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यूपी: 8 महीने से तकरीबन 3.5 लाख मिड-डे मील रसोइयों को नहीं मिला मानदेय, कई भुखमरी के कगार पर

केंद्र सरकार द्वारा शुरू किये गये ‘मध्यान्ह भोजन योजना’ के अंतर्गत काम कर रहे करीब 3.95 लाख रसोइयों के लिए इस बार का त्यौहारी सीजन एक कटु अनुभव में तब्दील होता जा रहा है।
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चित्र साभार: डीएनए इंडिया

लखनऊ: ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र प्रयोजित ‘मिड डे मील’ योजना के तहत सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के सैकड़ों विद्यार्थियों के लिए दैनिक आधार पर मध्याह्न भोजन तैयार करने वाली भोजन माताओं और सहायिकाओं के संघर्ष का कोई अंत नहीं है क्योंकि उन्हें वेतन न मिले हुए अब आठ महीने से भी अधिक समय बीत चुका है।

धन की किसी भी प्रकार की तंगी का सामना नहीं करने के राज्य सरकार के बड़े-बड़े दावों के बावजूद, रसोइयों और सहायकों का आरोप है कि अपने मानदेय को पाने के लिए उन्होंने दर-दर भटकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। उन्होंने दावा किया कि उन्हें पता चला है कि उनके लिए कोई बजट जारी नहीं किया गया है।

सुनीता देवी के लिए, अपना आखिरी वेतन पाए हुए आठ महीने बीत चुके हैं। उनका कहना था कि उन्हें पैसों की भयानक तंगी का सामना करना पड़ रहा है और वे अपने खर्चों को पूरा कर पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

बाराबंकी जिले के हरख में स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय में एक रसोइये के तौर पर तैनात सुनीता ने न्यूज़क्लिक को बताया “हमें अपनी दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए दूसरों से कर्ज पर पैसा लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। मुझे अपने परिवार जिसमें मेरी दो बेटियां और एक बेटा है, के भरण-पोषण में काफी तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। संबंधित अधिकारियों से वेतन हासिल कर पाने की हमारी लाख कोशिशें व्यर्थ साबित हो रही हैं। हमने अपनी मांगों के संबंध में ज्ञापन सौंप दिया है और मामले को जिला प्रशासन के संज्ञान में लाया है। कुलमिलाकर हमें यही सुनने को मिल रहा है कि उन्होंने फाइल को उच्चाधिकारियों के पास भेज दिया है, लेकिन उनकी तरफ से अभी तक धन प्राप्त नहीं हुआ है।” 

बलिया जिले की एक अन्य भोजन माता, पुष्पा यादव की कहानी भी कुछ इसी प्रकार की है। उनका कहना था कि उनके पास दिवाली मनाने के लिए पैसे नहीं हैं क्योंकि पिछले पांच महीनों से उनकी तनख्वाह लंबित पड़ी है। अपने आंसुओं को रोकने का भरसक प्रयास करते हुए उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया “हम अपने बच्चों के सामने इतना बेबस महसूस कर रहे हैं कि हम उनके लिए नए कपड़े का एक टुकड़ा तक खरीद कर नहीं ला पा रहे हैं। हमारी दिवाली तो इस बार अँधेरी बीतने वाली है, लेकिन इस सबकी भला किसे परवाह है।”

कुछ इसी प्रकार की भावनाओं को प्रतिध्वनित करते हुए बहराइच जिले की रसोइया आराधना भी अपने सहित करीब 2,000 महिला कर्मियों के साथ पिछले आठ महीनों से अपने मानदेय की प्रतीक्षा में हैं, जहाँ उनके द्वारा दैनिक आधार पर मध्याह्न भोजन तैयार करने से लेकर झाड़ू लगाने और साफ़-सफाई इत्यादि करने का काम किया जाता है। उन्हें आखिरी बार मार्च में होली के त्यौहार के दौरान वेतन मिला था।

