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तमिलनाडु चुनाव: मछली उद्योग के कॉरपोरेटीकरण की वजह से मछुआरों के सामने आजीविका का संकट

राष्ट्रीय मत्स्य पालन नीति, 2020 की शुरुआत ने केवल मछुआरे समुदाय की दुश्चिंताओं को बढ़ाने का काम किया है। इस समुदाय की ओर से केंद्र सरकार पर मछली पकड़ने के उद्योग पर कॉरपोरट की पकड़ बनाने में मदद पहुंचाने का आरोप लगाया जाता है।
तमिलनाडु चुनाव: मछली उद्योग के कॉरपोरेटीकरण की वजह से मछुआरों के सामने आजीविका का संकट

तमिलनाडु के 1,076 किमी लंबे समुद्री तट में 600 से अधिक मछुआरों के गाँव बसे हुए हैं। तकरीबन 10 लाख लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं, जो इसे राज्य और देश के लिए वित्तीय संसाधनों का इंतजाम करने में सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक बनाता है।

हालाँकि इस उद्योग के कार्पोरेटीकरण के चलते जैव-विविधता, संसाधनों पर पड़ने वाले संभावित प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए महत्वाकांक्षी सागरमाला और भारतमाला परियोजनाओं को मछुआरों के अस्तित्व पर ही संभावित खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। 

राष्ट्रीय मत्स्य नीति, 2020 की शुरुआत ने सिर्फ इस समुदाय की दुश्चिंताओं को ही बढ़ाने का काम किया है, जिसका आरोप है कि केंद्र सरकार, मछली पकड़ने वाले उद्योग पर कार्पोरेट्स की पैठ बनाने में मदद पहुंचा रहा है। राज्य सरकार द्वारा इस प्रकार के नीतिगत मसलों पर दिए जा रहे निरंतर समर्थन ने भी मछुआरा समुदाय के बीच में असंतोष बढ़ाने का काम किया है।

मछली पकड़ने वाली नावों में इस्तेमाल में आने वाले डीजल ईंधन की बढ़ती कीमतों ने भी सिर्फ इस समुदाय के कष्टों को ही बढ़ाने का ही काम किया है, जो लॉकडाउन के बाद से छूट दिए जाने के बाद से देश के भीतर और बाहर मांग में कमी आने के कारण पूरी तरफ से बिखर गया है।

मत्स्य पालन नीति आशंकाओं को जन्म दे रही है

तमिलनाडु का तटीय किनारा पूर्वी और पश्चिमी तटों के दोनों तरफ फैला हुआ है, और यह अपनी समृद्ध जैव-विविधता के लिए जाना जाता है। ये तट मैन्ग्रोव, मूंगा, समुद्री शैवाल, समुद्री घास के बिस्तर, नमकीन दलदली जमीन, कीचड़ और रेत के टीलों जैसे तटीय आवासों के लिए भी जाने जाते हैं। राज्य 2017-18 में समुद्री मछली उत्पादन के क्षेत्र में तीसरे स्थान पर था, जबकि 2018-19 में राज्य के राज्य मत्स्य नीति के नोट 2020-21 के अनुसार निर्यात के जरिये 5,591 करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सफल रहा था। 

आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एआईडीएमके) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकारों के प्रति लगातार अपने समर्थन का दावा करती रही है, लेकिन केंद्र सरकार की नीतियां कॉर्पोरेट के पक्ष में बनाये जाने के आरोप लगाये जाते रहे हैं।

राष्ट्रीय मत्स्य नीति, 2020 ने समुद्री मत्स्य पालन, अंतर्देशीय मत्स्य पालन और मत्स्य पालन के साथ साथ जलीय कृषि को समायोजित किया है, जिनके पास हाल तक अलग-अलग नीतिगत दस्तावेज थे।

