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दूरसंचार विधेयक : निगरानी का स्वर्ग और दूरसंचार इजारेदारियों के लिए मुंहमांगी मुराद

टेलीकॉम बिल टेलीकॉम क्षेत्र की निगरानी को पीछे ले जाने की पहलकदमी है। इस बिल के जरिए सरकार हर तरीके से नागरिकों का सर्विलांस करने का इरादा पेश कर रही है। 
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: DNA India

सरकार ने पिछले ही दिनों जनता की टिप्पणियों के लिए, दूरसंचार विधेयक-2022 का मसौदा जारी किया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने वह निजी डाटा संरक्षण विधेयक वापस ले लिया है, जिसे वह पांच साल से तैयार ही कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट के पुट्टा स्वामी केस में निजता को एक मौलिक अधिकार घोषित करने के बाद, इस विधेयक के जरिए नागरिकों के निजता के अधिकारों के लिए एक खाका मुहैया कराया जाना था।

बहरहाल, इस संदर्भ में नागरिकों के अधिकार तो अब भी अपरिभाषित ही बने हुए हैं। लेकिन, ये नागरिक क्या कर सकते हैं, क्या देख सकते हैं या क्या सुन सकते हैं, इसके मामले में सरकार ने अपनी शक्तियों का भारी विस्तार कर लिया है?

केंद्र की निगरानी के विस्तार का विधेयक

दूरसंचार विधेयक का ताजा मसौदा नागरिकों तथा सेवा प्रदाताओं पर सरकार की शक्तियों को सिर्फ बढ़ाता ही नहीं है इसके साथ ही साथ भारत के दूरसंचार नियमन प्राधिकार (टीआरएआइ) और टेलीकॉम डिस्प्यूट सैटलमेंट एंड अपीलेट ट्रिब्यूनल (टीडीएसएटी) की भूमिका को, उल्लेखनीय तरीके से घटाता भी है।

यह विधेयक, 1885 के इंडियन टेलीग्राफ कानून की जगह लेने जा रहा है और यह नागरिकों पर केंद्र सरकार की शक्तियों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के मोदी सरकार के आम रुझान की ही निरंतरता में है। लेकिन इस बार कम से कम इतनी गनीमत रही है कि इस विधेयक को उस प्रकार से जबरन संसद पर नहीं थोपा गया है, जिस तरह कृषि विधेयकों को थोपा गया था, जिसका नतीजा किसानों के एक देशव्यापी आंदोलन के रूप मेें सामने आया था।

इस विधेयक के पीछे मोदी सरकार की मंशा यही लगती है कि अपनी पुलिसगीरी की शक्तियों का विस्तार किया जाए। एक निगरानी का ढांचा खड़ा किया जाए। इसके जरिए सभी सेवा प्रदाताओं को अपना उपभोक्ता डाटा सरकार को मुहैया कराने के लिए बाध्य किया जाएगा। इससे केंद्र सरकार को ऐसे नियम भी सूत्रबद्घ करने का अधिकार मिल जाएगा, जो नागरिकों के लिए सिग्नल या टेलीग्राम जैसे एंड टु एंड एन्क्रिप्टिंग वाले मैसेजिंग एप्स का उपयोग करना असंभव ही बना देगा। नये प्रावधानों के अंतर्गत ऐसे सभी एप्स को ओटीटी सेवाएं माना जाएगा, जिन्हें संचालित करने के लिए औपचारिक लाइसेंसों की जरूरत होगी।

दूरसंचार से ओटीटी तक पुनर्परिभाषा का खेल

इन नये प्रावधानों का एक और नतीजा यह होगा कि इंटरनैट का उपयोग कर के नयी या नवोन्मेषी सेवाओं का विकास करना और ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। इसका अर्थ होगा, वर्तमान इजारेदारियों को और मजबूत करना। इस तरह, सिर्फ बड़ी कंपनियों के लिए ही इसका मौका रह जाएगा कि इंटरनैट का उपयोग कर किसी भी प्रकार की वाणिज्यिक सेवाएं मुहैया कराएं।

 विधेयक का मसौदा, ऐसी सभी सेवाओं को ओवर द टॉप (ओटीटी) सेवाओं के रूप में परिभाषित करता है, जिनके लिए उपयुक्त लाइसेंसों की जरूरत होगी।

आइए, अब इस पर एक नजर डाल लें कि यह विधेयक भारतीय दूरसंचार नियमन प्राधिकरण (टीआरएआइ-ट्राई) के साथ क्या करता है? ट्राई की स्थापना, दूरसंचार सेवाओं के स्वतंत्र नियमनकर्ता की भूमिका अदा करने के लिए और इस क्षेत्र के नीतियां सूत्रबद्घ करने के लिए भी की गयी थी। 

