यूपी: चुनाव के बीच आज़मगढ़ में कहर बनकर टूटी ज़हरीली शराब, अब तक 13 लोगों की मौत
पूर्वांचल में शराब खलनायक बन गई है। वो शराब जो चुनावी सीजन में कभी ठेके पर बिकती है तो कभी वोट के सौदागर मुफ्त में गरीबों के घरों तक पहुंचा देते हैं। छिटपुट मौतें भी होती हैं, लेकिन जलजला तब उठता है जब जहरीली शराब थोक में जिंदगियां निगलने लगती है। तब सामने आता है विधवा हो चुकी तमाम औरतों और उनके बच्चों की आखों से लरजते हुए आंसू। कई बार मौत इतनी भयानक होती है कि लोगों के आंसू भी सूख जाते हैं।
आज़मगढ़ में जहरीली शराब से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों का दर्द एक जैसा है। जहरीली शराब ने अहरौला थाना क्षेत्र के माहुल कस्बे में 20 फरवरी की रात से तांडव मचाना शुरू किया तो सिलसिला थमा ही नहीं। यह शराब अब तक तेरह जिंदगियां लील चुकी है। सबसे पहले माहुल कस्बे के बीर अब्दुल हमीदनगर निवासी फेकू सोनकर (32) की मौत हुई। फिर बार-बारी से झब्बू (45), रामकरण बिंद (55), अच्छेलाल (40), सतिराम (45) के अलावा रसूलपुर के विक्रम बिंद (55), लहुरमपुर (पवई) के पंचम (60), राजापुर के बुद्धू (50), राजापुर माफी के छेदी (54) और दक्खिनगांवा के रामप्रीत (55) समेत कुल 13 लोगों की जानें चली गई शराब कांड में मरने वालों की संख्या और भी बढ़ने की आशंका है।
आजमगढ़ में यही शराब बन गई थी खलनायक
अभी दर्जन भर गंभीर लोगों का इलाज आज़मगढ़ के जिला अस्पताल में चल रहा है। खबर है कि जहरीली शराब पीने से कई लोगों की आखों की रोशनी जा चुकी है। जहरीली शराब से जिन लोगों की हालत चिंताजनक बनी हुई है उनकी तादाद 60 से भी ज्यादा है। माहुल कस्बे के बुझारत (50), हरिराम (55) प्यारेलाल (70), रामदयाल (60), पिंटू सोनकर (33), चतुरी (50), दखिनगांवा के राधेश्याम चौरसिया (50) समेत 41 लोगों को आज़मगढ़ और जौनपुर के सरकारी और निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। कुछ लोगों का इलाज निजी अस्पतालों में चल रहा है। आज़मगढ़ जिला अस्पताल में 35 से ज्यादा मरीजों के पहुंचने से चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई।
आज़मगढ़ में जिस जहरीली शराब से लोगों की मौतें हुई हैं वो माहुल कस्बे में अहरौला रोड स्थित देसी शराब के ठेके से खरीदी गई थी। ठेके के बगल में ही पुलिस चौकी भी है। यह ठेका पूर्वांचल के बाहुबली नेता रमाकांत यादव के नजदीकी रिश्तेदार रंगेश यादव के नाम से आवंटित है। रमाकांत पहले भाजपा से जुड़े थे। साल 2017 के चुनाव में फूलपुर-पवई सीट से इनके पुत्र अरुणकांत यादव भाजपा के टिकट से विधायक बने थे। अबकी रमाकांत यादव सपा में शामिल हो गए और वो पार्टी का टिकट लेकर मैदान में भी कूद गए।
जहरीली शराब कांड के पीड़ितों के मुताबिक, रंगेश यादव के ठेके से रविवार देर शाम उन्होंने शराब खरीदी। घटना के रोज विशेष स्कीम बताकर जहरीली शराब सस्ते दाम पर बेची जा रही थी, जिसे खरीदने के लिए लोग टूट पड़े थे। जिन लोगों ने छककर शराब पी उन्हें तत्काल उल्टियां आनी शुरू हो गईं। देखते ही देखते कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई। कुछ इलाज से पहले और कई इलाज के दौरान काल के गाल में समा गए।
