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स्वच्छ भारत मिशन 2.0: क्यों भारत को शून्य-कचरा शहरों की ज़रूरत है, न कि कचरा-मुक्त शहरों की 

नए स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआती अवधारणा में कचरा-प्रबंधन की जमीनी समझ का अभाव है, जो एसबीएम-1 की विफलताओं के बावजूद फिर बड़े-बड़े वादे कर रहा है।
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Image Courtesy: Downtoearth

गांधी जयंती से एक दिन पहले यानि 1 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा ऐलान किया। केंद्र सरकार का प्रमुख और समान रूप से प्रशंसित कार्यक्रम, स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) का अब एक और प्रारूप होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन-शहरी  2.0 के ज़रिए सरकार का लक्ष्य "शहरी क्षेत्रों को कचरा मुक्त" बनाना है।

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि दूसरे चरण में, "शहरों में कचरे के ढेर को संसाधित किया जाएगा और एसबीएम-यू कार्यक्रम के जरिए इसे पूरी तरह से हटा दिया जाएगा।" उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में, "हम दैनिक कचरे का लगभग 70 प्रतिशत का ही प्रसंस्करण कर रहे हैं; अगला कदम इसे पूरे सौ प्रतिशत तक तक ले जाएगा।"

यह कार्यक्रम ठोस कचरे के स्रोत से ही उसे अलग करेगा, उसे कम करेगा, दोबारा इस्तेमाल लायक बनाएगा, और सभी प्रकार के नगरपालिका के ठोस कचरे का वैज्ञानिक प्रसंस्करण कर और प्रभावी ठोस कचरा प्रबंधन करके पुराने खत्तों/लैंडफिल के उपचार पर भी ध्यान केंद्रित करेगा। आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार एसबीएम-यू 2.0 कार्यक्रम पर परिव्यय लगभग ₹1.41 लाख करोड़ होने का अनुमान है।

सही समय पर भारतीय शहरों की जरूरतों के संदर्भ में, फ्लैगशिप मिशन का उद्देश्य तेजी से शहरीकरण भारत की चुनौतियों और उभरती जलवायु चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने की दिशा में हमारे बढ़ते कदम आगे बढ़ाना है। लेकिन, यह अधिकतर मिशनों की तरह समस्या से ग्रस्त है, जो लगभग हमेशा वास्तविक स्थिति को ओर भी बदतर बना देता हैं।

एसबीए 2.0 अपने पहले मिशन से भी बदतर हो सकता है। नए स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआती अवधारणा में कचरा-प्रबंधन की जमीनी समझ का अभाव है, जो एसबीएम-1 की विफलताओं पर महल खड़ा करना चाहता है और जटिल शहरी शासन के मुद्दों को हल करने के लिए प्रौद्योगिकी-निजीकृत 'मॉडल' पर निर्भर है।

इसके अलावा, यदि स्मार्ट शहर इसका आधार है, तो एसबीएम 2.0 एक ऐसी अन्य योजना होगी जिसका उद्देश्य तेज़ गति पकड़ना और बड़े पैमाने पर काम करना है, लेकिन यह नतीज़ा देने में विफल रहेगा और अंततः कभी भी रुक जाएगा। एसबीएम 2.0, कचरा मुक्त शहरों पर जोर देने के साथ, कचरे के प्रसंकरण और विकेन्द्रीकृत प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता है। जबकि कचरा मुक्त शहर हमारी नज़रों के सामने से कचरे को तो हटा देंगे, लेकिन टिकाऊ साधनों का इस्तेमाल करके कचरे का कोई प्रभावी प्रबंधन नहीं हो पाएगा। नीचे वे कारण दिए गए हैं जो इसकी अप्रभाविता को समझाते हैं कि जब तक इसे पुनर्निर्देशित या जरूरत के हिसाब से डिजाइन नहीं किया जाता है, तब तक एसबीएम 2.0 भारतीय शहरों के अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करने में विफल रहेगा।