लेकिन, प्रस्तावित नयी व्यवस्था में व्यावहारिक मानों में उक्त दोनों भूमिकाएं सरकार के दूरसंचर विभाग (डीओटी) द्वारा संभाल ली जाएंगी, जबकि ट्राई काम सिर्फ सरकार के फरमानों को पूरा करना होगा। यहां तक कि दूरसंचार सेवाओं के लिए दरें तय करने का काम भी, जो अब तक ट्राई का एक महत्वपूर्ण काम हुआ करता था, दूरसंचार विभाग के नियंत्रण के आधीन हो जाने वाला है क्योंकि इस मामले में भी वह उन्हीं शक्तियों का उपयोग कर पाएगा, जो नये दूरसंचार कानून के अंतर्गत उसके लिए छोड़ी जाएंगी।

पुट्टा स्वामी प्रकरण में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया था कि निजता, एक मौलिक अधिकार है और निजता में किसी भी अतिक्रमण की इजाजत उसी सूरत में दी जाएगी जब यह कानूनी तरीके से हो या कानून के अनुसार हो, जिसके पीछे एक वैध लक्ष्य हो और यह अनुपात मेें हो। लक्ष्यों तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए अपनाए जाने वाले साधनों के बीच, एक तार्किक रिश्ता होना चाहिए। दुर्भाग्य से डाटा संरक्षण कानून, जो पांच साल से बन ही रहा है, अब फिर से लटक गया है।

 हालांकि, पुत्तास्वामी फैसले में यह साफ कर दिया गया है कि नागरिकों की आम निगरानी को कानूनन उचित नहीं माना जा सकता है। लेकिन समस्या यह है कि एक डाटा संरक्षण कानून के बिना, निजता के अपने अधिकार को लागू कराने के लिए कोई भी नागरिक शायद ही कुछ कर सकता है। 

आज स्थिति यह है कि सरकार ने जिन 10 एजेंसियों को नागरिकों की निगरानी करने के लिए अधिकृत एजेंसियों के रूप में अनुसूचित किया है, उनमें से कोई भी एजेंसी पर्याप्त अंकुशों या नियंत्रणों के बिना ही ऐसी निगरानी कर सकती है। जैसा कि हम आगे देखेंगे, दूरसंचार विधेयक का यह मसौदा तो इंटरनैट का प्रयोग कर के होने वाले नागरिकों के हर प्रकार के संचार को दूरसंचार सेवा के रूप में परिभाषित करने के जरिए, निगरानी की इन शक्तियों का और विस्तार ही करता है।

इंटरनैट आधारित तमाम सेवाएं ओटीटी मानी जाएंगी

दूरसंचार विधेयक के इस मसौदे के प्रमुख प्रावधानों में से एक है, ओवर द टॉप सर्विसेज की संज्ञा का उपयोग, जिसे दूरसंचार तथा डाटा की दुनिया की शब्दावली में ओटीटी सेवाएं कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि अब एक छोर पर नैटफ्लिक्स, हॉटस्टार तथा एमेजोन से नुक्कड़ के पंसारी तक, जो किसी एप का सहारा लेकर, अपने ग्राहकों को उनकी छोटी-मोटी जरूरत का सामान मुहैया कराता हो, सब को ही समान रूप से ओटीटी सेवा माना जाएगा, जिसके लिए सेवा को रजिस्टर कराने तथा उसके लिए लाइसेंस हासिल करने की जरूरत होगी।

लेकिन, इंटरनेट का उपयोग करने वाली सभी सेवाओं को ओटीटी सेवा बनाए जाने की दो समस्याएं हैं। पहली तो यही कि हम सिर्फ वॉइस और डॉटा सेवाओं को ही दूरसंचार की श्रेणी में आने वाली सेवा के रूप में मान्यता देते हैं। यानी इसमें या तो दूरसंचार तारों के जरिए गुजरने वाला प्रत्यक्ष ध्वनि संप्रेषण आता है या फिर इंटरनैट के जरिए डाटा संप्रेषण, जिसमें जो भी सामग्री संप्रेषित होती है, उसे प्रेषक के सिरे से डाटा के पैकेटों में तोड़ा जाता है और फिर प्रेषण के गंतव्य पर दोबारा जोडक़र ध्वनि, चित्र या डाटा में तब्दील कर दिया जाता है। ओवर द टॉप सर्विसेज जैसी सरवसेम टू संज्ञा का प्रयोग, डाटा के क्षेत्र में पड़ता है और यह दूरसंचार के क्षेत्र में आता ही नहीं है, जिसका नियमन दूरसंचार विभाग कर सकता हो।

