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वाकई! दाग़ भी अच्छे होते हैं

किसी व्यक्ति के कपड़ों पर लगा सरसों के तेल का दाग़ अच्छा होता है और देशवासियों का स्विस बैंक में जमा रकम बढ़ने का दाग़ भी। पहला दाग़ बताता है कि घर में मुफ़लिसी नहीं है...। दूसरा दाग़ बताता है कि देश में अमीरी चालू है।
वाकई! दाग़ भी अच्छे होते हैं
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: DNA India

खबर है कि स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीयों का जमा धन बढ़ गया है और पिछले कई सालों के मुकाबले सबसे अधिक हो गया है। लोग-बाग कह रहे हैं कि ये धन काला धन है। पगला गए हैं, मोदी जी के राज़ में काला धन। क्या बात करते हो!

मोदी जी के शासन काल से पहले धन दो ही रंग का होता था। सफेद और काला। मोदी जी ने 2016 में सारा काला धन समाप्त कर दिया। लगभग सारा पैसा बैंकों में जमा हो गया। सारा धन सफेद हो गया। सफेद तो सफेद था ही, काला धन भी सफेद हो गया। उसके बाद तो काले धन का उत्पादन ही बंद हो गया है। 

मोदी जी रंगीन तबीयत के इंसान हैं। कपड़े भी रंग-बिरंगे ही पहनते हैं। उस पर यह श्वेत-श्याम का जमाना भी बीते दिनों की बात है, कांग्रेस के शासन की बात है। अब तो कई सालों से फिल्में भी रंगीन बनने लगी हैं और फोटुएं भी रंगीन खिंचने लगी हैं। अब मोदी जी ठहरे तकनीकी पसंद। उन्होंने तो कोई पैंतीस साल पहले ही, जब डिजिटल कैमरा और इंटरनेट संसार में शायद आया ही नहीं था, अपने डिजिटल कैमरे से रंगीन फोटो खींच इंटरनेट से दिल्ली भेज दी थी। तो उन्हें भारतीय इकोनॉमी में भी यह श्वेत-श्याम का चक्कर पसंद नहीं आया। वैसे भी विज्ञान की नजर में काले रंग का अर्थ होता है रंग विहीन और सफेद रंग में सभी रंग समाहित होते हैं। तो मोदी जी ने पहले तो, आनन-फानन में रंग विहीन काले धन को समाप्त कर सारे धन को सफेद बनाया, बैंकों में जमा करवाया और फिर रंग-बिरंगी मुद्रा छपवाई।

तो भाईयों और बहनों, मित्रों, यह श्याम वर्ण का धन ईस्वी 2016 के बाद तो बिल्कुल भी नहीं है। न देश में और न देशवासियों का विदेश में। मोदी जी ने काला धन बिल्कुल ही समाप्त कर दिया है। वापस लाए बिना ही समाप्त कर दिया है। हम सबके खातों में पंद्रह पंद्रह लाख आये बिना ही काले धन को समाप्त कर दिया गया है। प्रश्न यह उठता है कि विदेशों में जमा भारतीयों का धन बढ़ क्यों रहा है, बढ़ कैसे रहा है। इस आपदा में भी, जहां हम सभी भारतीयों के पास धन घट रहा है, कुछ भारतीयों का स्विस बैंकों में जमा धन बढ़ रहा है। इसके कई कारण हैं। आइये, समझते हैं।

सबसे पहली बात तो यह है कि जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं तब से विदेशों में भारत की साख और शान बढ़ी है। भारतीयों को विदेशों का वीजा बड़ी आसानी से मिल जाता है। मोदी भाई, मेहुल भाई, माल्या भाई, और भी बहुत से भाई आसानी से विदेश भाग जाते हैं। इतनी आसानी से भागते हैं कि हवाई अड्डे पर बैठे स्टाफ को भी नहीं पता चलता है कि कौन अंदर रहा और कौन बाहर गया। कोई कोई तो बकायदा इन्फॉर्म कर के भी जाते हैं। और विदेशों में जा कर छिप जाते हैं। उससे भी आसानी से छिप जाते हैं जितनी आसानी से हम बचपन में छुपम-छुपाई या चोर-सिपाही खेलते हुए छिप जाते थे। हम तो मिल ही जाते थे पर वे ईडी को, सीबीआई को तब ही मिलते हैं जब वे स्वयं ही बताते हैं कि हम यहां हैं। माना जाता है कि यह स्विस बैंकों में जमा पैसा उन्हीं का है।

एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि 2016 में जब नोटबंदी हुई तो सभी लोगों ने अपने नोट बैंकों में जमा करवा दिए। अब भारतीय बैंक इतनी भारी रकम सम्हाल नहीं सके। तो उन्होंने अंधाधुंध, फटा-फट लोन बांटना शुरू कर दिया। जिन्हें मिला उनमें से कुछ ने उसे विदेशी बैंकों में जमा करवा दिया। इस तरह से भी स्विस बैंक में जमा रकम बढ़ी।

स्विस बैंक में जमा पैसे का एक राज़ मोदी जी की दरियादिली भी है। मोदी जी जब भी देते हैं, छप्पड़ फाड़ कर देते हैं। हजारों-लाखों करोड़ में देते हैं। दूसरी बात यह भी है कि जब भी देते हैं, गुप्त रूप से देते हैं। इतना गुप्त रूप से देते हैं कि दाएं-बाएं हाथ की बात तो छोड़ो, जिसे मिलता है उसे भी पता नहीं चलता है कि उसे मिला है। मोदी जी ने जो बीस लाख करोड़ पहले और अब पैंतीस हजार करोड़ (टीके के लिए) दिये, वो किसी को भी न दिखे और न मिले। भाईयों और बहनों बताओ, दिखे क्या? क्या आप में से किसी ने उन पैसों को देखा? क्या किसी को वो पैसे दिखाई दिए? क्या किसी को भी वे पैसे मिले? नहीं दिखे न! नहीं मिले न। भाईयों और बहनों, जब वो पैसे स्विस बैंक में जमा हो गए तो दिखते कैसे, मिलते कैसे!

एक और कारण है स्विस बैंकों में रकम जमा होने का। सरकार जी ने कहा कि आपदा में अवसर ढूंढ़ो। अब जिन बड़े लोगों ने आपदा में बड़ा अवसर ढूंढ़ा, प्रधानमंत्री जी के कहने से अवसरवादी बने, कोरोना काल में भी पूंजी बनाई, अमीरी के पायदान पर ऊपर चढ़े, उन्होंने भी अपना पैसा वहीं जमा करवाया जहां जमा करवाना चाहिए था- स्विस बैंक में। बाकी छोटे-मोटे अवसरवादियों को, जिन्होंने ब्लैक कर, छोटी-मोटी बेईमानी कर थोड़ा बहुत पैसा कमा लिया, उनके पास इतना कहां था कि वे स्विस बैंक में जमा करवा पाते। उन्होंने यहीं खर्च किया और यहीं जमा कराया।

कुछ दाग अच्छे होते हैं। किसी व्यक्ति के कपड़ों पर लगा सरसों के तेल का दाग अच्छा होता है और देशवासियों का स्विस बैंक में जमा रकम बढ़ने का दाग भी। पहला दाग बताता है कि घर में मुफलिसी नहीं है, कमाई चल रही है, अमीरी अभी बाकी है, घर में सरसों का तेल पक रहा है! दूसरा दाग बताता है कि देश में अमीरी चालू है। देश के लोग इंटरेस्ट देने वाले भारतीय बैंकों में इंटरेस्ट न रख इंटरेस्ट न देने वाले, खाता रखने का चार्ज तक वसूल करने वाले स्विस बैंकों में इंटरेस्ट रख रहे हैं। क्या इतनी उन्नति, इतना विकास ही काफी नहीं है। क्या यह दाग सचमुच ही अच्छा नहीं है?

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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