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तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 

प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन दिवस पर भी हुआ करेंगी। 
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तिरुपुर में ग्राम सभा की एक बैठक। फ़ोटो- सीएससी, तिरपुर

स्थानीय निकायों और उनके सशक्तिकरण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए काम करने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं ने तमिलनाडु सरकार के साल में छह बार ग्राम सभा की बैठकें आयोजित करने के फैसले का स्वागत किया है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन दिवस पर भी हुआ करेंगी। स्टालिन ने ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं को लागू करने में मदद करने के लिए ग्राम सचिवालय स्थापित करने और ग्रामीण स्थानीय निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए सभा में भाग लेने के वर्तमान शुल्क में भी बढ़ोतरी की घोषणा की। 

हालांकि 2007 से द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) सरकार द्वारा 1 नवंबर को हमेशा स्थानीय शासन दिवस के रूप में मनाया जाता था, लेकिन ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) के सत्ता में आने पर यह प्रथा बंद कर दी गई थी।

इससे पहले वर्ष में, द्रमुक सरकार ने कोविड-19 की चिंताओं का हवाला देते हुए 26 जनवरी को ग्राम सभा की बैठकों को रद्द कर दिया था। विपक्ष में रहते हुए ग्राम सभाओं के महत्त्व पर जोर देने के लिए द्रमुक को सरकार के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा था लेकिन सत्ता संभालने के बाद पार्टी ने गणतंत्र दिवस की बैठकों को रद्द कर दिया। 

विपक्ष में रहते हुए, द्रमुक ने 2020 में गांधी जयंती पर अन्नाद्रमुक सरकार की ग्राम सभा की बैठकों को रद्द करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। पार्टी ने अपने चुनाव अभियान के तहत जिलों के गांवों में लोगों को जुटाकर सभाएं भी कीं।

एक स्वागत योग्य कदम

मजबूत स्थानीय प्रशासन बनाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने इस साल रिपब्लिक डे पर ग्राम सभाओं की बैठकें रद्द करने के लिए द्रमुक सरकार की आलोचना की थी। 

एकता परिषद के राज्य संयोजक थानराज राधेश्याम ने न्यूजक्लिक को बताया, "कोविड-19 जब चरम पर था तो, स्टालिन ने मक्कलई थीडी में ग्राम सभा आयोजित की थी। लेकिन उन्होंने 26 जनवरी को (जब कोरोना की लहर उतार पर थी) तो महामारी का हवाला देते हुए बैठकों को रद्द कर दिया, जिसे अच्छा नहीं माना गया। ऐसे में सरकार की ताजा घोषणा एक स्वागतयोग्य कदम है। लोकतंत्र में विचार-विमर्श महत्त्वपूर्ण है।”

निर्णय का स्वागत करते हुए, एक स्वायत्तशासी संगठन थन्नात्ची के महासचिव नंदकुमार शिव ने कहा, “एक ग्राम सभा एक पंचायत अध्यक्ष द्वारा वर्ष के किसी भी समय बुलाई जा सकती है। सरकार द्वारा तय किए गए दिनों पर बैठकें आयोजित करना अपरिहार्य हैं। यह स्थानीय शासन को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।” थन्नात्ची एक संगठन है, जो स्थानीय निकाय शासन के बारे में जागरूकता पैदा करने की दिशा में काम कर रहा है। 

जागरूकता की जरूरत

कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की घोषणाएं पर्याप्त नहीं हैं और राज्य सरकार को ग्राम सभाओं की भूमिका से ग्रामीणों, पंचायत सदस्यों और अधिकारियों को अवगत कराना चाहिए। शिव ने आगे कहा, “ग्राम सभा बैठकों के अनिवार्य दिनों की संख्या बढ़ाना एक अच्छा कदम है लेकिन ग्राम सभाओं को कामकाजी और पारदर्शी बनाना महत्त्वपूर्ण है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि सभाओं में पारित किए गए संकल्पों को अधिकारियों द्वारा गंभीरता से लिया जाए और उन्हें बिना देरी किए कार्यान्वित किया जाए।”

राधाई ने बताया कि कैसे जागरूकता की कमी के कारण स्थानीय निकायों के लिए यह कहना आम हो गया है कि एक सभा "कोरम की कमी के कारण" आयोजित नहीं की गई थी। उन्होंने कहा कि "यह बात नहीं होनी चाहिए। पंचायतों को जागरूक करना चाहिए। ग्राम सभा की बैठक के लिए कोरम पूर्ति के लिए सदस्यों की कुल संख्या की एक तिहाई मौजूदगी होनी ही चाहिए।”

कोयंबटूर के परम्बिकुलम के पास एक कार्यकर्ता और कदार जनजाति के सदस्य थंगासामी ने कहा, “प्रोटोकॉल के अनुसार, अधिकारियों को ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना चाहिए। लेकिन वन और राजस्व विभाग के अधिकारी हमारे बार-बार अनुरोध के बावजूद बैठकों में भाग नहीं लेते।”

