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फ़ुटपाथ व्यापारियों की हालत बेहद ख़राब, तालाबंदी के बाद भी काम शुरू करने लायक नहीं बचेंगे!

सब कुछ के साथ झारखंड के फ़ुटपाथ व्यापारियों की ज़िंदगी भी रुक सी गई है। उनके काम बंद हैं और जेब खाली। भूख है लेकिन राशन नहीं।
फ़ुटपाथ व्यापारियों की हालत बेहद ख़राब

कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन से हवाओं में एक सन्नाटा सा पसरा है। मुहल्ले वीरान हैं तो सड़कें खाली। मानो दुनिया थम सी गयी है। सब कुछ रुक सा गया है। सब कुछ के साथ झारखंड के फ़ुटपाथ व्यापारियों की ज़िंदगी भी रुक सी गई है। उनके काम बंद हैं और जेब खाली। भूख है लेकिन राशन नहीं। 

ऐसे ही कुछ सड़क किनारे दुकान लगाने वालों से हमनें बात की है। 

51 वर्षीय शर्मिला नागेर राजधानी रांची के नेपाल हाउस एरिया में चॉउमिन-मोमोज़ का ठेला लगाती थीं। उनको जैसे ही पता चला कि मैं एक पत्रकार हूँ, वैसे ही वो बिना कुछ पूछे ही अपनी परेशानियां मुझसे कहने लगीं। ऐसा लगा मानो उन्हें ऐसे किसी की तलाश थी जो उनकी बातों को सुने। उनकी बातें शुरू ही इस बात से होती है कि 'सरकार कुछ नहीं कर रही हमारे लिए।'

उन्होंने आगे बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है, 'तब से हमारी ज़िंदगी जानवरों जैसी हो गयी है। मेरे परिवार में पांच लोग हैं, जिसमें से कमाने वाली एकलौती मैं ही हूँ। काम-धंधा पूरे तरीके से बंद है। पहचान के लोग कुछ मदद कर रहे हैं, जिससे साग-सब्ज़ी, तेल-मसाला ख़रीद पाते हैं वरना हमारे पास ज़हर खाने को भी पैसे नहीं हैं।'

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि, 'मैं दिन भर में  250 से 300 रुपये कमाती थी। हमारे पास अब पैसा नहीं है जो दोबारा से अपना काम शुरू कर पाएं। सारा पैसा ख़त्म हो चुका है। मेरी उम्र भी इतनी हो गयी है, लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए काम तो करना ही पड़ेगा। इसलिए लॉकडाउन के बाद किसी होटल में बर्तन धोने का काम खोजेंगे। सरकार को हमारे जैसे व्यापारियों को आर्थिक मदद देनी चाहिए थी जिससे हम और हमारा काम बच सके।'

वहीं रांची के एक और वेंडर अब्दुल ने बताया कि 'हमारे पास अब पैसा नहीं बचा है। रमज़ान में हमारा खर्च बाकी दिनों में मुकाबले थोड़ा बढ़ जाता है। ईद के वक़्त पर अच्छी कमाई हो जाती थी। लेकिन काम धंधा बंद होने की वजह से घर की स्थिति बेहद खराब हो गयी है। आगे हमारा और हमारे काम क्या होगा अल्लाह ही मालिक है।' अब्दुल रांची के अटल स्मृति वेंडर मार्किट में कपड़े की दुकान लगाते हैं।

नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड की राजधानी रांची में करीब पांच हज़ार फ़ुटपाथ व्यापारी हैं। वहीं नेशनल हॉकर्स फेडरेशन के मुताबिक रांची में स्ट्रीट वेंडर्स की संख्या तीस हज़ार आसपास है।

रांची के बाद हम पहुंचे रामगढ़ जिला के पतरातू प्रखंड में। हाल के दिनों में पतरातू एक पर्यटक स्थल के रूप में उभरा है। यहाँ की जलेबीनुमा घाटी और वातावरण जितना हरीभरी दिखाई पड़ता है, वहीं इस देशव्यापी तालाबंदी के कारण यहाँ के सड़क किनारे दुकान लगाने वालों की ज़िंदगी उतनी ही बेरंग नज़र आ रही है।

इसी सिलसिले में हमने बात की मधु देवी से। मधु एक गृहणी हैं और मधु के पति कार्तिक हर शाम पतरातू के न्यू मार्किट में समोसे की रेहड़ी लगाते थे। दिन-भर में तीन से चार सौ की आमदनी हो जाती थी। मगर उनपर यह पचास दिन से भी ज्यादा का लॉकडाउन दोहरा क़हर बरपा रहा है।

मधु ने बताया कि कार्तिक की तबीयत खराब होने की वजह से लॉकडाउन के एक महीने पहले से ही काम बंद था। बचे हुए पैसे ख़त्म होने लगे तो बीमार होने के बावजूद उन्होंने रेहड़ी लगाना शुरू किया लेकिन तीन-चार दिनों के बाद ही तालाबंदी हो गई।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहती हैं, 'सरकारी मदद के नाम पर महज़ चावल मिला है। लेकिन सिर्फ चावल कैसे खाएं। कुछ पैसा उधार लिया था लेकिन उधार मांगना भी अच्छा नहीं लगता है क्योंकि इस वक़्त सबकी हालत खराब है।'

उन्होंने बताया कि उनका बेटा क़िताब खरीदने को ज़िद कर रहा था लेकिन पैसे न होने की वजह वो अपने बेटे को किताब तक ख़रीद कर नहीं दे सकतीं।

