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सूरजकुंड मेला: पूर्वोत्तर की लड़की से ''भेदभाव की घटना'' बताती है कि हमें उनके बारे में अब भी कुछ पता नहीं

''हमें बहुत बुरा लगा, हम सब इंडियन हैं, हम सब एक जैसे ही तो हैं, सभी को एक-दूसरे को समझना चाहिए और एक दूसरे के कल्चर का सम्मान करना चाहिए।''
north east

''हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं,

रंग-रूप वेष-भाषा चाहे अनेक हैं''

देश की एक पीढ़ी ये कविता बहुत ही दिल से गुनगुनाती हुई बड़ी हुई है, दूरदर्शन का एक वो दौर था जब बच्चों को खेल-खेल में ही सिखाने की कोशिश की जाती थी कि अलग रंग-रूप-वेष-भाषा होने के बावजूद हम सब एक हैं। बच्चों को मिल-जुलकर रहने की सीख देने की कोशिश की जाती थी, बड़ी मेहनत से देश के सामाजिक ताने-बाने को बुनने की कोशिश की जाती रही है लेकिन ऐसा लगता है कि इस मुहिम में अगर सालों की मेहनत से चार क़दम आगे बढ़ाए जाते हैं तो एक ग़लती दिलों में कोसों की दूरी की वजह बन जाती है।

इससे पहले बात आगे बढ़ाई जाए, हरियाणा के फरीदाबाद में चल रहे 36वें सूरजकुंड मेले में शामिल होने आई नॉर्थ-ईस्ट की एक लड़की की नाराज़गी पर ग़ौर करते हैं।

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सूरजकुंड मेले की घटना

"पहली बात तो ये कि यहां आकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। मैं पहली बार यहां आई हूं, ये मेरा पहला अनुभव है लेकिन मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ कि मुझे बहुत बुरा लग रहा है। पता नहीं क्या-क्या सवाल पूछते हैं। अगर वे लोग मेरे स्टॉल के बारे में पूछे, नागालैंड के बारे में पूछे तो हम बताएंगे लेकिन पूछते हैं कि तुम लोगों के यहां नागालैंड में गेहूं, चावल मिलता है? रोटी मिलती है? ये क्या सवाल हुए? क्या हम लोग जंगल से आए हैं?

लोग हमारी आलोचना क्यों कर रहे हैं, हम भी तो भारत के ही लोग हैं। नागालैंड भी भारत का ही राज्य है, बहुत ख़ूबसूरत है, लोगों को लगता है कि हम जंगल में रहते हैं और जीने के लिए सांप खाते हैं, माना की हम दूर-दराज के राज्य से आते हैं लेकिन ये क्या?"

ये कहना है नागालैंड की पीड़ित लड़की का ये वीडियो वायरल हो गया। आपको बता दें कि सेंतियांगला का आरोप है कि सूरजकुंड मेले में उक्त बातों के अलावा उनके खान-पान और रहन-सहन को लेकर भी उनसे बेहद बेतुके और भेदभावपूर्ण सवाल किए गए। आख़िर उनके साथ क्या हुआ था ये जानने के लिए हम फरीदाबाद के सूरजकुंड मेले में पहुंचे।

गौरतलब है कि हर बार सूरजकुंड मेले की एक थीम होती है और इस बार की थीम पूर्वोत्तर के आठ राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा पर बनाई गई है। ये मेले के थीम स्टेट हैं जिनकी संस्कृति और खान-पान की ख़ास झलक मेले में दिख रही है।

imageथीम स्टेट असम और मणिपुर के स्टॉल

जैसे ही हम नागालैंड के स्टॉल पर पहुंचे, नागालैंड के पारंपरिक लिबास में हमें वही लड़की दिखी जिनका नाराज़गी भरा वीडियो वायरल हो रहा था।

मेले में बेहद भीड़ थी लेकिन फिर भी उन्होंने उस वीडियो और घटना के बारे में हमें बताया। वो अब भी बेहद नाराज़ लग रही थीं। उनसे जब हमने वायरल वीडियो के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ''मैंने ही उन्हें (मीडिया) बुलाया था, मुझे बहुत ग़ुस्सा आ रहा था। हालांकि सब लोग एक जैसे नहीं हैं, आप देख सकती हैं कि हमारे स्टॉल पर कितनी भीड़ है, लोगों का प्यार भी मिल रहा है लेकिन उस वक़्त मुझे बहुत ग़ुस्सा आया था। सब लोग ऐसा नहीं कह रहे हैं, लेकिन एक-दो लोगों ने बार-बार ऐसा पूछा तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आ गया, लेकिन अब सब ठीक है।''

हमने जानने की कोशिश की कि क्या ऐसा किसी और के साथ भी हुआ है, तो एक और नागालैंड के स्टॉल पर काम कर रहे लड़के ने बहुत ही संकोच के साथ (जैसे वो बताना ही नहीं चाहते हों) इसी तरह का वाक्या बताया, उन्होंने बताया कि, ''वो (स्टॉल पर आए लोग) पूछ रहे थे कि क्या-क्या खाते हो, कितना किलो लाते हो?” इसके अलावा लड़के ने बताया कि कुछ लोगों ने उनके पहनावे पर भी कमेंट किए और ये बताते-बताते उन्होंने सिर झुकाते हुए कहा ‘But It's Ok’ और मुस्कुराते हुए अपने काम पर लौट गए।

imageनागालैंड के दूसरे स्टॉल का वॉलंटियर

पर क्या वाक़ई ये 'ओके' था? क्या इसको 'ओके' कहा या माना जा सकता है?

