अतियथार्थवादी शैली के चित्रकार ग़ुलाम मोहम्मद शेख़
गुलाम मोहम्मद शेख कला जगत के चर्चित, अंतरराष्ट्रीय और स्थापित चित्रकार, कला इतिहासकार और कला समीक्षक हैं। उनके चित्र सूफियाना भावों में भींगे हुए हैं जो अपने चटख, चमकीले, रंगों से सुंदर प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
कला में यथार्थ चित्रण तकनीकी दृष्टि से हाथों की निपुणता पर निर्भर करता है। लेकिन जब उसमें कल्पनाशीलता का उच्चतर स्तर पर इस्तेमाल होता है तो वह अतियथार्थवादी रूप ग्रहण कर लेता है। वैसे तो कला में अतियथार्थवादी शैली की शुरुआत बहुत पहले ही यूरोप में हो गई थी लेकिन भारत में इसका असर काफी वर्षों बाद दिखा और कई महत्वपूर्ण कलाकारों ने इसे अपनाया। गुलाम मोहम्मद शेख अति यथार्थवादी शैली के चित्रकार हैं। उनके चित्र आकृति मूलक हैं। जिनमें कल्पनाशीलता और फैंटसी का समावेश है। ज्यादातर चित्रों में उन्होंने भारतीय लघु चित्रण शैली जैसे राजपूत और मुगल शैली से प्रेरणा ग्रहण किया है।
वृक्ष, मनुष्य और विविध प्रकार के घर, गुलाम मोहम्मद शेख के चित्रों में दिखते हैं। यही तो पृथ्वीवासियों के जीवन मूल्य हैं। अन्यथा सभी फकीर ही होंगे। वृक्ष शरण लेने के लिए, घर शरण लेने के लिए, किसके लिए तो मनुष्य के लिए। कुछ खुद ही निष्प्राण जड़ों से उखड़ कर अपना वजूद बनाते हैं तो कुछ को बार-बार उन जड़ों की ओर लौटने की विवशता है। लेकिन साकार अस्तित्व को तो स्वीकार करना ही होगा कि हम आम जन हैं हमारी पहचान है, आम आदमी के समान, आम नागरिक के समान। एक कलाकार सूफी दर्शन को अपने जीवन में, अपनी कला में उतारता है तो यह उसकी विवशता नहीं है यह उसकी संवेदनशीलता है, उसकी ईमानदारी है। तब ऐसे कलाकार जो भी सृजन करेंगे, नयी होगी, मौलिक कृति होगी। यही बात गुलाम मोहम्मद शेख की चित्रात्मक कृतियों में हैं। वे विविध रंगी को लिए, हमेशा नया कुछ प्रकट करती हैं। उनके भाव उनकी आंतरिक मन:स्थितियों से ही प्रकट होते हैं। ऐसा बहुत कम कलाकारों में है।
'स्पीकिंग स्ट्रीट' शीर्षक चित्र में नगरीय जीवन का विहंगम दृश्य है। इस चित्र में मकानों और गली को मानों ऊपर से देखा जा रहा हो। आम जीवन के कई परत, कई दृश्य प्रकट होते हैं, जैसे किसी घर के अंदर शोक में डूबे स्त्री -पुरूष, तो कहीं प्रेमरत दम्पति दिखते हैं, गली में भी मनुष्य आकृतियां गतिशील नजर आतीं हैं। वास्तव में गुलाम मोहम्मद शेख की कला शैली उत्कृष्टता के पैमाने पर स्तरीय हैं। चाहे वो सूफी दर्शन से प्रेरित हैं हों या लोक प्रिय आम जनों की भी पसंद, अति काल्पनिक कथा 'अरेबियन नाइट्स' से ली गई हों। रंग संगति आकर्षक, हमेशा आंखों को सम्मोहित करने वाली होती हैं। प्रसिद्ध कला समीक्षक और चित्रकार प्राण नाथ मागो के अनुसार "उनके चित्र हमें चिंता से सम्मोहन और विषाद मय ध्यान से प्रसन्न दिवा स्वप्नों की ओर ले जाते हैं।"
