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यूपी चुनाव 2022: बेरोज़गार युवा इस चुनाव में गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं

मोदी-योगी से नाउम्मीद युवाओं को विपक्ष से चाहिए रोजगार का भरोसा
UP Election 2022
2 दिसम्बर को लखनऊ विधानसभा तक रोज़गार अधिकार मार्च निकाला गया।

ध्रुवीकरण और सोशल इंजीनियरिंग के परम्परागत पैरामीटर्स के आधार पर चुनाव की भविष्यवाणी करने वाले राजनीतिक पंडितों को इस बार निराश होना पड़ सकता है, सारी fault-lines और विभाजनों के पार बेरोजगार युवा इस चुनाव में गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं और रोजगार का सवाल विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ great unifier बन कर उभर सकता है।

आज पूरे उत्तर प्रदेश में युवाओं में बेरोजगारी को लेकर जबरदस्त आक्रोश है। इस मोर्चे पर डबल इंजन सरकार के total failure और विश्वासघात को लेकर उनके अंदर भारी नाराजगी है और वे उसे मजा चखाना चाहते हैं। आपको इलाहाबाद-लखनऊ विश्वविद्यालय से लेकर साकेत महाविद्यालय अयोध्या और संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी तक एक ही स्वर सुनाई देगा।

वे-एक्सप्रेसवे-एयरपोर्ट मार्का विकास और भव्य-दिव्य मन्दिर, कॉरिडोर लोकार्पण की राजनीति से बिल्कुल impress नहीं हो रहे हैं और पूछ रहे हैं कि क्या इससे उनकी बेरोजगारी दूर हो जाएगी? डरी सरकार उन्हें लैपटॉप और स्मार्टफोन का झुनझुना थमाकर संतुष्ट करना चाह रही थी, पर युवा कह रहे हैं यह चुनावी लॉलीपॉप है। वे भाजपा के शीर्ष नेताओं की सभाओं में अपने सवालों के साथ पहुँच रहे हैं और अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं।

युवाओं के संगठन सजग और सक्रिय हैं

28 दिसंबर को युवामंच ने लखनऊ में युवा- पंचायत का आयोजन किया है।

आचार संहिता के पहले प्रदेश में 5 लाख रिक्त पदों को विज्ञापित कराने, चयन प्रक्रिया में पेपर लीक, भ्रष्टाचार-भाईभतीजावाद रोकने, हर युवा को गरिमापूर्ण रोजगार की गारंटी के मुद्दे पर 28 दिसंबर को युवामंच ने लखनऊ में युवा- पंचायत का आयोजन किया है।

युवामंच की युवा-पंचायत में शामिल होने के लिए प्रयागराज से लखनऊ कूच करता जत्था।

प्रदेश के प्रतियोगी छात्रों के सबसे बड़े केन्द्र इलाहाबाद में ये नौजवान पिछले 4 महीने से uninterrupted धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। युवा मंच के संयोजक राजेश सचान ने योगी सरकार को चेतावनी दी कि अगर प्रदेश में रिक्त पड़े 5 लाख पदों को खासतौर पर 97 हजार शिक्षक भर्ती, 27 हजार टीजीटी पीजीटी, 12 हजार एलटी, 52 हजार पुलिस, 8 हजार लेखपाल, 48 हजार बीपीएड के पदों पर आचार संहिता के पहले विज्ञापन जारी नहीं किया गया तो प्रदेश भर के युवा भाजपा हराओ अभियान चला कर योगी सरकार की रोजगार विरोधी नीतियों की मुखालफत करेंगे और रोजगार को चुनाव का मुद्दा बनाएंगे जिससे भविष्य में कोई भी सरकार युवाओं की अनदेखी न कर सके।