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इस घटना से नागालैंड के दूसरे स्टॉल के लोग भी दुखी थे जिनमें से एक ने हमसे कहा, ''हमें बहुत बुरा लगा, हम सब इंडियन हैं, हम सब एक हैं, हम सब एक जैसे ही तो हैं, सभी को एक-दूसरे को समझना चाहिए और एक दूसरे के कल्चर का सम्मान करना चाहिए। नॉर्थ-ईस्ट के लोगों के साथ इस तरह की घटनाएं ज़्यादा ही होती हैं जो बिल्कुल भी सही नहीं है। मैं समझती हूं कि दुनिया में सभी लोग एक साथ रहते हैं, सबके बीच प्यार होना चाहिए।''

घटना के बाद स्टॉल के दूसरे लोग भी कुछ उदास हो गए थे लेकिन उनका कहना है कि उन्हें ज़्यादातर लोगों का प्यार मिल रहा है इसलिए वो उस घटना को भुलाकर आगे बढ़ गए हैं।

imageथीम स्टेट त्रिपुरा और अरुणाचल के स्टॉल

नागालैंड के अलावा बाक़ी के थीम स्टेट (असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा) के लोगों से भी हमने बात कर जानना चाहा कि क्या उनके साथ भी इसी तरह की कोई घटना हुई है, तो पता चला कि मोल-भाव के दौरान छोटी-मोटी बहस के अलावा किसी और के साथ इस तरह की कोई घटना नहीं हुई।

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो पर प्रतिक्रिया

पीड़िता का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने अफसोस ज़ाहिर किया पर साथ ही उनपर दिल खोलकर प्यार भी लुटाया और उनके वायरल वीडियो पर ढेर सारे प्यार भरे कमेंट भी किए।

जबकि सोशल मीडिया पर ख़ूब एक्टिव रहने वाले BJP के नागालैंड के प्रदेश अध्यक्ष तेमजेन इम्ना अलोंग ( Temjen Imna Along ) ने भी इस लड़की का वीडियो शेयर किया और लिखा :

''कुछ लोग तो हमें ''Bear Grylls'' के रिश्तेदार ही समझने लगे हैं।

ये ठीक नहीं है।

पूछना है तो Google से पूछो

न मिले तो मुझसे पूछ लेना।''

आरोप लगाने वाली लड़की की एक और प्रतिक्रिया

हालांकि मामला बढ़ा तो उनका एक और वीडियो सामने आया जिसमें उन्होंने बताया कि इस तरह का आरोप लगाने या फिर मीडिया को ऐसा बयान देने के पीछे उनका मकसद पब्लिसिटी पाना या फिर सभी लोगों के बारे में एक राय कायम करना नहीं था बल्कि वो सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्हीं लोगों के लिए था जिन्होंने उनसे ऐसे सवाल किए थे।

पीड़िता ने अपनी इस प्रतिक्रिया में कहा, ''मैंने जैसा सोचा था उससे अलग मिला'' बेशक ऐसे सवाल किसी के लिए भी दिल दुखाने वाले होंगे और हो सकता है कि जैसा माहौल नागालैंड में हो उन्हें यहां ना मिला हो।"

SPI ( Social Progress Index ) की रिपोर्ट भी कुछ कहती है

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद की सामाजिक प्रगति सूचकांक (SPI) की रिपोर्ट आई है जिसमें हरियाणा को देश में सबसे असुरक्षित राज्यों में टॉप पर जगह मिली है जबकि सबसे सुरक्षित राज्य नागालैंड को बताया गया है।

इसे इत्तेफाक ही माना जाएगा कि एक नागालैंड की लड़की के साथ यहां ऐसा वाक्या हुआ। जैसा कि पीड़िता ने भी कहा, ''मैंने जैसा सोचा था उससे अलग मिला'', पहली बार हरियाणा आई लड़की बहुत सी उम्मीदें लाई थी लेकिन किसी एक के सवाल से वो सारी उम्मीदें टूट सी गईं।

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हालांकि हमारे देश में पूर्वोत्तर के लोगों के साथ इस तरह की घटना कोई पहली घटना नहीं है। साल दर साल ऐसी घटनाओं के आंकड़ों में इज़ाफ़ा होता रहता है लेकिन बावजूद इसके उत्तर पट्टी के कुछ लोग पूर्वोत्तर के लोगों के साथ भेदभाव करने से बाज़ नहीं आते। कई बार तो पूछने वालों को ही इस बात का एहसास नहीं होता कि मुस्कुरा कर, मासूमियत से वो जो सवाल पूछ रहे हैं वो नॉर्थ-ईस्ट के इन लोगों के दिल को दुख पहुंचा रहा है।

इसे भी पढ़ें: चिंताजनक: आदिवासियों पर अत्याचार में बढ़ोत्तरी, NCST द्वारा कार्रवाई में साल दर साल कमी

क्या-क्या झेलना पड़ता है नॉर्थ-ईस्ट के छात्रों को ?

