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ट्यूनीशिया: पहली डिजिटल राजनीतिक सुझाव प्रक्रिया पर लोगों में मत-विभाजन

नए संविधान पर लोगों से डिजिटल तरीके से राजनीतिक सुझाव बुलवाए गए हैं। यह ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति काएस सईद का राजनीतिक संकट से निकलने का रास्ता हो सकता है। लेकिन सईद की मंशा की तरह, इस ऑनलाइन सुझाव प्रक्रिया पर भी लोगों की मिश्रित प्रक्रिया है।
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सईद काएस की कार्रवाई पर लोगों में मत विभाजन है। ट्यूनीशिया के कुछ लोगों का मानना है कि काएस के पास सत्ता जाना तख़्तापलट है। 

15 जनवरी से ट्यूनीशिया के लोग देश के पहले ऑनलाइन जनमत संग्रह में हिस्सा ले सकेंगे, जो उनके देश का भविष्य तय करेगा। शिक्षा, संस्कृति, चुनाव, अर्थव्यवस्था, ई-ल्सतिचारा (ई-सुझाव) नाम की विशेष वेबसाइट, जिसमें राष्ट्रीय पहचान संख्या दर्ज होगी और जो स्थानीय रजिस्टर के तौर पर काम करेगा, जैसे 6 विषयों पर अपना विचार दर्ज करा सकेंगे। यह लोग अपने मोबाइल पर वेबसाइट में दाखिल होने के लिए जरूरी कोड हासिल करने के बाद सर्वे में हिस्सा ले सकेंगे।  

जनवरी की शुरुआत में इस ऑनलाइन जनमत संग्रह का परीक्षण किया गया था, यह मार्च तक जारी रहेगा। इसे लेकर ट्यूनीशियाई राष्ट्रपति काएस सईद का कहना है कि यह संवैधानिक बदलावों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। 

डिजिटल निजता के समर्थक लोग इस कवायद को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि कोई नहीं जानता कि इस वेबसाइट पर निजी जानकारी कितनी सुरक्षित है।

संवैधानिक तख़्तापलट?

पिछली जुलाई में सईद ने देश की संसद को स्थगित कर दिया था और तत्कालीन प्रधानमंत्री को पद से हटाकर आपात शक्तियां अपने हाथ में ले ली थीं। सईद ने कहा कि उन्हें कार्यपालिका का संचालन मौजूदा राजनीतिक भ्रष्टाचार और गतिहीनता के चलते अपने हाथ में लेना पड़ा। बता दें एक दशक पहले हुई क्रांति में ट्यूनीशिया में तानाशाह जाइन अल-आबीदीन की सत्ता को उखाड़ कर फेंक दिया गया था।

लेकिन सत्ता पर सईद के इस अधिकार ने देश के लोगों में मत विभाजन करवा दिया है। सईद के समर्थकों का कहना है कि मौजूदा आर्थिक स्थितियों और राजनीतिक अनियमित्ताओं को देखते हुए ऐसा करना जरूरी था। वहीं सईद के आलोचकों का कहना है कि उनकी कार्रवाई "संवैधानिक तख़्तापलट" है। आलोचकों का कहना है कि सईद संभावित तानाशाह हैं, जिससे ट्यूनीशिया का शैशव लोकतंत्र खतरे में आ गया है। 

ईसीएफआर (विदेशी मामलों पर यूरोपीय परिषद) के सीनियर पॉलिसी फैलो एंथनी़ ड्वार्किन कहते हैं, नतीज़तन "ट्यूनीशिया और कई विदेशी लोगों ने सईद से उस योजना को पेश करने के लिए कहा है कि जिसके ज़रिए वे देश को लोकतांत्रिक जवाबदेही के रास्ते पर वापस लाएंगे।

आलोचकों का कहना है कि ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति काएस सईद (केंद्र में) ने अपनी ताकत को एकजुट करने के लिए खुद को एक साल का वक़्त दिया है।

दिसंबर में चुनाव

पिछले महीने घोषित हुए सईद के रोडमैप में जुलाई 2022 में संवैधानिक जनमत संग्रह का जिक्र है। ट्यूनीशिया के लोग अपने देश के लिए एक नए संविधान बनाने में प्रावधान बनाने के लिए मतदान करेंगे, जिसका निर्माण सईद और उनके द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति करेगी। नए संविधान के मसौदे में ऑनलाइन सुझावों को शामिल करने की कोशिश की जाएगी। 

इस साल के अंत में चुनावों का प्रस्ताव है, जो नए संविधान में अपनाई जाने वाली चुनावी व्यवस्था के आधार पर करवाए जाएंगे।