जहरीली शराब से मरने वालों के रोते-बिलखते परिजन
परिजनों के खोने से आहत लोगों के धैर्य का बांध तब टूट गया जब मौतों का ग्राफ ऊपर बढ़ने लगा। माहुल के लोग आक्रोशित हो गए और केवटाना बस्ती के पास माहुल-अम्बारी मार्ग पर 21 फरवरी को दोपहर में जाम लगा दिया। इस दौरान भीड़ ने बाहुबली नेता रमाकांत पर अपने रिश्तेदारों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए नारेबाजी शुरू कर दी। जाम लगाने वालों ने रमाकांत-मुर्दाबाद के नारे भी लगाए। शराब ठेकेदार की गिरफ्तारी के साथ दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और पीड़ित परिजनों के लिए एक-एक करोड़ रुपये के मुआवजे की डिमांड रखी गई।
जहरीली शराब पीने वाले होने लगे बीमार तो जुट गई भारी भीड़
चक्काजाम की सूचना पर आज़मगढ़ के जिलाधिकारी अमृत त्रिपाठी और पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य मौके पर पहुंचे और करीब चार घंटे बाद आक्रोशित भीड़ को किसी तरह से शांत कराया। घटना के बाद से पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के हाथ-पांव फूले हुए हैं। रविवार और सोमवार को जिन लोगों ने जहरीली शराब का सेवन किया उनमें से तीन दर्जन से अधिक लोगों को नौ सरकारी एंबुलेंस के जरिए अहरौला स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर भेजा गया।
अब तक क्या कार्रवाई हुई?
आज़मगढ़ के माहुल में जिस शराब के ठेके से देसी शराब बेची जा रही थी, उसके सेल्समैन सहित दो लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है और उनसे कड़ी पूछताछ की जा रही है। शराब का सैंपल जांच के लिए भेज दिया गया है। पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य ने दावा किया है कि जहरीली शराब कांड में जो भी लिप्त पाया जाएगा, उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। दोषियों को एनएसए में निरुद्ध किया जाएगा। समूचे आज़मगढ़ जिले में सर्च अभियान चलाया जा रहा है। यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि कितने लोगों ने ठेके से जहरीली शराब खरीदी और उसका सेवन किया? इस हादसे में जिन तेरह लोगों के मौत की पुष्टि हुई है उनमें से पांच का अंतिम संस्कार कर दिया गया और अन्य चार शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा गया।
शराब कांड के बाद मौके पर पहुंचे पुलिस और प्रशासनिक अफसर
ग्रामीणों का आरोप है कि इलाकाई थाना पुलिस और आबकारी विभाग के अफसरों की मिलभगत से ही देसी शराब के ठेके से अवैध तरीके से बेरोक-टोक शराब बेची जा रही थी। इत्तेफाक से इसमें एक लाट जहरीली शराब की आ गई, जो पियक्कड़ों को मौत की नींद सुला गई। चुनावी सीजन में शराब की खपत बढ़ गई थी, जिसकी भरपाई अवैध शराब से की जा रही थी। आज़मगढ़ में यूपी चुनाव के आखिरी चरण में मतदान होना है। पुलिस इन मौतों का कनेक्शन चुनाव से जोड़कर छानबीन कर रही है। यह भी पता लगाया जा रहा है कि कहीं यह शराब चुनाव में मुफ्त में बांटने के लिए तो नहीं लाई गई थी, जिसका कुछ हिस्सा बेचा जा रहा था?