सबसे पहला कारण, भारतीय शहरों को सही मॉडल को तय करना चाहिए। भारत सरकार की  रैंकिंग के अनुसार इंदौर, लगातार देश का सबसे स्वच्छ शहर बना हुआ है। एसबीएम 2.0 (अ) प्रसिद्ध इंदौर मॉडल पर आधारित नहीं हो सकता है जो अपशिष्ट या कचरा संग्रह और उसकी ढुलाई के लिए अच्छा स्कोर करता है लेकिन कचरे के पृथक्करण और रिसाइकल के लिए वह कोई मॉडल नहीं हो सकता है। इंदौर कोई अलग शहर नहीं है; स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग में दिखाए गए अधिकांश शीर्ष शहरों में की कहानी एक समान ही है- कि यह सुनिश्चित किया जाए कि कचरे को लगातार उठाया जाए और प्रसंस्करण के लिए ट्रकों में भर और मशीनों की एक सेना को सौंपा जाए जो पहले से वहां नियुक्त हो। कचरे को कूड़ा समझकर रखना- जो नजर से ओझल रहे, लेकिन उसका कोई ठीक प्रबंधन न हो, यह सच है कि यह दिमाग से बाहर की बात है।

दूसरा कारण, इस मक़सद को पुनः केंद्रीकरण करने के बजाय केवल विकेंद्रित प्रक्रिया के जरिए ही ही हासिल किया जा सकता है। प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन महंगा काम है क्योंकि अक्सर इसमें नगरपालिका के बजट का 20 प्रतिशत से अधिक खर्च होता है और इसे आमतौर पर परिवहन और केंद्रीकृत संग्रह, प्रसंस्करण और प्रबंधन प्रथाओं के लिए भारी वाहनों वाहनों के इंतजाम पर खर्च किया जाता है। ये सारे इंतजाम परिवहन अनुबंध लॉबी के पक्ष में होते हैं जो चाहते हैं कि वे 'कूड़ा उठाओ और खत्ते पर डालो की व्यवस्था पर चलते हैं'। यह व्यवस्था केवल "कचरा मुक्त" शहरों की आड़ में तेजी से काम करेगी।

मिशन को यह समझने की जरूरत है कि कचरे में हर साल 4 प्रतिशत की वृद्धि होती है और अधिकांश अपशिष्ट उत्पन्न होने वाले में, लगभग 60 प्रतिशत कचरा, कम कैलोरीफिक मान का होने के साथ जैविक होता है, इसलिए सरकार की नीति को सामुदायिक अपशिष्ट प्रथाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसलिए, शहरों को कचरा मुक्त बनाने के बजाय, हमें शून्य-अपशिष्ट समुदायों को लक्ष्य बनाना चाहिए, जहां सभी जैविक कचरे को खाद बनाया जा सकता है, केवल अकार्बनिक कचरे को एकत्र किया जाए और उसे रिसाइकल किया जाए। 

तीसरा कारण, बहुत सारे पैसे और संसाधनों के साथ, प्रौद्योगिकी केंद्रित अपशिष्ट प्रबंधन पर को  सावधानी से अंजाम देने की जरूरत है। यहां पुरानी और अप्रचलित अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं का इस्तेमाल करने का खतरा है, जो कि अब वैश्विक-उत्तर में लागू करने योग्य नहीं हैं जिन्हे विकासशील देशों के संदर्भ में बाजारों की तलाश है। यह उसी तरह है जैसे बड़े पैमाने पर काम करने वाली कंपनियां या कंसल्टेंसी एजेंसियां, स्मार्ट सिटी परियोजनाओं और इन प्रस्तावों को हड़पने के लिए तैयार थीं, लेकिन वे कोई सफलता हासिल नहीं कर पाई। 

उदाहरण के लिए, भारतीय शहरों में पुराने अपशिष्ट खत्तों से जूझते हुए, ठोस अपशिष्ट को जलाने को अक्सर ‘त्वतरित समाधान’ मान लिया जाता है जो ताकि तेजी से बढ़ते अपशिष्ट को कम किया जा सके और ऊर्जा पैदा की जा सके। हालांकि, भस्मीकरण या जलाने के सबसे खराब तरीकों में से यह एक है जिसे शहर कचरे को कम करने और ऊर्जा के लक्ष्यों दोनों को हासिल करने के लिए किया जाता है यह महंगा और अक्षम समाधान है, और पर्यावरणीय जोखिम पैदा करता है। सुखदेव विहार, ईश्वर नगर, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी, जसोला, सरिता विहार और हाजी कॉलोनी के आसपास के इलाकों में दक्षिण दिल्ली के निवासी ओखला में वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट को कोसते हैं। एसबीएम 2.0 को ऐसी महंगी और अवैज्ञानिक प्रथाओं से दूर रहने की जरूरत है।