गुलाम मोहम्मद शेख का जन्म 1937 में गुजरात के सुरेन्द्र नगर में हुआ था। बचपन से ही शेख़ साहब हिंदू, मुस्लिम संस्कृति के सामंजस्य और मेल-जोल के प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं। यही अनुभव और भाव उनके सृजन पथ में दोस्तों के बीच एक सरल और विश्वास पूर्ण रास्ता बनाने में सहायक बना। उन्होंने घर में कुरान की आयतें पढ़ीं तो विद्यालय में संस्कृत भाषा का अध्ययन किया। छात्र जीवन से ही शेख़ साहब चित्रकला में रुचि लेने लगे। विद्यालय जीवन से ही वे पुस्तकालय जाते थे वहां पत्र-पत्रिका विशेष कर दीवार पत्रों के लेखांकन और कथात्मक चित्रों का संपादन करते थे। गुजरात में ही विद्यालयी शिक्षा प्राप्त की और इसी दौरान गुजराती भाषा में कविता लेखन करने लगे।
अपने सृजनात्मक अनुभवों के बारे में शेख़ साहब का कहना है "संसार हमेशा मेरे सामने अपरिवर्तनशील, विविध रूपों में, बहुवचन में दोहरे आकारों में आया। चित्रकला जब भी मेरे पास आई कविता के संगत के साथ उससे आच्छादित होकर, एक दूसरे से मुक्त होते हुए, स्वतंत्र होते हुए।"
गुलाम मोहम्मद शेख ने कला की विधिवत शिक्षा बड़ौदा से ली। ललित कला संकाय में, 1955 में दाखिला लिया और स्नातक होने के बाद 1961 में वहीं कला इतिहास के प्राध्यापक के तौर पर नियुक्त हुए। गुलाम मोहम्मद शेख ने 1965-66 की अवधि में कामनवेल्थ स्कालरशिप के तहत लंदन के राॅयल काॅलेज ऑफ आर्ट से भी चित्रकला विषय लेकर अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने यूरोप की यात्रा की।
प्रसिद्ध चित्रकार नीलिमा शेख उनकी पत्नी हैं। शेख़ साहब के चित्रों की देश-विदेश में ढेरों प्रदर्शनियां हुईं हैं। उन्हें अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया है।1983में पद्मश्री पुरस्कार मिला। 2002 में मध्यप्रदेश से कालिदास सम्मान मिला।1962 में उन्हें ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। कला और साहित्य की कालजयी कृतियां हमेशा समसामयिक ही होती हैं चाहे किसी भी दौर की हों। हमारे यहां बिडंबना यही है कि यहां कई बेहतरीन कलाकारों को समय के अनुसार यथोचित स्वीकृति नहीं मिलती, सम्मान नहीं मिलता। कलाकारों की प्रतिभा का सही मूल्यांकन उसके जीते जी ही होना चाहिए। यह पिछड़ी और संकीर्ण मानसिकता ही है जिसमें कलाकार के अवसान के बाद ही लोगों को उनकी प्रतिभा का अहसास होता है। लेकिन सच्चे कलाकार स्वीकृति की परवाह नहीं करते, निरन्तर सृजनरत रहते हैं। बहरहाल गुलाम मोहम्मद शेख यथार्थ सोच वाले अतियथार्थवादी कलाकार ही बने हुए हैं जो किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकार हैं।
गुजराती साहित्य के क्षेत्र में भी ग़ुलाम मोहम्मद शेख ने विशिष्ट पहचान बनाई है। अतियथार्थवादी शैली में लिखी गई कविता संग्रह 'अथवा' को काफी लोकप्रियता मिली है। उन्होंने अपने कला लेखों से साहित्य जगत को कला से परिचित कराया है। अभी वे बड़ौदा में रहते हुए निरंतर सृजन कर्म कर रहे हैं।
इंस्टालेशन, वीडियो इंस्टालेशन से आक्रांत कला के इस दौर में ग़ुलाम मोहम्मद शेख के चित्र मेरे जैसे हाथ से बनाए सृजन पर भरोसा करनेवाले चित्रकार को राहत देते हैं। उनकी चित्रण शैली का प्रभाव अनेक युवा कलाकारों के चित्रों में देखा जा सकता है।
(डॉ. मंजु प्रसाद स्वयं चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा 'हिंदी में कला लेखन' क्षेत्र में सक्रिय हैं।)
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