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उच्चतम और दिल्ली उच्च न्यायालय ने टीके की कमी और टीका नीति को लेकर उठाए गंभीर सवाल

उच्चतम न्ययालय ने केंद्र सरकार से टीका खरीद के लिये 35,000 करोड़ रुपये के कोष में से खर्च राशि का ब्योरा मांगा। वहीं दूसरी तरफ दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को लोगों को निर्धारित समय-सीमा में कोवैक्सीन की दोनों खुराक नहीं लगा पाने को लेकर फ़टकार लगाई।
vaccine shortage

नयी दिल्ली : देश इस समय कोरोना महामारी जैसे अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है, पूरी दुनिया में इसके नियंत्रण के रूप में सार्वभौमिक टीकाकरण को ही देखा जा रहा है। लेकिन हमारे देश में सरकारों की गलत और अस्पष्ट टीका नीति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इसको लेकर देश की न्यायालय सरकारों से गंभीर सवाल पूछ रही है। जिसका जवाब कोई भी सरकार पुख़्ता तौर पर नहीं दे पा रही है। कल यानि बुधवार को उच्त्तम न्यायलय ने केंद्र सरकार को दो मामलों में ज़बाब तलब किया और फ़टकार भी लगाई। पहला उन्होंने सरकार से सरकार से टीका खरीद के लिये 35,000 करोड़ रुपये के कोष में से खर्च राशि का ब्योरा मांगा। दूसरा उच्चतम न्यायालय ने 18 से 44 साल के उम्र के लोगों के लिए डिजिटल पोर्टल ‘को-विन’ पर पूरी तरह आश्रित टीकाकरण नीति पर सवाल उठाए। इसी तरह दिल्ली उच्च न्यायलय ने भी दिल्ली सरकार को लोगों को निर्धारित समय-सीमा में कोवैक्सीन की दोनों खुराक नहीं लगा पाने को लेकर फ़टकार लगाई।

उच्चतम न्यायालय : केंद्र सरकार से टीका खरीद के लिये 35,000 करोड़ रुपये के कोष में से खर्च राशि का मांगा ब्योरा

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से मौजूदा उदारीकृत टीकाकरण नीति के तहत 2021-22 के बजट में कोविड-19 टीका खरीद को लेकर निर्धारित 35,000 करोड़ रुपये के कोष में से खर्च की गयी राशि के बारे में विस्तृत जानकारी देने को कहा है। न्यायालय ने यह भी पूछा कि आखिर कोष का उपयोग 18 से 44 साल के लोगों के टीकाकरण पर क्यों नहीं किया जा सकता।

शीर्ष अदालत ने केंद्र की उदारीकृत टीकाकरण नीति पर भी गंभीर सवाल उठाए। यह नीति राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों और निजी अस्पतालों को देश में सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी (सीडीएल) द्वारा मंजूर मासिक खुराक में से 50 प्रतिशत खुराक पूर्व-निर्धारित कीमत पर खरीदने की अनुमति देती है।

न्यायालय ने कहा कि यदि केंद्र की एकाधिकारवादी खरीदार की स्थिति विनिर्माताओं से बहुत कम दर पर टीके प्राप्त करने का एकमात्र कारण है, तो ऐसे में अदालत के लिए संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौजूदा उदारीकृत टीकाकरण नीति की युक्तिसंगत जांच करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह विशेष रूप से वित्तीय संकट से जूझ रहे राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों पर गंभीर बोझ डाल सकती है।

न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश एल एन राव और न्यायाधीश एस रवींद्र भट्ट की एक विशेष पीठ ने कहा कि केंद्र का तर्क है कि प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए उदारीकृत टीकाकरण नीति लायी गयी है। यह अधिक निजी निर्माताओं को आकर्षित करेगा और इससे अंततः कीमतों में कमी आ सकती है।

पीठ ने कहा, ‘‘प्रथम दृष्टया, दो टीका विनिर्माताओं के साथ बातचीत को लेकर गुंजाइश केवल कीमत और मात्रा थी। जबकि दोनों ही केंद्र सरकार द्वारा पहले से तय किए गए हैं। ऐसे में प्रतिस्पर्धा के कारण उच्च कीमत को लेकर भारत सरकार का जो तर्क है, उसको लेकर गंभीर संदेह पैदा होता है।’’