चौथा, प्रधानमंत्री ने महानायकों का उल्लेख किया- कचरा बीनने वाले (श्रमिक) जो भारतीय शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का काम करते हैं- और हमारे शहरों में उनके योगदान को स्वीकार किया, विशेष रूप से कोविड महामारी के दौरान किए गए काम की सराहना की। लेकिन जो निराशाजनक बात है वह यह की वे अनिवार्य रूप से समावेशी, कौशल और औपचारिक रूप से कचरा बीनने वालों की जरूरतों के बारे में बात करने में विफल रहे, जो बिना देश की मान्यता के लगभग 20 प्रतिशत कचरे को रिसायकल करने का काम करते हैं।

देश के अनौपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी कचरा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इसलिए वे ही असली 'हरित योद्धा' हैं, लेकिन वे सुरक्षात्मक उपकरणों जैसे दस्ताने, मास्क और अन्य आवश्यक चीजों के बिना काम करते हैं जो उन्हे गरिमा और सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं, लेकिन उनके लिए इतना भी मयस्सर नहीं है। प्रमुख शहरों के मौजूदा मॉडल अपशिष्ट श्रमिकों को इसमें शामिल करने को बढ़ावा नहीं देते हैं, इसके बजाय मशीनीकरण को प्रोत्साहित करते हैं। जब पर्याप्त रूप से समर्थित और संगठित, अनौपचारिक रिसाइकल रोजगार पैदा कर सकता है, स्थानीय प्रथाओं में सुधार कर सकता है, गरीबी को कम कर सकता है और नगरपालिका खर्च को काफी हद तक कम कर सकता है तो फिर ऐसा क्यों नहीं किया जाता है।

पांचवां, तकनीक आधारित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, एसबीएम 2.0 को एक ऐसे रास्ते को अपनाने की जरूरत है जो शहरों को 5 सिद्धान्त न कि 3 को प्रोत्साहित करता है: ये हैं, मना करना, पुन: इस्तेमाल करना, रिसायकल करना, पुनर्प्राप्त करना और कम करना। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है कि सबको जिम्मेदारी लेनी होगी, ताकि कूड़ा पैदा करने वाला - चाहे वह घर हो, बाजार हो, या कंपनियां- उन्हे खुद अपने कचरे से निपटने के लिए जवाबदेह होना होगा।

कचरा मुक्त शहरों के बजाय शून्य-कचरा समुदायों की ओर बढ़ने के लिए एसबीएम 2.0 को फिर से डिजाइन करना होगा। गति और पैमाने का मंत्र काम कर सकता है यदि इसमें समुदाय और लोग शामिल हों, और यह प्रयास अपशिष्ट प्रबंधन के एक विकेन्द्रीकृत और स्थानीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देगा। हमें काम में श्रमिकों के अनिवार्य समावेश के साथ इसे कूदे के विकेन्द्रीकृत अलगाव स्थल, रिसाइकल और खाद बनाने के सिद्धांतों का अनुकरण करने की आवश्यकता है।

हो सकता है, हमें केरल के एक तटीय शहर अलाप्पुझा जैसे वैकल्पिक मॉडलों के बारे में बात करने की जरूरत पड़े, जिसने समुदाय के नेतृत्व वाले बायोगैस संयंत्रों और खाद को बनाने के लिए कूड़े का 100 प्रतिशत अलगाव किया; ऐसे श्रमिक समूह जो कम लागत वाले हैं और टिकाऊ हैं, जैसे कि पुणे और बेंगलुरू; जिन्होंने शहर की योजना के साथ-साथ कचरे पर स्थानिक काम किया है और आजीविका की रक्षा की है। इस तरह से डिजाइन करने से यह अकेले ही इस बात को सुनिश्चित करेगा कि दूसरा मिशन सोच समझ कर बनाय गया है न कि हड़बड़ी में लागू कर दिया गया है। 

अरविंद उन्नी एक एक्टिविस्ट हैं और शहरी शोधकर्ता हैं। टिकेंद्र पंवार शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर हैं। दोनों नेशनल कोइलेशन फॉर इंक्लूसिव एंड सस्टेनबल अर्बनाइजेशन के राष्ट्रीय गठबंधन के सदस्य हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Swachh Bharat Mission 2.0: Why India Needs Zero-Waste Cities, not Garbage-Free Cities

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