आज़मगढ़ के मयखाने पियक्कड़ों के ऐसे दरिया हैं जहां कम दाम पर हर ब्रांड की देसी-विदेशी शराब आसानी से खरीदी जा सकती है। दरअसल, वह शराब डिस्टलरी की नहीं, होम मेड होती है। आज़मगढ़ के अहरौला क्षेत्र में जहरीली शराब से मौत की घटना नई नहीं है। इससे पहले भी चार मर्तबा हुए शराब कांड में कई लोगों की जानें जा चुकी हैं। वर्ष 2002 में इरनी में हुई घटना में 11, वर्ष 2013 में मुबारकपुर में 53, वर्ष 2017 में सगड़ी क्षेत्र में 36 और 2021 में पवई में हुई घटना में जहरीली शराब पीने से 22 लोगों की मौत हो चुकी है। पिछले साल मई महीने में माहुल कस्बे से करीब 20 किमी दूर मित्तूपुर गांव में जहरीली शराब से 30 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं। इसी तरह जुलाई 2017 में आज़मगढ़ के देवरा इलाके में जहरीली शराब ने करीब 23 लोगों की जान ली थी। इन घटनाओं में सवा सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। अगर अहरौला क्षेत्र में हुई घटना में तेरह लोगों की मौत का आंकड़ा जोड़ दिया जाए तो मृतकों की तादाद और बढ़ जाएगी। जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत की हर घटना के बाद पुलिस प्रशासन और आबकारी विभाग कुछ दिनों के लिए सख्ती बरतती है और बाद में पहले की तरह शराब माफिया की हमजोली बन जाती है।
पुलिस जान बचाना चाहती है या अपनी चमड़ी?
डरावनी बात ये है कि आज़मगढ़ पुलिस-प्रशासन का जो रवैया है वो एक तरह से जिले में हुई पिछली घटनाओं का रिपीट टेलीकास्ट है। जरा इस खबर कि डिटेल देखिए। आज़मगढ़ में जब मौतों का सिलसिला शुरू हुआ तो प्रशासन टालमटोल करने लगा और कहा कि अभी जहरीली शराब से मौत की पुष्टि नहीं हुई है और जांच जारी है। बड़ा सवाल यह उठता है कि पुलिस अपनी चमड़ी बचाना चाहती है या लोगों की जान? क्योंकि अगर लोगों की जान बचानी है तो उसे अपराध से इनकार करने के बजाय जांच करनी चाहिए। अवैध शराब का धंधा करने वाले माफिया को पहचानकर उनका सफाया करना चाहिए।
आज़मगढ़ शराब कांड बता रहा है कि पूर्वांचल में शराब माफिया के सफाए के लिए आज़मगढ़ में हुई कई जहरीली शराब कांड के बाद भी सख्त कदम नहीं उठाए गए। फिलहाल जहरीली शराब कांड में आज़मगढ़ के आबकारी निरीक्षक नीरज सिंह और आबकारी सिपाही सुमन कुमार पांडेय और राजेन्द्र प्रताप सिंह को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। अहरौला के थानाध्यक्ष संजय सिंह को भी इस मामले में निलंबित कर दिया गया है। पूरे मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं, मगर पिछली घटनाओं से सबक लेते हुए पुलिस के साथ आबकारी विभाग भी सक्रिय रहता तो शायद अवैध शराब के धंधे पर रोक लगाई जा सकती थी। अहरौला क्षेत्र में जहरीली शराब पीने से मौत की घटना की जानकारी आबकारी विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को सोमवार की सुबह तब हुई, जब क्षेत्र के अलग-अलग गांवों में सात लोगों की मौत हो चुकी थी। जिले में अब तक जितनी भी बड़ी शराब की बरामदगी या गिरफ्तारी हुई है, वह सभी नागरिक पुलिस के खाते में दर्ज है। देवारांचल क्षेत्र में कुटीर उद्योग का रूप धारण कर चुका कच्ची शराब का धंधा संबंधित विभाग और राजनीतिक संरक्षण के चलते फल-फूल रहा है।
