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निर्भया कांड के दस साल : नहीं बदला देश में निर्भया फंड और महिला सुरक्षा का संघर्ष

महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए निर्भया फंड की शुरुआत हुई थी लेकिन इस महत्वपूर्ण योजना के करोड़ों रुपये आबंटन से लेकर इस्तेमाल तक सवालों के घेरे में हैं।
nirbhaya case

16 दिसंबर 2012, ये वो तारीख है, जब देश की राजधानी दिल्ली में निर्भया चलती बस में गैंगरेप का शिकार हुई थी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। दिल्ली समेत तमाम दूसरे राज्यों में लोग सड़कों पर उतर आए थे। जगह-जगह मोमबत्तियाँ और प्लेकार्ड पकड़े हुए लोग 'निर्भया को इंसाफ दो’, 'लड़की के कपड़े नहीं, अपनी सोच बदलिए' और 'बेटियों के लिए चाहिए सुरक्षा' जैसे नारे लगा रहे थे।

इस मामले के बाद महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण को लेकर बड़े-बड़े वादे हुए, क़ानून में संशोधन हुए, महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 2013 में जस्टिस वर्मा कमेटी गठित की गई। महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा को कम करने, बलात्कार पीड़ितों की सहायता और उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निर्भया फंड की स्थापना हुई, केंद्र में सरकारें बदली लेकिन आज 10 साल बाद भी देश में महिला सुरक्षा की तस्वीर नहीं बदली।

बता दें कि हाल ही में लोकसभा में पूछे गए एक लिखित सवाल के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी ने निर्भया फंड से जुड़ी जानकारी साझा करते हुए बीते छह सालों में सभी राज्यों को इसके आबंटन और इस्तेमाल की सूचना दी। इस डेटा के मुताबिक देश के कुल 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 17 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं, जिन्होंने बीते छह सालों में 60 प्रतिशत से भी कम निर्भया फंड का इस्तेमाल किया है। यानी इस फंड का जितना पैसा राज्यों को जारी किया जाता है, सरकारें उसे पूरी तरह से नहीं खर्च पा रही हैं। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक लालफीताशाही, आबंटन से कम खर्च, अस्पष्ट आबंटन और राजनीतिक कर्मठता के अभाव ने इस फंड को खोखला कर दिया है, जो पहले से ही 'पुरुष प्रधानता' से जूझ रहा है।

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नहीं ख़र्च हो पा रहे फंड के पैसे

केंद्र सरकार द्वारा भारत की राज्य सरकारों को उनके क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से निर्भया फंड का हिस्सा दिया जाता है। मंत्रालय के अनुसार इस फंड को इस्तेमाल करने वाले शीर्ष पांच राज्यों में दिल्ली- 97.7% के साथ पहले स्थान पर है, उसके बाद तमिलनाडु (92.4%), लक्षद्वीप (91.9%), पश्चिम बंगाल (91%) और गुजरात (81.5%) के साथ पांचवें स्थान पर है।

इसी क्रम में अगर हम पांच ऐसे राज्यों की बात करें जिन्होंने निर्भया फंड का न्यूनतम उपयोग किया है, तो उस में सबसे पहला स्थान आंध्र प्रदेश (33.8%), बिहार (38.80%), अरुणाचल प्रदेश (35.7%), मेघालय (42.2%), सिक्किम (43.5%)। अगर हम अकेले उत्तर प्रदेश की बात करें तो इस राज्य में भी निर्भया फंड का सिर्फ 62 प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग किया गया है।

इससे पहले केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 3 अगस्त, 2022 के एक प्रेस बयान में बताया था कि सरकार की ओर से निर्भया फंड से आवंटित 6,712.85 करोड़ रुपये में से वित्तीय वर्ष 2022-23 तक, 4,480.30 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। जारी किए गए फंड में से लगभग 66.7 प्रतिशत का उपयोग किया जा चुका है। शेष 2,232.55 करोड़ रुपये (33.25 प्रतिशत) खर्च नहीं किए जा सके।

राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के अनुसार भारत में एक दिन में औसतन 87 रेप की घटना होती हैं। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सालों के मुकाबले रेप के मामलों में 13.23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बीते साल 2021 में देश में रेप का कुल 31,677 मामले सामने आए हैं। इसमें से 12 फीसदी (3,870) से अधिक मामले 'एससी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार' के थे। अनुसूचित जाति समुदायों के बच्चों के बीच बलात्कार के 1,285 मामले भी दर्ज किए गए। देश में दर्ज हुए कुल मामलों में अनुसूचित जाति के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले 12.22 प्रतिशत हैं और इस तरह का हर तीसरा बलात्कार नाबालिग लड़की का होता है। दिल्ली पुलिस के आंकड़ों का मानें तो राजधानी दिल्ली में एक दिन में 5.6 रेप के मामले सामने आते हैं। हालांकि ये विडंबना ही है कि निर्भया का मामला सामने आने के बाद लोगों में जो एकजुटता, रोष और संवेदनशीलता देखी गई थी, अब वो ख़त्म हो चुकी है। क़ानून जरूर सख़्त हुए हैं, लेकिन न्याय लेने की प्रक्रिया अभी भी लंबी है।

देश में महिला सुरक्षा का विमर्श कितना आगे बढ़ा?

