यूक्रेन जनमत संग्रह एक बड़ी घटना क्यों है?
23 से 27 सितंबर को यूक्रेन के डोनबास और दक्षिणी खेरसॉन और ज़ापोरोज़े इलाकों में रूसी फेडरेशन में शामिल होने पर जनमत संग्रह होगा, जो प्रथम दृष्टया, मूल आबादी द्वारा आत्मनिर्णय के अधिकार का एक अभ्यास है, जो यूक्रेन में हुए पश्चिमी-समर्थित हुकूमत के बदलाव को अस्वीकार करते हैं, जिसके तहत 2014 में कीव की सत्ता में नव-नाजी झुकाव वाली चरम राष्ट्रवादी ताकतों का उदय हुआ था।
लेकिन इसके दूसरे आयाम भी हैं। सभी संभावनाओं में, जनमत संग्रह रूसी फेडरेशन में शामिल होने का भारी विकल्प देगा। डोनबास में, यह एक सीधा सवाल है: "क्या आप रूसी फेडरेशन के मातहत रहकर रूसी फेडरेशन में डीपीआर के प्रवेश का समर्थन करते हैं?" खेरसॉन और ज़ापोरोज़े कोससक्क्स में जनमत संग्रह तीन क्रमबद्ध निर्णयों को तय करेगा: यूक्रेन से इन कुछ इलाकों का अलगाव; उनका एक स्वतंत्र राष्ट्र बनना; और रूसी फेडरेशन में शामिल होना।
2014 में, क्रीमिया और सेवस्तोपोल को रूसी फेडरेशन में शामिल होने के लिए सभी कानूनी प्रक्रियाओं को चार दिनों में पूरा किया गया था। इस बार भी तेज प्रक्रिया की उम्मीद की जा सकती है। यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी इलाकों में रूसी जातीय आबादी के साथ पुनर्मिलन को लेकर रूस के भीतर भारी जन समर्थन है, जो पिछले आठ वर्षों से क्रूर हिंसा सहित, चरमपंथी यूक्रेनी राष्ट्रवादी तत्वों के नियंत्रण में हुकूमत के द्वारा गंभीर उत्पीड़न का सामना कर रहे थे। उनके लिए यह एक बेहद भावनात्मक मुद्दा है।
शीत युद्ध के बाद के युग में, पूर्व यूगोस्लाविया के विघटन के दौरान पश्चिम ने आत्मनिर्णय के जिन्न को पहली बार बोतल से बाहर निकाला था। हालाँकि अमेरिका ने 2008 में सर्बिया से कोसोवो को अलग कर दिया था, फिर भी इसे अभी भी संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता दी जानी बाकी है। लगातार पश्चिमी दबाव के बावजूद सर्बिया ने अलगाव को खारिज कर दिया है।
यह बताता है कि, कोसोवो की मिसाल, पश्चिमी शक्तियों को यूक्रेन के इलाकों में रूसी फेडरेशन में प्रवेश की निंदा करने से नहीं रोकेगी।
आज बड़ा सवाल रूसी कैलकुलस को लेकर है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने निश्चित रूप से इस बात पर ध्यान दिया है कि पूर्वी और दक्षिणी यूक्रेन के "रूसी इलाकों" का परिग्रहण करना या उसे रूसी फेडरेशन में मिलाना, रूस में एक बेहद लोकप्रिय निर्णय है। इस विषय पर सबसे चौंकाने वाली टिप्पणियां पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की हैं।
मेदवेदेव ने अपने टेलीग्राम चैनल में लिखा: "डोनबास में जनमत संग्रह न केवल एलएनआर, डीएनआर (डोनबास) और अन्य मुक्त इलाकों के निवासियों की प्रणालीगत सुरक्षा के लिए है, बल्कि यह ऐतिहासिक न्याय की बहाली के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।"
मेदवेदेव की राय में, ये जनमत संग्रह "दशकों से रूस के विकास के रास्ते को पूरी तरह से बदल देंगे।" क्योंकि जनमत संग्रह के बाद नए इलाकों को रूस में स्वीकार किए जाने के बाद, दुनिया में भू-राजनीतिक बदलाव अपरिवर्तनीय हो जाएगा।”
