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ख़ौफ़ में युवा: 'अग्निपथ' की आड़ में घर-घर दबिश, चंदौली पुलिस पर उत्पीड़न और फ़र्ज़ी मुक़दमों का आरोप

अग्निपथ को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन ने इलाकाई पुलिस को ऐसा हथियार थमा दिया है जिसके जरिये वह जिसे चाह रही है, उसे जेल के सलाखों में खींच ले जा रही है! 
chandauli

चंदौली जिला मुख्यालय से करीब 19 किमी दूर है ककरही खुर्द। इस गांव के दर्जनों युवक सेना की तैयारी कर रहे थे। अग्निपथ योजना के बाद हुए आंदोलन-प्रदर्शन के बाद से सेना भर्ती के लिए दौड़ लगाने वाले युवकों के घरों पर पुलिस कहर बनकर टूट रही है। आरोप है कि पुलिस के निशाने पर ज्यादातर यादव, मुस्लिम और अन्य पिछड़ी जातियों के नौजवान हैं। कहा जा रहा है कि अग्निपथ को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन ने इलाकाई पुलिस को ऐसा हथियार थमा दिया है जिसके जरिये वह जिसे चाह रही है, उसे जेल के सलाखों में खींच ले जा रही है! 

ककरही खुर्द की 65 वर्षीय सरस्वती कथित पुलिसिया जुल्म की कहानी सुनाते-सुनाते रो पड़ती हैं। पास बैठी इनकी बहू आशा देवी भी सुबकने लगती हैं। दोनों महिलाओं की आंखों में उदासी नजर आती है और खाकी का खौफ भी। आशा के दोनों बेटे राकेश यादव और मुकेश यादव जेल में हैं, जिनके माथे पर तमाम संगीन धाराएं थोपी गई हैं। 

आशा देवी

सरस्वती बताती हैं, "अग्निपथ योजना के विरोध में 18 जून 2022 को कुछमन रेलवे स्टेशन पर नारेबाजी और प्रदर्शन हुआ। सेना भर्ती की तैयारी करने वाला हमारा पोता मुकेश यादव उस दिन अपनी नानी की तेरहवीं में शामिल होने गया था। उसी रात अचानक पुलिस हमारे घर पहुंची। गालियां देते हुए खाकी वर्दी वालों ने हमारे घर के चैनल को पीटना शुरू कर दिया। जबरिया दरवाजा खुलवाया। घर में मुकेश नहीं मिला तो बड़े बेटे राकेश यादव को पुलिस ने पकड़ लिया और लाठियों से पिटाई शुरू कर दी। थाने में थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया गया। पुलिस ने बड़े बेटे को छोड़ने के लिए छोटे बेटे मुकेश यादव को हाजिर करने की शर्त रखी। जब मुकेश को पुलिस को सुपुर्द किया गया तो दोनों को जेल भेज दिया"

सरस्वती के पुत्र राजनारायण यादव की कोरोना काल में मौत हो चुकी है। इनकी विधवा बहू आशा पिछले 15 दिनों से उदास हैं। वह ठीक से खाना भी नहीं खा पा रही हैं। इसी साल मई महीने में इनके बड़े बेटे राकेश यादव की विशुनपुरा की युवती पूजा से शादी हुई थी। पूजा का रो-रोकर बुरा हाल है। उसके हाथों की मेहंदी के रंग छूटे भी नहीं थे कि निर्दोष पति जेल चला गया। पूजा इसे अपनी बदनसीबी मान रही है और खुद को कोस रही है। वह कहती हैं- "घटना के समय तो पति हमारे पास ही थे। वो तो घर से बाहर ही नहीं निकले। वह तो सेना भर्ती की तैयारी भी नहीं कर रहे थे। जब वो उपद्रवी ही नहीं, तो पुलिस ने आखिर उन्हें जेल क्यों भेज दिया?"