न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार का तर्क है कि बड़े स्तर पर खरीद ऑर्डर की उसकी क्षमता से टीके की कीमतें कम हुई। इससे सवाल उठता है कि आखिर इस तर्क को 100 प्रतिशत मासिक सीडीएल खुराकों की खरीद के लिये क्यों नहीं अपनाया गया।

पीठ ने कहा, ‘‘वित्त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में टीकों की खरीद के लिए 35,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। उदारीकृत टीकाकरण नीति के संदर्भ में, केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया जाता है कि इस कोष को अब तक कैसे खर्च किया गया है और 18-44 वर्ष की आयु के व्यक्तियों के टीकाकरण के लिए उनका उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता है।’’

न्यायालय ने केंद्र से इस बारे में भी स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया कि सरकार के टीकों के आपातकालीन उपयोग की मंजूरी ने निर्माताओं के जोखिम को कम किया है, ऐसे में कीमत निर्धारण में इस कारक को शामिल किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कुछ और मुद्दों पर भी केंद्र से स्पष्टीकरण देने को कहा है।

डिजिटल खाई के कारण वंचित तबके को झेलना होगा नुकसान : न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि 18 से 44 साल के उम्र के लोगों के लिए डिजिटल पोर्टल ‘को-विन’ पर पूरी तरह आश्रित टीकाकरण नीति ‘‘डिजिटल खाई’’ के कारण सार्वभौमिक टीकाकरण के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएगी और समाज के वंचित वर्ग को ‘‘पहुंच में अवरोध’’ का नुकसान झेलना होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की नीति समानता के मौलिक अधिकार और 18 से 44 वर्ष के उम्र समूह के लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार पर गंभीर असर डालेगी।

शीर्ष अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि डिजिटल रूप से शिक्षित लोगों को भी को-विन पोर्टल के जरिए टीकाकरण स्लॉट पाने में मुश्किलें आ रही हैं।

न्यायालय ने केंद्र से पूछा है कि क्या उसने को-विन वेबसाइट की पहुंच और आरोग्य सेतु जैसे ऐप का ऑडिट किया है कि दिव्यांग लोगों की कैसे उन तक पहुंच हो। न्यायालय ने कहा कि उसके संज्ञान में आया है कि को-विन प्लेटफॉर्म तक दृष्टिबाधित लोगों की पहुंच नहीं है और वेबसाइट तक पहुंच में कई अवरोधक हैं।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा 2019-20 के लिए कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) की वार्षिक रिपोर्ट और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की एक रिपोर्ट तथा राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण ‘‘घरेलू सामाजिक उपभोग : शिक्षा’ का भी हवाला दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में खासकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच डिजिटल खाई है। डिजिटल साक्षरता और डिजिटल पहुंच में सुधार की दिशा में जो प्रगति हुई है, वह देश की बहुसंख्यक आबादी तक नहीं पहुंच पाई है। बैंडविड्थ और कनेक्टिविटी की उपलब्धता डिजिटल पहुंच के लिए और चुनौतियां पेश करते हैं।’’

पीठ में न्यायमूर्ति एल एन राव और न्यायमूर्ति एस आर भट भी थे।

पीठ ने कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक सेवाओं और आपूर्ति के स्वत: संज्ञान लिए गए मामले पर 31 मई के आदेश में यह टिप्पणी की थी। आदेश को बुधवार को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।

पीठ ने कहा, ‘‘इस देश की महत्वपूर्ण आबादी 18-44 साल के उम्र के लोगों के टीकाकरण के लिए पूरी तरह डिजिटल पोर्टल पर आधारित टीकाकरण नीति ऐसी डिजिटल खाई के कारण सार्वभौमिक टीकाकरण के लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाएंगे। पहुंच में अवरोध का सबसे बड़ा नुकसान समाज के वंचित तबके को उठाना पड़ेगा।’’

पीठ ने कोविड-19 टीका हासिल करने में समाज के वंचित सदस्यों की क्षमता संबंधी चुनौतियों को रेखांकित करते हुए 30 अप्रैल के आदेश में यह टिप्पणी की थी।