भौतिक या वास्तविक दुनिया में ऐसी अनेक सेवाएं मुहैया करायी जाती हैं और उनके नियमन की व्यवस्थाएं भी हैं। मिसाल के तौर पर चिकित्सकीय सेवाएं, केंद्र व राज्य दोनों के स्तर पर स्वास्थ्य मंत्रालयों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। इन सेवाओं को म्यूनिसिपल प्राधिकारों द्वारा भी नियंत्रित किया जा सकता है। इसी प्रकार, शिक्षा, व्यापार आदि, सभी अपने-अपने क्षेत्रों के लिए विभिन्न नियमनों के अंगर्तत आते हैं। इसलिए, ऐसी सभी सेवाओं को ओटीटी सेवाएं करार दे देना और उन्हें केंद्र सरकार के नियंत्रण की छतरी के नीचे लाया जाना, केंद्र सरकार द्वारा भी और दूरसंचार विभाग द्वारा भी, अपने अधिकार क्षेत्र से आगे जाकर बहुत भारी अतिक्रमण करना है।

दूरसंचार इजारेदारियों को और मजबूत किया जाएगा

यदि हम सेवाओं को दूरसंचार के नजरिए से देखें तो हमारे पास सिर्फ दो प्रमुख सेवाएं दिखाई देंगी--टेलीफोन सेवा और इंटरनैट सेवाएं। इन सेवाओं को डाटा या वॉइस सेवा के रूप में परिभाषित करने में, ये सेवाएं मुहैया कराने वाले बुनियादी ढांचे, जैसे तांबे के तार, फाइबर ऑप्टिक या वायरलैस सेवा उपकरण का, कोई महत्व नहीं है। 

अब पूछा जा सकता है कि हम एक टेलीफोन कॉल और इंटरनैट के माध्यम से कॉल के बीच अंतर क्यों करते हैं, जबकि दोनों से सूरत में हमें ध्वनि संचार मिलता है? इस विभाजन का संबंध, यह ध्वनि संप्रेषण किस तरह से होता है, इससे है--यह ध्वनि संप्रेषण सीधे वायरलैस कनैक्ïशन या तार की लाइन के कनैक्शन के जरिए हो रहा है या फिर संप्रेषण के क्रम में ध्वनि को डॉटा में तथा फिर डॉटा के ध्वनि में परिवर्तित किया जाता है? जहां तक दूरसंचार सेवा प्रदाताओं का सवाल है, वे दो तरह की सेवाएं ही मुहैया कराते हैं। डॉटा पैकेटों के अंदर क्या होता है, यह तो दूरसंचार के क्षेत्र में आता ही नहीं है।

आइए, हम कुछ उदाहरणों पर नजर डाल लें। दूरसंचार विधेयक के मसौदे में जिस नयी व्यवस्था का प्रस्ताव किया जा रहा है, उसमें मिसाल के तौर पर इंटरनैट पर परामर्श देने वाले डॉक्टर को, इटरनैट के जरिए आर्डर लेने वाले किराने के छोटे दूकानदार को या इंटरनैट के जरिए खाने का ऑर्डर ले रहे रेस्टोरेंट को या तो ओटीटी सेवा प्रदाता के रूप में अपना रजिस्टे्रेशन कराना पड़ेगा या फिर किसी प्रमुख इजारेदाराना सेवा प्रदाता साथ जुड़ जाना होगा और बदले में अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा ऐसी इजारेदारी के हवाले करना होगा। 

नयी व्यवस्था के अंतर्गत कोई नयी नवोन्मेषी सेवा भी शुरू नहीं की जा सकेगी क्योंकि उसके लिए पहले से ओटीटी सेवा के रूप में लाइसेंस हासिल करने की शर्त लगी होगी। इस तरह दूरसंचार के क्षेत्र की वर्तमान इजारेदारियों की ताकत को ही मजबूत किया जा रहा होगा।

नैट न्यूट्रेलिटी से पीछे हटने का खेल

दूरसंचार सेवाओं का वाइस तथा डाटा संप्रेषण तक सीमित रखा जाना भी अकारण नहीं है। ऐसा नहीं होता तो डाटा संप्रेषण के ताने-बाने पर अपनी इजारेदाराना ताकत के बल पर, दूरसंचार कंपनियों ने इंटरनैट से उभरने वाले नये सेवा प्रदाताओं जैसे ईमेल और जानकारियां देने के लिए बुलेटिन बोर्डों, समाचार सेवाओं या ऐसी सेवाएं हासिल करने वालों को अपना बंधक ही बनाकर रख लिया होता। इसीलिए तो, इंटरनैट की तटस्थता या नैट न्यूट्रेलिटी के नियम-कानून बनाए गए हैं। 

