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यूपी: हिरासत, गिरफ़्तारी, नज़रबंदी के बाद भी बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे

भारत बंद के दौरान कई जगह गिरफ़्तार किए गए आंदोलनकारियों को मंगलवार की देर रात पुलिस ने रिहा कर दिया तो कुछ आंदोलनकारियों को जेल भेज दिया गया है।
यूपी

केंद्र की मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और यूपी समेत कई राज्यों के किसान आज 14वें दिन भी दिल्ली बार्डर पर डेरा जमाये बैठे हैं। सरकार और किसान संगठनों के बीच पांच चरणों की बेनतीजा रही वार्ता के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भारत बंद के समर्थन में मंगलवार को लगभग सभी विपक्षी दल सड़कों पर दिखे। वहीं बसपा प्रमुख ने बंद का समर्थन किया लेकिन बसपा कार्यकर्ता सड़क पर आंदोलन करते नजर नहीं आये। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बंद का मिला-जुला असर देखने को मिला।

हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर भारत बंद के आह्वान के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस सक्रिय नज़र आई। पूर्व मुख्यमंत्री व सपा प्रमुख अखिलेश यादव के आवास पर पुलिस का पहरा रहा। वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद, वाराणसी, आज़मगढ़, फैज़ाबाद, लखनऊ से एक दिन पूर्व आधीरात को ही कई सामाजिक कार्यकर्ता व नेताओं को हिरासत में लिया गया, गिरफ़्तारियां की गईं या फिर घर में ही नज़रबंद कर दिया गया। यानी उन्हें घर से ही बाहर नहीं निकलने दिया गया।

देश के कई राज्यों में मंगलवार को पूर्ण बंदी रही तो उत्तर प्रदेश के कई जिलों में विपक्षी दलों, मज़दूर और छात्र संगठनों ने चक्का जाम व रेल रोक कर भारत बंद का समर्थन किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मार्च कर रहे एनएसयूआई के छह व वामपंथी छात्र संगठन आइसा, एसएफआई, आरवाईए के लगभग तीस से अधिक छात्रों को पुलिस ने गिरफ़्तार कर पुलिस लाइन भेज दिया।

शहर के दूसरे हिस्से सुभाष चौराहे पर मार्च कर रहे किसान, मजदूर संगठनों के आंदोलनकारियों को भी पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। गिरफ़्तारी से पहले भाकपा-माले के पोलित ब्यूरो ने गिरफ़्तारी को जन अधिकारों पर हमला बताते हुए कहा कि "खेती की नीलामी, किसान की गुलामी के खिलाफ यह दुनिया का सबसे बड़ा आंदोलन है। लोगों को लग रहा था कि पंजाब और हरियाणा के किसान आंदोलन कर रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है, पूरे देश में कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा इस आंदोलन में शामिल रहा।"

भारत बंद के समर्थक विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी

उत्तर प्रदेश में भारत बंद के एक दिन पूर्व से ही गिरफ़्तारी का सिलसिला जारी रहा। बनारस से लेकर इलाहाबाद तक सैकड़ों नेताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस ने उनके घरों में नज़रबंद रखा या कई नेताओं को आधी रात में ही गिरफ़्तार कर लिया गया। इलाहाबाद के मऊ आइमा से सीपीआईएम के तीन कार्यकर्ता अज़ीज, रिजवान व भीम सिंह को पुलिस ने रात के दो बजे उनके घर से गिरफ़्तार किया। वहीं बनारस पुलिस ने सीपीआई-एमएल के जिला सचिव अमरनाथ राजभर को आधी रात को ही गिरफ़्तार कर कोतवाली ले गई।

बनारस में वामपंथी दलों ने मगलवार को रैलियां निकालकर भारत बंद का समर्थन किया। आंदोलन में बुनकर समाज के साथ ही मल्लाह समुदाय के लोग भी बंद के समर्थन में शामिल रहे। बुनकर साझा मंच के संयोजक मंडल सदस्य मनीष शर्मा कहते हैं कि "पुलिस भाजपा के लठैतों की तरह व्यवहार कर रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश में बेइंतहा दमन के बावजूद बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे। भारत बंद के समर्थन में उतरे लोगों द्वारा अराजकता नहीं फैलाई गई लेकिन इसके बावजूद हर जगह पुलिस ने अवैध तरीके से लोगों की गिरफ़्तारी की"

किसान आंदोलन के समर्थन में बंद से एक दिन पूर्व सोमवार को इलाहाबाद में ट्रैक्टर से 'किसान यात्रा' निकाल रहे समाजवादी पार्टी के लगभग 60  से अधिक कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ़्तारी की। बंद के दिन मंगलवार को सुबह के समय समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रयागराज स्टेशन पर बुन्देलखण्ड एक्प्रेस को रोक कर बन्द का समर्थन किया। हालांकि सभी को गिरफ़्तार कर पुलिस लाइन भेज दिया गया।

समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष संदीप यादव गिरफ़्तारी के बाद कहते हैं कि "हम लोगों ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश पर बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस को रोक कर अपना विरोध दर्ज कराया। भारतीय जनता पार्टी लोकतंत्र का गला घोंट रही है। समाजवादी पार्टी किसानों के साथ खड़ी है उनपर जब भी कोई हमला होगा हम उनके साथ खड़े होंगे"।