पुलिस और आबकारी विभाग की टीम ने इसी 20 फरवरी को नकली शराब बनाने वाले एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया था। इस गिरोह के तार मऊ, बलिया, गाजीपुर और देवरिया तक जुड़े हैं। ये लोग बाइक के जरिए नकली शराब बेचा करते थे, जिससे एक साल में सरकार को करीब 30 करोड़ से ज्यादा के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है। पुलिस ने नकली शराब बनाने की जो फैक्ट्री पकड़ी थी वहां से 1020 लीटर रेक्टीफाइड स्प्रिट, 33 पेटी नकली शराब, बड़ी संख्या में खाली बोतलें, दो किलो यूरिया खाद और 11 मोबाइल फोन बरामद के गए थे। इनके पास से कई प्रमुख शराब कंपनियों के ढक्कन भी मिले थे। ये लोग बोतलों से शराब निकालकर फिर दूसरा ढक्कन लगा दिया करते थे।
बनारस के पत्रकार पवन मौर्य कहते हैं, "आज़मगढ़ में शराब ऐसे खलनायक की तरह है जिसका इस जिले से पुराना नाता रहा है। हर साल जहरीली शराब कहर बरपाती है। कुछ जिंदगियों को लीलने के बाद कई परिवारों को रोते-बिलखते हुए छोड़ जाती है। इस धंधे से जुड़े लोगों के गिरेबान तक पुलिस का हाथ नहीं जाता है क्योंकि उनके सिर पर खाकी वर्दी का ही हाथ होता है। पहले ईंट-भट्ठों पर देसी शराब बनाने का चलन था और अब तमाम फैक्ट्रियां खड़ी हो गई हैं। उत्तर प्रदेश में नकली शराब का कारोबार कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खादर का इलाका नकली शराब बनाने वाले माफियाओं के लिए हेड क्वार्टर से कम नहीं।"
पवन यह भी कहते हैं, "वाराणसी, प्रयागराज से लेकर मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, कानपुर तक गंगा किनारे सैकड़ों गांवों में कच्ची शराब की भट्टियां धधकती रहती हैं। यही शराब आज़मगढ़ में भी पहुंचती है और जौनपुर में भी। शराब बनने से लेकर बेचने तक का पूरा कारोबार संगठित तरीके से चलता रहता है। यूपी ऐसा राज्य है जहां दावा किया जाता है कि अपराधी खुद सरेंडर करते हैं, वहां इतने बड़े पैमाने पर अगर जहरीला कारोबार चल रहा है तो सरकार से सवाल पूछना बनता ही है। मुख्यमंत्री योगी को यह बताना ही चाहिए कि कौन हैं वो आला अफसर जिनकी पनाह में ये कातिल हैं और उससे भी ऊपर कौन हैं वो नेता जो शराब माफिया के सरपरस्त हैं?"
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में पीने वालों की तादाद लाखों-करोड़ों में है। ज्यादातर ग्रामीण कच्ची शराब का सेवन करते हैं। पिछले नौ महीने में यूपी में सौ से अधिक लोगों की मौतें जहरीली शराब पीने से हुई हैं। इसी साल 26 जनवरी को रायबरेली में 12 लोगों की मौत हुई थी। पिछले साल 08 नवंबर को आज़मगढ़ में 02, 19 अगस्त को अलीगढ़ में 03, 26 अगस्त को आगरा में 13, 11 मई को आज़मगढ़ में 30, 11 मई को अंबेडकर नगर में 05, 12 मई को बदायूं में 02 और 28 मई को अलीगढ़ में 28 जिंदगियों को जहरीली शराब निगल चुकी है। जहरीली शराब पीने की वजह से मारे जाने वाले लोगों की ये संख्या काफी चिंताजनक है। दरअसल, साधारण कच्ची शराब अथवा देसी शराब ज्यादा खतरनाक नहीं होती, लेकिन इसे ज्यादा नशीला बनाने के फेर में जहरीला बना दिया जाता है।
एक रिपोर्ट के देसी शराब गुड़ और शीरे से बनाई जाती है। इसे अधिक नशीला बनाने के लिए इसमें यूरिया और बेसरमबेल की पत्तियां भी मिला दी जाती हैं। शराब का असर तेज करने के लिए इसमें ऑक्सिटोसिन भी डाल दिया जाता है, जिसके चलते पियक्कड़ मौत के करीब पहुंच जाता है। अक्सर जान भी गंवा देता है। देसी शराब में यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसी खतरनाक चीजें मिलाने की वजह से वह मिथाइल अल्कोहल बन जाता है, जिससे लोगों की जान जाती है। मिथाइल अल्कोहल मनुष्य के शरीर में जाने के बाद काफी तेजी से रिएक्ट करता है, जिससे शरीर के कई अंग अपना काम बंद कर देते हैं और अंत में शराबी की मौत हो जाया करती है।
कैसे बनती है ज़हरीली शराब?
