तिरछी नज़र: और गैस सिलेंडर महंगा ऐसे हुआ
मेहरबानों, कद्रदानों, बूढ़ों और नौजवानों, आपके देश में, आपके राज्य में, आपके शहर में, आपकी गली मोहल्ले में, आपके घर में, हर घर में, घर घर में जनता की मांग पर, एक बार फिर, महंगाई की भारी मार। अबकी बार फिर एक मार्च से गैस सिलेंडर पचास रुपए महंगा। एक बार और सरकार जी की प्यार भरी चपत। सुनो, सुनो, सुनो, मेहरबानों, कद्रदानों, सभी ध्यान से सुनो।
हुआ यूं कि जनता को लगा कि देश में सरकार जी की सरकार ही नहीं है। दो महीने पहले दूध के दाम बढ़ने के बाद किसी भी चीज के दाम खास नहीं बढ़े हैं। जनता को सरकार जी पर, सरकार जी की सरकार पर यकीन ही नहीं हो रहा था। लग रहा था जैसे कि सरकार जी की सरकार ही नहीं रही। क्या पहले भी सरकार जी की सरकार ऐसे ही चलती थी कि दो महीने बीत जाएं पर किसी चीज के दाम न बढ़ाए जाएं?
लोगों में बेचैनी होने लगी। सुशासन की सारी चीजें मौजूद थीं। बुलडोजर चल रहे थे, बल्कि और जोर शोर से चल रहे थे। मॉब लांचिंग हो रही थी। महिलाओं पर अत्याचार बरकरार थे। ईडी, सीबीआई भी सक्रिय थीं। पर महंगाई बढ़ ही नहीं रही थी। कहीं न कहीं सरकार जी की सक्रियता में कोई न कोई कमी तो अवश्य ही थी। ऐसा पहले तो कभी नहीं होता था कि सारे गुण हों पर महंगाई बढ़ न रही हो।
लोगों को ध्यान आया, चुनाव हैं। पूर्वोत्तर में तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। और जब देश में कहीं भी चुनाव हों तो विकास की, सुशासन की बाकी सब चीजें तो जोर शोर से चलती रहती हैं परन्तु महंगाई थम जाती है। और जैसे ही वोटिंग खत्म होती है महंगाई फिर से सरपट दौड़ने लगती है। महंगाई बढ़ाने वाले अंतरराष्ट्रीय कारक तब तक शांत रहते हैं जब तक वोट नहीं पड़ जाते हैं। चर्चा है कि इस बार पूर्वोत्तर के राज्यों में चुनाव के दौरान तो सरकार जी ने रूस यूक्रेन युद्ध भी लगभग रुकवा ही दिया था जिससे कि देश में महंगाई न बढ़े। इससे पहले भी एक बार युद्ध छः घंटे के लिए रुकवाया गया था। सरकार जी भी ना, अपने स्वार्थ के लिए जब मर्जी रूस यूक्रेन युद्ध रुकवा देते हैं और फिर शुरू करवा देते हैं। विश्व शांति की तो उन्हें बिल्कुल भी चिंता नहीं है।
लेकिन इस बार गैस का सिलेंडर महंगा हुआ है जनता की भारी मांग के कारण। कैसे? नहीं समझे ना। आओ, आपको समझाते हैं।
सरकार जी जब चुनावी सभाओं में भाषण देते हैं तो भीड़ से पूछते हैं, "भ्रष्ट सरकार को उखाड़ना चाहिए या नहीं"?
भीड़ जवाब देती है, "जरुर उखाड़ना चाहिए"।
सरकार जी पूछते हैं, "क्या काला धन वापस आना चाहिए या नहीं"?
भीड़ जवाब देती है, "आना चाहिए"।
सरकार जी पूछते हैं, "चोरी करना पाप है या नहीं"?
भीड़ जवाब देती है, "हां पाप है"।
सरकार जी बताते हैं, सारे चैनल, सारे अखबार बताते हैं कि सारी की सारी जनता सरकार जी के साथ है, सरकार जी के निर्णयों के साथ है।
इस बार भी यही हुआ।
सरकार जी ने भीड़ से पूछा, "इस बार बहुत अधिक ठंड पड़ी थी या नहीं"?
भीड़ ने कहा, "बहुत ठंड थी"।
सरकार जी ने पूछा, "अब गर्मी शुरू हो गई है या नहीं"?
भीड़ ने कहा, "हां, अब गर्मी शुरू हो गई है"।
सरकार जी ने पूछा, "गर्मी शुरू होने से अब खाना बनाने में कम टाइम लगता है या नहीं"?
भीड़ ने जोर से जवाब दिया, "हां, अब कम टाइम लगता है"।
सरकार जी ने पूछा, "जब टाइम कम लगता है तो गैस कम लगती है या नहीं"?
भीड़ ने उत्साह से जवाब दिया, "अब गैस कम लगती है"।
सरकार जी ने पूछा, "तो गैस के खर्चे में बचत हुई है या नहीं"?
भीड़ ने जवाब दिया, "हां, हुई है"।
सरकार जी ने पूछा, "क्या यह बचत देश के काम नहीं आनी चाहिए"?
भीड़ ने शोर मचा कर जवाब दिया, "हां आनी चाहिए"।
और सरकार जी ने भीड़ से पूछा और गैस सिलेंडर की कीमत पचास रुपए बढ़ा दी। गैस की बढ़ी कीमत देश के काम आ गई। सरकार जी की मित्र की गैस कम्पनी के गिरते हुए शेयर दबादब बढ़ने लगे। और जनता पिसने लगी। महंगी गैस के बोझ तले दबने लगी।
जवाब भीड़ देती है और पिसती जनता है। और उन्होंने बस यही तो किया है कि जनता को भीड़ में बदल दिया है।
(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं)
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