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लोगों का हक़ छीनने वालों पर कार्रवाई करने का दम भरने वाले मुख्यमंत्री ख़ुद ही छीन रहे बेरोज़गारों का हक़!

इंटरमीडिएट, ग्रेजुएशन, एमबीए करने के बाद भी मध्यप्रदेश के आईटीआई में शिक्षक सिर्फ 7200 रुपये प्रति महीने में काम करने के लिए मजबूर हैं, राज्य सरकार की ओर से राहत देने की बात भी हवाबाज़ी ही साबित हुई है, अब स्थिति ये हो गई है कि किसानों की तरह शिक्षक भी सड़कों पर आंदोलन करने का मन बना रहे हैं...  
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तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग मध्यप्रदेश के अंतर्गत संचालित आईटीआई में एमबीए डिग्रीधारी महज 7200 रुपये वेतन लेकर पिछले 9 सालों से रिसोर्स पर्सन के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। इन्हें उम्मीद है कि सरकार जल्द ही इनका वेतन बढ़ाएगी और इन्हें नियमित करेगी। इनकी मांग है कि अन्य विभागों की तरह उनके विभाग में भी 5 जून 2018 को सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा संविदा कर्मचारी, अधिकारियों के लिए जारी नीति लागू की जाए, क्योंकि इस महंगाई के दौर में इतने कम वेतन में परिवार का गुजारा संभव नहीं हो पा रहा है।

यह रिसोर्स पर्सन आईटीआई छात्रों के स्किल डेवलपमेंट करने के लिए कार्य करते हैं। सैकड़ों छात्रों ने एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2013 में इस उम्मीद के साथ इस विभाग में पढ़ना शुरू किया था कि यह सरकारी नौकरी है, और तीन साल बाद वे नियमित हो जाएंगे।

उनके नियुक्ति पत्र में भी चरणबद्ध तरीके से नियमित करने की बात कही गई थी, लेकिन नियमित करना तो दूर उल्टे सरकार ने इन्हें वर्ष 2015 में नौकरी से हटाने का आदेश जारी कर दिया। अपनी आजीविका पर संकट आते देख कौशल विकास विभाग के सारे संविदा कर्मियों ने हाई कोर्ट में पिटीशन दाखिल कर  गुहार लगाई। उन्हें कोर्ट से स्टे तो मिल गया लेकिन मानदेय आज तक नहीं बढ़ा।

दरअसल यह संविदा कर्मी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कौशल विकास विभाग में 80 प्रकार के व्यवसाय के लिए लोगों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। इसी विभाग में रीवा में कार्यरत सजनी सोनी बताती हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 7 जून 2018  को एक आदेश जारी किया था, जिसमें मध्य प्रदेश के सारे संविदा कर्मियों को नियमित कर्मचारियों के वेतनमान का 90 फीसदी वेतन देने का आदेश दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा था कि जो भी संविदा कर्मी पांच साल तक सेवा में हैं उन्हें किसी अन्य विभाग की प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने के लिए 55 साल तक की छूट मिलेगी और उनका अनुभव प्रमाणपत्र मान्य होगा। यह सारी बातें राजपत्र में उल्लिखित है। लेकिन उन्हें न तो नियमित कर्मचारियों के वेतन के अनुसार 90 फीसदी वेतन मिला और न विभाग के एचओडी द्वारा अनुभव प्रमाण पत्र दिया गया। जिससे वे अनुभव का लाभ लेकर जीवन में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

बच्चों की मासूमियत से वंचित रहीं कविता

कविता सनोडिया बताती हैं, कि हमें सरकारी कर्मचारियों की तरह कोई सुविधा नहीं मिलती। छुट्टी लेने पर वेतन कटता है। अपनी परेशानी बताते हुए कहती हैं कि मेरा ससुराल छत्तीसगढ़ में है। चूंकि वह रतलाम में नौकरी कर रही हैं इसलिए ससुराल तक नहीं जा पातीं। पूरा परिवार छत्तीसगढ़ में है और वह नियमित होने की आस लिए अकेले रतलाम में रहकर नौकरी कर रही हैं। इस बीच बच्चों को भी उन्हें ससुराल में छोड़ना पड़ा, जो उनके लिए बहुत तकलीफदेह रहा। कविता बच्चों को पल-पल बढ़ते भी नहीं देख पायीं। वह कहती है कि यह उन्हें आजीवन सालता रहेगा कि वह अपने बच्चों को समय नहीं दे पायीं।  वह कहती हैं कि महंगाई इस कदर है कि नौकरी का मोह छोड़ नहीं पातीं।

