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“नोटबंदी में जुड़वा बच्चे खत्म हो गए हम आस लगाए हैं इस बंदी में हमारा यह बच्चा बच जाए"

ग्राउंड रिपोर्ट : घर से बेघर हुए, फूलपुर से पैदल इलाहाबाद पहुंचे कामगार श्यामजी और आठ महीने की गर्भवती पत्नी संजू की दर्दभरी कहानी।
श्यामजी और पत्नी संजू

"हमारे चार बच्चे खत्म हो चुके हैं। नोटबंदी में जुड़वा बच्चे खत्म हो गए। हम आस लगाए हैं इस बंदी में हमारा यह बच्चा बच जाए"

ये शब्द कामगार श्यामजी उपाध्याय के हैं। श्यामजी इलाहाबाद से तीस किलोमीटर दूर फूलपुर में इलेक्ट्रिशन का काम करते हैं। लॉकडाउन में दो महीने से काम बंद है, श्याम जी के पास न खाने के पैसे हैं न ही कमरे का किराया देने के लिए। इसलिए वे आठ महीने की गर्भवती पत्नी को पैदल लेकर इलाहाबाद की ओर निकलने को मजबूर हो गए।

जौनपुर के रहने वाले श्यामजी कक्षा पांच तक पढ़ाई किये हैं। 2001 से आस-पास के जिलों में घूम-घूम कर काम करते हैं। श्यामजी ने चार महीने पहले फूलपुर में बिजली मैकेनिक का काम करना शुरू किया। घर-घर जाकर पुराने पंखे, वायरिंग और कूलर ठीक करने का काम करते हैं। दिनभर में 150 से 200 रुपये रुपये कमा लेते हैं।

श्यामजी पत्नी, संजू उपाध्याय के साथ फूलपुर में किराये के कमरे में रहते थे, जिसका किराया 1500 रुपये था। मकानमालिक की तरफ से कुछ दिनों से दो महीने का किराया चुकाने के लिए दबाव डाला जा रहा था।

गर्भवती संजू उपाध्याय बताती हैं, "रूम वाले किराए के लिए झगड़ा करते थे। खाने के लिए मर रहे हैं तो कहाँ से किराया देते? कोई देता था तो खाते थे। आठ महीने का बच्चा है पेट में, चलने पर दर्द होता है लेकिन रुकते-रुकते यहां तक आये"

श्यामजी ने बताया बंदी (लॉकडाउन) में काम बंद था। कोई घर पर काम के लिए बुलाता नहीं था। लॉकडाउन में काम न होने की वजह से उनके पास पैसे नहीं थे, इसलिए वे मकानमालिक का किराया नहीं चुका पाए।

श्यामजी बताते हैं "14 मई की शाम फूलपुर थाने से राजेश कुमार (सब इंस्पेक्टर) मकानमालिक के दबाव में कमरे पर आये और बोले कमरा खाली कर दो। इसलिए हम पत्नी के साथ अगले दिन सुबह पांच बजे कमरे का सारा सामान साइकिल पर लादकर पैदल इलाहाबाद की तरफ निकल पड़े।"

गर्भवती संजू के पार्क में चार दिन

श्यामजी जिस साइकिल से घूम-घूम कर घरों में पंखे बनाते थे उसी साइकिल पर कमरे का सारा सामान लादकर पत्नी के साथ 15 मई की सुबह फूलपुर से पैदल अपने गांव बदलापुर की तरफ निकल पड़े, लेकिन जौनपुर बार्डर से पुलिस ने लौटा दिया। रास्ते में पत्नी के पेट में दर्द और उल्टी होने लगी।

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श्यामजी ने बताया कि उन्होंने सड़क के किनारे गांवों से कुछ पैसे मांगकर मेडिकल स्टोर से दर्द की दवा खरीदी, पत्नी को खिलाया और थोड़ी देर बाद पैदल इलाहाबाद की तरफ निकल पड़े।

