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यूपी सरकार की 'प्रगति रिपोर्ट' का सच: न पक्का आवास, न आयुष्मान कार्ड

एक ग़रीब इसलिए हताश हो जाता है क्योंकि आवास मिलने की सूची में नाम आने के बावजूद उसे आवास नहीं मिलता या सरकारी कागजों पर तो उसे पक्का घर मिल जाता है लेकिन हक़ीक़त में आज भी वह टपकती और जर्जर छत के तले ही रहने को मजबूर है।
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धरने पर बैठे ग्रामीण

कुछ आँखों देखा हाल बताएं उससे पहले हमें प्रदेश सरकार द्वारा हाल में जारी एक "प्रगति रिपोर्ट" जान लेनी जरूरी है। अपने दूसरे कार्यकाल के एक वर्ष पूरे होने पर प्रदेश की योगी सरकार ने दावा किया कि केंद्र की 32 योजनाओं को प्रदेश में लागू करने और गरीब जनता तक उसका लाभ पहुँचाने की दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश के सभी राज्यों के मुकाबले सबसे अव्वल रहा है।

योगी सरकार के मुताबिक चाहे बात ग्रामीण और शहरी गरीबों को पक्की छत देने की हो या फिर आयुष्मान कार्ड जारी कर जरूरतमंदो को पाँच लाख तक का स्वास्थ्य बीमा देने की हो, स्वच्छ भारत मिशन के तहत प्रदेश को खुले में शौच मुक्त बनाते हुए गाँवों में हर घर शौचालय बनवाने का काम हो या फिर उज्ज्वला योजना में गरीबों को गैस चूल्हा देने की बात हो, प्रधानमन्त्री किसान सम्मान निधि, जनधन योजना, अटल पेंशन योजना आदि तमाम योजनाओं के क्रियान्वयन में एक मात्र यूपी ही ऐसा प्रदेश है जिसने सफलता का परचम लहराया है।

खैर यह तो है सरकार का दावा। ज़ाहिर सी बात है हर सरकार अपने कार्यकाल की प्रगति रिपोर्ट पेश करती है जिसमें सब कुछ अच्छा और बस अच्छा होने का ही दावा होता है, तो मौजूदा सरकार की प्रगति रिपोर्ट में भी सब कुछ अच्छा और बस अच्छा ही है। पर इस "सबकुछ अच्छा" पर सवालिया निशान तब लग जाता है जब एक गरीब इसलिए हताश हो जाता है क्योंकि आवास मिलने की सूची में नाम आने के बावजूद उसे आवास नहीं मिलता। जब एक गरीब इसलिए परेशान हो जाता है कि सरकारी कागजों पर तो उसे पक्का घर मिल जाता है लेकिन हकीकत में आज भी वह टपकती और जर्जर छत के तले ही रहने को मजबूर है। स्वास्थ्य बीमा का लाभ कैसे मिले जब उसके पास आयुष्मान कार्ड ही नहीं। जो आयुष्मान कार्ड निशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा हो, उसके लिए भी गरीबों से पैसा लिया जा रहा हो।

सरकारी रिपोर्ट कुछ भी कहे लेकिन इसमें दो राय नहीं कि सरकार और जनता के मध्य सेतु का काम करने वाला एक बड़ा बिचौलिया तंत्र सरकार के वरदहस्त में जरूरतमंदों के हक़ पर कब्जा जमाये हुए है।

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धरना देते ग्रामीण

लखनऊ से सटे सीतापुर जिले का हरगाँव ब्लॉक मुख्यालय। तारीख 27 अप्रैल, प्रदेश स्तीरय आह्वान पर अखिल भारतीय खेत एवम् ग्रामीण मजदूर सभा के बैनर तले कई गाँवों के महिला पुरुष हाथों में लाल झंडा लिए एकत्रित हुए थे। उससे ठीक दो दिन पहले हमें सूचना मिलती है कि अपनी माँगो को लेकर ग्रामीण ब्लॉक कार्यालय में एक दिवसीय धरना देंगे और बीडीओ के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा जायेगा।