इसी तरह मंडला आईटीआई के संविदा कर्मी अनुपम श्रीवास्तव बताते हैं कि मध्य प्रदेश सरकार संविदा कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए, सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र क्रमांक सी-5-2/2018/1/3 भोपाल संविदा दिनांक 5 जून 2018 द्वारा “संविदा नियुक्ति अधिनियम 2017” जारी किया,  जिसमें सभी विभागों को निर्देश दिया गया कि मूल वेतन का 90 फीसदी समेत अन्य सुविधाएं भी दी जाएं।

इस आदेश का पालन करीब-करीब सभी विभाग ने कर लिया है लेकिन तकनीकी शिक्षा, कौशल विकास एवं रोजगार विभाग मंत्रालय ने आज तक इस पर अमल नहीं किया। जबकि कोविड-19 जैसे संकटग्रस्त परिस्थितियों तथा चुनाव जैसे महत्वपूर्ण कार्य में भी हम लोगों की ही ड्यूटी लगाई जाती है। इतनी सेवाएं देने के बावजूद हमारी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। अगर कोर्ट से स्टे नहीं लाते, तो सरकार हमें नौकरी से बाहर कर देती। अब तो नौकरी पाने की औसत उम्र भी निकल चुकी है। कौशल विकास के नाम पर पढ़ाने और पढ़ने वालों के साथ सिर्फ लीपापोती हो रही है। अनुपम ने कहा कि इससे पहले 2018 में विभाग के मंत्री दीपक जोशी से मिलकर उन्हें अपनी परेशानी बताई थी। जिस पर उन्होंने हमारी मांगों को जायज माना और नियमित करने के लिए नोटशीट भी चलाई, लेकिन वह नोटशीट कहां गई, आज तक कुछ अता-पता नहीं है। उपर से कोल्हू के बैल की तरह पंचायत, लोकसभा, विधानसभा चुनाव में ड्यूटी लगाने से लेकर पोलियो वैक्सीन, कोरोना वैक्सीन और कोरोना जांच आदि में काम लिया जा रहा है।

शिवपुरी की राधिका मिश्रा कहती हैं कि गेस्ट लेक्चर वालों को भी हम लोगों से ज्यादा पैसा मिलता है, जबकि वे केवल एक-दो क्लास ही लेते हैं। हम लोगों को सुबह साढ़े 9 से शाम साढ़े 5 तक पढ़ाना पड़ता है। ऐसे में भारी मन से छात्रों को पढ़ाना पड़ता है। केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार 62 साल तक किसी भी संविदा कर्मी को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता। फिर भी सरकार हमें नौकरी से निकालने पर आमादा है। यह सरकार न तो केंद्र और न कोर्ट का आदेश मानती है। इसलिए हम लोग के पास सड़क पर संघर्ष करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। वर्ष 2013 डीजीटी नई दिल्ली के निर्देश के अनुसार एक वर्षीय पाठ्यक्रम में एम्पलालटी स्किल को पढ़ाना पड़ता था, जिसे वर्ष 2019 में 2 वर्षीय पाठ्यक्रम में तब्दील कर दिया गया। लेकिन मानदेय नहीं बढ़ाया गया।

नाम न छापने की शर्त पर एक रिसोर्स पर्सन कहती हैं कि मेरा 6 लोगों का परिवार है। पति-पत्नी, दो बच्चों के साथ सास-ससुर। घर भी किराए का। शादी भी सरकारी नौकरी देखकर हुई थी। पति एक निजी कंपनी में काम करते थे, लेकिन कोविड-19 में उनकी नौकरी छूट गई। इतने सदस्य सिर्फ 7200 रुपये में गुजारा कर रहे हैं। यह कैसी लोक कल्याणकारी सरकार है। जो बातों से अपने को गरीबों का मसीहा साबित करने से नहीं चूकती, लेकिन काम ढेले भर का नहीं करती।  उन्होंने बताया, अगर घर पर कोई बीमार पड़ जाए, तो इलाज के लिए अपने ही साथियों से कर्ज लेना पड़ता है। इस तरह कर्ज बढ़ता जा रहा है। सोचा था एमबीए है, तो किसी अच्छी कंपनी में नौकरी मिल जाएगी। हमसे तो अच्छे 10वीं करने के बाद आईटीआई करने वाले छात्र है, जिन्हें पूरा वेतनमान मिल रहा है। हम लोग ग्रेजुएशन के बाद एमबीए भी कर चुके हैं, इसके बावजूद धक्के खा रहे हैं। अब तो हमलोगों की हालत भी किसानों जैसी ही हो रही है। सड़क पर आंदोलन के अलावा हमारे पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं है। सभी बेरोजगारों को एक साथ सड़क पर आना होगा, तभी सुनवाई होगी।

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