जेल में बंद राकेश-मुकेश की दादी सरस्वती देवी

विधवा आशा बताती हैं, "हमारे देवर श्याम नारायण यादव सेना में जवान हैं और वह इन दिनों लेह इलाके में तैनात हैं। मुकेश की शादी में शरीक होने के लिए वह छुट्टी लेकर घर आए थे। दोनों भतीजों को आजाद कराने के लिए उन्होंने बहुत कोशिश की। उनके निर्दोष होने का पुख्ता प्रमाण भी पुलिस के सामने पेश किया, लेकिन पुलिस वालों ने उनकी एक नहीं सुनी। बड़े बेटे को बचाने के लिए छोटे को पुलिस के हवाले किया तो दोनों पर सिविल और रेलवे पुलिस ने 22 संगीन धाराएं थोप दी। पुलिस ने दोनों निर्दोष नौजवानों को उस हालात में पहुंचा दिया है, जहां से लौटने के बाद अब कोई भी सरकारी नौकरी पाना उनके लिए संभव नहीं होगा।"

संदेह पर छापेमारी

सरस्वती और आशा अपनी दुखभरी कहानी सुना रही थीं, तभी 24 वर्षीय संजय यादव की मां इंद्रावती देवी भी रोते-बिलखते पहुंचीं। कई और लोग भी इर्द-गिर्द जमा हो गए। सबका दर्द जैसे छलक उठा। इंद्रावती ने बताया, "रात 11.30 बजे पुलिस हमारे घर आई। सभी बच्चे घर में थे। बेटा संजय घर में कोठे पर सो रहा था। पुलिस जबरिया उसे उठा ले गई। थाने में उसे बहुत मारा-पीटा गया। हमारे बेटे को पकड़ने के लिए इलाकाई चौकी इंचार्ज गंगाधर मौर्य पुलिस की तीन गाड़ी लेकर आए थे। उनका पैर पकड़कर गुहार लगाते रहे कि हमारा बेटा निर्दोष है, पर वो माने नहीं। संजय को ले जाते वक्त पुलिस ने कहा था कि बेकुसूर होगा तो छोड़ देंगे, लेकिन छोड़ा नहीं। संजय न तो सेना की तैयारी कर रहा था और न ही किसी आंदोलन-प्रदर्शन में शामिल था। फिर भी पुलिस ने उसे जेल भेज दिया।"

48 वर्षीया शिरोमणि अपने बेटे हरेंद्र पर ढाए गए जुल्म की दास्तां बताते हुए रो पड़ती हैं। शिरोमणि के दो बेटे ज्ञानेंद्र व हरेंद्र और तीसरी बेटी है। 24 वर्षीय ज्ञानेंद्र रेलवे में भर्ती की तैयारी में जुटा था तो 19 वर्षीय हरेंद्र सेना भर्ती की तैयारी कर रहा था। वह कहती हैं, "हमारा कोई बच्चा उपद्रव में शामिल नहीं था। अलबत्ता पड़ोसी से चल रहे गली के विवाद में हमारे ससुर महंगू और तीनों बेटे प्रदीप, मनोज व राम अवध को ताराजीवनपुर के चौकी इंचार्ज गंगाधर मौर्य ने बुलाया। जिस व्यक्ति से हमारा नाली का विवाद है वह पुलिस का जवान है। उसी के दबाव में दरोगा ने नाली के विवाद की पंचायत कराई। बाद में दरोगा ने नई चाल चली। उसने यह कहकर मेरे पति प्रदीप को हिरासत में ले लिया कि पहले अपने बच्चों को हमारे सामने खड़ा करो। हरेंद्र को अलीनगर स्थित ननिहाल से बुलाया गया तब मेरे पति को छोड़ा गया। बाद में मेरे बेटे पर जमकर लाठियां तोड़ी गई और फिर अग्निपथ विवाद में डालकर बगैर साक्ष्य के ही जेल भेज दिया गया।"

शिरोमणी देवी 

अलीनगर इलाके के करीब दर्जन भर गांवों में उन सभी युवकों की जिंदगी नर्क बन गई है जो हर सुबह-शाम दौड़ लगाया करता थे। सरेसर की ग्राम प्रधान कलावती देवी के पति भानु प्रताप यादव ने "न्यूज़क्लिक" से कहा, "अग्निपथ योजना के विरोध में हुई दोनों वारदातों में शामिल असली आंदोलनकारियों को पकड़ पाने में पुलिस नाकाम रही, क्योंकि सभी उपद्रवी अपने मुंह को कपड़े से ढके हुए थे। जब कोई उपद्रवी हाथ नहीं लगा तो पुलिस ने आलमपुर के विकास यादव नामक उस कोच को पकड़ा जो सेना में भर्ती के लिए इलाकाई युवकों को ट्रेनिंग दिया करता था। 