सूचनाकर्ता ने बताया कि उनके क्षेत्र में आज भी बहुतेरे ऐसे गाँव हैं जहाँ गरीबों को कई कोशिशों के बाद भी न तो पक्का आवास ही मिला न ही आयुष्मान कार्ड बना।

हद तो यह है कि सूची में नाम आने के बावजूद कहीं किसी को आवास नहीं मिल रहा तो किसी को सरकारी कागजों के मुताबिक पक्का आवास मिल गया जबकि आज भी वे झोपड़ी में ही गुजर कर रहे हैं। यहाँ तक कि आयुष्मान कार्ड बनवाने तक के लिए पैसे लिए जा रहे हैं। उन्होंने निवेदन किया कि एक बार धरने में आकर ग्रामीणों की समस्या सुन ली जाए।

बेशक, उनसे रू ब रू होना जरूरी था। इसलिए जरूरी था कि यह जानना कि कागजों की प्रगति रिपोर्ट और धरातल की रिपोर्ट में कितना अंतर है। धरने वाले दिन जब इस रिपोर्टर का वहाँ जाना हुआ तो तमाम ग्रामीण अपने हाथ में एक फॉर्म पकड़े हुए थे जो आवास से संबंधित थे। एक बड़ी संख्या महिलाओं की थी जिसमें कई बुजुर्ग महिलाएं भी थी, जो अपने लिए पक्के आवास की माँग करने धरने पर आई थीं। बहुत से ऐसे ग्रामीण थे जो सरकार से यह कहने पहुँचे थे कि आखिर उनका आयुष्मान कार्ड कब बनेगा जबकि सरकार कहती है कि गरीबों को अब महँगे इलाज के लिए भटकना नहीं पड़ता।

इन ग्रामीणों ने ठानी थी कि जब तक उनका माँगपत्र लेने बीडीओ नहीं आ जाते तब तक वे धरना जारी रखेंगे। पर नगर निकाय चुनाव के चलते प्रदेश में धारा 144 लगी हुई है ऐसे में धरना करने के कारण उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, मेरी इस बात के जवाब में वहाँ मौजूद ग्रामीण कन्हैया लाल कहते हैं दिक्कतों का सामना तो वैसे भी हम गरीबों को करना ही पड़ रहा है जब एक गरीब अपने लिए एक सुरक्षित जीवन की माँग करते हुए सरकारी ऑफिसों के चक्कर ही काटता रह जाता है और उसके हिस्से आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं आता।

ग्रामीण कन्हैया बताते हैं कि पक्का आवास, आवासीय पट्टा, वृद्धा पेंशन, आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड आदि माँगो को लेकर इससे पहले भी सैकड़ों ग्रामीण धरना प्रदर्शन कर चुके हैं। वे कहते हैं चूँकि इस समय निकाय चुनाव के चलते धरना प्रदर्शन में रोक है इसलिए ग्रामीणों की एक बड़ी आबादी धरने में शामिल नहीं हो सकी।

उनके मुताबिक हरगांव ब्लॉक के गाँवों में आज भी आवास विहीन परिवारों की एक बड़ी संख्या है। वे बताते हैं पहले भी धरने हुए उसके बाद ग्रामीणों को आश्वासन दिया गया कि जल्दी ही जिला प्रशासन के लोग आकर गाँवों का दौरा कर ये जाँच करेंगे की आवास के लिए कौन पात्र है और कौन अपात्र लेकिन करीब तीन महीने बीत गए इस आश्वासन को कोई जाँच करने नहीं आया तो ग्रामीणों को पुनः मजबूरन धरने पर आना पड़ा।