हमारे पाठकों को याद होगा कि फेसबुक और उसके मुफ्त बेसिक सेवा के प्रस्ताव के खिलाफ इसी की तो लड़ाई थी। फेसबुक द्वारा चंद दूरसंचार ऑपरेटरों गठजोड़ कर के, यह छोटा सा निजी इंटरनैट मुहैया कराया जाना था, जबकि दिखाया यह जा रहा था कि यही इंटरनैट है। इसी के खिलाफ तो भारत के इंटरनैट प्रयोक्ताओं ने लड़ाई लड़ी थी और इसी को ट्राई ने नैट न्यूट्रैलिटी के सिद्घांतों के आधार पर ठुकराया था और इस तरह फेसबुक को (जो अब मैटा हो गया है) अपनी अब तक की सबसे बड़ी शिकस्त मिली थी।

डाटा पर आधारित सभी सेवाओं को ओटीटी सेवाओं के रूप में परिभाषित करना, न सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा अपने नियमन क्षेत्र के और फैलाए जाने की ओर ले जाएगा बल्कि इंटरनैट सेवा प्रदाताओं को, दूसरे सभी सेवा प्रदाताओं पर अपनी इजारेदाराना ताकत को आजमाने का भी मौका देगा और यह नयी सेवाओं को उभरने से ही रोकने का काम करेगा।

2015 में ट्राई ने ओटीटी सेवाओं पर एक मसौदा परिपत्र सर्कुलेट किया था। विभिन्न संगठनों ने, जिनमें दिल्ली साइंस फोरम तथा नॉलेज कॉमन्स शामिल हैं, जिनके साथ मैं जुड़ा हुआ हूं, विस्तार से इसके कारण बताए थे क्यों इस तरह का कदम सही नहीं होगा। हमारा यह तर्क था कि डॉटा सेवाओं को ओटीटी सेवाओं के रूप में अलगाने की किसी भी कोशिश का, इंटरनैट आधारित सेवाओं के छोटे तथा नये खिलाडिय़ों पर जड़ताकारी प्रभाव पड़ेगा, जो नवोन्मेषीपन को उल्लेखनीय रूप से कुंठित करेगा। इस तरह की आलोचनाओं के सामने ट्राई ने उक्त प्रस्ताव को और आगे नहीं बढ़ाया। यह दिलचस्प है कि वही सूत्रीकरण अब 7 साल बाद फिर से लौट आये हैं, प्रस्तावित नये कानून के मसौदे का हिस्सा बनकर।

सरकार की निगरानी और इजारेदारों की ताकत बढ़ेगी

जब कोई सरकार कोई नयी पहल करती है, पूछने वाली बात यह होती है कि इससे किसे फायदा होगा? या फिर जैसा रहस्य कथाओं में पूछा जाता है--फायदे में कौन? जाहिर है कि इस सब की एक लाभार्थी तो केंद्र सरकार ही है, जो अपनी लाइसेंसिंग तथा निगरानी की शक्तियों, दोनों का विस्तार करना चाहेगी।

अन्य लाभार्थी होंगे देश के बड़े दूरसंचार ऑपरेटर जैसे रिलायंस जियो, एअरटेल तथा वोडाफोन आइडिया, जो प्रमुख इंटरनैट सेवा प्रदाता भी हैं। वे इसके लिए जोर लगाते रहे हैं कि कोई भी प्रतिस्पर्धी, खासतौर पर कोई वॉइस तथा मैसेेजिंग एप्लीकेशन, उनकी इजारेदारी के दायरे में घुसपैठ न कर सके। क्या इसी तरह से नैट न्यूट्रैलिटी का त्याग किया जाएगा और प्रस्तावित नये कानून के तहत जिन्हें ओटीटी सेवा प्रदाता कहा जाना है, उनके मुकाबले प्रमुख दूरसंचार सेवा प्रदाताओं की सौदेबाजी की ताकत बढ़ाया जाएगा?

दूरसंचार की इस नयी दिशा को चाहे जो भी संचालित कर रहा हो, इससे आज की दुनिया के सबसे तेजी से विकास कर रहे क्षेत्रों में से एक में, नवोन्मेष की संभावनाओं का गला ही घोंटा जा रहा होगा। भारतीय इंटरनैट उपयोक्ताओं तथा नियमनकारी प्राधिकारों ने नैट न्यूट्रेलिटी के सिद्घांतों पर आधारित जो वर्तमान इंटरनैट सुनिश्चित किया है, यह उससे बहुत पीछे धकेले जाने का मामला होगा। यह पूछा जाना स्वाभाविक है कि भारत, जिसे नैट न्यूटे्रलिटी तथा सहभागितापूर्ण नीति निर्धारण के मामले में अनुकरणीय उदाहरण माना जाता है, फिर से ऐसी प्रतिगामी नीतियां क्यों ला रहा है? ऐसा आम निगरानी से प्यार के कारण किया जा रहा है या फिर निजी दूरसंचार इजारेदारियों के लिए प्यार के कारण?     

मूल लेख अंग्रेजी में छपा है। इसे आप इस लिंक के जरिए पढ़ सकते हैं

Draft Telecom Bill: Surveillance Paradise and Gift to Telecom Monopolies

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