विकास के जरिये पुलिस ने उन सभी युवकों की सूची हासिल कर ली जो सरेसर मैदान में उससे ट्रेनिंग लिया करते थे। पुलिस ने उसी सूची के आधार पर कुछमन, ताराजीवनपुर, संगती, बसनी, गंजख्वाजा, आलमपुर, धूस, कोरी, पचभेड़वा, धमिना, बसरतिया से लगायात मुस्तफापुर के तमाम नौजवानों पर कहर बनकर टूट पड़ी जो सेना की तैयारी कर रहे थे। इन गांवों के जो युवक सेना भर्ती की तैयारी कर रहे थे उनमें पिछड़े और दलित जातियों के हैं। पहले अग्निपथ योजना ने इनके उम्मीदों और अरमानों को बुरी तरह तोड़ा और अब पुलिस इनके भविष्य से खेल रही है। बगैर पुख्ता साक्ष्य के योजनाबद्ध ढंग से थोक में युवाओं पर झूठे और फर्जी मुकदमे लादे जा रहे हैं।"

इसे रामराज कहें या गुंडाराज?

50 वर्षीया मीरा ककरही खुर्द गांव के उन दो नौजवानों पवन (24) और पंकज (20) की मां हैं जिनके दो बेटे सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे थे। मीरा कहती हैं, "पुलिस ने हमारे बच्चों के कोच को पकड़ा तो उसने खाकी वर्दी के दबाव में हमारे बेटे विकास यादव उर्फ मंटू को बुलाकर पुलिस के हवाले करा दिया। हमारा बेटा निर्दोष था और वह किसी उपद्रव में शामिल नहीं था। पुलिस ने मेरे बेटे की लाठियों से जमकर पिटाई की और फिर जेल भेज दिया। कुछ ऐसी ही कहानी 37 वर्षीय शांति देवी भी सुनाती हैं। इनका बेटा 19 जून 2022 को बीए का इम्तिहान देने मुगलसराय गया था। परीक्षा में उसकी हाजिरी भी लगी हुई है। फिर भी पुलिस ने योजनाबद्ध ढंग से उपद्रवियों की सूची में उसका नाम डाला और फिर पकड़कर जेल भेज दिया। ताराजीवनपुर चौकी पुलिस के लिए धनउगाही करने वाला एक पूर्व प्रधान चुन-चुनकर ककरही खर्द के बच्चों को जेल भिजवा रहा है।"

बेटों की गिरफ्तारी से गमगीन औरतें

चंदौली की अलीनगर थाना पुलिस ने ककरही खुर्द गांव के संजय, मुकेश, राकेश, हरेंद्र, महेश पाल, पंकज और मो.कैफ को अग्निपथ उपद्रव कांड में जेल भेजा है। इनमें से मो.कैफ, महेश, राकेश और पंकज सरेसर ग्राउंड पर सेना की भर्ती के लिए तैयारी कर रहे थे। गांव वालों का कहना है कि बवाल से इनका कोई सरोकार नहीं था। ककरही खुर्द के पड़ोसी गांव महेवां के राजेंद्र पाल के पुत्र धर्मेंद्र कुमार पाल पिछले तीन महीने से बेंगलुरु में नौकरी कर रहे हैं। पुलिस ने इस युवक का नाम भी अपने रोजनामचे में चढ़ा लिया है और उसे पकड़ने के लिए रोजाना दबिश दे रही है।

यूपी के चंदौली जिला मुख्यालय से करीब 21 किमी दूर ककरही गांव में कोई नौजवान घर में नहीं है। यही हाल आसपास के सभी गांवों का है, जहां मरघटी सन्नाटा पसरा हुआ है। कोई जेल में है तो कोई पुलिस के खौफ से लापता है। आरोप है कि अलीनगर थाना पुलिस रोजाना रात में गाड़ियों से धमकती है। नौजवानों के घरों की किवाड़ डंडे से पीटती है। खासतौर पर उन नौजवानों के यहां जिनके घरों के बच्चे सेना की तैयारी कर रहे थे। अग्निपथ योजना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन में जो नौजवान शामिल नहीं भी थे, खाकी वर्दी का खौफ उनमें ज्यादा है। इनके घरों पर रोजाना रेड पड़ रही है। औरतों और बड़े-बूढ़ों पुलिस धमकाती है कि तुम लोग अग्निपथ के उपद्रवियों को छिपाए हुए हो। दरअसल, पुलिस के लिए ये नौजवान नरम चारा सरीखे हो गए हैं।

