संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने यूएई में क़ैद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की
मानवाधिकार कार्यकर्ता की स्थिति को लेकर यूनाइटेड नेशन के विशेष दूत मैरी लॉलर ने बुधवार 10 फरवरी को यूएई सरकार से कहा कि 10 साल जेल की सजा काट रहे तीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने को लेकर कहा कि उनके साथ जेल के अंदर उत्पीड़न और दुर्व्यवहार किया जाता है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में लॉलर ने कहा कि, "न केवल मोहम्मद अल-रोकन, अहमद मंसूर और नासिर बिन गैथ को संयुक्त अरब अमीरात में मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए उनके अहिंसक और वैध तरीके से आह्वान के लिए कैद में रखा गया और दोषी ठहराया गया है बल्कि वे जेल में दुर्व्यवहार का शिकार भी हुए हैं।"
रोकन, मंसूर और बिन गैथ लंबे समय से संयुक्त अरब अमीरात में मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं और भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक विरोधियों के मुखर समर्थक रहे हैं।
रोकन, मंसूर और बिन गैथ को 2012, 2018 और 2015 से क्रमशः "सरकार के खिलाफ साजिश रचने", "सरकार की सार्वजनिक आलोचना करने", यूएई के "रुतबा व प्रतिष्ठा और इसके प्रतीक" और कथित मानवाधिकार उल्लंघन" को लेकर सोशल मीडिया में नेताओं की आलोचना करने सहित अन्य आरोपों के लिए यूएई में कैद किया गया है।
वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिटवर्स डिटेंशन ने कहा था कि मोहम्मद अल-रोकन और नसीर बिन गैथ की हिरासत मनमानी हैं। रोकन को 2012 में मास ट्रायल में सजा सुनाई गई थी जिसमें 94 लोगों पर अमीराती सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। अहमद मसूर और बिन गैथ ने जेल के अंदर दुर्व्यवहार किए जाने को लेकर 80 दिनों से अधिक समय तक भूख हड़ताल की थी। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दोनों को आवश्यक मेडिकल सुविधा सहित कुछ बुनियादी सुविधाओं से वंचित करते हुए लंबे समय से एकांत कारावास और छोटी सेल में डाल दिया गया है।
लॉलर ने कहा, “इनके मानवाधिकारों से जुड़े कार्यों के सिलसिले में इन कार्यकर्ताओं को 10 साल की जेल की सज़ा सुनाना न केवल उन्हें और उनके कोशिशों को रोकने का प्रयास है बल्कि यूएई के ऐसे महत्वपूर्ण समय में इस वैध कार्य में शामिल होने से दूसरों को डराने और रोकने का प्रयास है जब मौलिक स्वतंत्रता को नजरअंदाज किया जाता है और नागरिकों का स्थान लगातार घट रहा है।”
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