लखनऊ में " यूपी मांगे रोज़गार " अभियान की प्रेसवार्ता

उधर लखनऊ के प्रेस क्लब में " यूपी मांगे रोज़गार " अभियान की ओर से प्रेसवार्ता करके 'रोज़गार अधिकार घोषणापत्र' जारी किया गया। विभिन्न छात्र-युवा संगठनों के इस साझा मंच ने बीते 4 महीने से चल रहे अभियान के अगले चरण में 29 दिसम्बर को इलाहाबाद तथा 7 जनवरी को मोदी जी के संसदीय क्षेत्र बनारस में रोज़गार महापंचायत करने का ऐलान किया।

यूपी चुनाव के लिए जारी उनके " रोजगार अधिकार घोषणापत्र में कहा गया है, " केंद्र की मोदी सरकार ने 2 करोड़ प्रतिवर्ष रोज़गार देने और राज्य की योगी सरकार ने पाँच साल में 70 लाख युवाओं को रोज़गार देने का वायदा कर सत्ता हासिल की। लेकिन आज देश बेरोजगारी दर के मामले में चालीस साल पीछे चला गया है। बेरोजगारी की दर लगभग 10 प्रतिशत से भी ऊपर चली गयी है। यह इसलिए हुआ क्योंकि न ही राज्य की योगी सरकार और न ही केंद्र की मोदी सरकार के पास रोजगार देने की कोई नीति है। बल्कि निजीकरण एवं संस्थाओं को बेचने वाली नीतियाँ , सम्मान व सामाजिक न्याय के साथ रोज़गार की सारी संभावनाओं को ही खत्म कर रहीं हैं। "

प्रेस वार्ता में मौजूद आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एन.साईं बालाजी ने कहा कि, " हमारी मांग है कि सरकार यूपीएससी की तर्ज पर सभी नौकरियों के लिये जॉब कैलेंडर जारी करे। हम विपक्षी दलों से यह अपील करना चाहते हैं कि वे रोज़गार अधिकार घोषणापत्र को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल करें।"

यूपी चुनाव 2022 के अवसर पर यूपी के युवाओं के तरफ से सरकार और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के समक्ष "रोजगार अधिकार घोषणापत्र" पेश करते हुए युवाओं ने मांग की कि सत्ता में बैठी भाजपा सरकार अपना हिसाब दे और अन्य पार्टियाँ रोजगार के मसले पर अपनी नीति स्पष्ट करें।

घोषणापत्र में इसके अतिरिक्त सभी बेरोजगार नौजवानों को 10 हजार रुपया बेरोजगारी भत्ता, इंटरव्यू में भेदभाव को देखते हुए उसे खत्म करने अन्यथा क्वालीफाइंग बनाने, सभी संविदा कर्मियों को स्थाई नियुक्ति तथा समान काम के लिए समान वेतन की गारंटी हो, भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं नियमितता की गारंटी हेतु सांस्थानिक बदलाव, सभी स्वरोज़गारियों के क़र्ज़ अविलंब माफ़ करने, बैंकों से लिए गए शिक्षा ऋण का ब्याज माफ करने और नौकरी ना मिलने तक वसूली पर रोक लगाने एवं निजीकरण पर रोक और रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने जैसे नीतिगत प्रश्न उठाये गए हैं।

ज्ञातव्य है कि 2 दिसंबर को लखनऊ में विधानसभा के समक्ष युवाओं ने जुझारू रोज़गार अधिकार मार्च के माध्यम से यूपी में खाली पड़े लाखों सरकारी पदों को अविलंब भरने की मांग सरकार के सामने मजबूती से रखी थी।

इस बीच शिक्षक भर्ती आरक्षण घोटाले के खिलाफ कई महीनों से चल रहे आन्दोलन को कुचलने की सारी कोशिश कर नाकाम हो चुकी योगी सरकार ने अन्ततः चुनाव आने पर घुटने टेक दिए हैं और 6000 पद आरक्षण के तहत भर्ती का ऐलान किया है।