पति-पत्नी झूँसी, जीटी रोड के किनारे स्थित पार्क में नीम के एक पेड़ के नीचे तीन दिनों तक रहे। इन्हें तीन दिनों तक एक ही स्थान पर देखकर झूंसी क्षेत्र में मज़दूरों तक मदद पहुंचाने वाले 'इलाहाबाद हेल्प ग्रुप' के सदस्यों ने इनकी समस्या जानने की कोशिश की।

हेल्प ग्रुप की सदस्य आभा सचान बताती हैं कि "हमने लगातार तीन दिनों तक एक ही स्थान पर इन्हें (पति-पत्नी) देखा तो जानने की कोशिश की कि जब सभी मुसाफ़िर जा रहे हैं तो ये क्यों रुके हैं? हमने बात की तो इन्होंने बताया कि हम स्वरूप रानी अस्पताल में जा रहे हैं, वहीं रहेंगे एक महीने। अगले महीने 16 जून को पत्नी की डिलीवरी डेट है। फिर हम लोगों ने स्थिति को देखते हुए किराये पर एक कमरे और खाने-पीने की व्यवस्था की।"

गर्भवती संजू की अभी क्या स्थिति है?

हम जब संजू के बसते नए आशियाने पर पहुंचे तो संजू दीवार के सहारे धीरे-धीरे बाथरूम की ओर जा रही थीं। संजू को देखने से पता चलता है कि वे बेहद कमजोर हैं और डिलीवरी के करीब हैं।

संजू के पति श्यामजी के चेहरे पर चिंताएं और परेशानियां साफ देखी जा सकती हैं। शटर लगा एक कमरा है, नीचे एक चटाई है, कोने में एक पेट्रोमैक्स और चूल्हा है और दूसरे कोने में कपड़ों के दो बड़े-बड़े गट्ठर पड़े हैं। कमरा देखने से लगता है कि जैसे अभी-अभी ही कोई आया हो।

श्यामजी रोते हुए बताते हैं "हमारे चार बच्चे खत्म हो चुके हैं। नोटबंदी में जुड़वा बच्चे खत्म हो गए। हम आस लगाए हैं इस बंदी में हमारा यह बच्चा बच जाए"

संजू से हमने बात करनी चाही लेकिन स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण संजू लम्बी बात-चीत करने में असमर्थ दिखीं। कुछ बोल रही हैं तो गला सूख रहा है। 

अब स्वास्थ्य कैसा है पूछने पर बताती हैं "अभी तक हमारे सभी बच्चे सात-आठ महीने पर खत्म हुए। जैसे आठवां महीना लगता है डर लगने लगता है। नींद नहीं आती, रात-रात भर जगते रहते हैं। डॉक्टर ने ज्यादा चलने से मना किया है लेकिन अब खाने के लिए मर रहे हैं तो चलना ही पड़ा।"

फूलपुर थाने के सब इंस्पेक्टर राजेश कुमार से हमने बात की। राजेश कुमार ने श्यामजी के आरोप से साफ इंकार किया कि उन्होंने इन्हें कमरा खाली करने के लिए कहा।

राजेश कुमार बताते हैं कि "काफी दिन पहले इनका एक प्रकरण आया था कि किरायेदार (श्यामजी) आरोप लगा रहे थे मकानमालिक पर कि उन्होंने हमारी टीवी गायब कर दी और मकानमालिक आरोप लगा रहे थे कि किरायेदार उनके आठ हजार रुपये गायब कर दिए। दोनों पक्ष थाने पर आये थे, वहां के सभासद के सामने समझौता हो गया, ये लोग चले गए। हम लोगों ने समझाया कि जब आपकी आपस में नहीं पटती तो लॉकडाउन के बाद आप कहीं अन्य जगह कमरा खोज लीजिये। लेकिन मैंने कतई नहीं कहा है कि अभी कमरा खाली कर दो।"

(गौरव गुलमोहर स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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