ककरही खुर्द की इन महिलाओं के बच्चे भी जेल की सलाखों में कैद

ककरही खुर्द के सतीश चंद्र श्रीवास्तव, राम प्रकाश पाल, नखड़ू यादव कहते हैं, "अलीनगर थाना पुलिस गुंडा बन गई है। उपद्रवियों को पकड़ने के बजाय तमाम निर्दोष नौजवानों को जेल में ठूसने में जुटी है, जिससे दर्जनों गांवों में दहशत का माहौल है।" कोरी गांव निवासी रवि कहते हैं, "हमारा 20 वर्षीय भाई जोशी सेना की तैयारी कर रहा था। वह नहीं मिला तो पुलिस हमें उठाकर ले गई। छोड़ने की शर्त यह रखी कि पहले अपने छोटे भाई को हाजिर करो। 19 जून को हमने छोटे भाई जोशी को बुलाकर पुलिस के हवाले किया। फिर भी पुलिस हमें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। जब मेरे पिता ने आत्महत्या की धमकी दी तब हमें रिहा किया गया।"

रवि का आरोप है कि "खाकी वर्दी ने थाने में मेरे ऊपर थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया। सिर्फ मुझे ही नहीं, उन सभी नौजवानों को गधों की तरह पीटा गया जो सेना की तैयारियों में जुटे थे। थाने में पुलिस वाले चीख-चीखकर धमकी दे रहे थे कि जब तक 250 लोगों को जेल नहीं भेज लेंगे, तब तक वो चैन से नहीं बैठेंगे। पुलिस ने जिन नौजवानों को पकड़ा था उनमें ऊंची जातियों का कोई नहीं था। पुलिस के निशाने पर सिर्फ दलित और पिछड़े समुदायों के वो नौजवान शामिल हैं जो सेना अथवा दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हैं। खार खाए बैठे पुलिस अफसर निर्दोष नौजवानों का भविष्य बर्बाद करने पर उतारू हैं। पुलिस नौजवानों के जान की दुश्मन बन गई है। पुलिस ने हमारे भाई की तरह न जाने कितनों की जिंदगी बर्बाद कर डाली है। मुकदमा लड़ने के लिए आखिर हम पैसे कहां से लाएंगे? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्दोष नौजवानों को गिरफ्तार न करने का निर्देश दिया है, फिर भी पुलिस दमन और उत्पीड़न से बाज नहीं आ रही है। समझ में नहीं आ रहा है कि इसे भाजपा का रामराज कहें या पुलिस का गुंडाराज?"

गुस्से में क्यों है पुलिस ?

चंदौली जिले में कसरत करने वाले नौजवानों के प्रति पुलिस इसलिए गुस्से में है, क्योंकि जिले में अग्निपथ योजना के विरोध के सुर यहीं से उठे थे। यहां पहली घटना 18 जून 2022 को कुछमन रेलवे स्टेशन पर हुई। दर्जनों युवकों ने सुबह 8.30 बजे यहां प्रदर्शन किया। आरोप है कि मुंह पर गमछा बांधे और हाथ में लाठी-डंडा लिए युवकों ने कुछमन स्टेशन पर तोड़फोड़ किया। साथ ही सरकारी काम में बाधा डाली। इस मामले में स्टेशन प्रबंधक जाकिर हुसैन ने 100-150 लोगों के खिलाफ धारा 147, 148, 353, 332, 427, 504, 506 के अलावा आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 1932 की धारा-7 के तहत मामला दर्ज कराया था। पुलिस ने इस मामले में फिलहाल 17 नौजवानों को गिरफ्तार किया है। इनमें विकास कुमार (आलमपुर), विकास उर्फ विजय यादव,  शशिकांत यादव (मांटी गांव), संदीप यादव,  अरुण यादव, रोहित यादव (संहति), पंकज कुमार यादव, मो.कैफ, महेश कुमार यादव, राकेश यादव, मुकेश यादव, संजय यादव (ककरही खुर्द), जोशी (कोरी), मनीष यादव (मुस्तफापुर) के अलावा आदर्श उर्फ निलेश (लंभ्भुआ-सुल्तानपुर) और औरैया के दिव्यापुर का योगेंद्र सिंह को गिरफ्तार किया गया है।