पक्के आवास की मांग करती महिलाएं

आवास की मांग करती महिलाएं

धरने में अधिकांश संख्या महिलाओं की थी। क्योंटिकला गाँव से आईं बुजुर्ग महिला राम सती कहती हैं कुछ साल पहले उनके पति का हाथ ट्रेन से कट गया था अब वे कुछ काम करने की स्थिति में नहीं हैं। दो लड़के हैं मजदूरी करते हैं। कच्चा घर है। कई बार आवास के लिए फॉर्म भर चुके हैं लेकिन मिलता ही नहीं जबकि हम पात्र हैं।

बिशनुपुर गाँव की कैलाशा के मुताबिक पिछले साल भी आवास के लिए फार्म भरा था इस साल दोबारा भरा है। पति बेरोजगार हैं। 6 बच्चे हैं सब मजदूरी करते हैं। वह बताती हैं उनके गाँव में अभी तक कोई अधिकारी यह जाँच करने के लिए नहीं आया कि कौन पात्र हैं और कौन अपात्र। दुखी मन से वह कहती हैं पता नहीं जाँच कब होगी और उन्हें पक्का आवास मिलेगा।

तो वहीं नगरची गाँव से धरने में आई बुजुर्ग कांति देवी बेहद परेशान दिखीं। वह कहती हैं आख़िर कितनी बार प्रयास करें। अब बार बार दौड़ भाग नहीं होती। पति की मृत्यु हो चुकी है। तीन बेटे हैं जो मजदूरी करते हैं। बिस्वा भर खेती है बस उससे क्या होता है।

लिस्ट में नाम के बावजूद नहीं मिल रहा आवास

अभी हमारी बातचीत महिलाओं से चल ही रही थी कि वहाँ मोबिन आ पहुँचे और अपने फोन से उस आवास संबधित सूची को दिखाने लगे जिसमें उनका नाम दूसरे ही नंबर पर था। मोबिन ने बताया कि लिस्ट में नाम होने के बावजूद उनको आवास नहीं दिया जा रहा। वह अधिकारियों से गुहार लगाते लगाते थक गए हैं। मोबिन ने निवेदन किया कि एक बार उनके गाँव चलकर आवासविहीन लोगों की हालात देख लिया जाए।

मोबिन ने बताया कि उनके गाँव में ऐसा परिवार भी है जिसको लिस्ट में पक्का आवास मिल चुका है लेकिन घर की हालत जर्जर ही बनी है। ऐसा परिवार भी है जिनका घर कभी भी गिर सकता है लेकिन उन्हें आवास नहीं मिल पा रहा। वे बताते हैं कि अपने आवास के संबंध में ब्लॉक ऑफिस आये थे। यहाँ धरने पर ग्रामीणों को बैठा देख वे भी धरने में शामिल हो गए। मोबिन कहते है अब धरना प्रदर्शन ही अंतिम हथियार है हम गरीबों के पास।

लिस्ट में अपना नाम दिखाते मोबिन

मोबिन के आग्रह को मानते हुए हमारा मोबिन के साथ उनके गाँव खजुआ जाना हुआ। सचमुच हालात अच्छे नहीं दिखे। घर पहुँचते ही मोबिन वे लिस्ट की कॉपी ले आये जिसमें उनका नाम दूसरे नंबर पर हैं। वे कहते हैं उनका तो लिस्ट में नाम है फिर भी आवास नहीं मिल रहा, आख़िर क्यों, वे समझ नहीं पा रहे। मोबिन आरोप लगाते हैं कि आवास के लिए उनके खाते में पहली किस्त आ जाए उसके एवज में उल्टा उन्हीं से रिश्वत माँगी जा रही है जबकि विवश होकर वे जैसे तैसे जुगाड़ कर दस हजार दे भी चुके हैं।