तमिलनाडु मछुआरा श्रमिक संघ के आर. लोगनाथन का आरोप है कि “नई पालिसी मछुआरा समुदाय की आजीविका के मुद्दों को ध्यान में रख पाने में विफल रही है, और उसका सारा ध्यान सिर्फ व्यावसायिक पहलुओं पर ही केन्द्रित रहा है, और उसमें भी पूरी तरह से कॉर्पोरेट के पक्षपोषण में।

लोगनाथन का आगे कहना था “यह पालिसी मत्स्य उद्योग को कॉर्पोरेट के हाथों में सुपुर्द करने वाली है। राज्यों के अधिकार क्षेत्र को 12 समुद्री मील तक सीमित कर देने से, शक्तियों के केंद्रीकृत हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है और निकट भविष्य में मछुआरों के हकों के पक्ष में आवाज उठनी बंद हो जाने वाली है।” 

12 समुद्री मील की सीमा से परे जाकर मछली पकड़ने के लिए अब लाइसेंस लेना अनिवार्य हो जाएगा, जो पारंपरिक मछुआरों को इस उद्योग से दूर धकेल देगा। लाइसेंस हासिल करने में लगने वाली लागत और मेरीकल्चर को और प्रोत्साहित करने वाली नीति के चलते मछली पकड़ने का स्कोप कम हो जाने वाला है। इसके अलावा बड़े कॉर्पोरेट के प्रवेश से बड़े जहाजों के इस धंधे में शामिल हो जाने से भी इन संसाधनों में बेहद तेजी के साथ ह्रास देखने को मिल सकता है।

सारे तमिलनाडु में मछुआरा समुदाय इस पालिसी का लगातार विरोध कर रहा है, जिसके बारे में उनका आरोप है कि इसे कोरोनावायरस महामारी के तहत लॉकडाउन की आड़ में लगाया गया था।

सागरमाला परियोजना का आसन्न खतरा 

सागरमाला परियोजना का उद्देश्य नए विशालकाय बंदरगाहों की स्थापना, भारत के मौजूदा बंदरगाहों के आधुनिकीकरण करने, तटीय आर्थिक क्षेत्र (सीईजेड) एवं तटीय आर्थिक इकाइयों को विकसित करना, सड़क, रेल, मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्कों, पाइपलाइनों और जलमार्गों के जरिये पोर्ट कनेक्टिविटी को बढ़ाने एवं तटीय सामुदायिक विकास को बढ़ावा देने का है।

इस परियोजना के अंतर्गत 7,517 किमी लंबे तटीय क्षेत्र और 14,500 किमी संभावित जहाज खेने योग्य जलीय मार्ग के दोहन की योजना है। लोगनाथन के दावे के अनुसार “इस परियोजना से संसाधनों की व्यापक बर्बादी और पारिस्थितिकी तन्त्र के नुकसान होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।"

उनका आगे कहना था “अंतर्देशीय जलमार्ग को इसके साथ जोड़ना बेहद खतरनाक है, क्योंकि समुदी पानी की घुसपैठ नदियों के जल और भूजल स्तर को खतरे में डालने वाला साबित होगा। तमिलनाडु में नदियों में पानी बारिश पर आधारित हैं, और इसलिए इन्हें आपस में जोड़ने से नदी के पानी के खारे पाने में तब्दील हो जाने का अंदेशा है, जो सीधे-सीधे कृषि को प्रभावित कर सकता है।”

मछुआरों की ओर से आरोप लगाया जाता रहा है कि सागरमाला परियोजना और ब्लू इकॉनमी (समुद्री एवं तटीय संसाधनों के दोहन पर आधारित) को असल में कॉर्पोरेट के समुद्र के अतिक्रमण और संसाधनों पर कब्जे को वैध ठहराने के लिए तैयार किया गया है। ऐसी ही एक परियोजना में, कन्याकुमारी में ट्रांसशिपमेंट कंटेनर टर्मिनल की स्थापना के कार्य को मछुआरा समुदाय एवं किसानों के ठोस प्रयासों के परिणामस्वरूप रोक दिया गया है।