इसी मामले में ताराजीवनपुर चौकी के दरोगा गंगाधर मौर्य ने दफा 146, 147, 148, 149, 323, 504, 506, 332, 353, 307 के अलावा 3/7 लो.सं. क्षति निवारण अधिनियम और 7 सीएलए एक्ट में विकास यादव, उपेंद्र, आदर्श, रविकांत यादव समेत करीब दो सौ लोगों को नामजद किया है। इन सभी पर सिपाही सुबेदार सिंह, मनीष कुमार, अरुण कुमार तिवारी पर लाठी-डंडा, पत्थर, राड आदि से हमला करने का आरोप है। खबर है कि पुलिस बनारस के चौकाघाट लेज में बंद नौजवानों को रिमांड पर लेने की कोशिश में जुटी है।

दूसरी घटना 19 जून 2022 को मुस्तफापुर गांव में हुई। आसपास गांवों के कुछ नौजवान अग्निपथ योजना के खिलाफ चंदौली जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपने निकले थे। नौजवानों के जमावड़े की सूचना पर अलीनगर थाना प्रभारी सत्येंद्र विक्रम सिंह चार गाड़ियों में पुलिस फोर्स के साथ मौके पर पहुंचे और उन पर लाठीचार्ज कर दिया। पुलिसिया हमले से गुस्साए नौजवानों ने पुलिस की एक गश्ती जीप फूंक दी। इस मामले में पुलिस की लापरवाही उजागर होने पर आईजी के.सत्यनारायण ने त्वरित कार्रवाई करते हुए थाना प्रभारी सत्येंद्र विक्रम सिंह को निलंबित कर दिया। इस मामले में भी बड़े पैमाने पर नौजवानों की धरपकड़ हो रही है। आसपास के सभी गांवों के युवक लापता हैं, जिन्हें पकड़ने के लिए पुलिस ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है।

पूर्व बीडीसी सदस्य रामनाथ यादव "न्यूज़क्लिक" से कहते हैं, "पुलिस ने सेना भर्ती की तैयारी करने वाले युवाओं को जेल भेजने की धमकी और परिजनों पर दबाव बनाकर उगाही को धंधा बना लिया है। पुलिस रात में नौजवानों के घरों पर पहुंचती है और उनके छिपे होने की बात कहकर जबरन तलाशी लेती है। पुलिस लोगों के घरों में उस समय पहुंचती है जब लोग अपने-अपने घरों में सो रहे होते हैं। खाकी वर्दी वाले यह भी नहीं देखते कि कौन किस हाल में है? कपड़े पहने हैं कि नहीं, कुछ भी नहीं।"

पुलिसिया जुल्म को बयां करते बीडीसी सदस्य रामनाथ यादव

सरेसर ग्राउंड में सन्नाटा

चंदौली थाना पुलिस के निशाने पर वह सभी नौजवान हैं जो सरेसर गांव के मैदान में सेना भर्ती की तैयारी किया करते थे। पिछले दो दशक में सरेसर गांव का यह मैदान नौजवानों के भाग्य का दरवाजा खोलता रहा है। जिले का यह इकलौता ग्राउंड है जो उन सभी नौजवानों के सपनों को पूरा करता रहा है जो सेना और पुलिस में भर्ती होना चाहते थे। पिछले बीस सालों में कुछमन, ताराजीवनपुर, संगती, बसनी, गंज ख्वाजा, आलामपुर, धूस, कोरी, पचफेड़वा, धमिना, बसरतियां, मुस्तफापुर से लगायात अलीनगर व मुगलसराय के सैकड़ों नौजवानों ने इसी ग्राउंड पर दौड़ लगाकर सेना और पुलिस में नौकरियां पाई हैं।

सरेसर ग्राउंड में नौजवानों को फौज में भर्ती की तैयारी करने वाले कोच विकास यादव को पुलिल 18 जून 2022 को ही उठा ले गई थी। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पुलिस ने सरेसर ग्राउंड में टहलने वालों को भी नहीं बख्शा। फर्जी धाराएं लगाकर सभी को जेल भेज दिया। कुछ युवकों को कुछमन रेलवे स्टेशन के उपद्रव में तो कुछ को पुलिस की जीप फूंकने के मामले में मुल्जिम बनाया गया।

