग ऑर्कोलॉजिस्ट (Superintending Archaeologist) डॉ. प्रवीन सिंह ( Dr. Praveen Singh) से फोन पर बात की। उन्होंने बताया कि ''सात दिन पहले कंप्लेंट होनी चाहिए थी लेकिन नहीं हुई पर कल हो गई है। मैंने साइट पर विजिट किया था और डायरेक्शन दे दिया कि हम जो प्लान कर रहे थे conservation (संरक्षण) के लिए। जल्द ही एस्टीमेट हो जाएगा और फिर टेंडर होगा और फिर हम इस मैटर को देखते हैं और जो टूटी हुई जाली है उसको हम रिपेयर करेंगे at the same time.

जब हमने उनसे जानना चाहा कि उन्हें इसके बारे में कब पता चला तो उन्होंने बताया कि ''सात-आठ दिन पहले जानकारी आई थी तो मैंने कहा कि टूट गया इसमें कुछ नहीं कर सकते। तुम पुलिस को कंप्लेंट कर देना उसने नहीं की। मैंने चार-पांच दिन बाद फिर पूछा कि कंप्लेंट कर दी तो उसने कहा कि नहीं की तो उसने 11 दिसंबर 2023 को की है।''

नशा करने वालों का अड्डा

वक़्त की कमी की वजह से उन्होंने हमें बस यही जानकारी दी । हमारे पास सवाल तो बहुत थे लेकिन जवाब देने वालों के पास वक़्त की कमी थी। फूलवालों की सैर के दौरान भी हम यहां पहुंचे थे और उस दिन हमने यहां कुछ लड़कों को आग जलाते हुए देखा था। नशा करने वालों और ताश खेलने वालों का तो ये पसंदीदा ठिकाना है।

लोगों ने नाराज़गी ज़ाहिर की

सोशल मीडिया पर इस घटना पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। एक ने लिखा '' चलो हम अपने ही मास्टरपीस को तोड़ देते हैं और फिर उनकी जगह इटली जा कर तस्वीरें क्लिक करते हैं।''

जबकि एक शख्स ने लिखा '' ये चौंकाने और नाराज़ करने वाली घटना है। मैं ख़ुद को ख़ुशकिस्मत समझता हूं कि इसे तोड़े जाने से पहले मैंने इसे देखा लेकिन ये दिल दुखाने वाली तस्वीरें हैं।''

तो किसी ने लिखा '' ये ख़बर उस वक़्त आ रही है जब शहर में 'Art and Architecture and Biennale' चल रहा है और जिस पर मिलियन में पैसा खर्च किया गया होगा। लेकिन इस (ज़फर महल) बेशकीमती साइट को यूं ही छोड़ दिया गया है। इतिहास के आर्ट स्टूडेंट होने के नाते मेरे लिए ये बहुत ही दुखद ख़बर है।''

तीन मुगल बादशाहों की क़ब्र है यहां

ज़फ़र महल में वैसे तो हाथी पोल, मोती मस्जिद समेत बहुत से निर्माण हैं। लेकिन इनके अलावा यहां बाद के कई मुग़ल बादशाहों की कब्रें हैं राना सफवी (Rana Safvi) की किताब 'Where stones Speak' के मुताबिक यहां बहादुर शाह प्रथम, अकबर शाह द्वितीय, शाह आलम द्वितीय की क़ब्रें हैं। जिस जगह पर इन तीनों की क़ब्र हैं वहीं पर एक क़ब्र के लिए ख़ाली जगह है (सर्दगाह) जिस पर घास उग आई है। और ये जगह बहादुर शाह द्वितीय के लिए थी जिन्हें 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने वतन से निकाला दे दिया गया था और रंगून (म्यांमार) भेज दिया था। आख़िरी सांस तक बहादुर शाह ज़फ़र अपने वतन लौटना चाहते थे। लेकिन उन्हें ये नसीब ना हो सका।

कार्रवाई की जानकारी क्या महज़ सूचना है?

19वीं शताब्दी में बना ये महल पहले ही खंडहर में तब्दील हो गया था। इस ऐतिहासिक धरोहर के गेट पर एक जानकारी चस्पा है जिस पर लिखा है कि ये संरक्षित स्मारक है और इसे नुकसान पहुंचाने वाले को दो साल की सज़ा एक लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है। लेकिन शायद ये जानकारी महज़ एक सूचना है।

वास्तुकला के लिहाज़ से ख़ास थी ये जाली

कुछ दिन पहले ही Navina Najat Haidar की एक किताब आई है जिसका नाम है 'Jali: Lattice of Divine Light in Mughal Architecture' जिसमें मुगल वास्तुकला में इस्तेमाल की गई जालियों के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस किताब पर नाविना देश-विदेश में बात कर रही हैं, कार्यक्रम और सेमिनार पर बोल रही हैं। लेकिन विडंबना देखिए जिन जालियों पर उनकी किताब है उन्हीं जाली में से एक को तोड़ दिया गया। ऐतिहासिक नज़रिए से देखा जाए तो ये कितना बड़ा नुक़सान है। ये शायद ही नुकसान करने वाले को पता होगा।

imageदूसरी जाली को भी तोड़ने की कोशिश गई थी 

''विरासत को संरक्षित करने की ज़रूरत''

इस मामले में हमने लेखक राना सफ़वी से बात की। वे कहती हैं कि '' ज़फ़र महल आख़िरी महल था जिसे मुगलों ने बनवाया था। ये बहुत ही महत्वपूर्ण स्मारक है। ये सभी धर्मों से जुड़ी फूल वालों की सैर का भी मुख्य केंद्र था और इसके सामने से सैर के लिए जाया जाता था। मुगल, अकबर शाह द्वितीय, बहादुर शाह यहां सिर्फ मानसून में ही नहीं जाया करते थे बल्कि वे यहां अक्सर जाया करते थे। क्योंकि ये कुतुब साहब की दरगाह के क़रीब था और वे उन्हें मानते थे।''

वे आगे कहती हैं कि '' यहां जो तोड़-फोड़ हुई है वो बहुत ग़लत किया गया है क्योंकि ये हमारी विरासत है। साथ ही यहां वो जगह भी है जहां बहादुर शाह दफन होना चाहते थे। लेकिन उन्हें रंगून भेज दिया गया था तो ऐसा नहीं हो पाया लेकिन खाली जगह वहां अब भी है। ये हमारी विरासत का हिस्सा है जिसे संरक्षित करने की ज़रूरत है।''

बेशक ये संरक्षित स्मारक है और आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के तहत आता है लेकिन नशे करने वालों और ताश खेलने वालों का ये अड्डा बन गया है। पिछले कुछ सालों से हेरिटेज वॉक कराने वालों ने इस जगह का ध्यान खींचा है लेकिन बावजूद हर दिन ये महल खंडहर होता जा रहा है।

कैसी अजीब बात है जिस लाल किला में बहादुर शाह ज़फ़र रहा करते थे आज कल वहां 'Art and Architecture and Biennale' चल रहा है और जिसमें ASI के साथ ही कई विभाग और मंत्री लगे हैं। लेकिन बहादुर शाह ज़फ़र का वो महल जहां वो दफ़न होना चाहते थे वो असामाजिक तत्वों का गढ़ बन रहा है। जहां वास्तुकला के बेजोड़ नमूनों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है और ASI एक FIR दर्ज करवाने में भी आज-कल करता रहा।

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