दूसरी खुराक मुहैया नहीं करा सकते तो इतने जोर-शोर से टीकाकरण केंद्र क्यों शुरू किए: अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि यदि दिल्ली सरकार लोगों को निर्धारित समय-सीमा में कोवैक्सीन की दोनों खुराक नहीं लगवा सकती, तो ‘‘इतने जोर-शोर’’ से इतने टीकाकरण केंद्र शुरू नहीं करने चाहिए थे।

न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया और उसे यह बताने को कहा कि क्या वह कोवैक्सीन की पहली खुराक ले चुके लोगों को दोनों खुराकों के बीच छह सप्ताह का अंतराल समाप्त होने से पहले दूसरी खुराक मुहैया करा सकती है।

अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों टीकों की दूसरी खुराक उपलब्ध कराने का अनुरोध करने वाली दो याचिकाओं पर केंद्र को भी नोटिस जारी किया।

अदालत ने दोनों याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘‘अगर आपको (दिल्ली सरकार) पूरी तरह निश्चित रूप से पता नहीं था कि आप दूसरी खुराक भी मुहैया करा सकते हैं तो आपने टीकाकरण क्यों शुरू किया? आपको बंद कर देना चाहिए था। महाराष्ट्र को जब लगा कि वे दूसरी खुराक नहीं दे सकते तो उन्होंने इसे बंद कर दिया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘आपने हर जगह इतने जोर-शोर से कई सारे टीकाकरण केंद्र खोले और अब आप कह रहे हैं कि आपको पता नहीं कि दूसरी खुराक कब उपलब्ध होगी।’’

एक याचिका आशीष विरमानी ने दाखिल की है जिन्होंने कोवैक्सीन की पहली खुराक तीन मई को लगवाई थी और वह 29 मई से दूसरी खुराक के लिए स्लॉट बुक नहीं करा पा रहे थे।

विरमानी की ओर से वकील पल्लव मोंगिया ने अदालत को बताया कि इसके बाद विरमानी को टीके की दूसरी खुराक लगवने के लिए मेरठ जाना पड़ा।

सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील अनुज अग्रवाल ने अदालत को बताया कि टीकों की खुराक की आपूर्ति का मसला इस समय राज्य और उत्पादक के बीच है।

उन्होंने कहा कि उन्हें खुद भी दूसरी खुराक लगवानी है लेकिन कोवैक्सीन की कमी है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आज गुरुवार, 3 जून को जारी आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 1,34,154 नए मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा कोरोना से आज 2,887 मरीज़ों की मौत हुई है, जिनमें 60 फ़ीसदी मरीज़ों की मौत मात्र चार राज्यों में हुई है | महाराष्ट्र में 24 घंटों में सबसे ज्यादा यानि 553 मरीज़ों की मौत हुई, तमिलनाडु में 483 मरीज़ों की मौत हुई, कर्नाटक में 463 मरीज़ों की मौत हुई और केरल में 213 मरीज़ों की मौत हुई है। हालांकि इसी बीच देश भर में कोरोना से पीड़ित 2,11,499 मरीज़ों को ठीक किया गया है। और एक्टिव मामलों में 80,232 मामले कम हुए हैं।

देश में कोरोना के मामलों की संख्या बढ़कर 2 करोड़ 84 लाख 41 हज़ार 986 हो गयी है। जिनमें से अब तक 3 लाख 37 हज़ार 989 लोगों की मौत हो चुकी है। देश में कोरोना से पीड़ित 92.78 फ़ीसदी यानी 2 करोड़ 63 लाख 90 हज़ार 584 मरीज़ों को ठीक किया जा चुका है। और देश में एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 6.02 फ़ीसदी यानी 17 लाख 13 हज़ार 413 हो गयी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की ताजा जानकारी के अनुसार देश में कोरोना वैक्सीन की 22 करोड़ 10 लाख 43 हज़ार 693 डोज दी जा चुकी हैं। जिनमें से 24 लाख 26 हज़ार 265 वैक्सीन की डोज पिछले 24 घंटों में दी गयी है।

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