बताया जा रहा है कि अलीनगर थाना पुलिस ने जिन लोगों को जेल भेजा है उनमें से ज्यादातर लोगों के चेहरे पुलिस फुटेज में नहीं हैं। मुस्तफापुर गांव के मनीष यादव को सेना की नौकरी से कोई मतलब नहीं था। आरोप है कि कुछमन की घटना के बाद पुलिस इन्हें आठ किमी दूर से उठा ले गई। 30 वर्षीय बलिराम यादव (शादीशुदा) सरेसर मैदान में टहलने पहुंचे थे। इन्हें न तो सेना की भर्ती से कोई मतलब था और न ही अग्निपथ के प्रदर्शन से। मनीष यादव के साथ पुलिस इन्हें भी उठा ले गई। 19 जून 2022 को पुलिस ने 55 वर्षीय रतन यादव को भी गिरफ्तार कर लिया जो अपनी आंखों से पुलिसिया जुल्म-ज्यादती का तमाशा देख रहे थे। पुलिस ने 42 वर्षीय अरविंद यादव को भी पकड़ लिया जिनके 20 व 17 साल के दो बच्चे हैं। आरोप है कि मुस्तफापुर के रामलाल यादव, विक्रम यादव और विकास यादव को थाने ले जाकर पीटा गया, फिर उन्हें छोड़ दिया।

मुस्तफापुर की 65 वर्षीया विधवा माया कहती हैं, "हमारा बेटा बलिराम बेगुनाह हैं। फिर भी पुलिस उसे उठा ले गई और जेल में ठूंस दिया। निर्दोष प्रदीप यादव को पुलिस के दलालों ने रिश्वत न देने पर पकडवा लिया। बलिराम के साथियों को पकड़ने के लिए पुलिस रोज दौड़ लगा रही है। आधी रात में ग्रामीणों की किवाड़ें पीटी जा रही हैं। पुलिस की धमकियों के चलते मुस्तफापुर, विसुनपुरा, ककरही खुर्द, धूस समेत कई गांवों के सैकड़ों नौजवान पुलिसिया खौफ के चलते पलायन कर गए हैं। बच्चों के मन में खाकी वर्दी को लेकर दहशत और भय है। पुलिस ने जिन लोगों को पकड़ा है उनमें कोई उपद्रवी नहीं है। असली उपद्रवी तो मुंह में गमछा बांधे हुए थे। जो तमाशबीन थे, वही मुल्जिम बनाए जा रहे हैं। 19 जून को हुई वारदात के लिए अलीनगर थानाध्यक्ष खुद ही कसूरवार थे। अग्निपथ योजना के विरोध में 16-20 नौजवान प्रशासन को ज्ञापन सौंपना चाहते थे। पुलिस चाहती तो उन्हें समझा सकती थी, मगर पुलिस ने युवकों को चारो ओर से घेर कर लाठीचार्ज कर दिया।"

माया यह भी बताती हैं, "पुलिस ने बड़े बेटे बलिराम को पकड़ा है और अब छोटे बेटे बालचरण को गिरफ्तार करने के लिए रोजाना दौड़ लगा रही है। हमारे दोनों बच्चे निर्दोष हैं। पुलिस के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं है जिससे साबित कर सके कि हमारे बच्चे उपद्रव में शामिल थे। पुलिस की गाड़ियां मुस्तफापुर वालों के लिए खौफ की पर्याय बन गई है। आतंक का आलम यह है कि जिस रास्ते से खाकी वर्दी गुजरती है, देखते ही लोग भागने लगते हैं। पुलिस वाले आते हैं और घरों का दरवाजा खुलवाते हैं। कई बार वे छतों व मुंडेरों पर भी चढ़ जाते हैं। कुछ जवान घरों के खपरैल तक पीटने लगते हैं।"

