तमिलनाडु चुनाव: चेन्नई ‘स्मार्ट सिटी‘ अमीरों और कुलीनों के लिए एक परियोजना

चेन्नई देश का चैथा सबसे बड़ा शहरी समूह है और यहां तमिलनाडु के 22 प्रतिशत घर हैं। लेकिन इसका भौगोलिक आकार राज्य का केवल 4 प्रतिशत है। 2019 में, इसके औद्योगिकीकरण तथा शहरीकरण प्लान के एक हिस्से के रूप में, अन्नाद्रमुक सरकार ने चेन्नई मेट्रोपोलिस के आकार को 1,189 वर्ग किमी से बढ़ाकर 8,878 वर्ग किमी करने का प्रस्ताव रखा।
राज्य सरकार ने सिटी विस्तार योजनाओं के एक हिस्से के रूप में तीन-कांचीपुरम, तिरुवलुर और वेल्लोर जिलों में 1,710 गांवों को मिला लेने की योजना की एक प्रारूप अधिसूचना प्रकाशित की।
इस फैसले का विभिन्न वर्गों, खासकर, किसानों की तरफ से विरोध किया गया जो सिटी के निर्माण के लिए अपनी जमीन देना नहीं चाहते थे। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने बताया कि जल निकायों द्वारा और अतिक्रमण किए जाने तथा मार्चों के कारण यह योजना पारिस्थितिकी को काफी नुकसान पहुंचाएगी।
एक शहरी विकास विशेषज्ञ केपी सुब्रमनियन, जिन्होंने अधिसूचना को निरस्त करने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, ने तर्क दिया कि जब चेन्नई मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथारिटी (सीएमडीए) वर्तमान क्षेत्र के भीतर अपनी सांविधिक कर्तव्यों का निर्वहन करने में अक्षम है, तो इसके लिए प्रस्तावित सात गुना अधिक विस्तार में अपने कर्तव्यों को पूरा करना नामुमकिन है।
यह देखते हुए कि किफायती आवास, साफ तथा पीने का सुलभ पानी और समुचित सफाई सुविधाएं अभी भी चेन्नई में ज्यादातर लोगों को उपलब्ध नहीं है, यह एक उचित तर्क है। मछली पालन वाले गांवों का अतिक्रमण, टूटी सड़कें, घटिया ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, अविकसित सीवेज ट्रीटमेंट और सीमित बिजली शहर में मौजूद अन्य चिंताएं हैं।
रियल एस्टेट बूम और भूमि अतिक्रमण
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के लिए रास्ता प्रशस्त करते हुए, भारत सरकार ने 2005 में रियल एस्टेट के बूम की शुरुआम की। आईटी कारीडोर के निर्माण से शुरुआत करके चेन्नई ने भारी निवेश के लिए अपने दरवाजे खोल दिये और देखते ही देखते इससे रियल एस्टेट में बूम आ गया और जमीन की कीमतें बढ़ गईं।
मद्रास इंस्टीच्यूट आफ डेवलपमेंट स्टडीज के फैकल्टी मेंबर शहरी मानव विज्ञानी करेन कोएल्हो, जिनका अध्ययन स्थल चेन्नई है, ने कहा, ‘ हमने जमीन की कीमतों को गरीबों की पहुंच से बिल्कुल दूर कर दिया है। जमीन के मूल्य, और जमीन के काल्पनिक मूल्य के आधार पर, जमीन बेची जा रही है। सरकार ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की है, वास्तव में उसने इससे लाभ ही दठाया है। ‘
उन्होंने यह भी कहा कि, ‘ हमारे पास एक जनादेश है कि कोई भी बड़ी परियोजना, कोई भी परियोजना अगर वह एक हेक्टेयर से अधिक है तो 10 से 15 प्रतिशत हिस्सा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों या निम्न आय समूह के लिए निर्धारित कर दिया जाना चाहिए। इसे कभी भी अमल में नहीं लाया गया है। सीडीएमए लोगों को इससे छूट दे रहा है। ‘
रियल एस्टेट बूम के साथ घरों के लिए जमीन की मांग के कारण नगर के भीतर बड़े पैमाने पर जल निकायों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है।