जहाँ एक ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस परियोजना को अमल में लाने को लेकर उत्सुक दिख रही है, वहीँ निवर्तमान एआईडीएमके सरकार इसके खिलाफ है। अतीत में मछुआरों के एक बड़े वर्ग ने एआईडीएमके के पक्ष में मतदान किया था, लेकिन पार्टी की किस्मत में इस बार बदलाव देखने को मिल सकता है।

समुदाय की आशंकाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि शिपिंग कॉरिडोर के लिए आरक्षित तटीय क्षेत्र के निर्माण की योजना के साथ-साथ कई योजनाओं को लागू करने से पहले उनके साथ किसी भी प्रकार के संवाद को स्थापित करने का प्रयास नहीं किया गया था।

आजीविका का मुद्दा अभी भी अछूता पड़ा है

पिछले छह वर्षों में डीजल की कीमतों में लगातार वृद्धि ने मछुआरों के उपर बेहद खराब प्रभाव डाला है। देश के भीतर और निर्यात में घटती मांग के बीच समुदाय के सामने बढती कीमतें और आय में कमी का सामना करना पड़ा है।

पिछले छह वर्षों में डीजल की कीमत में वृद्धि ने मछुआरों पर भारी असर डाला है। देश के भीतर और निर्यात के लिए कम मांग के साथ, समुदाय बढ़ रहे खर्च और आय में कमी को घूर रहा है।

चेन्नई के एक मछुआरे का कहना था “पिछले एक वर्ष में डीजल की कीमत में लगभग 20 रूपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक मछली पकड़ने वाली नाव को अपनी यात्रा में खर्च होने वाले 10,000 लीटर डीजल के लिए हर महीने 2 लाख रूपये का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ रहा है। उपर से मांग में कमी के चलते हम लोग गंभीर वित्तीय परेशानियों से जूझ रहे हैं।”
डीजल की कीमतों में कमी लाने के लिए समुदाय की ओर से इसे जीएसटी के दायरे में लाये जाने की मांग की जाती रही है।

समुदाय का यह भी आरोप है कि केंद्र और राज्य सरकारों का चुनावों के दौरान किये जाने वाले बड़े-बड़े वादों को भुला देने का पिछला इतिहास रहा है। मछुआरों के लिए गठित वेलफेयर बोर्ड निष्क्रिय पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान राज्य सरकार ने तीन महीने तक सहकारी समितियों के माध्यम से 1,000 रूपये प्रति माह वितरित किये थे, लेकिन लॉकडाउन के साथ-साथ मछली पकड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।

मछुआरा समुदाय से आने वाले विद्यार्थियों को लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ऑनलाइन और दूरसंचार के माध्यम से संचालित की जाने वाली कक्षाओं से, जिसे अब स्थायी बना दिया गया है, से बड़े पैमाने पर धक्का पहुंचा है। स्मार्टफोन के अभाव में एवं अकुशल दूरसंचार के माध्यम से चलने वाली कक्षाओं ने उन्हें शिक्षा तक पहुँच बना पाने से बाहर कर दिया है। स्कूलों के फिर से खुलने की संभावना यदि कम से कम अगले शैक्षणिक वर्ष में हो भी जाती है, तो इसके बावजूद सभी विद्यार्थियों को आपनी जद में वापस आकर्षित कर पायेंगे, ऐसी संभावना नजर नहीं आती।

केंद्र सरकार की नीतियों सहित कई अन्य पहलुओं पर एआईडीएमके के नेतृत्ववाली राज्य सरकार द्वारा समर्थित नीतियों ने पिछले चार वर्षों में मछुआरा समुदाय के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। 2019 के आम चुनावों में जहाँ भाजपा-एआईडीएमके गठबंधन को करीब-करीब सूपड़ा साफ हो जाने का नुकसान उठाना पड़ा था, वहीँ 6 अप्रैल को होने जा रहे मतदान के दिन मछुआरा समुदाय के बीच से केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ स्पष्ट असंतोष के प्रतिबिंबित होने की संभावना अत्यंत प्रबल है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

TN Elections: Fisherfolk Fear Looming Threat of Corporatisation and Livelihood Issues

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