गुनाह बन गया दूध बेचना

30 वर्षीय रामलाल यादव की कहानी तो और भी अजीबो-गरीब है। ये दूध का कारोबार करते हैं। इनके पास करीब 50 मवेशी हैं। इनका डेयरी फार्म भी है। पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इन्हें मुगलसराय स्थित चकिया चौराहे से उठा लिया। उस समय वह करीब एक कुंतल दूध लेकर मुगलसराय दूध की मंडी में बेचने जा रहे थे। रामलाल बताते हैं, "पुलिसकर्मियों ने हमें रोका और हमारे जेब से दूध बिक्री का चार हजार रुपये निकाल लिया, जिनमें 2200 रुपये टोनी लस्सी वाले ने दिया था और 1800 अंकुर जनरल स्टोर के मालिक ने। हमारा करीब एक कुंतल दूध भी खराब हो गया। थाने में हमें बेवजह पीटा गया। पुलिस वालों ने पहले लात-घूसे चलाए और फिर हमारी इज्जत ही उतार दी। हमने बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन पुलिस वालों ने नहीं सुनी।"

रामलाल यादव

धूस गांव के 60 वर्षीय सलीम की पत्नी आसमा ने "न्यूज़क्लिक" से कहा, "हमारे 35 वर्षीय बेटे गब्बर सलमान को थाने पर हाजिर होने के लिए ग्राम प्रधान दिनेश गोंड ने दबाव डाला। गब्बर के साथ छोटा बेटा 15 वर्षीय शाहरूख भी थाने चला गया। पुलिस ने हमारे दोनों बेटों पर काफी देर तक लाठियां तोड़ी। बाद में छोटे बेटे को छोड़ दिया और बड़े को जेल भेज दिया। धूस गांव के बसंतू यादव के बेटे सोनू के साथ पांच नौजवानों को पुलिस उठा ले गई। सभी नौजवानों पर 11-11 संगीन दफाएं लगाई गई हैं। आरोप है कि पुलिस जिसे चाहती है, उसका नाम रोजनामचे में चढ़ा देती है और मुल्जिम बनाकर पकड़ने के लिए घरों की किवाड़ खटखटाने पहुंच जाती है। पुलिस का यह खेल रोज का सिलसिला बन गया है।"

सलीम और आसमा

अलीनगर थाना क्षेत्र के करीब 700 नौजवान लापता हैं। आलापुर, धूस, जलालपुर, कोरी, ककरही आदि गांवों के कई निर्दोष नौजवान जेल में हैं। अधिसंख्य का कुसूर सिर्फ इतना है कि वो जी-जान से सेना भर्ती की तैयारी कर रहे थे। इन्हीं में एक हैं 26 वर्षीय मनीष यादव। पालिटेक्निक डिप्लोमा करने वाले मनीष को अग्निपथ योजना से कोई सरोकार नहीं था। सरेसर ग्राउंड में घूमने क्या गया, पुलिस ने उस पर 13 संगीन धाराएं लगाकर जेल भेज दिया। मुस्तफापुर की प्रधान कलावती देवी बताती हैं, "हमारे गांव के बेकुसूर युवक शशि, राहुल, अमन, शुभ विश्वकर्मा को भी पुलिस उठाकर ले गई और दफा 151 में सबका चालान कर मुचलके पर छोड़ा। गांव के लोगों हमसे शिकायत कर रहे हैं कि पुलिस औरतों को भी परेशान कर रही है। मुस्तफापुर गांव के सभी नौजवान पुलिस के खौफ से पलायन कर गए हैं। पुलिस वालों ने लोगों का रोटी खाना भी दुश्वार कर दिया है।" इस बात को रामबचन ने भी तस्दीक किया और बताया कि पुलिस सभी के घर आकर किवाड़ पीट रही है। ईंट-पत्थर ढोने और मेहनत मजदूरी करने वालों की बेवजह धर-पकड़ की जा रही है। गांव छोड़कर लापता सैकड़ों नौजवान कहां गए, किसी को पता नहीं है।"

सबूतों पर हो रही कार्रवाई: पुलिस

ताराजीवनपुर के चौकी इंचार्ज गंगाधर मौर्य बेहद तल्ख़ी के साथ कहते हैं, "पुलिस ने हवा में दबिश नहीं डाली थी। अग्निपथ बवाल मामले में पुलिस के पास जिनके खिलाफ सबूत थे, उनके घरों पर ही छापेमारी की गई। ग्रामीणों ने कई उपद्रवियों को अपने घरों में छिपाकर रखा था जिन्होंने पुलिसवालों पर पथराव किया था। अत्याचार इन पर नहीं हो रहा है, बल्कि यही लोग पुलिस पर अत्याचार कर रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप बेबुनियाद है।" 