सईद की दूसरी योजनाओं ने जिस तरीके से देश में विभाजन किया है, उसी तरह ऑनलाइन जनमत संग्रह पर भी ट्यूनीशिया के लोगों में मत विभाजन है। यहां तक कि वेबसाइट के मुख्य नारे "आपका मत, हमारा फ़ैसला" की भी अलग-अलग व्याख्या की जा सकती है। सईद पहले ही कह चुके हैं कि वे शासन की राष्ट्रपति व्यवस्था में यकीन करे हैं, जहां क्षेत्रीय स्तर पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र होगा, ना कि एक राष्ट्रीय संसद का चुनाव किया जाएगा। 

ट्यूनिश में बैंक में काम करने वाले अकरम अल-शाहेद कहते हैं कि यह "यह एक समझदारी भरा कदम है। वे सभी से समतावादी ढंग से व्यवहार करना चाहते हैं, वे पार्टियों या कुलीनों को विशेषाधिकार देना नहीं चाहते। चाहे राष्ट्रपति का राजनीतिक झुकाव कुछ भी हो, हम डिजिटल दुनिया में रहते हैं और हर किसी को इसके हिसाब से ढलना होगा।

ट्यूनीशिया में इंटरनेट का विस्तार हर जगह एक जैसा नहीं है।

ट्यूनिश में संचार तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाली इंजीनियर रहमा अल-हब्बासी कहते हैं, "दिक्कत ऑनलाइन सुझाव स्वीकार या अस्वीकार करने में नहीं है। दरअसल यहां तकनीकी बाधाएं हैं।" हब्बासी इस दौरान ट्यूनीशिया में इंटरनेट के दायरे और शिक्षा में अंतर की बात का जिक्र करते हैं।

ट्यूनीशिया के सिर्फ़ 66 फ़ीसदी लोगों के पास ही नियमित इंटरनेट पहुंच उपलब्ध है। इस महीने की शुरुआत में ट्यूनीशिया के सामाजिक कल्याण मंत्रालय ने घोषणा में कहा कि देश की 18 फ़ीसदी आबादी (तकरीबन 20 लाख लोग) निरक्षर हैं। आलोचकों का कहना है कि इन सारी चीजों का मतलब है कि ऑनलाइन सुझावों की प्रक्रिया समावेशी नहीं हो सकती है।

अज्ञात स्त्रोत्

भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाले संगठन और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के ट्यूनीशियाई साझेदार आईवाच ने वेबसाइट पर पारदर्शिता में कमी होने की आलोचना की है। संगठन का कहना है कि कोई नहीं जानता कि इसे किसने बनाया, यहां डेटा कितना सुरक्षित है या जनमत संग्रह में पूछे जाने वाले सवाल किसने तैयार किए।

आईवाच ने एक वक्तव्य में कहा, "हमारा मानना है कि जिसने भी सवाल तैयार किए हैं, वह लोगों की सोच को पहले ही मनमुताबिक़ दिशा में मोड़ना और उनके स्व-पहचान के अधिकार को सीमित करना चाहता है।" 

एक मेमोरियल में बताया गया है कि एक रेहड़ी लगाने वाले मोहम्मद बाउजीजी ने 17 दिसंबर, 2010 को खुद को आग लगा ली थी, इस घटना ने ट्यूनीशियाई क्रांति को गति देने के काम किया था। 

सईद ने ट्यूनीशियाई क्रांति की वर्षगांठ को 14 जनवरी से 17 दिसंबर कर दिया है। दरअसल 17 दिसंबर ही वह तारीख़ थी, जब एक रेहड़ी वाले ने आग लगाकर खुदकुशी कर ली थी, जिसके बाद क्रांति चालू हो गई थी। 

डिजिटल प्राइवेसी और इंटरनेट तक पहुंच को लेकर अंतरराष्ट्रीय संगठन चिंतित हैं। एक्सेस नाऊ और फ्रीडम हाउस जैसे संगठनों का कहना है कि अगर वेबसाइट ट्यूनीशिया के सुरक्षा कानूनों का भी अनुपालन करती है, तो भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह कानून अब पुराने हो चुके हैं।

अफेक टॉउन्स पार्टी और एन्नाहादा आंदोलन के वरिष्ठ सदस्यों ने भी ऑनलाइन सुझावों की व्यवस्था की आलोचना की है। बता दें अफेक टाउन्स पार्टी की पिछली ट्यूनीशियाई संसद में सबसे ज़्यादा सीटें थीं। 

विरोधियों की पहचान

अपने फ़ेसबुक पेज पर सईद के सबसे तीखे आलोचक, 2011 से 2014 के बीच अंतरिम राष्ट्रपति रहे मोनसेफ मारज़ाउकी ने पाठकों से कहा, "उन्हें और उनके मूर्खतापूर्ण सुझावों को नज़रंदाज़ करिए।" मारज़ाउकी ने चेतावनी देते हुए कहा कि वेबसाइट फर्ज़ी है औऱ बाद में उन ट्यूनीशियाई लोगों की पहचान करेगी, जो सईद से सहमति नहीं रखते हैं।