ग्राम सभाओं के बारे में जागरूकता के महत्त्व को समझाते हुए, फिल्म निर्देशक लेनिन भारती ने न्यूजक्लिक को बताया, “मैं एक शूट के लिए तिरुवन्नामलाई गया था। पालियापट्टू गांव के किसान एसआईपीसीओटी आईटी पार्क स्थापित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा अपनी भूमि के विनियोग का विरोध कर रहे हैं। दो ग्राम सभाओं ने अपनी जमीन के विनियोग के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं क्योंकि वे अपनी शक्ति को समझते हैं और इसका उपयोग कर रहे हैं।”

73वें संविधान संशोधन ने राज्य सरकारों को आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया, जिससे ग्राम पंचायतों को औपचारिक रूप दिया जा सके और उन्हें स्व-शासन की इकाइयों के रूप में संचालित करने में मदद मिल सके।

वनों के गांव 

कई गांवों में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं, जहां कार्यकर्ताओं की देखरेख में ग्राम सभाओं का आयोजन नियमित रूप से किया जाता है और अधिकारियों को इस बारें में लिए गए निर्णयों से अवगत कराया जाता है। दिनाकरन पांडियन डिंडीगुल जिले, कोडईकनाल तालुक, पन्नईकाडु पंचायत में एक ऐसे कार्यकर्ता हैं।

पन्नईकाडु पंचायत में, ग्राम सभा की बैठक महीने में एक बार होती है, वह निर्णय लेती है और अधिकारियों को इनके बारे में सूचित करती है। इस क्षेत्र में वनवासी समुदाय वन उपज और भूमि पर अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। 

“हमें ग्राम सभाओं के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। दिनाकरन पांडियन ने हमें इसे समझाया। हम पिछले पांच वर्षों से नियमित रूप से बैठक कर रहे हैं, निर्णय ले रहे हैं और उनके बारे में सरकार को अवगत करा रहे हैं। हमने अब तक लगभग 30 ज्ञापन प्रस्तुत किए हैं,”मच्चूर गांव, पन्नईकाडु के मुरुगैया ने कहा, “लेकिन हमें सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।”

पंचायत के अध्यक्ष दुरई राज ने कहा, "यह कब्जा की गई जमीन नहीं है। यह हमें तत्कालीन सरकार द्वारा आवंटित की गई थी। हमें अब इसे खाली करने के लिए नोटिस पर नोटिस दिए जा रहे हैं।” ग्राम सभाओं के महत्त्व को समझने वाले मुरुगैया ने कहा, “अधिकारी ग्राम सभा के फैसलों को दरकिनार करके काम नहीं कर सकते। हमारे पास आधिकारिक अधिकार हैं और हम लड़ाई जीतने के लिए आश्वस्त हैं।”

माचूर के रहने वाले राधाकृष्णन ने कहा, “करौंदा, सरसों आदि की फसल हम काटते हैं लेकिन बिचौलियों को भुगतान करने के बाद उन्हें वन विभाग के माध्यम से बेचा जाता है। हमें लगभग कोई लाभ नहीं मिल रहा है। अब हमने ग्राम सभा के माध्यम से अपने उत्पाद सीधे बाजार में बेचने का निर्णय लिया है। पहले हम जंगल में वन विभाग से डरकर छोटे पैमाने पर खेती करते थे। हम शुक्रगुजार हैं ग्राम सभा के जिसके चलते हम वन अधिकार अधिनियम में उल्लिखित अपने अधिकारों के बारे में जानते हैं।”

पर्वतीय क्षेत्रों में जनसभाओं में उपस्थित होना एक समस्या है। राधाई ने कहा, “वलपरई पंचायत में 15 गांव शामिल हैं, पर वे सब मुख्य क्षेत्र से बहुत दूर हैं, जहां ग्राम सभा की बैठकें आयोजित की जाती हैं। इसलिए ग्रामीणों को यहां तक पहुंचना मुश्किल होता है। हम चाहते हैं कि बैठकें अधिकाधिक व्यापक भागीदारी के लिए सभाएं बारी-बारी से अलग-अलग गांवों में आयोजित की जाएं।”

आदिवासी और गैर आदिवासी गांवों की गांव सभाओं के संबंध में, कोयंबटूर के पोलाची शहर में स्थित एकता परिषद के एक कार्यकर्ता महेंद्र प्रभु ने कहा, “अगर आदिवासी पांच प्रस्ताव रखते हैं, तो उनमें से केवल एक ही का क्रियान्वयन किया जा सकता है। वे बात नहीं कर सकते और इसलिए वे किनारे कर दिए गए हैं।”

तमिलनाडु में लगभग 12,524 ग्राम पंचायतें हैं और एक ग्राम सभा एक ग्राम पंचायत का हिस्सा है, जिसमें इसके सभी निवासी होते हैं।

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित हुए इस आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:- 

Tamil Nadu Gram Sabhas to Meet 6 Times Annually, Activists Demand Awareness

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