आमतौर पर देसी शराब में 95 प्रतिशत तक अल्कोहल होता है, जिसे एथेनॉल कहा जाता है। एथेनॉल मुख्यतः गन्ने के रस, ग्लूकोज, महुआ, आलू, चावल, जौ, मक्का से बनाया जाता है। इसे ज्यादा नशीला बनाने के लिए इसमें मेथनॉल मिला दिया जाता है। मेथनॉल मिलाने के बाद ही साधारण एथाइल शराब खतरनाक और जानलेवा मिथाइल शराब बन जाती है। इसे पीने के बाद अंधापन महसूस होता है, जो जहरीली शराब का पहला और सबसे मुख्य लक्षण है। एक स्टडी में कहा गया है कि जहरीली शराब नपुंसक बनाने के साथ-साथ नर्वस सिस्टम को बुरी तरह से प्रभावित कर देती है। इससे आंखों और पेट में तेज जलन भी हो सकती है। यह हमेशा के लिए आंखों की रोशनी भी खत्म कर सकती है।
शराब अरबी भाषा का शब्द है जो शर अर्थात बुरा और आब मतलब पानी के मिलने से बना है, जिसका अर्थ होता है बुरा पानी। नाम के अनुरुप इसके असर से पूर्वांचल कभी अछूता नहीं रहा। चुनाव के दौरान इसकी खपत और बिक्री में सौ गुना से ज्यादा इजाफा हो जाया करता है। आमतौर झारखंड, पश्चिम बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश के कई पिछड़े जिलों से शराब लाई जाती है। पूर्वांचल में नेपाल में बनी शराब की बड़ी खेप तस्करी कर लाई जाती है। इसकी आवक पर नजर रखने के लिए चेकपोस्ट की लाइव स्ट्रीमिंग की जाती है, फिर भी शराब माफिया गिरोह अपने नेटवर्क के जरिए ठेकों और विक्री के अवैध ठिकानों पर शराब पहुंचा देते हैं। इस धंधे में ना केवल माफिया बल्कि पुलिस-प्रशासन तथा कुछ राजनेता भी शामिल हैं। स्थिति यह है कि अब तो पूर्वांचल के तमाम गांवों और शहरों में शराब माफिया अब शराब की होम डिलेवरी भी करने लगे हैं। पैसे के लोभ में नए उम्र के लडक़े-लड़कियां पढ़ाई-लिखाई छोडक़र शराब की होम डिलीवरी में लग गए हैं।
वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार अमितेश पांडेय कहते हैं, "जहरीली शराब बनाने वालों का नेटवर्क पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ है और जिनके तार उत्तराखंड से भी जुड़े हैं। ज़हरीली शराब जिस जगह पर बनाई जाती है, उसकी गंध से ही पता चल जाता है। ऐसे में पुलिस और प्रशासन को ख़बर न हो, ये संभव नहीं। सरकार ने जिस तरह से कार्रवाई की है उससे भी पता चलता है कि आबकारी विभाग के लोगों के अलावा इस अवैध कारोबार के फलने-फूलने में पुलिस की भी बड़ी भूमिका होती है।"
अमितेश यह भी कहते हैं, " सबसे बड़ा शराब माफिया तो ये सरकारी महकमा ही है जो इसे मलाईदार विभाग मानकर खूब खाता-पीता है। मैं कहता हूं, अंडे खाओ, लेकिन मुर्गियों को मत खा जाओ। शराब की अवैध कमाई से पैदा हुए धनपशुओं के आगे तो बड़ी-बड़ी सत्ता बिछ जाया करती है। पूर्वांचल में बड़ी मात्रा में शराब की बरामदगी से साबित होता है कि इसके अवैध कारोबारियों के सिंडिकेट को सरकार नहीं तोड़ पा रही है। आज तक किसी बड़ी मछली को नहीं पकड़ा जा सका है। पकड़े गए अधिकतर लोग या तो शराब पीने वाले हैं फिर इसे लाने के लिए कैरियर का काम करने वाले हैं। घरेलू हिंसा में सबसे बड़ी अहम भूमिका यही शराब निभाती है। साथ ही सड़क हादसों को भी जन्म देती है।"
