तिरछी नज़र : कोरोना काल में अवसरवादिता
जब से देश में कोरोना बढ़ना शुरू हुआ है, बार बार इस आपदा को अवसर में बदलने की बात की जा रही है। प्रधानमंत्री जी तो इस अवसरवादिता के मामले को लेकर बहुत ही गंभीर हैं। उनकी गंभीरता इसी बात से पता चलती है कि वे अपने पिछले सभी भाषणों में इसका जिक्र करते हैं। उनकी इस गंभीरता को हम सबको भी गंभीरता से ही लेना चाहिए।
प्रधानमंत्री जी यह तो मानते हैं कि यह जो कोरोना की आपदा है यह थोड़ी सी तो गंभीर है ही। कम से कम इस मामले में वे अपने अमरीकी और ब्राजीली दोस्तों से कुछ अलग हैं जो इसे आपदा मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं। शायद इसीलिए हम अभी अमेरिका और ब्राजील से बहुत पीछे हैं। अगर हमारे प्रधानमंत्री जी भी इसे आपदा नहीं मानते तो हम अमरीका से भी आगे होते।
हमारे प्रधानमंत्री जी इसे आपदा तो मानते हैं पर उनके लिए कोई भी आपदा इतनी बड़ी नहीं है कि उसे अवसर में नहीं बदला जा सके, उसका लाभ ही न उठाया जा सके। वैसे भी आपदाओं से लाभ उठाने का प्रधानमंत्री जी को पुराना अनुभव है। प्रधानमंत्री जी ही नहीं, उनके साथ गृहमंत्री जी भी आपदा का लाभ उठाने, उसे अवसर में बदलने में अनुभवी हैं।
प्रधानमंत्री जी चाहते हैं कि हम सब, भारत की पूरी जनता, जिसमें अम्बानी अडानी भी शामिल हैं, इस आपदा से पूरा लाभ उठाएं। आपदा को अवसर मान कर चलें। आत्मनिर्भर बनें। कहीं भी जाना हो तो पैदल ही निकल पड़ें। गेहूँ और चना खा कर गुजारा करना सीख लें। पकाने का साधन नहीं है तो कच्चा ही खा लें, पेट की गर्मी उसे अपने आप ही पचा लेगी। इस आपदा में पैदल चलना और मोटा खाना हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखेगा, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ायेगा और हम कोरोना से ज्यादा अच्छी तरह लड़ सकेंगे। इस आपदा ने एक ऐसा सुअवसर प्रदान किया है कि हम अपने स्वास्थ्य को सुधार सकें।
उधर अंबानी अडानी जैसे सेठ लोग आपदा को अवसर में बदल अपनी धन संपदा बढ़ायें। अवसर का लाभ उठा विश्व के अमीरों में अपनी रेंकिंग सुधार देश का मान बढायें। बाकी लोग जो कुछ उनके पास है, उसे ही सम्हाले रखने की जुगत में जुट जायें।
हमारे प्रधानमंत्री जी अपने मित्र और मंत्रिमंडलीय सहयोगी, हमारे गृहमंत्री जी के सहयोग से इस आपदा को अवसर में पूरी तरह से बदल चुके हैं। वे इस आपदा को अवसर में बदलने के लिए सारे साम-दाम, दंड-भेद, सभी पूरी तरह से अपनाने के लिए तत्पर हैं। वे जानते हैं कि जब अवसर का लाभ उठाना ही है तो लोक मत की, लोक लाज की परवाह करना बेकार है। वैसे भी सोशल मीडिया ने हमें बताया है कि गृहमंत्री जी जो करते हैं वही करते हैं जो कभी चाणक्य ने किया था। तो क्या चाणक्य भी ऐसा ही सब कुछ करता था। चाणक्य और उसकी चाणक्य नीति के लिए मन में जो श्रद्धा थी, गृहमंत्री जी ने निकाल दी है।
इस आपदाकाल में सरकार को अवसर मिला है तो आपदा प्रबंधन से अधिक आवश्यक राज्यों में विरोधी दलों की सरकारों का प्रबंधन हो गया है। सौ वर्ष बाद आई आपदा से निपटने से अधिक जरूरी हर पाँच वर्ष में आने वाले चुनाव को जीतना हो गया है। आपदा के कारण देश भले ही दो महीने से अधिक समय के लिए लॉकडाउन में चला गया हो पर चुनाव, चाहे भारत में हो या अमेरिका में, समय पर ही होने चाहिए। बीमारी चाहे कितनी भी फैले, चुनाव समय पर ही होंगे।
वैसे तो मोदी जी, योगी जी, शाह और डोभाल की चौकड़ी ने अपने छह साल के कार्य काल में देश को बहुत ही मजबूत बना दिया है। इतना मजबूत कि एक अस्सी वर्ष के बीमार कवि वरवर राव के सामने देश कमजोर दिखाई देने लगता है। उन्हें बीमारी के बावजूद बाईस महीने से बेल तक नहीं दी गई है। इन्होंने देश को इतना ताकतवर बना दिया है कि देश, जो विश्व गुरु बनना चाहता है, विश्व विख्यात प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े तक से इतना खतरा महसूस करने लगा है कि उन पर नब्बे दिन तक एफआईआर दर्ज नहीं हो पाई तो कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने की अवधि को नब्बे दिन और बढा़ दिया। देश को डॉक्टर कफील के देश को जोड़ने वाले भाषण से खतरा है, दसियों नेताओं के देश को तोड़ने वाले भाषणों से नहीं। देश को अखिल गोगोई से, महेश राउत से खतरा है।
मोदी जी की इस मंडली ने देश को इतना निडर बना दिया है कि देश को विश्वविद्यालयों के छात्रों से डर लगने लगा है। देश को नारे लगाते बच्चों से डर लगने लगा है। देश को आदिवासियों और मजदूरों के बीच काम करने वालों से डर लगने लगा है। देश को दंगों में मारने पीटने वालों से नहीं, मरने वालों से, पिटने वालों से डर लगने लगा है। देश को हर उस व्यक्ति से डर लगने लगा है जो डर के खिलाफ है। अब यह आपदाकाल अवसर बन कर आया है, इन सबको, देश के लिए खतरा बने लोगों को सबक सिखाने का।
लोगों की मुसीबतों में जो अवसर ढूंढे, उसे अवसरवादी कहते हैं। यह अवसरवादिता ही है कि अवसरवादी होना भी महान बना दिया गया है। यह आपदाकाल को अवसर में बदलने की कला ही है कि इस आपदाकाल को आपातकाल ही बना दिया गया है। आडवाणी जी बताते हैं कि आपातकाल में इंदिरा गांधी ने लोगों को झुकने के लिए कहा था, पर वे रेंगने लगे। अब तो किसी ने किसी को कुछ भी नहीं कहा है पर क्या विधायिका, क्या न्यायपालिका, क्या कार्यपालिका, क्या मीडिया, सभी लेटे पड़े हैं। हिल डुल भी नहीं रहे हैं। सच ही है, मोदी जी हैं तो कुछ भी मुमकिन है।
कवि वरवर राव की एक कविता का अंश है:
कब डरता है दुश्मन कवि से,
जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हैं,
वह कैद कर लेता है कवि को,
फांसी पर चढ़ाता है।
...
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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