मोबिन के घर की हालत बहुत खराब थी। एक हिस्से मे सिर ढकने के लिए बरसाती बंधी थी तो एक तरफ छत के नाम पर टीन की शेड पड़ा था। कमरे भी जर्जर थे। मोबिन कहते हैं कि अब कोई बताये कि क्या वे पक्के आवास के हक़दार नहीं। छोटे छोटे बच्चे हैं उन्हीं की ख़ातिर आवास मिल जाता, इतना कहते ही मोबिन का गला भर आया।

काग़ज़ में मिल गया आवास पर हक़ीक़त कुछ और

मोबिन घर से कुछ दूरी पर ही रिजवान का घर था। घर क्या था बस परिवार किसी तरह गुजर बसर कर रहा था। कच्ची छत, कभी भी गिर जाने वाली दीवारें। बरसात में पुआल की छत को टपकने से बचाने के लिए उसे प्लास्टिक से ढँका हुआ था। रिजवान कहते हैं सरकारी कागज पर उन्हें पक्का आवास मिल चुका है, पर ये कैसे हुआ उन्हें नहीं पता। बेहद मायूस होकर वे कहते हैं क्या हमारे घर की हालत प्रशासन को नहीं दिखाई दे रही। ये तो हद है।

उन्होंने बताया कि जहाँ उन्होंने ऑनलाइन अप्लाई किया जब वहाँ वे दोबारा ये देखने गए की लाभार्थी की सूची में उनका नाम दर्ज हुआ कि नहीं तो उनको बताया गया की उन्हें पक्का आवास इसलिए नहीं मिल सकता क्योंकि उनको मिल चुका है।

अपने आवेदन की कॉपी दिखाते रिज़वान

रिजवान कहते हैं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वे उस हक़ को लेकर रहेंगे जो सरकार ने गरीबों को दिया है। वे बताते हैं कि जब उन्हें पता चला की सरकारी कागज में उन्हें आवास मिल चुका है तो इस झूठ के खिलाफ़ उन्होंने न केवल प्रदेश के मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी बल्कि प्रधानमन्त्री तक को पत्र लिखा है और वे सारे पत्रों की फोटो कॉपी दिखाने लगते हैं।

रिजवान मजदूरी का काम करते हैं। पति पत्नी के अलावा चार बच्चे हैं। खेती भी नहीं। रिज़वान कहते हैं बरसात मे पूरे घर मे पानी भर जाता है। छत टपकती है। सब कपड़े गीले हो जाते हैं। बच्चों का तन ढकना मुश्किल हो जाता है फिर भी हमारे लिए कहा जाता है कि हमें आवास मिल गया इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है।

इस गाँव में अन्य भी ऐसे परिवार मिले जो बेहद गरीब हैं। कच्चे घर में रहते हैं। सिर पर ढंग की छत भी नहीं लेकिन उन्हें पक्का आवास नहीं मिल पा रहा।

धरने में मौजूद बहुत से ग्रामीण उनके गाँव चलकर उनके कच्चे घरों के हालात देखने का आग्रह कर रहे थे। एक दिन में सब जगह जाना तो संभव नहीं,क्योंकि उसी दिन लखनऊ भी वापस जाना था लेकिन यह रिपोर्टर उनके गाँवों का दौरा जरूर करेगी, इसी वादे के साथ हमने वहाँ से विदा ली।

बार बार यह बात मन में उठ रही थी कि प्रदेश की प्रगति रिपोर्ट सिक्के का एक पहलू है जो सबकुछ बेहतरी का दावा करती है लेकिन इस सिक्के का दूसरा पहलू भी है जो बेहद तकलीफ़देह है। ज़मीनी कहानियाँ कुछ और ही बयाँ करती हैं।

बहुतेरे गरीबों के घर गिरने की स्थिति में पहुँच गए हैं लेकिन उनके लिए पक्के आवास की लड़ाई अभी बहुत लंबी है। गरीब कर्जा लेकर इलाज कराने को मजबूर है लेकिन उनका आयुष्मान कार्ड नहीं बन पा रहा। तब हम कैसे कह दें की उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बन चुका है।

(लखनऊ स्थित लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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