ऐसी ही कई बातें हमें मुंबई TISS ( Tata Institute of Social Sciences ) में दलित और ट्राइबल्स पर पढ़ाई एक रही एक स्टूडेंट हेंगम (Hengam) ने बताई, वो कहती हैं, ''हमारी इमेज स्टीरियोटाइप बना दी गई है, हमसे जो सवाल किए जाते हैं वो रेसिज़्म (Racism) से भरे हुए होते हैं। कुछ सवाल तो इतने पर्सनल होते हैं कि बताए भी नहीं जा सकते, कहते हैं आपके बाल ऐसे ही होते हैं ना? आप लोगों को BTS ( Bangtan Sonyeondan) क्यों पंसद है? आप लोग उनके जैसे ही कपड़े क्यों पहनते हो? तुम लोगों को कोरियन बोलना आता है क्या? हमें एक्सोटिफाई ( Excoticfy) किया जाता है और उन्हें महसूस भी नहीं होता कि वे हमें कैसे एक ऑब्जेक्ट बना देते हैं। कोविड-19 के वक़्त तो हमें कोरोना कहकर ही बुलाया जाने लगा था, दिल्ली में नॉर्थ-ईस्ट के लोगों को टारगेट किया गया था।"

चूंकि हेंगम दिल्ली में रह चुकी हैं और अब मुंबई में रहती हैं तो हमने जानना चाहा कि एक नॉर्थ-ईस्ट की लड़की होने के नाते उन्हें दोनों शहरों में से कौन सा शहर ज़्यादा बेहतर लगा तो उनका जवाब था, ''मुंबई बहुत Chill है, दिल्ली के मुक़ाबले, हालांकि हम ज़्यादातर कैंपस में ही रहते हैं लेकिन मुंबई बेहतर लगा।''

कुछ और लोगों से बात की तो पता चला अक्सर उन्हें ग़लत नामों से बुलाया जाता है जिसकी वजह से ये छात्र दूसरे छात्रों के साथ मुश्किल से या फिर बहुत देरी से घुल-मिल पाते हैं। इन छात्रों से बात करने पर पता चलता है कि हम जाने-अनजाने में ही अपने देश के लोगों से कितना बुरा व्यवहार करते हैं। खाना-पीना-रहना किसी का भी निजी मामला है लेकिन उसे लेकर उन्हें जज करना कुछ लोग अपना कर्तव्य समझ बैठते हैं।

क्या खाना बनाने और खाने का अधिकार नहीं है?

हमने JNU से पढ़ाई कर चुके और अब MA कर रहे नॉर्थ-ईस्ट के एक और छात्र से बात की उनके पास भी दिल्ली की कुछ बहुत ही उदास कर देने वाली यादें थीं। उनके मुताबिक नॉर्थ-ईस्ट का फूड कल्चर उत्तर पट्टी के कुछ लोगों को बहुत अजीब लगता है। उन्होंने मुनिरका में रहने के दौरान का अपना एक अनुभव बताया, "एक दिन हम अपनी नॉर्थ-ईस्ट की डिश बना रहे थे जिसमें थोड़ी गंध होती है कि तभी हमारे मकान मालिक आए और उन्होंने हमारा सारा खाना उठाकर फेंक दिया और हमें धमकी दी कि अगर दोबारा वो डिश बनी तो हमें कमरा खाली करना होगा, उस दिन के बाद हमने वहां वो डिश कभी नहीं बनाई।''

इस छात्र के अनुभव ने हमें नेटफ़्लिक्स पर 2019 में रिलीज़ हुई सयानी गुप्ता की फ़िल्म Axone(अकुनी) की याद दिला दी। निकोलस खारकोंगर (Nicholas kharkongor) ने इस फ़िल्म के ज़रिए दिल्ली या फिर देश के दूसरे हिस्सों में रह रहे नॉर्थ-ईस्ट के लोगों की सामाजिक, सांस्कृतिक चुनौतियों को पेश किया है।

पूरी फ़िल्म एक शादी के लिए ख़ास डिश 'अकुनी' बनाने की जद्दो जेहद को बयां करती है और साथ ही सवाल खड़ा करती है कि क्या देश में अपनी पसंद का खाना खाने या पकाने की आज़ादी नहीं है?

नॉर्थ-ईस्ट देश का ऐसा हिस्सा है जो आज भी अपनी पुरानी संस्कृति, रीति रिवाजों को मज़बूती से थामे दिखता है लेकिन यहां का कल्चर देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले कुछ लोगों को थोडा हैरान करता है लेकिन लोगों की ये हैरानी कई बार ये भूल जाती है कि यही हमारे देश की ख़ूबसूरती है क्योंकि हमारा देश अलग-अलग सांस्कृतिक परंपराओं वाला देश है जो एक डोर से बंधा है।

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