यूपी के चंदौली जिले में अग्निपथ योजना से उपजे बवाल में सिर्फ दलितों और पिछड़ों पर ही संगीन मुकदमे क्यों लादे जा रहे हैं? क्या ऊंची जातियों के नौजवान उपद्रव में शामिल नहीं थे? वारदात के बाद खासतौर पर यादव जाति के नौजवानों और उनके परिवार वालों पर ही पुलिस कहर क्यों बरपाया रही है? इस सवाल के जवाब पर पुलिस अफसरों की बोलती बंद है।

पुलिसिया जुल्म-ज्यादती की कहानी सुनाते ग्रामीण

चंदौली के पूर्व सांसद रामकिशुन ने समाजवादी पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ 30 जून 2022 को एसपी अंकुर अग्रवाल से मिलकर पुलिसिया उत्पीड़न की शिकायत की। उन्होंने एसपी को साफ-साफ बताया कि मुस्तफापुर, धूस खास, तेलिया के पूरा, सरेसर, ककरही खुर्द समेत कई गांवों में पुलिस ने दहशत कायम कर रखी है। बेकुसूर लोगों को अनायास पकड़ा और परेशान किया जा रहा है। एसपी ने पूर्व सांसद को यकीन दिलाया कि अगर कोई निर्दोष पकड़ा गया है तो उनके मुकदमे हटा लिए जाएंगे। सिर्फ दोषियों पर ही कार्रवाई होगी। अगर कोई पुलिसकर्मी आतंक कायम करता है अथवा मुकदमे की आड़ में धन उगाही की कोशिश करता है तो जांच के बाद सख्त एक्शन लिया जाएगा। प्रतिनिधिमंडल में जिला पंचायत सदस्य मुलायम सिंह यादव, विक्की प्रधान, भानु यादव, उमाशंकर यादव, रवि यादव, रामनाथ यादव, रामकृत, रजन गोंड, अजय यादव आदि सपा नेता शामिल थे।

चंदौली के पूर्व सांसद रामकिशुन यादव ने "न्यूजक्लिक" से कहा "पुलिस जातीय आधार पर नौजवानों पर कार्रवाई कर रही है। सिर्फ पिछड़ों और दलितों को ही जेल भेजा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। मुस्तफापुर, ककरही खुर्द, धूस समेत आसपास के तमाम निर्दोष नौजवानों को अग्निपथ बवाल में फंसा कर जेल भेजना और दबिश के नाम पर घरों में घुसकर महिलाओं के साथ बदसलूकी करना अनुचित है। दर्जनों गांवों में दहशत का माहौल है। इतनी दहशत तो डकैतों और गुंडों-मवालियों से भी नहीं होती, जितनी पुलिस से है। सरेसर के जिस ग्राउंड पर नौजवान सेना में भर्ती के लिए अभ्यास किया करते थे, वह भी खाकी वर्दी की खौफ से सुनसान पड़ा है। शिकायत को यह भी मिल रही है कि पुलिस अग्निपथ बवाल की आड़ में अवैध धन उगाही शुरू कर दी है। चंदौली के नौजवान महीने-दो महीने पुलिसया आतंक के चलते अपने घरों से गायब रहे तो लोगों के सामने भुखमरी की नौबत आ जाएगी।"

पूर्व सांसद ने अग्निपथ योजना पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, "सैनिकों को भाड़े पर नहीं रखा जा सकता। गौर करने की बात है कि 22 साल की उम्र में कोई भी नौजवान आखिर पूर्व सैनिक कैसे बन सकता है? सेना तो मुश्किल हालात में देश की रक्षा करती है। प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री की सेवानिवृत्त की कोई उम्र नहीं होती तो सैनिक और ठेके के कर्मचारी चंद सालों में क्यों रिटायर किए जा रहे हैं? भाड़े के सैनिक बॉर्डर पर कितनी देर टिक पाएंगे? चार साल बाद वो रिटायर होकर लौटेंगे तो शादी करेंगे या फिर बिजनेस अथवा फांकाकसी?  युवाओं एवं छात्रों के मन में असंतोष, निराशा व अंधकारमय भविष्य (बेरोजगारी) का डर स्पष्ट रूप से दिखने लगा है। सरकार को चाहिए कि वह अग्निपथ योजना को वापस ले और पहले की तरह सेना में भर्ती का गलियारा खोले।"

लेखक विजय विनीत वाराणसी स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं

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