आराधना और रम्या का कहना था “घरेलू खर्चों को वहन कर पाना अब मुश्किल होता जा रहा है। हमें अपने जानने वालों से ब्याज पर पैसे लेने के लिए मजबूर कर दिया गया है। सरकार को हमारी दुर्दशा को समझना चाहिए और हमारे वेतन को जारी कर देना चाहिए।”

उनका आरोप था “एक दिन में करीब छह से आठ घंटे काम करना जिसमें भोजन पकाने से पहले की तैयारी, खाना पकाने और वितरण करने, बर्तनों और परिसरों की साफ-सफाई इत्यादि काम शामिल हैं। लेकिन इस सबके बावजूद हमें श्रमिकों के तौर पर भी मान्यता नहीं दी गई है और न ही न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाता है।”

ऐसा प्रतीत होता है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्ववाली भारतीय जनता पार्टी सरकार की “कर्मचारी-समर्थक” छवि को काफी बट्टा लग गया है, क्योंकि पिछले आठ महीनों से राज्य सरकार के लगभग  3.95 लाख रसोइयों को उनके वेतन का कथित रूप से भुगतान न किये जाने की वजह से “फीकी” दिवाली मनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

यूपी सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग के द्वारा मुहैय्या कराये गये आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में मिड-डे मील योजना के तहत 1.68 लाख स्कूलों में पढ़ने वाले कुल 18 लाख विद्यार्थियों को इस योजना से लाभ पहुँच रहा है। सरकार के अनुसार, विद्यार्थियों को दैनिक आधार पर मध्याह्न भोजन मुहैय्या कराने के लिए 3.95 लाख रसोइयों को नियुक्त किया गया है। इन रसोइयों को दस महीनों के लिए 1,500 रूपये प्रतिमाह का मानदेय दिया जाता है।

रसोइया सहित सहायिकाओं को दिए जाने वाले “मामूली वेतन” पर चिंता जताते हुए उत्तर प्रदेश रसोइया कर्मचारी संघ की अध्यक्षा, रेणु शर्मा ने इसे एक राष्ट्रीय शर्म का विषय बताया और उनके वेतन में बढ़ोत्तरी किये जाने की मांग की।

रेणु ने न्यूज़क्लिक को बताया “यह सरकार के लिए बेहद शर्म की बात है कि मध्याह्न भोजन तैयार करने वाले रसोइयों को एक महीने के काम के लिए मात्र 1,500 रूपये चुकाए जाते हैं, वह भी साल के मात्र दस महीनों के लिए ही। यहाँ तक कि इस रकम का भुगतान तक भी कभी समय पर चुकता नहीं किया जाता है। इसके अलावा, एक ऐसे वक्त में जब मनरेगा के तहत काम करने वाले श्रमिकों को दिहाड़ी के तौर पर प्रतिदिन 400 रूपये का भुगतान किया जा रहा है, वहीँ हमें सात घंटों से अधिक समय तक काम करने और खाना पकाने के अलावा स्कूलों में कई अन्य काम करने के बावजूद प्रतिदिन के हिसाब से सिर्फ 50 रूपये मिलते हैं।”

सरकार पर तंज कसते हुए रेणु ने कहा कि पिछले सप्ताह शिक्षा मंत्रालय ने मिड-डे मील योजना का नाम बदलकर इसका नाम ‘पीएम पोषण शक्ति निर्माण स्कीम’ कर दिया था। उन्होंने कहा कि इसके द्वारा अगले पांच वर्षों के लिए 131,000 करोड़ रूपये से अधिक के बजटीय परिव्यय की भी घोषणा की गई है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ योजना का नाम बदल देने से जमीनी हकीकत में सुधार हो पाना संभव होगा।”

रेणु ने आगे कहा “जो सरकार अपने कर्मचारियों को पिछले आठ महीनों से प्रतिदिन 50 रूपये का भुगतान कर पाने में अक्षम साबित हो रही है, वे आखिर इस योजना का नाम बदलने के बाद क्या कर लेंगे? यदि वे इस मानदेय को चुका भी देते हैं, तो भी हमें नहीं पता कि इस 1,500 रूपये प्रति माह के भरोसे भला कोई कैसे जीवित रह सकता है। क्योंकि वर्तमान में एक गैस सिलिंडर की कीमत 950 रूपये हो चुकी है और खाद्य तेल और सब्जियों सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। हम महिलाएं हैं और हम उत्तर प्रदेश में भारी संख्या में हैं; यदि सरकार ने एक हफ्ते के भीतर हमारी मागों पर ध्यान नहीं दिया तो हम आगामी विधान सभा चुनावों में उन्हें अच्छा सबक सिखायेंगे।”