चार दशक तक पल्लवरम म्युनिस्पल्टी में रेजीडेंट वेलफेयर एसोएिसशनों के फेडेरेशन के अध्यक्ष रह चुके वी संथनम बताते हैं कि, ‘ द्रविड़ पार्टियों ने जल निकायों और जमीन अतिक्रमण को बढ़ावा दिया। यह पूरी तरह वोट बैंक की राजनीति है। द्रमुक और अन्नाद्रमुक एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। न तो हाईवेज डिपार्टमेंट और न ही नगरपालिका ने इसे रोका। ‘ फेडेरेशन का गठन एक सौ से अधिक पड़ोसों को एक संगठन के तहत लाने और संयुक्त रूप से इन मुद्वों को प्राधिकारियों के समक्ष उठाने के लिए किया गया था।
संथनम ने यह दावा करते हुए कि वह सिविक मुद्वों पर 2000 से अधिक याचिकाएं दायर कर चुके हैं और अभी तक कुछ नहीं हुआ है, कहा कि ‘ सरकारी मशीनरी सुस्त है और भ्रष्टाचार में सराबोर है। मैं अब 83 वर्ष का हो चुका हूं, फिर भी मुद्दे उठाता रहता हूं। 2003 में गुंडों ने भ्रष्टाचार का खुलासा करने पर मेरे ऊपर हमला भी किया था। ‘ 2019 तक चेन्नई में सरकारी संपत्तियों पर अतिक्रमण का प्रतिशत 23.9 था।
झुग्गियों को साफ करने के नाम पर अल्पसंख्यक बस्तियां
देश में पहले स्लम क्लियरेंस बोर्ड (टीएनएससीबी) की स्थापना तमिलनाडु में 1971 में की गई थी। बोर्ड ने स्लम्स की पहचान की और या तो नए, स्थायी घरों का निर्माण किया या झुग्गियों में जीवन स्तर में सुधार किया।
कोयेल्हो ने कहा, ‘ 1980 तथा 1990 के दशकों में घरों के माडेल ज्यादा समावेशी थे क्योंकि इसने गरीबों को शहरों में जगह दी। ‘ जब रियल एस्टेट बूम के कारण निम्न आय वर्ग के लिए शहरों में घर उनकी पहुंच से बाहर हो गया, झुग्गियों के पुनर्वास का विचार सामने आया। उन्होंने कहा कि ‘सबों के लिए घर के कार्यान्वयन‘ का एकमात्र माध्यम गरीबों को शहर की सीमा से दूर बसा देना था।
इसने झुग्गीवासियों को उनकी आजीविका के माध्यमों से दूर कर दिया। ये पुनर्वास बस्तियां परिवहन सुविधाओं के साथ भी समुचित रूप से नहीं जुड़ी हैं। उन्हें पानी और गंदगी की भीषण समस्याओं से भी जूझना पड़ता है
कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया (मार्क्सवादी) के राज्य सचिवालय के सदस्य गुनाशेखरन जो शहरी संकट पर लेख लिखते रहे हैं, ने न्यूजक्लिक को बताया ‘ हालांकि निम्न मध्य वर्ग, गरीबों तथा झोंपड़ियों में रहने वालों के लिए कई हाउसिंग स्कीम हैं, इसके लाभार्थी कम हैं, यह आबादी के 10 प्रतिशत को भी कवर नहीं करता। ‘ उन्होंने कहा कि‘ सत्तारूढ़ वर्ग द्वारा कई वादे किए जाते हैं, लेकिन शहरी आवासहीनता की संख्या खासकर, पिछले 10 सालों में बढ़ी है। ‘
उन्होंने कहा कि ‘ शहरी विकास कांट्रैक्ट और कमीशन आधार पर हुआ है। राजमार्ग बढ़ रहे हैं जो लोगों के एक विशेष कुलीन वर्ग को टार्गेट करते हैं। दूसरी तरफ, झोंपड़ियों की संख्या रोजाना बढ़ रही है, शहरों में सीमांत वर्गों में इजाफा हो रहा है तथा विकास का रुख उनकी तरफ नहीं है। ‘
अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकी विभाग के सूत्रों ने बताया कि 2015-16 में कंस्ट्रक्शन के लिए 4,667 हाउसिंग प्लान को मंजूरी दी गई और सभी को निजी क्षेत्र को आउटसोर्स कर दिया गया। लेकिन, केवल 40 प्रतिशत भवन निर्माण ही पूरा हो पाया है।
घटते जल निकाय
चेन्नई शहर को बाढ़ और सूखा दोनों का सामना करना पड़ता है और यह कुप्रबंधित शहरीकरण तथा अतिक्रमणों के कारण अपने जल संसाधनों को लगातार खोता जा रहा है। 2005 के भीषण बाढ़ के बाद तथा पड़ोसी स्थानों पर हर साल आने वाली बाढ़ और गर्मियों में सूखे के कारण जल निकाय लगातार बर्बाद हो रहे हैं।