खाने के नाम पर कहती हैं कि 'बाजार में जाते हैं तो कभी-कभी पहचान के लोग खुद से कुछ सब्ज़ियां दे देते हैं। यदि नहीं मिला तो फिर माड़-भात भी खा लेते हैं। हमें ज्यादा बुरा बच्चों के लिए लगता है, हम बड़े तो मन को मार कर रह जाते हैं लेकिन बच्चे तो ज़िद करते ही हैं।'

उनके पति कार्तिक ने बताया कि 'लॉकडाउन के बाद जब काम फिर से शुरू होगा तब भी हमारे पास कुछ नहीं बचेगा। क्योंकि एक साल से ज्यादा समय तो हमारा कर्ज़ चुकाने में ही गुज़र जाएगा। इसी बीच सरकार के तरफ से हमें कुछ पैसे मिल जाते तो थोड़ी बहुत राहत मिल जाती।'

राज्य में स्ट्रीट वेंडरों को वित्तीय मदद और राहत पैकेज की मांग करते हुए हॉकर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी शक्तिमान घोश ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक चिट्ठी भी लिखी है।

'चिट्ठी में लिखा गया है कि, सड़क किनारे दुकान लगाने वाले दुकानदारों की स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। लॉकडाउन के दौरान सिर्फ सब्जी विक्रेताओं को सब्ज़ी बेचने की अनुमति दी गयी है। 90% से अधिक स्ट्रीट वेंडरों का काम बंद है।

यह फुटपाथ व्यापारी अपनी बची हुई पूंजी खा रहे हैं, जो बहुत ही असामान्य है। वे एक कमजोर स्थिति में हैं। हमने सड़क विक्रेताओं की स्थिति के बारे में पहले भी भारत सरकार को एक पत्र भेजा है। इसके अलावा ओडिशा, तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने सड़क विक्रेताओं को मौद्रिक पैकेज दिया है।'

चिट्ठी में आगे लिखा है कि, 'हम झारखंड सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह राशन के साथ छह महीने के लिए प्रति माह सड़क विक्रेताओं को 3,000 रुपये देने की घोषणा करे, ताकि वे अभी और भविष्य में भुखमरी से बच सकें।'

झारखंड के बोकारो में सड़क किनारे चूड़ी बेचने वाले अनवारुल हक़ बताते हैं कि, 'हम दिन भर में 150 से 200 रुपये कमाते थे। इतने ही पैसे में बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च भी चलता था। कोटा से चावल मिला है, वही खा रहे हैं। सब्ज़ी-मसाला के लिए लोगों से उधार लेते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि मेरी पत्नी के खाते में पांच सौ रुपया आया था लेकिन पता चला वो भी पैसा बैंक ने काट लिया।'

वो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि, 'अगल-बगल के लोग न होते तो जाने क्या होता। विधायक हो या मुखिया कोई एक बार हमें झांकने तक नहीं आया कि हम मर गए या ज़िंदा हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि, 'इस बीच सब्ज़ी वगैरह भी बेच लेते मगर जाति-धर्म इतना हो गया है कि क्या बताएं। लोग मुसलमानों से सामान खरीदना नहीं चाहते हैं।'

इस मामले में हॉकर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की झारखंड की सचिव अनिता दास ने कहा है कि 'स्ट्रीट वेंडर्स राज्य के अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में एक अहम रोल निभाते हैं। इस लॉकडाउन ने उनपर आर्थिक व मानसिक रूप से चोट किया है। कई ऐसे व्यापारी हैं जो लॉकडाउन के बाद भी खड़े नहीं हो सकेंगे क्योंकि इनकी जमापूंजी भी ख़त्म हो गयी है। सरकार को उन्हें आर्थिक मदद के साथ साथ उन्हें लोन देने का भी इंतेज़ाम करना चाहिए ताकि वो फिर से अपने काम को शुरू कर सकें।'

वहीं झारखण्ड शिक्षित बेरोजगार फुटपाथ दुकानदार महासंघ के संस्थापक कौशल किशोर ने बताया कि 'साल 2011 में हमारे संघ द्वारा किये गए सर्वे में पाया था कि राज्य में चार लाख सड़क किनारे दुकान लगाने वाले दुकानदार हैं। यह लोग रोज कुआं खोदते हैं तब जा कर पानी पी पाते हैं। ऐसे में सरकार के तरफ से अभी तक फ़ुटपाथ व्यापारियों को राहत देने के लिए कोई दिशानिर्देश तय नहीं किया गयी है।'

इस सिलसिले में न्यूज़क्लिक के लिए हमने फेडरेशन ऑफ झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष कुणाल अजमानी से बात की। राज्य के फ़ुटपाथ व्यपारियों के हालात पर उन्होंने कहा कि, 'सरकार को इस बात का ख़्याल रखना चाहिए कि राज्य सभी स्ट्रीट वेंडर्स तक राशन सामग्री पहुंचे और साथ ही साथ प्रत्येक स्ट्रीट हॉकर्स को पच्चीस हज़ार रुपये का ग्रांट देना चाहिए।'

जब हमने उनसे पूछा कि झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने फुटपाथ दुकानदारों को राहत पैकेज देने जैसी कोई बात झारखंड सरकार के सामने रखी है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि 'अभी तक झारखंड सरकार ने हमसे किसी भी तरह की बात नहीं की है।'

इस सिलसिले में हमने झारखंड उद्योग विभाग के निदेशक से भी सवाल किया मगर उन्होंने विभाग के सचिव से बात करने को कहा, लेकिन उद्योग विभाग के सचिव प्रवीण टोप्पो का कॉल ट्रांसफर होने की वजह से उनसे किसी तरह का संपर्क नहीं हो पाया।

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