शराब और स्वास्थ्य
यह कोई नई बात नहीं है कि शराब पीने से लीवर खराब होता है। लेकिन कम ही लोगों को अहसास होता है कि यह कैंसर की भी शक्ल ले सकता है। कई बार ऐसा अध्ययन सामने आता है कि कम मात्रा में शराब पीना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है तो मीडिया और आमजन इसका उत्साह से स्वागत करते हैं। यह तय कर पाना बेहद जटिल है कि शराब भी फायदेमंद होती है। सबूतों के आधार पर दवा देने की प्रक्रिया के जनक माने जाने वाले आर्ची कोक्रेन ने एक शुरुआती अध्ययन में पाया था कि शराब के सेवन और स्वास्थ्य में रिश्ता है। उन्होंने अपने दो सहयोगियों के साथ मिलकर 18 विकसित देशों में हृदय संबंधी बीमारियों से होने वाली मौत की असली वजह जानने की कोशिश की तो अपने विश्लेषण में पाया कि शराब ख़ासकर वाइन का सेवन बढ़ाने का हृदय रोग से स्पष्ट रिश्ता है। जो लोग इसका सेवन सोच-समझकर कम मात्रा में करते हैं, उनके हृदय रोग से मरने की संभावना उन लोगों से कम है जो लोग रोज़ाना काफ़ी ज़्यादा शराब पीते हैं। नियमित व्यायाम, संतुलित भोजन और खुदा का ध्यान रखने की आदत न होने पर यही शराब खलनायक की भूमिका में होती है। शराब के शातिर पियक्कड़ों की आखिरी मंजिल तो मौत ही होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक शराब सेवन से अवसाद, बेचैनी, लीवर सिरोसिस, पेनक्रियाटाइटिस, आत्महत्या की प्रवृत्ति, हिंसा और दुर्घटना जैसे मामले बढ़ जाते हैं। इसके सेवन से मुंह, नाक, गले, पेट, लीवर और स्तन के कैंसर का ख़तरा भी बढ़ता है। दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों में चार से तीस फ़ीसदी मौतें शराब के सेवन के कारण होती हैं। स्तन कैंसर में तो ये मामला आठ फ़ीसदी है। इसमें एक पेग प्रतिदिन लेने से स्तन कैंसर का ख़तरा चार फ़ीसदी बढ़ता है, जबकि ज़्यादा सेवन से यह ख़तरा 40 से 50 फ़ीसदी तक बढ़ जाता है। ज्यादा शराब पीने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इसके चलते न्यूमोनिया और टीबी का ख़तरा बढ़ जाता है। साथ ही यौन व्यवहार में रिस्क लेने की संभावना बढ़ जाती है। एचआईवी और दूसरी संक्रमित बीमारियां का ख़तरा भी मंडराने लगता है। गर्भावस्था में शराब सेवन से शिशु की ग्रोथ प्रभावित होती है। शराब के सेवन से कम से कम 200 बीमारियां होने का ख़तरा होता है, इनमें से 30 तो केवल शराब पीने से ही होती हैं।
विपक्ष ने सरकार को घेरा
सभी विपक्षी दलों ने इस कांड पर रोष और चिंता जाहिर की है और योगी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है।
समाजवादी पार्टी का कहना है कि “भाजपा सरकार की विदाई की बेला में भी जारी है सत्ता संरक्षित अवैध शराब का जानलेवा कारोबार! आजमगढ़ में जहरीली शराब पीने से 10 लोगों की मृत्यु अत्यंत दु:खद! सरकार, पुलिस और शराब माफिया के सिंडिकेट की ये देन है। दोषियों पर हो सख्त कार्रवाई”।
भाजपा सरकार की विदाई की बेला में भी जारी है सत्ता संरक्षित अवैध शराब का जानलेवा कारोबार!