आन्दोलनरत युवाओं ने इसे अपनी आंशिक जीत माना है। उनका कहना है," ये अधूरी जीत है। सरकार अब भी बेईमानी कर रही है। पूरी लिस्ट आज भी सार्वजनिक नहीं है। 12,000 पदों का और घपला है। OBC के लिए 69000 में से आरक्षित 18598 पदों की जगह मात्र 2637 पदों पर उनकी भर्ती हुई, अर्थात 27% की जगह मात्र 3.86%, इसी तरह दलित-आदिवासी छात्रों के 21% की जगह 16.6% पदों पर ही उनकी नियुक्ति हुई। अब सरकार के 6000 पदों पर भर्ती के ऐलान के बाद भी 12,000 पदों का और घपला है। "

युवाओं का कहना है कि जब सरकार ने मान लिया कि गड़बड़ी हुई है, तब भी उसे पूरी तरह ठीक क्यों नहीं किया जा रहा है ? इसके खिलाफ वे High Court जाएंगे।

दरअसल, युवा आज ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, योगी-मोदी को लेकर अब उनके मन में कोई विभ्रम ( illusion ) नहीं बचा है।

वे इस बात को अच्छी तरह समझ गए हैं कि देशी-विदेशी बड़े पूंजीपतियों के हित में मोदी जो नीतियाँ लागू कर रहे हैं, बेरोजगारी उनका स्वाभाविक परिणाम है। इसीलिए मोदी-योगी के रहते बेरोजगारी का कोई समाधान नहीं हो सकता,वह कम होने की बजाय और बढ़नी है।

जाहिर है मोदी-योगी से तो उन्हें अब कोई उम्मीद नहीं ही बची है, पर विपक्ष इस पर क्या करेगा, इसके प्रति भी वे अभी आश्वस्त नहीं है।

ये युवा भाजपा को सत्ताच्युत करने के लिए मतदान करें, इसके लिए भाजपा से नाराजगी ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि विपक्ष को रोजगार के प्रश्न पर positive committment के साथ सामने आना होगा।

क्या विपक्ष अपने घोषणपत्र व अभियान द्वारा उन्हें ऐसे ठोस आश्वासन दे सकता है जो उन्हें भाजपा के खिलाफ मतदान के लिए प्रेरित कर सके?

क्या लाखों खाली पड़ी सरकार नौकरियों को समयबद्ध कार्यक्रम के तहत भरने और युद्धस्तर पर नये रोजगार सृजन की विपक्ष के पास ठोस योजना है, जिस पर वह प्रदेश के करोड़ों प्रतियोगी छात्रों और युवाओं को भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए आह्वान कर सके और उन्हें galvanise कर सके, जैसा एक हद तक बिहार में महागठबन्धन ने किया था और बाजी को करीब-करीब पलट दिया था?

याद रखना होगा कि गहराता आर्थिक संकट, भयानक बेरोजगारी तथा रोजी-रोजगार के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा ऐतिहासिक तौर पर फासीवाद के उभार की जमीन तैयार करती रही है, इसने ही संघ-भाजपा की विभाजनकारी राजनीति के लिए भी खाद पानी मुहैया कराया है।

पर यही आर्थिक संकट और बेरोजगारी चिली की तरह भारत में युवाओं को बड़े सामाजिक बदलाव का हिरावल भी बना सकती है, जहां 35 वर्षीय पूर्व छात्रनेता गेब्रियल बोरिक ने युवा-आक्रोश की लहर पर सवार होकर राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय किया और एलान कर दिया, "सरकार हमे उपभोक्ता के रूप में बाजार मानती है और हम नागरिक होने का सम्मान चाहते है; जो चिली नवउदारवाद का पालना था, वही उसकी कब्रगाह बनेगा!"

युवाओं को अपने रोजगार और शिक्षा की लड़ाई के साथ ही किसानों व अन्य मेहनतकशों के साथ मिलकर इस देश और लोकतन्त्र को बचाने की ऐतिहासिक लड़ाई भी लड़ना है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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