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त्रिपुरा : क्या 'शांति और भय से मुक्ति' यही है मोदी जी?

भाजपा के पिछले पांच वर्षों के शासनकाल में राजनीतिक विरोधियों और जनता के ख़िलाफ़ लगातार हमले हुए हैं।
tripura

11 फरवरी को त्रिपुरा में चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2018 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत ने प्रदेश में कानून का शासन कायम किया था। अब त्रिपुरा में 16 फरवरी को फिर से मतदान है।

उन्होंने आगे कहा कि, "भाजपा ने राज्य को भय और हिंसा से मुक्त कर दिया है।" 

क्या यह छोटा सा सीमावर्ती राज्य, भय और हिंसा से मुक्त हो गया है? यदि पिछले पांच वर्षों की घटनाओं पर एक सरसरी नजर डालें तो पता चलता है कि यह हक़ीक़त से बहुत दूर की बात है।

वामपंथियों के खिलाफ हिंसा

यूं तो त्रिपुरा में सभी राजनीतिक विपक्षी पार्टियों के खिलाफ लगातार हिंसा हुई है, लेकिन विशेष रूप से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाली वामपंथी ताकतों को अधिक निशाना बनाया गया है। याद रहे कि 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद, वाम मोर्चा मुख्य विपक्ष के रूप में उभरा था। चुनाव आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार वामपंथ को 44.5 प्रतिशत वोट, जबकि बीजेपी और उसके सहयोगी आईपीएफटी (इंडिजेनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) को 54 प्रतिशत, तथा बीजेपी को अकेले 43.6 प्रतिशत वोट मिले थे।

सीपीआई(एम) की रिपोर्ट कहती है कि, हिंसा कथित रूप से भाजपा समर्थकों द्वारा की जाती  है, और उसके कार्यकर्ताओं के साथ-साथ वामपंथ का समर्थन करने वाले आम लोगों को निशाना बना शारीरिक हमले किए जाते हैं। त्रिपुरा में माकपा और विभिन्न वामपंथी संगठनों के कार्यालयों पर हमले किए गए, वामपंथी कार्यकर्ताओं की दुकानों और घरों में आगजनी और लूटपाट की गई, पोल्ट्री फार्मों को नष्ट किया गया, मछली के तालाबों को जहरीला बना दिया गया, वृक्षारोपण में रबर के पेड़ों को काटा गया, वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया, और उन्हे आग के हवाले कर दिया गया। माकपा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार के अनुसार, हिंसा में अब तक एक महिला सहित 21 वामपंथी समर्थक मारे गए हैं। 

माकपा ने समय-समय पर इस तरह की कई घटनाओं को दर्ज़ किया और स्थानीय पुलिस उनके बारे में बताया लेकिन पुलिस ने कोई कार्यवाई नहीं की। त्रिपुरा माकपा द्वारा दर्ज़ किए गए रिकॉर्ड के अनुसार, भाजपा शासन के दौरान, 3,583 वामपंथी समर्थकों, जिनमें 321 महिलाएं थीं, पर शारीरिक हमला किया गया, 3,580 घरों और 737 दुकानों में तोड़फोड़ की गई और क्षतिग्रस्त किया गया, पार्टी के 963 और अन्य वामपंथी संगठनों के कार्यालयों में आग लगा दी गई या तोड़फोड़ की गई या यहां तक कि उन पर जबरन कब्जा कर लिया गया। कुछ कार्यालयों पर आठ से नौ बार हमला किया गया और कुछ को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया। माकपा राज्य कमेटी कार्यालय समेत राज्य में एक भी माकपा कार्यालय इस हिंसा से नहीं बचा है।

सीपीआई (एम) के रिकॉर्ड के आधार पर नीचे दी गई तालिका, 3 मार्च, 2018 से 30 सितंबर, 2022 के दौरान भाजपा समर्थकों द्वारा की गई हिंसा का एक नज़ारा पेश करती है:

राज्य में हिंसा और दंड मुक्ति पर टिप्पणी करते हुए, माणिक सरकार ने मार्च 2018 से बीजेपी-आईपीएफटी शासन के तहत मॉब लिंचिंग के नौ मामलों का हवाला दिया, जिसमें 10 लोग मारे गए थे। नौ अन्य मामलों में पुलिस ने दो लोगों को बचाया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन की 'अनैतिक उदारता' के कारण अपराधी पकड़े नहीं जा रहे हैं। इसके अलावा, इस अवधि के दौरान हिरासत में पांच मौतें हुईं हैं।

लोकतंत्र पर हमला

उपरोक्त हमलों के अलावा, भाजपा राज्य सरकार सक्रिय रूप से, विपक्षी दलों, विशेष रूप से सीपीआई (एम) द्वारा आयोजित सामान्य राजनीतिक गतिविधियों में बढ़ा डाल रही है, जिसे उसके सत्ता में बने रहने के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में देखा जाता है। सीपीआई (एम) या वाम द्वारा आयोजित किसी भी प्रदर्शन या विरोध को पुलिस बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हे शांति भंग होने और हिंसा का डर सताता है।

माणिक सरकार, बादल चौधरी और अन्य ऐसे ही वामपंथी नेताओं पर बार-बार हमला किया गया या उन्हें इधर-उधर जाने और प्रदर्शनों और रैलियों में शामिल होने से रोका गया। यहां तक कि दक्षिण त्रिपुरा के संतिरबाजार के बिरचद्र मनु में 13 शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए जनसभा की भी अनुमति नहीं दी गई, जो 1988 में तत्कालीन कांग्रेस-टीयूजेएस (त्रिपुरा उपजाती जुबा समिति) शासन द्वारा समर्थित उग्रवादियों द्वारा मारे गए थे।

बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से, त्रिपुरा में हुए जो भी चुनाव हुए उन्हे कथित तौर पर बीजेपी समर्थकों ने आतंकी रणनीति के माध्यम से मजाक बना दिया है। 2019 में पंचायत चुनाव में कुल 6,111 ग्राम पंचायत सीटों में से 5,278 सीटों पर बीजेपी ने निर्विरोध कब्जा कर लिया था। पंचायत समितियों के लिए, कुल 419 सीटों में से भाजपा ने 338 सीटें निर्विरोध जीती, जबकि जिला परिषद की 116 सीटों में से 37 सीटों पर कोई मुकाबला ही नहीं हुआ।

“भाजपा के बाइक सवार हुड़दंगियों को चुनाव कार्यालयों के सामने तैनात किया गया, ताकि कोई विपक्षी उम्मीदवार नामांकन पत्र जमा न कर पाए। ज्यादातर जगहों पर पुलिस सिर्फ तमाशबीन बनी रही।' जबकि राज्य के भाजपा प्रवक्ता ने इस आरोप का खंडन किया और कहा कि, “कई सीटों पर मुकाबला हुआ है। मीडिया के साथ केवल निर्विरोध सीटों के आंकड़े साझा किए जा रहे हैं।

2021 में, 20 शहरी स्थानीय निकायों की 334 सीटों के लिए हुए चुनावों में इसी तरह की प्रक्रिया देखी गई, जिसमें सात निकाय निर्विरोध भाजपा के पाले में चले गए। बीजेपी ने सभी में निर्विरोध के जरिए 122 सीटें जीतीं थी।

त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के तहत 587 ग्राम सभाओं के चुनाव, मार्च 2021 में होने थे, लेकिन बीजेपी सरकार ने नुकसान के डर से उन्हें बार-बार टाल दिया। अंतत: हाई कोर्ट को दखल देना पड़ा और निर्देश देना पड़ा कि ये नवंबर 2022 तक कराए जाएं। हालांकि अभी तक ये चुनाव नहीं हो पाए हैं।

कुछ अपराधों में वृद्धि

2021 तक उपलब्ध राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि त्रिपुरा में भाजपा शासन के चार वर्षों (2018-2021) में वाम मोर्चा शासन (2014-2017) के तहत पिछले चार वर्षों की तुलना में अपहरण, गंभीर चोट, दंगे, हत्या के प्रयास और आगजनी जैसे कुछ अपराधों में वृद्धि हुई है। ये राजनीतिक हिंसा से जुड़े अपराध हैं।

बीजेपी के शासन में, हत्या के प्रयास के मामले 295 से 96 प्रतिशत बढ़कर 578 हो गए, हालांकि हत्या के मामले 553 से घटकर 517 हो गए हैं। अपहरण के मामले 539 से बढ़कर 595 हो गए, दंगे के मामले 371 से बढ़कर 627 हो गए, आगजनी के मामले बढ़ गए जो 150 से 326, और गंभीर चोट के मामलों में 4160 से 4548 तक मामूली वृद्धि हुई।

याद रखें कि 2020 और 2021 महामारी के वर्ष थे, जिसमें देश भर में अपराध में सामान्य गिरावट देखी गई थी क्योंकि लॉकडाउन और आंदोलन पर प्रतिबंध काफी समय से लागू थे, और लोग घातक बीमारी से जूझ रहे थे। इसके बावजूद, राजनीतिक हिंसा में बढ़ती प्रवृत्ति इस बात पर प्रकाश डालती है कि भाजपा सरकार किस तरह से राज्य सरकार चला रही है और राजनीतिक विरोध के खिलाफ राज्य समर्थित हिंसा के आरोपों की पुष्टि करती है।

बीजेपी को कड़े मुक़ाबले का सामना करना पड़ रहा है 

ऐसा लगता है कि वाम-कांग्रेस गठबंधन मजबूत स्थिति में आ आ गया है और भाजपा को त्रिपुरा में फिर से चुनावी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। यह ज्यादातर राज्य में भाजपा सरकार के निराशाजनक प्रदर्शन का परिणाम है। हक़ीक़त यह है कि सरकार, बढ़ते असंतोष और अलोकप्रियता का सामना कर रही थी, यही कारण था कि भाजपा के शीर्ष नेताओं ने मई 2022 में अचानक मुख्यमंत्री बिप्लब देब को हटा कर उनके स्थान पर राज्य भाजपा अध्यक्ष माणिक साहा को ज़िम्मेदारी देने का फैसला किया।

राज्य में बढ़ती बेरोजगारी के अलावा, 2018 में भाजपा ने जो 299 वादे किए थे उन्हे पूरा करने में कथित विफलता, बढ़ती हिंसा और आदिवासी समुदायों के बीच अलगाव की भावना ने राज्य में भाजपा के समर्थन को लगातार कम किया है। ऐसा लगता है कि जनजातीय भावनाएं सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ हो गई हैं, जैसा कि टीटीएएडीसी चुनावों के नतीजों में देखा गया था, जहां एक नए आदिवासी संगठन, टिपरा मोथा और उसके गठबंधन सहयोगी आईएनपीटी (इंडिजेनस नेशनल पार्टी ऑफ ट्विप्रा) ने 28 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा केवल नौ सीटें ही जीत सकी थी, जबकि एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी।

शायद यही वजह है कि बीजेपी का वरिष्ठ नेतृत्व खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है - लेकिन तथ्यों को नकारना इस कठिन लड़ाई में उनकी मदद नहीं कर सकता है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

Tripura: Is this ‘Peace and Freedom from Fear’, Modi ji?

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