सबसे महत्वपूर्ण, मेदवेदेव ने चेतावनी दी है कि, "रूस के इलाके में अतिक्रमण एक अपराध है, और हमें आत्मरक्षा मरीन सभी ताक़तों के इस्तेमाल का हक़ होगा।"
वे आगे कहते हैं, एक बार जब नए इलाकों के विलय की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, "रूस का कोई भी भावी नेता, या कोई भी अधिकारी इन फैसलों को उलटने में सक्षम नहीं होगा। यही कारण है कि कीव और पश्चिम में इन जनमत संग्रहों को लेकर भारी आशंका बनी हुई है। इसलिए उन्हें अंजाम देने की जरूरत है।"
इससे जो तस्वीर सामने उभर कर आती है वह यह है कि रूस ने बातचीत के ज़रिए किसी भी समाधान की उम्मीद छोड़ दी है। मॉस्को शुरू में आशावादी था कि कीव बातचीत करेगा, लेकिन कड़वा अनुभव यह निकला कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की एक स्वतंत्र एजेंट नहीं थे। यह बाइडेन प्रशासन है जिसके हाथ में इस छद्म युद्ध की स्टॉप वॉच है। और वाशिंगटन की समयरेखा रूसी हुकूमत को कमजोर करने और उसके विनाश से जुड़ी हुई है, जो कि अमरीका का अंतिम उद्देश्य रहा है। ऐसा न हो कि हम भूल जाएं, कि बाइडेन ने 2014 में कीव में नई हुकूमत की ताज़पोशी करने और यूक्रेन को रूसी विरोधी ताक़त में ढालने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
यह कहना काफी होगा कि, इन हालात में बुधवार को होने वाला जनमत संग्रह रूस के सामने उपलब्ध एकमात्र रास्ता है, जबकि कीव अमेरिका, ब्रिटेन और पोलैंड की सलाह के अनुसार अपनी स्थिति को मज़बूत बनाने की कोशिश करेगा।
डोनबास, खेरसॉन और ज़ापोरोज़े का परिग्रहण एक नई राजनीतिक वास्तविकता बनाता है और समानांतर ट्रैक पर रूस की आंशिक लामबंदी का उद्देश्य इसे सैन्य आधार प्रदान करना है। यह परिग्रहण एक बड़े बदलाव का प्रतीक है क्योंकि भविष्य में इन इलाकों पर हमले जो रूस का हिस्सा हैं, मास्को द्वारा रूस की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता पर हमलों के रूप में माना जा सकता है।
निश्चित रूप से, डोनबास, खेरसॉन और ज़ापोरोज़े में नागरिकों और नागरिक बुनियादी ढांचे पर भविष्य में कीव द्वार किसी भी बड़े हमले पर रूसी प्रतिक्रिया तेज होगी। उन पर किसी भी हमले को आक्रामकता माना जाएगा और मास्को को "पर्याप्त रूप से" जवाब देने का अधिकार होगा। तथ्य यह है कि इन इलाकों में रूसी तैनाती को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाया जाएगा और बल का इस्तेमाल करने की इच्छा को बढ़ाव मिलेगा।
इस बीच, रूस के विशेष सैन्य अभियान भी तब तक जारी रहेंगे जब तक कि उसके द्वारा तय किए गए उद्देश्य पूरे नहीं हो जाते हैं। जिसका अर्थ है, और भी अधिक क्षेत्र रूसी नियंत्रण में आ सकते हैं, जमीन पर नए हालात पैदा कर सकते हैं, क्योंकि संवाद के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। और, ज़ाहिर है, यह सब उस मोड़ पर होगा जब यूरोप मंदी में उतर रहा होगा, क्योंकि रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगान अब उल्टा पड़ता नज़र आ रहा है। यह असंभव है कि यूरोपीय जनता चाहेगी कि उनकी सरकारें रूस के साथ युद्ध की ओर बढ़ें। वाशिंगटन और लंदन में कीव और उसके सलाहकारों को इस सब पर बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत है।