मारज़ाउकी को खुद 22 दिसंबर को चार साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि वे देश से बाहर हैं। यह सजा "राज्य की बाहरी सुरक्षा के उल्लंघन" के लिए सुनाई गई थी। 76 साल के मारज़ाउकी को मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। वे पेरिस में रहते हैं। उन्होंने सजा पर कहा कि सईद की हालिया कार्रवाईयों की खुलकर आलोचाना करने के चलते, उन्हें सुनाई गई सजा राजनीतिक है।

ट्यूनीशिया महामारी, राजनीतिक अस्थिरता और बड़े विदेशी कर्ज़ के चलते आर्थिक संकट में फंसा हुआ है।

पिछले बुधवार को मारज़ाउकी उन 19 लोगों में शामिल हो गए, जिनके ऊपर 2019 में हुए चुनावों में चुनावी उल्लंघन के आरोप लगे हैं। इस समूह में शामिल दूसरे लोगों में चार पूर्व प्रधानमंत्री और राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख शामिल हैं।

बढ़ती चिंताएं

लेकिन ट्यूनीशियाई आबादी और वहां की राजनीतिक पार्टियों का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है, जो सईद के चार साल के रोडमैप का समर्थन करता है। ट्यूनीशिया की बाथ पार्टी का कहना है कि यह "सुधारों के लिए एक साफ़ और ठोस मंशा दिखाता है।" वामपंथी धड़े की पार्टी पॉपुलर फ्रंट ने भी इस कवायद को भ्रष्ट इस्लामी पार्टियों को सत्ता से हटाने का कदम बताया है।

जब सईद ने पहली बार संसद बंद की थी, तब कई सामान्य ट्यूनीशियाई लोगों ने इसका स्वागत किया था। पिछले 10 सालों में आईं 9 सरकारें उनके खस्ता आर्थिक हालात सुधारने में नाकाम रही हैं। उस दौरान हुए मतदान बताते हैं कि सईद के सत्ता में आने से बहुत पहले ही देश के बहुसंख्यक लोगों को गलत दिशा में मोड़ा जा चुका था। 

लेकिन उसके बाद से ही राष्ट्रपति का तानाशाही भरा रवैया तेज होता जा रहा है। इस दौरान मारज़ाउकी जैसे विरोधियों को शांत करने के लिए न्यायपालिका के बढ़ते उपयोग से कई लोग चिंता में हैं। 

ट्यूनीशियाई राष्ट्रपति काएस सईद के समर्थक, उनके द्वारा 17 दिसंबर 2022 को नए चुनावों तक, संसद को भंग करने का जश्न मनाते हुए।

सईद के सत्ता में आने से पहले  80 फ़ीसदी आबादी का सोचना था कि देश ठीक से नहीं चल पा रहा है।

क्या ख़त्म हो रहा है लोकतंत्र?

ईसीएफआर के ड्वॉर्किन कहते हैं, "वह जो कर रहे हैं, उससे बड़े पैमाने पर संशय उभरा है। जुलाई में सत्ता हथियाने के बाद, जो ताकतें सईद से सहानुभूति रखती थीं, अब उनमें से कई उनके खिलाफ़ हो चुकी हैं। यह साफ़ हो चुका है कि वो देश को ज़्यादा केंद्रीकृत दिशा में ले जाने की मंशा रखते हैं और ऐसा कर भी रहे हैं।"

इसलिए डिजिटल सुझावों पर देश में मत विभाजन है। ड्वॉर्किन ने डी डब्ल्यू को बताया, "बुनियादी स्तर पर देखें, तो यह अच्छा ही है कि लोगों से कुछ भी ना पूछने के बजाए, कुछ तो मत लिया जा रहा है। लेकिन यह उथली कवायद ही दिखाई दे रही है, जहां सिर्फ़ सुझाव लेने का दिखावा हो रहा है। इस कवायद में कुछ ठोस नहीं है।"

वह कहते हैं कि यह जो कुछ हो रहा है, उसे व्यापक नज़रिए से देखने की जरूरत है। ड्वॉर्किन के मुताबिक़, "यह प्रक्रिया (रोडमैपः कैसे काम करेगी, इसमें बहुत कम पारदर्शिता है। किसी भी दूसरी राजनीतिक पार्टी या नागरिक समूह की इसमें औपचारिक सक्रियता नहीं है। और यह सबकुछ उस राजनीतिक व्यवस्था में हो रहा है, जहां सारी राजनीतिक शक्ति सईद के हाथों में केंद्रित है।" 

साभार: DW

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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