इस बीच बेसिक शिक्षा विभाग के एक सरकारी प्रतिनिधि ने नाम न छापे जाने की शर्त पर न्यूज़क्लिक को बताया कि कुछ तकनीकी वजहों से भुगतान में देरी हो रही है जिसे अब सुलझा लिया गया है और बहुत जल्द उन्हें उनका मानदेय दे दिया जायेगा। उक्त अधिकारी ने आगे कहा “हमने इस मामले को उच्चाधिकारियों के संज्ञान में लाया है। हमें इसके लिए धन प्राप्त हो चुका है और इसे दो तीन दिनों में वितरित कर दिया जायेगा।”

राज्य सरकार ने सरकारी विद्यालयों में आठवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए मिड-डे मील तैयार करने के लिए रसोइयों और सहायकों को काम पर नियुक्त कर रखा है। वहीँ रसोइयों और सहायकों को लगता है कि उन्हें एक महीने के काम के लिए 1,500 रूपये प्रति माह का मामूली वेतन अदा किया जा रहा है, जो कि निहायत ही कम है।

मध्याह्न भोजन तैयार करने वाली भोजन माताओं के लिए अँधेरी दिवाली 

मध्याह्न भोजन योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा नौकरी पर रखे गये तकरीबन 3.95 लाख रसोइयों के लिए यह त्यौहारी सीजन कड़वी यादों में तब्दील हो गया है। इन महिला रसोइयों में से कुछ तो अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाली हैं, जिन्हें मार्च के बाद से उनके वेतन का भुगतान नहीं किया गया है।

मालती और अभिलाषा दोनों ही आर्थिक तौर पर गरीब हैं और उनके परिवार में आठ-नौ से ज्यादा सदस्य हैं। उन्होंने रसोइये के तौर पर काम करने के विकल्प को चुना क्योंकि दोनों के पास इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं था और वे अपने परिवार में अकेले कमाने वाले सदस्य हैं। वे गोरखपुर क्षेत्र के जंगल धुशन सरकारी प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए दोनों का कहना था कि हालाँकि वेतन में देरी तो एक स्थाई समस्या बनी हुई है, लेकिन यह तकलीफ तब और भी अधिक बढ़ जाती है जब इसकी वजह से किसी त्यौहार तक को ठीक ढंग से नहीं मना पाते हैं। उन्होंने कहा “इस बार आठ महीने की देरी हो चुकी है; हमारे बच्चे हमसे नए कपड़ों और खिलौनों की मांग कर रहे हैं, और हम खुद को असहाय पा रहे हैं।”

उत्तर प्रदेश रसोइया कर्मचारी संघ की मांगों में न्यूनतम मजदूरी को 15,000 रूपये प्रति माह किये जाने के साथ-साथ 45वें और 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों को लागू करने, ‘श्रमिक’ का दर्जा प्रदान करने, सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने और मिड-डे मील श्रमिकों को चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के तौर पर मान्यता देने सहित अन्य मांगें शामिल हैं।

इसके साथ ही इस बात को भी अवश्य ध्यान में रखना होगा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 15 दिसंबर 2020 को राज्य सरकार को निर्देश देते हुए कहा था कि रसोइयों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी का भुगतान न किये जाने को सुनिश्चित करते हुए, निर्दिष्ट किया था कि, “समूचे उत्तर प्रदेश राज्य के भीतर रसोइयों के तौर पर जिन व्यक्तियों को काम पर नियुक्त किया गया है उन्हें इतनी कम राशि का भुगतान किया जा रहा है कि उसे निश्चित ही जबरन मजदूरी कराने की श्रेणी में रखा जा सकता है।”

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