इमेज सोर्स: न्यूजक्लिक फोटो आर्टिकल
संथानम ने चेन्नई में एक बड़ी समस्या के रूप में पीने के स्वच्छ पानी पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘ हमारे पास जल निकाय हैं, पल्लवरम में छह से अधिक जल निकाय थे। समय गुजरने के साथ, ये नष्ट होते गए और कई गायब हो गए। नगर पालिका जो जल कायाकल्प के लिए उत्तरदायी है, अपना काम नहीं कर रहा है। अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम (यूजीडी) होने के बावजूद, सीवेज का पानी नालियों में जा रहा है।
पानी तथा पीने के स्वच्छ जल की मांग को पूरा करने के लिए लगभग दो दशक पहले तमिलनाडु में एक टैंकर लारी संस्कृति पैदा हुई थी। एक वेलफेयर एसोसिएशन के नेता बलरामन ने कहा, ‘ पीने के पानी का मुद्दा हर साल उठाया जाता है। गर्मी आने पर, अगले 10 दिनों में पीने के पानी की लारियां आने लगेंगी। लोग 10,000 लीटर के लिए 1,500 रुपये अदा करते हैं, हालांकि सभी लोगों के पास पाइप्ड वाटर कनेक्शन है।‘
पिछले दशक में, पीने के स्वच्छ पानी की आवश्यकता पूरी करने के लिए लोगों ने वाटर कैन खरीदना और वाटर फिल्टर का उपयोग करना आरंभ कर दिया। जो लोग ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं, वे गली के नलों तथा पंपों से निम्न गुणवत्ता वाला पानी ही पी रहे हैं।
गुनाशेखरन ने कहा, ‘ हालांकि सरकार ने हाल में पीने के पानी की कुछ परियोजनाएं आरंभ की हैं, पर इससे शहरी जल संकट खत्म नहीं हुआ है। ‘
'विभाजक‘ स्मार्ट सिटी परियोजना में तमिलनाडु अव्वल
तमिलनाडु को सबसे अधिक स्मार्ट सिटी परियोजनाएं मंजूर की गई हैं और यह स्मार्ट सिटी मिशन के तहत सबसे ज्यादा कामों को पूरे करने की सूची में भी सबसे ऊपर है। तमिलनाडु ने 1168 करोड़ रुपये के बराबर के 414 कार्य पूरे किए हैं।
घरों की कमी के बड़े मुद्वे तथा अन्य मूलभूत आवश्यकताओं को नजरअंदाज करते हुए केंद्र सरकार ने घोषणा की कि वह 100 स्मार्ट सिटीज का निर्माण करेगी और इसके लिए 7,000 करोड़ रुपये आवंटित किए।
गुनाशेखरन ने कहा, ‘ सत्तारूढ़ वर्ग स्वार्थी होते हैं। वे अधिकांश लोगों की परवाह नहीं करते। वे लाभ की मंशा और कारपोरेट लूट के लिए काम करते हैं। स्मार्ट सिटी परियोजना का टार्गेट कुलीन मध्य वर्ग है। चेन्नई में टी नगर जैसे पड़ोस के क्षेत्रों में, सड़क किनारे की दुकानों को विस्तार के लिए खाली करा लिया गया है। आटो ड्राइवर इस परियोजना से काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं। ‘
मद्रास इंस्टीच्यूट आफ डेवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर एम विजयभास्कर ने कहा, ‘ जिस प्रकार स्मार्ट सिटीज को डिजायन किया गया है और उन्हें लागू किया जा रहा है, वह एक समान नहीं है। वे बड़ी संरचना....नवउदार संरचना में सन्निहित कुछ करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके भीतर स्मार्ट सिटीज तथा बुनियादी ढांचे की योजना बनाई जा रही है। ‘
बहरहाल, चेन्नई में शहरी अलगाव की संस्कृति ‘स्मार्ट सिटी‘ की अवधारणा आने से पहले ही आरंभ हो चुकी थी। कोयल्हो कहती हैं, ‘झुग्गियों में रहने वाले परिवारों को हटाने तथा उपनगरों में उन्हें बसाने के जरिये हमने विश्व स्तरीय नगरों, जो देखने में सुंदर और आकर्षक लगें, का निर्माण करने के उद्देश्य से और अधिक अलगाव पैदा कर दिया है।’
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
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