गिरफ़्तारी को बताया अघोषित आपातकाल

तीन कृषि कानून के खिलाफ और किसानों के समर्थन में जहां दस मज़दूर संगठन शामिल रहे वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय किसान संघ (बीकेएस) व मज़दूर संगठन भारतीय मज़दूर संघ (बीएमएस) आंदोलन में शामिल नहीं रहा। इसके अलावा व्यापारी व ऑल इंडिया ट्रेडर्स एवं ट्रांसपोर्ट सेक्टर के संगठन भारत बंद के समर्थन में नहीं रहे।

भारत बंद का समर्थन कर रहे संगठनों ने तीन कृषि कानून को काला कानून बताया। नवाब यूसुफ रोड पर सएपीआई-एमएल के प्रदेश सचिव कमल उसरी ने सभा को सम्बोधित करते हुए सरकार के तीन कृषि कानून पर सवाल उठाते हुए कहा कि "सरकार तीन किसान विरोधी कानून ले आई है, जो किसान अपना अनाज न्यूनतम समर्थम मूल्य पर बेचने की बजाय आढ़तियों के पास औने-पौने दामों पर फसल बेचने के लिए मजबूर हैं, उनसे किसी दूसरे जिले या राज्य में जाकर अपना अनाज बेचने के लिए आज़ाद होने की बात करना, उनका मज़ाक उड़ाने जैसा है"। हालांकि सभा के दौरान की मौजूद लगभग बीस से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया।

इंकलाबी नौजवान सभा के प्रदेश सचिव सुनील मौर्य  गिरफ़्तारी के बाद कहते हैं कि "किसानों के समर्थन में पूरे देश का नौजवान सड़कों पर उतरा है, किसान के बेटे-बेटियां लड़ रहे हैं। पहले ही बहुत कुछ निजी हाथों में  सौंप दिया गया है यदि खेती भी निजी हाथों में सौंपी गई तो देश का युवा दोहरी मार झेलने वाला है। सरकार अपने काले करतूतों को छिपाने के लिए दमनपूर्ण रवैया अपना रही है। लेकिन हम नौजवान इस सरकार और इसके दमन से डरने वाले नहीं हैं"। 

पूर्वीय उत्तर प्रदेश एनएसयूआई अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गिरफ़्तारी को अघोषित आपातकाल बताते हुए कहा कि "पूरे पूर्वांचल में एनएसयूआई द्वारा किसानों के आह्वान पर भारत बंद में कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर विरोध दर्ज कराया गया और  भारत बंद को सफल बनाने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। हमारे कई जिलाध्यक्षों को यूपी पुलिस गिरफ़्तार कर चुकी है व कईयों को हाउस अरेस्ट कर लिया गया है। यह अघोषित आपातकाल नहीं तो क्या है??"

बंदियों की देर रात हुई रिहाई

इलाहाबाद से लेकर लखनऊ, आजमगढ़, बनारस तक सैकड़ों किसानों, छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया, गिरफ़्तारी की गई या फिर घरों में नज़रबंद किया गया। आजमगढ़ में बंद का समर्थन कर रहे विपक्षी दलों, किसानों व छात्र संगठनों के लगभग 400 आंदोलनकारियों को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया गया। बनारस में विभिन्न चौराहों से लगभग 200 से अधिक लोगों को पुलिस गिरफ़्तार कर पुलिस लाइन में ले गई। इलाहाबाद में विभिन्न दलों और संगठनों से लगभग 300 से अधिक लोगों को पुलिस ने गिरफ़्तार किया। लखनऊ में आम आदमी पार्टी, सपा व वामपंथी दलों के लगभग 500 लोगों को गिरफ़्तार कर इको गॉर्डन में दिनभर बैठाया गया।

कई जगहों पर मंगलवार की देर रात बंदियों को पुलिस ने रिहा किया तो कुछ जगह गिरफ़्तार किए गए आंदोलनकारियों को जेल भेज दिया गया है।

बनारस में गिरफ़्तारी के बाद रिहा हुए आल इंडिया सेकुलर फोरम संयोजक, डॉक्टर मोहम्मद आरिफ बंद को सफल मानते हैं।

वे कहते हैं कि "फासिस्ट सरकार के खिलाफ किसान लामबंद हुए हैं। देश के मुस्लिम, क्रिश्चियन को जब निशाना बनाया गया तब लामबन्दी ऐसी नहीं रही लेकिन किसानों के साथ सभी समुदाय या वर्ग के लोग खड़े हैं। सरकार यकीनन बैकफुट पर है। सरकार हमेशा की तरह इस बार भी किसानों को खालिस्तानी और पाकिस्तानी बोलने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं रही। जिस तरह किसान डटे हैं ऐसे में सरकार को पीछे हटना ही होगा। पिछले सात सालों में मोदी सरकार इतनी डिमोरलाइज नहीं थी।"

स्त्री मुक्ति संगठन की ओर से बंद में शामिल पद्मा सिंह कहती हैं कि "अभी इस आंदोलन को और व्यापक बनाना होगा। पहली बार किसानों के इस आंदोलन में भाजपा सरकार हिन्दू-मुसलमान करने में असफल रही है। उत्तर प्रदेश सरकार जिस तरह केंद्र सरकार से दस कदम आगे जाकर गिरफ़्तारी कर रही है यह बेहद दमनकारी तरीका है। यदि इस आंदोलन को आमजनता के बीच इसी तरह ले जाया गया तो निश्चित रूप से सरकार असफल होगी और उसे तीनों कृषि कानून वापस लेने होंगे"।

 लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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