ऐसे में सवाल उठता है कि जनाक्रोश को सड़कों पर लाने वाला यह मामला, आख़िर देश में महिला सुरक्षा के विमर्श को कितना आगे ले गया? जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफ़ारिशें कितनी कारगर रहीं? और आख़िर में सवाल ये भी कि निर्भया कांड के दोषियों को फांसी देने के बाद देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों में कितनी कमी आने की उम्मीद है?

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जानकारों का मानना है कि इस तरह के मामलों में कानून की सख्ती के साथ समाजिक ताने-बाने को भी बदलना जरूरी है। इस समस्या का स्थायी इलाज उस पितृसत्तात्मक सोच को खत्म करना है जिसमें महिलाओं को पुरुष की संपत्ति माना जाता है।

जानी-मानी नारीवादी कमला भसीन जो अब इस दुनिया में नहीं रहीं, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा था, “जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक महिलाओं को वास्तव में बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा, सुरक्षा नहीं मिलेगी। परिवार से लेकर सरकार तक सबको समाज के स्तर पर मिलकर आधी आबादी के लिए सुरक्षित जगह बनाने के लिए अपनी भूमिका को समझना होगा।”

कमला के अनुसार, “सिस्टम को जेंडर के मुद्दों पर ज़्यादा संवेदनशील किया जाना चाहिए साथ ही स्कूलों में जेंडर सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम शुरू किये जाने चाहिए। जिससे बच्चों के अंदर मानसिकता बदलने का काम हो, ताकि भविष्य में ऐसे अपराध हो ही नहीं।”

पीएम मोदी के कार्यकाल में कम हुआ निर्भया फंड का पैसा

गौरतलब है कि विपक्ष में रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कई चुनावी रैलियों में दिल्ली को 'रेप कैपिटल' कहा था। 2014 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपने पहले स्वतंत्रता दिवस के भाषण में बढ़ते बलात्कारों पर बात भी की थी लेकिन उसके बाद से दिल्ली सहित देशभर में यौन हिंसा के केस बढ़ते रहे जिनमें कई प्रभावशाली लोग भी शामिल थे। लेकिन नरेंद्र मोदी ने सिर्फ़ एक बार 2018 में ट्वीट किया कि भारत की बेटियों को इंसाफ़ मिलेगा। तब उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों पर बलात्कार के आरोप सुर्खियों में थे।

याद हो कि साल 2014 में बिहार की एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था, "भाइयो-बहनो... दिल्ली की धरती पर निर्भया का कांड हुआ। एक गरीब बेटी को जुल्म से मार दिया गया। उसपे बलात्कार हुआ। ये निर्भया का कांड आपकी आंख के सामने हुआ। ये नीच राजनीति है कि नहीं? आपने 1000 करोड़ रुपये का निर्भया का फंड बनाया, एक साल हो गया, एक पैसा खर्च नहीं किया। ये नीच राजनीति है कि नहीं है? ये निर्भया के साथ धोखा है, ये नीच कर्म है कि नहीं है? नीच राजनीति कौन करता है?”

महिलाओं के प्रति सरकार की उदासीनता

हालांकि यूपीए सरकार में बना निर्भया फंड जो लगभग एक हजार करोड़ की राशि के ऐलान के साथ शुरू किया गया था। उसकी राशि मोदी सरकार के शुरुआती कार्यकाल में ही आधी कर दी गई। सत्ता में नरेंद्र मोदी के काबिज़ होने के एक साल बाद ही साल यानी 2015-16 में इस फंड के लिए कोई राशि ही नहीं दी गई। इसकी जानकारी खुद सरकार ने 27 जुलाई 2018 को लोकसभा में दी थी। उस समय 11 विपक्षी सांसदों के सवाल पर महिला-बाल विकास मंत्रालय की तरफ से बताया गया था कि 2018-19 तक निर्भया फंड के लिए पब्लिक अकाउंट में 3,600 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए। 2018-19 के बजट में निर्भया फंड के लिए 500 करोड़ रुपये का आवंटन ही किया गया है, जो अभी तक का सबसे कम है।

ध्यान रहे कि 2013 में निर्भया फंड लगभग 823 करोड़ रुपये था। लेकिन बाद के वर्षों में इसमें ऊपर नीचे होता रहा है। इस फंड को उन योजनाओं और कैटेगरी में दिया जाता रहा है, जिनके नाम हर साल बदलते रहे हैं। लिहाजा इस फंड में कितनी राशि आबंटित की गई है, इसे जानने के लिए यह पता लगाया जाना चाहिए कि कितनी राशि अब तक जारी की गई है, न कि क्या आबंटित किया गया है।

लोकसभा में 26 जुलाई 2019 को निर्भया फंड के अंतर्गत शुरू हुए प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारी के जवाब में महिला-बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने अलग-अलग मंत्रालयों के अधीन शुरू किए गए प्रोजेक्ट और उनके खर्च के बारे में बताया था। इन मंत्रालयों में गृह मंत्रालय, रेल मंत्रालय, सड़क-परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, महिला-बाल विकास मंत्रालय, न्यायिक मंत्रालय और आईटी मंत्रालय शामिल थे। निर्भया फंड में पहले ही आबंटन कम है, ऐसे में इस फंड के तहत मिली अधिकांश राशि को अन्य सरकारी विभागों में ख़र्च कर देना, जो इस योजना को शुरू करने का मक़सद बिल्कुल नहीं था। ये महिलाओं के प्रति सरकार की उदासीनता का एक उदाहरण है।

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