पेंटागन के प्रवक्ता पैट्रिक राइडर ने इस प्रकार प्रतिक्रिया व्यक्त की है: "कोई भी इस तरह के फर्जी जनमत संग्रह को गंभीरता से नहीं लेगा, और अमेरिका निश्चित रूप से उनके परिणामों को मान्यता नहीं देगा। यह यूक्रेन के लिए हमारे और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन को कैसे प्रभावित करेगा? यह किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगा, हम यूक्रेन और अपने अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ काम करना जारी रखेंगे ताकि उन्हें अपने इलाके की रक्षा के लिए आवश्यक सहायता प्रदान की जा सके।"
यह, बेशक, एक टालमटोल वाला बयान है जो बहादुर शब्दों में लिखा गया है। न तो पेंटागन और न ही रूसी सैन्य कमान जोखिम में डालने का जोखिम उठाएगी। इसलिए, संभावना यह है कि नए क्षेइलाकों के रूसी फेडरेशन में शामिल होने को लेकर अमेरिका या नाटो सैन्य रूप से चुनौती नहीं देंगे।
यह दर्शाता है कि, रूस पहले से ही नाटो के साथ युद्ध में है, जैसा कि रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा, हथियारों की आपूर्ति के मामले में नहीं, जिनका "हम मुकाबला करने के तरीके ढूंढ रहे हैं," लेकिन यह पश्चिमी व्यवस्था में मौजूद हैं – जो उनकी संचार प्रणाली, सूचना प्रसंस्करण प्रणाली , टोही प्रणाली और उपग्रह खुफिया प्रणाली में मौजूद है।
मुद्दा यह है कि, डोनबास, खेरसॉन और ज़ापोरोज़े क्षेत्रों का रूसी फेडरेशन में शामिल होना एक अपरिवर्तनीय कदम है जिसे तब तक पूर्ववत नहीं किया जा सकता है जब तक कि रूसी फेडरेशन एक स्वतंत्र राष्ट्र बना रहता है, जैसा कि मेदवेदेव ने रेखांकित किया था। अमेरिका - और सामूहिक पश्चिम और नाटो - इसे जानता है। सीधे शब्दों में कहें तो, नाटो का छद्म-युद्ध एल्गोरिथ्म बदनाम हो गया है और इसे किसी संग्रहालय के टुकड़े के रूप में बंद कर देने की जरूरत है।
1980 के दशक के अफ़गान जिहाद की सीआईए की परिणाम को अब अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता है, अगर उसने कभी ऐसा किया है। वास्तव में, रूस ने यूक्रेन में एक "दलदल" से परहेज किया है और वह अब नाटो की तरफ रुख मोड़ने को तैयार है।
बुधवार को पुतिन के राष्ट्रीय संबोधन में, उन्होंने कहा कि: “हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा तथा रूस और हमारे लोगों की रक्षा के मामले में, हम निश्चित रूप से हमारे सामने उपलब्ध सभी हथियार प्रणालियों का इस्तेमाल करेंगे। यह कोई झांसा नहीं है।" पुतिन ने यह भी कहा कि रूस के पास परमाणु हमले की बेहतर क्षमता है।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह संदेश सब तक पहुंच जाए, मॉस्को ने आज अपनी नई आईसीबीएम, सरमत पर से पर्दा हटा दिया है। जनमत संग्रह के परिणाम अंतिम मतदान के दिन (यानि 27 सितंबर) के पांच दिनों के भीतर तय किए जाने हैं, यदि 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने जनमत संग्रह मतदान किया कि वे रूसी फेडरेशन में शामिल होना चाहते हैं तो इसे स्वीकृत माना जाएगा। गौरतलब है कि रूसी स्टेट ड्यूमा का खास सत्र 27 और 28 सितंबर को मॉस्को में होगा।
एमके भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज़्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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