आजमगढ़ में जहरीली शराब पीने से 10 लोगों की मृत्यु अत्यंत दु:खद!
सरकार, पुलिस और शराब माफिया के सिंडिकेट की ये देन है।
दोषियों पर हो सख्त कार्रवाई।— Samajwadi Party (@samajwadiparty) February 22, 2022
कांग्रेस ने भी इस मामले में योगी सरकार पर माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप लगाया— कांग्रेस ने ट्वीट किया— “उत्तर प्रदेश में सरकारी ठेकों पर खुलेआम जहर बेचा जाता है। सैकड़ों की संख्या में लोग जान गंवाते हैं। इसपर किसी तरह का कोई नियंत्रण नहीं है क्योंकि भ्रष्ट योगी सरकार पूरी तरह माफियाओं के चंगुल में है”।
कांग्रेस ने यह भी कहा कि “जहरीली शराब से अलीगढ़ में 110 मौतें हुईं। रायबरेली में 11 मौतें हुईं। आजमगढ़ में पिछले 2 दशक में 136 लोग जान गवां चुके हैं। प्रदेश में जगह-जगह अवैध शराब बनाई, बेची जाती है। ये सारे शराब माफिया सीधे नेताओं की छत्रछाया में काम करते हैं। माफियाओं को योगी सरकार का खुला संरक्षण है”।
जहरीली शराब से अलीगढ़ में 110 मौतें हुईं। रायबरेली में 11 मौतें हुईं। आजमगढ़ में पिछले 2 दशक में 136 लोग जान गवां चुके हैं। प्रदेश में जगह-जगह अवैध शराब बनाई, बेची जाती है। ये सारे शराब माफिया सीधे नेताओं की छत्रछाया में काम करते हैं।
माफियाओं को योगी सरकार का खुला संरक्षण है।— UP Congress (@INCUttarPradesh) February 22, 2022
राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने भी इसके लिए सरकार पर हमला बोला है— “इन मौतों का जिम्मेदार कोई औऱ नहीं सरकार में बैठे लोग हैं, जिनको फर्क नहीं पड़ता कि कौन मरता है, उन्हें तो सिर्फ सत्ता का फायदा उठा कर काली कमाई करना है और अपराधियों को संरक्षण देना है”।
कल आजमगढ़ में जहरीली शराब के कारण 7 लोगों की दुःखद मृत्यु हो गई। 60 लोग गम्भीर बीमार हैं।
इन मौतों का जिम्मेदार कोई औऱ नहीं सरकार में बैठे लोग हैं, जिनको फर्क नहीं पड़ता कि कौन मरता है, उन्हें तो सिर्फ सत्ता का फायदा उठा कर काली कमाई करना है और अपराधियों को संरक्षण देना है। pic.twitter.com/Cq98Fr83Ej— Rashtriya Lok Dal (@RLDparty) February 22, 2022
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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